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Channel: उदंती.com
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व्यंग्यः नींद क्यों रात भर नहीं आती!

  - जवाहर चौधरीइसे वैधानिक सूचना की तरह समझिए । हम अपनी बात कह रहे हैं । दरअसल अपनी बात कहने में जोखिम कम होता है, तो बात ये है कि हम सोने के लिए बदनाम थे कभी । अब जाने क्या डर है या चिंता कोई कि आँखों...

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आलेखः साहित्य समाज और पत्रकारिता में भाषायी सौहार्द की भूमिका

  - डॉ. पद्मावती पंड्यारामसनातन संस्कृति का मूल मन्त्र है ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ जहाँ विविध भाषाएँ धर्म और संस्कृतियाँ एक परिवार की भांति समाविष्ट होकर पुष्ट होती हैं, और सह-अस्तित्व में ही अपनी परिणति...

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आलेखः हिन्दी के विकास में ख़तरे

  - सीताराम गुप्ताहिन्दीहमारी संस्कृति की पहचान व वाहक है, इसमें संदेह नहीं; लेकिन हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा है अथवा नहीं, यह विवाद का मुद्दा है। संवैधानिक दृष्टि से हिन्दी भाषा आज हमारे देश की राजभाषा...

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कविताः अब विवश शब्द

 -डॉ. कविता भट्टजीवन की वर्षा मेंपुष्पित-पल्लवितभीजते, घुलते- धुलतेमेरे शब्द - होने को थेअक्षरश: रूपांतरितइक मधुर गीत में;उसी क्षण आकाश मेंचमकी विद्युत-तरंगेंकिसी षड्यन्त्र जैसेप्रबल मारक तंत्र...

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पर्यावरणः स्वच्छ पानी के लिए बढ़ाना होगा भूजल स्तर

  - सुदर्शन सोलंकीपानीकी कमी दुनिया की प्रमुख पर्यावरणीय समस्याओं में से एक है। दुनिया की अधिकांश आबादी ऐसे क्षेत्रों में रहती है जहाँ पानी सीमित है या अत्यधिक प्रदूषित है। जल प्रदूषण स्वास्थ्य की...

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जल संकट: प्रकृति का प्रकोप या मानव की महत्वाकांक्षा

  - देवेश शांडिल्यविगतगर्मियों में बैंगलोर शहर सुर्खियों में रहा, कारण था जल संकट। अब, जहाँ-तहाँ से बाढ़ की खबरें आ रही हैं। यह बात विचारणीय है कि यह सूखे और बाढ़ का चक्र विगत कुछ वर्षों से काफी तेज़ी से...

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ग़ज़लः ख़ुदा भी उसको खुला आसमान देता है

  - मीनाक्षी शर्मा ‘मनस्वी’जो अपनी फिक्र को, ऊँची उड़ान देता हैख़ुदा भी उसको, खुला आसमान देता है। जो देखे आइने को, दिल के अपने साफ़ करके;उन्हीं के अक्स को, मुकम्मल पयाम देता है। ख़्वाहिशें, बंदगी तमाम,...

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शिक्षक दिवसः बहुत याद आते हैं हमारे शिक्षक

  - डॉ. महेश परिमलशिक्षकके लिए बहुत-सी अच्छी-अच्छी बातें कही गई हैं। कोई इन्हें मोमबत्ती की तरह बताता है, जो स्वयं जलते हैं, पर प्रकाश फैलाते हैं। कोई इन्हें ईश्वर से भी अधिक महान् बताता है। कोई इन्हें...

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प्रेरकः शून्य के लिए ही मेरा आमंत्रण

 – निशांतएकसाधु ने अपने आश्रम के अंत:वासियों को जगत् के विराट विद्यालय में अध्ययन के लिए यात्रा को भेजा था। समय पूरा होने पर उनमें से एक को छोड़कर अन्य लौट आए थे। उनके ज्ञानार्जन और उपलब्धियों को देखकर...

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संस्मरणः कस्बों - शहरों की रौनक ...फेरीवाले

  - शशि पाधाबचपन में बहुत सी कहानियाँ पढी थीं, सुनी थीं। कुछ कहानियाँ मन-मस्तिष्क में चित्र की तरह ऐसे टँगी रहती हैं कि वे हमारे अस्तित्त्व का अटूट भाग बन जाती है। मैंने भी रवीन्द्र नाथ टैगोर की कहानी...

