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दो लघुकथाएँ

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 राममूरत ‘राही’ 

1. पराया खून 

"बेटाअशोक! मैं ये क्या सुन रही हूँ, तुम बहू को तलाक देने का सोच रहे हो?" 

यशोदा देवी अपने बेटे के दफ्तर जाने के बाद से ही अपने कमरे में पड़ी हुई हैं।"

"माँ! शादी को दस साल हो गए हैं। अभी तक हमारी कोई सन्तान नहीं हुई है। मैंने अपना और उसका चेकअप करवाया था। डॉक्टर ने मुझमें नहीं उसमें खराबी बताई है कि वह कभी भी माँ नहीं बन सकती है।"

"लेकिन-वेकिन कुछ नहीं माँ! मैं उसका इलाज़ करवाते-करवाते थक गया हूँ। मैं उससे तलाक लेना चाहता हूँ। हमें अपना वंश आगे बढ़ाना है।"अशोक ने माँ की बात बीच में काटते हुए कहा।

"बेटा! मेरा कहा मान, बरखा को तू तलाक मत दे। हम अपना वंश आगे बढ़ाने के लिए अनाथाश्रम से एक बच्चा गोद ले लेंगे।"

"नहीं माँ! मुझे अपना ही खून चाहिए पराया नहीं।"

यशोदा देवी ने दीवार पर लगी अशोक की बचपन की तस्वीर पर हाथ फेरते हुए कहा-"बेटा! अगर तेरे पापा भी, तेरे जैसा ही सोचते, तो तू आज इस घर में नहीं होता।

2.चलते-फिरते कार्यालय 

"कुलीभैया, पटना एक्सप्रेस किस प्लेटफार्म पर आएगी?"मातादीन से एक महिला ने पूछा।
"दो नम्बर पर।"
"अंकल, यहाँ से लखनऊ के लिए अभी कोई ट्रेन है क्या?"एक युवक ने पूछा।
"हाँ है। एक घंटे बाद।"
"साबरमती एक्सप्रेस कितना लेट चल रही है?"एक बुज़ुर्ग ने पूछा।
"दो घंटे।"
दोपहर के तीन बज रहे थे। सुबह से अभी तक मातादीन की बोहनी नहीं हुई थी। यात्री ट्रॉली बैग घसीटकर ख़ुद ले जा रहे थे। ऊपर से यात्रियों के बार-बार सवालों के जवाब देते-देते वह तंग आ चुका था, फिर कुछ बड़बड़ाते हुए स्टेशन मास्टर के कार्यालय की ओर चल दिया।
"साहब, मुझे आप पूछताछ कार्यालय में नौकरी लगवा दीजिए।"मातादीन ने स्टेशन मास्टर के पास पहुँचकर कहा।
"क्या बात है मातादीन भाई, आज तुम ऐसा क्यों बोल रहे हो?"स्टेशन मास्टर ने मुस्कुराते हुए पूछा।
"साहब, आप तो जानते ही हैं, जब से रेलवे स्टेशन पर लिफ़्ट, एस्केलेटर की सुविधा शुरू हुई है और पहिये वाले सूटकेस आए हैं, तब से हम कुलियों की कमाई बहुत कम हो गई है। भूखे मरने की नौबत आ गई है।"
"वह तो मैं भी जानता हूँ। अभी तो तुम सिर्फ़ यह बताओ कि नौकरी की बात क्यों कर रहे हो?"स्टेशन मास्टर ने बीच में बात काटते हुए पूछा।
"साहब, वही बता रहा हूँ। अब हम कुली चलते-फिरते पूछताछ कार्यालय भर बनकर रह गए हैं। यात्री हम से सामान नहीं उठवाते हैं, बस पूछताछ करते रहते हैं।"इतना कहते-कहते मातादीन की आँखें भर आईं और फिर वह आँसू पोंछता हुआ कार्यालय से बाहर निकल गया।

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