वर्ष- 17, अंक- 2
तुम वृक्षों के फूल तोड़कर ईश्वर की मूर्ति पर चढ़ा आते हो, किसको धोखा देते हो, वह पहले से ही ईश्वर पर चढ़ा था और ज्यादा जीवंत था उस वृक्ष पर । - ओशो
इस अंक में-
अनकहीःफिर वही सवाल... - डॉ. रत्ना वर्मा
पितृ पक्षःदाह-क्रिया
एवं श्राद्ध कर्म का विज्ञान - प्रमोद भार्गव
जीवन दर्शनःसम्मान अपनों का: सुखद सपनों का -
विजय जोशी
संस्मरणःकस्बों - शहरों की रौनक ...फेरीवाले -
शशि पाधा
प्रेरकःशून्य के लिए ही मेरा आमंत्रण– निशांत
शिक्षक दिवसःबहुत याद आते हैं हमारे शिक्षक -
डॉ. महेश परिमल
ग़ज़लः ख़ुदा भी उसको खुला आसमान देता है -
मीनाक्षी शर्मा ‘मनस्वी’
जल संकट:प्रकृति का प्रकोप या मानव की
महत्वाकांक्षा - देवेश शांडिल्य
पर्यावरणःस्वच्छ पानी के लिए बढ़ाना होगा भूजल
स्तर-
सुदर्शन सोलंकी
कविताःअब विवश शब्द -डॉ. कविता भट्ट
आलेखःहिन्दी के विकास में ख़तरे - सीताराम गुप्ता
आलेखःसाहित्य समाज और पत्रकारिता में भाषायी
सौहार्द की भूमिका - डॉ पदमावती पंड्याराम
व्यंग्यःनींद क्यों रात भर नहीं आती ! - जवाहर
चौधरी
कविताःमुस्कुराती ज़ेब - रमेश कुमार सोनी
कविताःगाँव की अँजुरी ? - निर्देश निधि
लघुकथाः असली कोयल - स्वप्नमय चक्रबर्ती, अनुवाद/ बेबी कारफरमा
लघुकथाएँः1-भेड़ें, 2- कैमिस्ट्री, 3- दरकती उम्मीद - डॉ. सुषमा गुप्ता
कहानीःप्रार्थनाओं
के विरुद्ध - सत्या शर्मा ‘कीर्ति’
कविताःकभी ऐसा भी हो - स्वाति बरनवाल
दो कविताएँः 1-
पीड़ा, 2- पाँव - सुरभि डागर
किताबेंःमन की
वीणा पर सधे संवेदना के गीत-‘गाएगी सदी’ - रश्मि विभा त्रिपाठी
आलेखःअनुवाद एक कठिन कार्य है - महेंद्र राजा जैन