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अर्चना राय की दो लघुकथाएँ

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1. डोरियाँ

अस्पतालके बेड पर पड़े -पड़े दुख और ग्लानि से उनका दिल बैठा जा रहा था। जब से उन्हें पता चला कि उनके आपरेशन के लिए बेटे ने घर गिरवी रख पैसे जुटाए हैं, उनके आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। वे उस घड़ी को कोस रहे थे, जब उन्होंने बेटे से मिलने गाँव से शहर आने का फैसला किया था।

न आता तो कम- से- कम यह एक्सीडेंट न होता, न ही बेटे के सिर पर मुसीबतों का पहाड़ टूटता। सोच- सोचकर उनका बुरा हाल था। पैर टूटने से कहीं ज्यादा, उन्हें घर गिरवी रखने का दर्द हो रहा था।

बेटे- बहू को सामने से आते देख उनका जी चाहा कि अभी धरती फट जाए और वे उसमें समा जाएँ। मैं अपने बेटे से कैसे नजरें मिला सकूँगा, बहू मेरे बारे में क्या सोच रही होगी? 

पिता तो वह होता है जो बच्चों के दुख- तकलीफ दूर करता है। और एक वह है, जिसने अपने बच्चों को ही तकलीफ में डाल दिया है। एक्सीडेंट में मैं मर क्यों न गया, मन- ही- मन अपने आप को लानतें दे रहे थे।

“बेटा मनीष,..बहू मुझे मा..आ. फ..करना” - हाथ जोड़कर वे हिलककर रो पड़े।

“अरे! पिताजी यह आप क्या कर रहे हैं..” -बेटे ने झट उनके हाथों को थाम लिया।

“बेटा, मुझे पता ही नहीं चला, कब पीछे से आकर  कार ने टक्कर मार दी।”

“पिताजी, सड़क  हादसा तो किसी के साथ भी हो सकता है... इसमें आपकी कोई गलती नहीं है।” बहू ने  कहा।

“पर बेटा... मेरी वजह से घर....” -कहते हुए उनकी हिचकियाँ बँध गईं।

 “कोई बात नहीं पिताजी आपके साथ और आशीर्वाद से ऐसे कई घर बना लेगें।”  बेटे ने  ढा़ढस बँधाया।

“हम्म...”- बेटे  की बातों ने उनके मन पर पड़े बोझ को हल्का कर दिया।

 दर्द और कमजोरी की वजह से उनकी आँखें मुँद रहीं थीं, इसलिए वे उन्हें बंद कर शांत भाव से लेट गए। 

“पिताजी!...आप बिल्कुल भी चिंता मत कीजिए .... सब ठीक हो जाएगा।” -आगे बढ़कर बहू ने ससुर के माथे पर प्यार से हाथ फेरकर सहलाते हुए कहा।

ममता- भरा नर्म स्पर्श पाकर उन्होंने आँखें  खोलीं। सामने देखकर वे चकित रह गए ! अचानक उन्हें बहू के चेहरे में अपनी माँ की छवि दिखाई दे रही थी।

वह भी तो ऐसे ही उनके सिर पर हाथ फेर सारी तकलीफें हर लेती थी।

वहाँ खड़ी नर्स की आँखें बरबस भीग गईं। 

 एक तीस साल की माँ का साठ साल के बेटे को दुलार करते देखकर ! 


2. मोबाइल है न!

"हैलो।"

"...... "

 "हाँ माँ।"

"..... "

 "शादी से?...मैं तो कल ही आई हूँ। "

".... "

"शादी तो अच्छी थी; पर माँ मैं शादी में गई जरूर थी पर मेरा मन तो यहाँ घर पर बेटे में ही अटका रहा।"

".... "

 "क्यों? अरे! पहली बार जो उसे घर पर अकेला छोड़ कर गई थी। वह भी तीन दिनों के लिए।"

".... "

"हाँ! आप सही कह रही हैं, कि शायद अब वह सच में बहुत बड़ा हो गया है।"

".... "

"क्या हुआ?..मुझे तो लगा था कि, इतने दिनों बाद मेरे घर आने पर मुझे देखकर वह लिपट जाएगा, लाड़ लड़ाएगा,  कुछ शिकवे- शिकायत करेगा, पर उसने ऐसा कुछ नहीं किया। बस वह तो अपने मोबाइल में ही बिजी रहा।"

"..... "

 "जब मैंने उससे पूछा कि बेटा मेरे घर पर न रहने पर तुम्हें बहुत अकेला फील हुआ होगा। तो जानती हो उसने क्या कहा बोला? "

".... "

 "उसने कहा, नहीं मॉम! मोबाइल है न मेरे पास।"

".... "

 "फिर ?...मैंने उससे पूछा, रात को तो मेरी याद जरूर आई होगी? तो वह बोला नहीं मॉम मोबाइल है न!...दोस्तों के साथ चैटिंग करने और अमेजन प्राइम पर फिल्म देखते देखते सो गया था। माँ, न जाने क्यों उसकी बातें सुनकर मेरा दिल टूट- सा गया।"

"..... "

 "फिर भी मैंने पूछा, क्या खाना खाते समय भी मेरे हाथ के खाने की याद नहीं आई? "

".... "

"क्या बोला? मेरे पास मोबाइल है न, स्विग्गी और जोमैटो से अपने फेवरेट खाने को ऑर्डर कर दिया था। कहते हुए बेटा अपने मोबाइल में ही बिजी रहा।

 अच्छा हुआ माँ जो हमारे समय में मोबाइल नहीं था पर हमेशा माँ थी।"

सम्पर्कः भेड़ाघाट जबलपुर म. प्र.


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