अनकहीः ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ के दस साल ...
- डॉ. रत्ना वर्मामेरे घर खाना बनाने वाली जो महिला आती है। उसके दो बच्चे हैं; एक लड़का और एक लड़की। दोनों पति- पत्नी कमाते हैं और उन्हें पढ़ने के लिए स्कूल भेजते हैं। परंतु एक बात जो अजीब लगी, जब उसने...
View Articleउदंती.com, मार्च - 2025
वर्ष 17, अंक - 8झूठ आज से नहीं अनंत काल से रथ पर सवार है और सच चल रहा है पाँव - पाँव। -भवानीप्रसाद मिश्रइस अंक मेंअनकहीः‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ के दस साल ... - डॉ. रत्ना वर्मामहिला दिवसःआनंदीबाई...
View Articleजीवन दर्शनः व्यर्थ को करें विदा
- विजय जोशी - पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल, भोपाल (म. प्र.)कल हम न होंगे न कोई गिला होगासिर्फ सिमटी हुई यादों का सिलसिला होगाजो लम्हे हैं चलो हंसकर बिता लेंजाने ज़िंदगी का कल क्या फैसला होगा√) जीवन...
View Articleकविताः इति आई !
- डॉ. सुरंगमा यादवदीमकों ने खाईसी नहीं पाईपुरानी किताबबड़े-बड़े जिल्दसाजों कीकला भी काम न आईसहेजा बहुत सचेत हाथों नेपीले पन्नों की टूटनपर रुक न पाईबेमन विसर्जन की बेलाअब लगता आईहा! इति आई।
View Articleकिताबेंः समय, समाज और प्रशासन की प्रतिकृति
- अनुज मिश्रा पुस्तकः जवाहरलाल हाज़िर हो ( जेल की सलाखों के पीछे पंडित नेहरू के 3259 दिन); लेखकः पंकज चतुर्वेदी, प्रकाशक: पेंगुइन रैन्डम हाउस इंडिया, वर्ष: 2024, पृष्ठ: 186, मूल्य: ₹ 299, ISBN:...
View Articleकविताः शब्द
- सत्या शर्मा ‘कीर्ति’फुसफुसाहट, शालीन संवाद, बहस या चीख़-पुकारशब्द बुनते हैं एक दुनिया, खोलके अभिव्यक्ति के द्वारएक रेशमी रूमाल या एक नुकीली कटार, या दिल को बेधते या पोंछते हैं आँसू की धारस्याही और...
View Articleलघुकथाः मुर्दे
- युगलउसेमुर्दाघर में डाल दिया गया था और वह वहाँ पहले से पड़े एक मुर्दे पर औंधा जा पड़ा था। उसकी छाती के नीचे पहले का सिर और गर्दन दबी थी। पहले ने कसमसाते हुए कहा–"जरा परे हटो भाई! क्या मरे पर कोदो...
View Articleकहानीः बालमन
- डॉ. कनक लता मिश्रा बचपनबड़ा ही मासूम होता है, बहुत ही सुंदर, कोमल, नव कोपलों के समान ताजगी से भरा हुआ। सारे ही भावों का शुभारंभ यहीं से होता है। इसे हम यों भी कह सकते हैं कि सारे भावों की जड़े यही से...
View Articleलघुकथाः आदतें
- सारिका भूषण"साहब!मिसरी या गुड़ कुछ थोड़ा- सा मिलेगा क्या? आज रोटी नहीं ला पाया। घर पहुँचने में घंटा भर से ऊपर लग जाएगा।"- ठेकेदार के जाते ही, घर की मामूली मरम्मत का काम करने आया वह दिहाड़ी मजदूर,...
View Articleव्यंग्य कथाः आराम में भी राम...
- डॉ. कुँवर दिनेश सिंह प्रभु राम में अपनी पूरी आस्था है। लेकिन जब ऐसे लोगों को फलते-फूलते देखता हूँ जो हराम की खाते-पीते हैं, तो कदाचित् यह सोचने को मजबूर- सा हो जाता हूँ कि क्या ऐसे लोगों के सिर पर...