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जीवन दर्शनः सम्मान अपनों का: सुखद सपनों का

 - विजय जोशी ( पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल, भोपाल (म. प्र.)किसी से कोई भी उम्मीद रखना छोड़ कर देखोफिर देखो किस कदर ये जिंदगी आसान हो जाये  जीवन उम्मीदों का अपार संसार है और यही हमारी यात्रा की नौका भी...

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अनकहीः फिर वही सवाल...

   - डॉ. रत्ना वर्माकोलकाताके एक सरकारी अस्पताल में एक ट्रेनी डॉक्टर के बलात्कार और फिर हत्या का मामला पिछले एक माह से पूरे भारत वर्ष में  चर्चा का विषय बना हुआ है। यह बहुत अफसोस की बात है कि समाज में...

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पितृ पक्षः दाह-क्रिया एवं श्राद्ध कर्म का विज्ञान

 - प्रमोद भार्गवजीवनका अंतिम संस्कार अंत्योष्टि संस्कार है। इसी के साथ जीवन का समापन हो जाता है। तत्पश्चात् भी अपने वंश के सदस्य की स्मृति और पूर्वजन्म की सनातन हिंदू धर्म से जुड़ी मान्यताओं के चलते...

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उदंती.com, सितम्बर - 2024

वर्ष- 17, अंक- 2तुम वृक्षों के फूल तोड़कर ईश्वर की मूर्ति पर चढ़ा आते हो, किसको धोखा देते  हो, वह पहले से ही ईश्वर पर चढ़ा था और ज्यादा जीवंत था उस वृक्ष पर ।  - ओशोइस अंक में- अनकहीःफिर वही सवाल... -...

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जीवन दर्शनः श्री कृष्ण से सीखें : सफलता के सूत्र

 - विजय जोशी . - पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल, भोपाल (म. प्र.)कृष्ण का जीवन अद्भुत था। वे सामाजिक समरसता के श्रेष्ठ उदाहरण हैं। उन्होंने अपने लिए कभी कुछ नहीं चाहा। निर्बल के पक्ष में न केवल खड़े रह कर न...

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किताबेंः सवेदनाओं से साक्षात्कार

 -  अंजू खरबन्दा  संवेदनाओं का डिजिटल संस्करण (लघुकथा-संग्रह): डॉ. सुषमा गुप्ता, पृष्ठः 120 , मूल्य पेपर्बैकः 260 रुपये, संस्करणः 2024 , प्रकाशकःप्रवासी प्रेम पब्लिशिंग इंडिया, 3/186,...

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कविताः आदर्श स्त्री

 -मंजूषा मनहर ख़्वाहिश के साथथोड़ा मर जाती है स्त्री।स्त्री के भीतर का थोड़ा हिस्साहर बार मर जाता है,ख़्वाहिश के मरने से। ऐसे ही थोड़ा- थोड़ा मरकरएक दिनस्त्री पूरी मर जाती है।फिर स्त्री मेंकहीं नहीं बचती...

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अर्चना राय की दो लघुकथाएँ

1. डोरियाँअस्पतालके बेड पर पड़े -पड़े दुख और ग्लानि से उनका दिल बैठा जा रहा था। जब से उन्हें पता चला कि उनके आपरेशन के लिए बेटे ने घर गिरवी रख पैसे जुटाए हैं, उनके आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। वे...

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लघुकथाः बुद्ध

 -  पूनम कतरियार महाबोधि मंदिर को दूर से ही प्रणाम करते हुए, उन्होनें अपनी मनोकामना पूर्ण होने की मन्नत माँगी। कुछ ही देर में वे रघुआ के कच्चे-घर के बाहर खाट पर बैठे थे। दूर तक फैले विशाल खेतिहर ज़मीन...

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रत्नकुमार साँभरिया की दो लघुकथाएँ

1. फूलओह!आज तो मन्दिर जाने में देर हो गई ।दादी माँ ने दीवार घड़ी की ओर देखा। वे उतावली में गमले में लगे गुलाब के फूल को तोड़ने के लिए आगे बढ़ीं, तो उनका पाँचेक साल का पोता जिद कर बैठा कि फूल वह लेगा ।...

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