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Channel: उदंती.com
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जीवन दर्शनः भूलने का विज्ञान- छिपा हुआ वरदान

  - विजय जोशी - पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल, भोपाल (म. प्र.)   उपरोक्तशीर्षक कुछ अटपटा सा लगता है। पर इसका भी निहितार्थ है। सतही तौर पर इस कथन से सहमत नहीं हुआ जा सकता, किंतु उचित परिप्रेक्ष्य में...

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किताबेंः सैनिक पत्नियों की डायरी- महत्त्वपूर्ण अभिलेख

 - रश्मि विभा त्रिपाठीसैनिक पत्नियों की डायरी: वंदना यादव, पृष्ठ: 190, मूल्य: 350 रुपये (पेपरबैक), ISBN: 978-93-5562-382-9, प्रथम संस्करण: 2024, प्रकाशक: प्रभात प्रकाशन प्रा. लि. 4/19 आसफ अली रोड, नई...

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दो लघुकथाएँः

- सुधा भार्गव1.सुहाग की निशानी“बाबा, झुक- झुककर क्या देख रहे हो? कहीं कमर में दर्द न हो जाए!”“क्या बताऊँ बेटा, तेरी दादी का एक बिछुआ  न जाने कहाँ गुम हो गया । दो दिन से ढूँढ रहा हूँ मगर आँखों की नजर...

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दो लघुकथाएँ

 राममूरत ‘राही’ 1. पराया खून "बेटाअशोक! मैं ये क्या सुन रही हूँ, तुम बहू को तलाक देने का सोच रहे हो?" यशोदा देवी अपने बेटे के दफ्तर जाने के बाद से ही अपने कमरे में पड़ी हुई हैं।""माँ! शादी को दस साल हो...

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कहानीः मुलाकात

  - जूही युक्ताबार - बार खिड़की तक जाती और पर्दों के बीच एक छेद बना, बाहर देख लौट आती। जब यह क्रम उसने कई बार दोहरा लिया, तो एक ठंडी गहरी साँस उसके मुख से निकली और वह हताशा से भर कमरे में रखे दीवान पर...

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व्यंग्यः पियक्कड़ों की देशसेवा

  - गिरीश पंकजकिसीने प्रश्न किया : क्या लड़खड़ाते कदमों से भी देश की सेवा हो सकती है?उत्तर मिला : क्यों नहीं हो सकती। इस तथ्य को जो नहीं समझते, वे बंदे नादान हैं। लड़खड़ाते कदमों से चलने वालों को कमअक्ल...

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कविताः कहाँ हो तुम

  - दीपाली ठाकुरपत्र, पत्रिकाओं में देखती हूँ खबर तुम्हारे आने कीऔर फिर आतुर, जा पहुँचती हूँ अपनी गैलरी मेंदेखती हूँ, हथेली की ओट बनामगर पाम की कतारों के बीचया कहीं अकेला ही खड़ा, नही दिखता कोई भी...

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बोध कथाः एक स्त्री किसी पुरुष से क्या चाहती है?

  - निशांतएकस्त्री किसी पुरुष से क्या चाहती है?इस प्रश्न का उत्तर एक कहानी में है। यह कहानी पता नहीं कितनी सच है या झूठ। यह एक फैंटेसी है, तो काल्पनिकता के सारे तत्व इसमें मौजूद हैं।कहते हैं कि राजा...

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कविताः औरतें इतनी उम्मीद क्यों करती हैं?

   - डॉ. शैलजा सक्सेना औरतें इतनी उम्मीद क्यों करती हैं?उनकी उम्मीद कमल के नाल सी,न जाने किस भविष्य में गड़ी होती है,कठोर सच की कैंची काटती है यह नालपर औरतों की उम्मीदें बीजासुर सी हज़ार शरीरों से उग आती...

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कविताःअकिला फुआ

  - डॉ. शिप्रा मिश्रा अब उनकीकोई जरूरत नहीं पड़ी रहती हैंएक कोने मेंअपनी खटारा मशीन लेकर सुतली से बँधे चश्मे कोकई बार उतारती औरपहनती हैं और लगीं रहती हैं सूई में धागे पिरोने कीनिरर्थक कोशिश में एक...