View Articleकविताः बोलने से सब होता है
- रमेश कुमार सोनीबहुत बोलता है वह,बोलते-बोलते उबल जाता है आग बबूला हो जाता हैउसे यह सब अच्छा लगता है क्योंकि उसके अनुसार तो यही उसका टोन है उसे नहीं मालूम कि कब,कहाँ उबलना है और क्योंलोग उसे अब...
View Articleहाइबनः तुम बहुत याद आओगे
- प्रियंका गुप्ताउस रात जाने क्यों मन थोडा उदास- सा था...अजीब सी बेचैनी। बहुत सारी बातें थी मन में; पर समझ नहीं आ रहा था कि बेचैनी थी आखिर किस बात पर। अजीब- सा अहसास। बहुत हद तक कारण अगले दिन समझ आ...
View Articleलघुकथाः बीमार
- कमल चोपड़ासाइकैट्रिस्टके पास जाने के लिये उनकी पत्नी बड़ी मुश्किल से मानी थी। वह पूछती, ‘मुझे क्या हुआ है? मैं तो ठीक-ठाक हूँ। क्या मैं पागल हूँ। साइकैट्रिस्ट डॉ० मदान के कुछ भी पूछने बताने से पहले...
View Articleविज्ञानः बंद पड़ी रेल लाइन का ‘भूत’
भूत-प्रेतके किस्से कहानियाँ काफी प्रचलित हैं। यकीन करें या ना करें, लेकिन ऐसे किस्से-कहानियाँ इतनेरोमांचक होते हैं कि हर जगह इनको सुनने-सुनाने वाले लोग मिल ही जाते हैं।किसी भी आहट, हरकत, या मंजर को...
View Articleकविताः बुद्ध बन जाना तुम
- सांत्वना श्रीकान्त कुछ अल्ड़ह- सा, ऊँघताहिलोरे लेता हुआतुम्हारे ख्वाबों का उन्मादबड़ा जिद्दी है।बन जाना चाहता हैतुम्हारे रूह का लिबास।कमरे में छोड़ी तुम्हारीअशेष खामोशीढूँढ रही है कोना,खुद को स्थापित...
View Articleसंस्मरणः स्मार्ट फ्लायर
- निर्देश निधिकुछबातें कितनी भी पुरानी क्यों न पड़ जाएँ, उनकी यादें इंसान की अनुभूतियों में जीवंत और युवा बनी रहने में पूरी तरह सक्षम होती हैं। ऐसी बातें कहीं खोजी या तलाशी नहीं जा सकतीं। वे तो बस घट...
View Articleआलेखः वीर योद्धा- मन के जीते जीत मेजर मनीष सिंह
- शशि पाधा युद्धएक ऐसा आक्रमणकारी दानव है जिसकी तरकश में केवल हिंसा, संहार और विनाश के तीर-भाले ही संग्रहीत रहते हैं। युद्ध में चाहे हार हो चाहे जीत, बलि तो मानवता और शान्ति की ही चढ़ती है। वायु,...
View Articleप्रेरकः खाना खा लिया? तो अपने बर्तन भी धो लो!
- निशांतखानाखा लिया? तो अपने बर्तन भी धो लो!एक प्रसिद्ध ज़ेन कथा में वर्णित है कि:-एक नए बौद्ध साधक ने अपने गुरु से पूछा – “मैं हाल में ही मठ में शामिल हुआ हूँ. कृपया मुझे कोई शिक्षा दें.”जोशु ने...
View Articleसॉनेटः निर्दिष्ट दिशा में
- अनिमा दास एक संकेत सा.. एक रहस्य सा.. काव्य प्रेयसी के घनत्व में रहते हो तुम, हे कवि! तुम अनंत रश्मियों का हो एक बिंदु नहीं होते जब तुम परिभाषित अनेक शब्दों में.. अपनत्व में नक्षत्रों में होते तुम...
View Articleयात्रा-संस्मरणः भृगु लेक के द्वार तक
- भीकम सिंह पाँचजून दो हजार चौबीस की सुबह आठ बजे मनाली से लगभग पंद्रह किलोमीटर पहले छोटे से बस स्टेशन फोरटीन माइल पर ना मालूम कितने ट्रैकर उतरे हैं। उनमें हम छह (संजीव वर्मा, डॉ॰ ईश्वर सिंह, अशोक...
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