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पर्व- संस्कृतिः सृष्टि का जन्म दिवस- उगादी

 - अपर्णा विश्वनाथउगादीआंध्र प्रदेश की पारंपरिक त्योहारों में से एक है। उगादी/ संवत्सरादि/ युगादि (युग+आदि) यानी एक नए युग की शुरुआत। यह पर्व चंद्र पंचाग के चैत्र मास के पहले दिन (पाड्यमी) को मनाया...

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लघुकथाः हम बेटियाँ हैं न!

- सन्तोष सुपेकर बारहवर्षीया निकिता और दस वर्षीया अमिता घर में अकेली थीं। उनका पाँच वर्षीय इकलौता भाई, माता–पिता के साथ किसी विवाह समारोह में गया हुआ था। दोनों बहनें बैठकर, घर के पुराने फोटो एलबम देख...

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विश्व कविता दिवसः अभिव्यक्ति में कविताएँ गद्य से बेहतर हैं

  - डॉ. डी. बालसुब्रमण्यनयूनिसेफने 21 मार्च के दिन को विश्व कविता दिवस के रूप में घोषित किया है। विश्व कविता दिवस मनाने का उद्देश्य काव्यात्मक अभिव्यक्ति (कविताओं) के माध्यम से भाषायी विविधता को बढ़ावा...

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क्षणिकाएँः हँस पड़ी है नज़्म

   - हरकीरत हीर1. वादा वादा किया था ख़ुद सेकि अब कभी रुख़ न करेंगे तेरे दर की ओर ....बेहया नज़्म  ख़्वाबों में रातभरतेरे लफ़्ज़ों के सिरहानेबैठी रही ....2. चुभनकुछ टुकड़े रातभर चुभते रहते हैं देह मेंजिन्हें...

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आलेखः भाग..उपभोक्ता.. तेरी बारी आई

  - डॉ. महेश परिमलआजकलसरकारी माध्यमों द्वारा उपभोक्ताओं को जाग्रत करने के कई उपाय किए जा रहे हैं। प्रसार माध्यमों में यह कहा जा रहा है कि उपभोक्ता जागो, तुम्हें ठगा जा रहा है। तुम सचेत हो जाओ। तुम्हें...

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संस्मरणः ममता का मूल्यांकन

  - देवी नागरानी मुझसे दो दशक छोटी पर सोच के विस्तार में उसका किरदार मुझसे दो क़दम आगे और ऊँचा।  ऐसी ही एक मानवी ने जब रिश्तों के निर्वाह पर निकली बात पर अपने रिश्ते को लेकर आप- बीती सुनाई, तो सच मानिए,...

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प्रेरकः क्या लोगों को आपकी कमी खलेगी?

 लगभगसौ साल पहले एक व्यक्ति ने सुबह समाचार पत्र में स्वयं की मृत्यु का समाचार छपा देखा और वह स्तब्ध रह गया। वास्तव में समाचार पत्र से बहुत बड़ी गलती हो गई थी और गलत व्यक्ति की मृत्यु का समाचार छप गया।...

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पर्व - संस्कृतिः सामाजिक समरसता का पर्व होली

 - प्रमोद भार्गवहोलीशायद दुनिया का एकमात्र ऐसा त्योहार है,जो सामुदायिक बहुलता की समरसता से जुड़ा है। इस पर्व में मेल-मिलाप का जो आत्मीय भाव अंतर्मन से उमड़ता है, वह सांप्रदायिक अतिवाद और जातीय जड़ता को भी...

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मौसमः अब तक का सबसे गर्म वर्ष

 2024 अब तक का सबसे गर्म वर्ष साबित हुआ, जिसमें वैश्विक तापमान औद्योगिक-पूर्व स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा पार कर चुका है। ऐसे में जलवायु परिवर्तन के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों को अनदेखा...

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महिला दिवसः स्मृति- आनंदीबाई जोशी: चुनौतियाँ और संघर्ष

आनंदी बाई जोशीजन्म 31 मार्च 1865, मृत्यु 26 फरवरी 1887 न्यूयॉर्क के पॉकीप्सी ग्रामीण कब्रिस्तान के ‘लॉट 216-ए’ में, अमरीकियों की कई कब्रों के बीच डॉ. आनंदीबाई जोशी की कब्र है। उनकी आयताकार कब्र पर लगा...

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