संस्मरण- मेरे पिता का डेस्क
-शशि पाधा मन की गठरी खोली तो रुई के फाहों की तरह उड़ने लगी अतीत की स्मृतियाँ। बहुत कुछ उड़ता रहा और कुछ मेरे हाथ आया। हाथ आई उन सुधियों की एक कड़ी...हमारा परिवार सम्पन्न नहीं था लेकिन ख़ुशहाल था।...
View Articleआलेख- समाधान में समस्या तलाशते लोग
-डॉ. महेश परिमलहमसब कोरोना काल के भीषण दौर से गुजरकर अब कुछ राहत की सांस ले रहे हैं। इस दौरान हम सबने मौत को अपने बेहद करीब से गुजरते देखा। बहुत से अपनों को खोया। मौत एक कड़वी सच्चाई है, इसके बाद भी...
View Articleनीति- जनसंख्या वृद्धि दर घट रही है
-सोमेश केलकरवर्ष 1951 की जनगणना में भारत की जनसंख्या 36.1 करोड़ थी। वर्ष 2011 में हम 1.21 अरब लोगों की शक्ति बन गए। भारत की जनसंख्या में तथाकथित ‘जनसंख्या विस्फोट’ से कई समस्याएँ बढ़ीं - जैसे बेरोज़गारी...
View Articleआलेख - औचित्य खोते वैश्विक संगठन
-देवेंद्र प्रकाश मिश्र दृश्य 1: सुरक्षित स्थान की तलाश में अपने ही देश से पलायन करने के लिए एयरपोर्ट के बाहर हज़ारों महिलाएँ, बच्चे और बुजुर्गों की भीड़ लगी है। कई दिन और रात वो भूखे प्यासे वहीं डटें हैं...
View Articleअनकही- छोटे सपने ऊँची उड़ान
-डॉ. रत्ना वर्मामंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है।पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है। सपनेसब देखते हैं । सपने देखने के लिए अमीर या गरीब नहीं होना होता। बचपन के सपने बहुत...
View Articleउदंती.com, सितम्बर- 2021
वर्ष -14, अंक -1एक पल एक दिन को बदल सकता है, एक दिन एक जीवन को बदल सकता हैऔर एक जीवन इस दुनिया को बदल सकता है। - गौतम बुद्धअनकहीःछोटे सपने ऊँची उड़ान- डॉ. रत्ना...
View Articleकलाकार- पंथी का देदीप्यमान सितारा- राधेश्याम बारले
- संजीव तिवारी विश्वके सबसे तेज नृत्य के रूप में प्रतिष्ठित छत्तीसगढ़ के लोक कला पंथी नृत्य के ख्यात नर्तक पंथी सम्राट स्व. देवदास बंजारे के साथ डॉ. आर.एस. बारले का नाम देश-विदेश में चर्चित है। सतनामी...
View Articleकिताबें- विविध भावों से युक्त हाइकु
-रमेशकुमार सोनीपुस्तक - भाव-प्रकोष्ठ -हाइकु संग्रह ,डॉ. सुरंगमा यादव,अयन प्रकाशन ,महरौली-नई दिल्ली सन-2021, पृष्ठ-112 मूल्य-230रुपये। हिन्दीहाइकु एक ऐसी विशिष्ट विधा है जिसे अपनाना तो सभी चाहते...
View Articleजीवन दर्शन- प्रार्थना से प्रेम
- विजय जोशी ( पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल, भोपाल (म. प्र.)उल्टा नाम जपत जग जानावाल्मीकि भये ब्रम्ह समाना प्रार्थना एक अद्भुत समाधान है क्षण संकट के हों या फिर अन्यथा। दरअसल बाहरी तौर पर जब हम...
View Articleनवगीत- बौराहिन लछमिनिया
-शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’ सूखे पत्तों पर सोते हैं धुँधले उजले दिन।नई सुबह ने केवल बदला है अपना परिधान,उस ने पढ़ा नहीं है अब तकगणित, जीवविज्ञान,नहीं निकाल रही है सुविधाचुभी पैर में पिन। जहाँ गरीबी के...
View Articleव्यंग्य- घटनाओं की सनसनी
- बी. एल. आच्छा इलेक्ट्रॉनिकचैनल के मुख्य संपादक से मैंने ऐसे ही पूछ लिया-‘आपने मिडल ईस्ट में राकेटों की वर्षा खूब दिखाई; पर आप आकाशगंगा में छिटकते- टूटते- वर्षा से बरसते सितारों को खबर क्यों...
View Articleकहानी- टूटे सपने
- विनय कुमार पाठकटीं.........।डोरबेल की आवाज सुन बालकेश्वर प्रसाद उठे।लगता है कमलेश बाबू आ गए,कहते हुए वे उल्लासपूर्वक दरवाजे की ओर बढ़े।आखिर पुराने परिचित,बल्कि मित्र से मुलाकात होने वाली थी...
View Articleलघुकथा - जेनरेशन गैप
-डॉ.जेन्नी शबनम ‘रोज-रोज क्या बात करनी है, हर दिन वही बात - खाना खाया, क्या खाया, दूध पी लिया करो, फल खा लिया करो, टाइम से वापस आ जाया करो।’ आवाज में झुँझलाहट थी और फोन कट गया। वह हत्प्रभ रह गई। इसमें...
View Articleलघुकथा- फ़र्क
- कृष्णा वर्मादिन भर की थकी माँदी सिर केदर्द से परेशान ज़ोया घर लौटी। आते ही माँ बरस पड़ी। रात के नौ बज रहे हैं, यह कौन सा वक़्त है दफ़्तर से घर लौटने का?क्या हो गया अम्मी, बताया तो था आज बहुत ज़रूरी मीटिंग...
View Articleकविता- स्त्री
- दिव्या शर्माअसफल प्रेम मेंस्त्री व्यभिचारिणी घोषित होती हैक्योंकि पुरुष, स्त्री के चरित्र तलेखुद को छिपा लेता है। असफल विवाह मेंस्त्री दोषी घोषित होती हैक्योंकि पुरुष, स्त्री के अवगुण तलेखुद को छिपा...
View Articleमाहिया- अब हुआ सवेरा है
- डॉ. आशा पांडेय, अमरावती1.नभ में लाली छाईदिनकर से मिलकरसंध्या है शरमाई ।2.मन में अब धीर नहींगहन निराशा हैदिखती ना राह कहीं।3.दिल में दुख गहरायानयन गगरिया मेंऊपर तक भर आया।4.माँ ने दाना लायाचहक रहे...
View Articleकोविड- 19- बच्चों में ‘लॉकडाउन मायोपिया’
लगभग डेढ़ साल से बच्चे घर पर हैं। और तब से उनकी शिक्षा और मनोरंजन डिजिटल स्क्रीन में सिमट गए हैं। इसका मतलब है कि वे अधिक समय तक मोबाइल फोन देख रहे हैं। नेत्र रोग विशेषज्ञों का कहना है कि कोविड-19...
View Articleताँका- लेके तेरा संदेशा
कमला निखुर्पा1मैं तो ये चाहूँ बूँद बन बरसूंमोती न बनूँपपीहे कोई पुकारेप्यास मैं बुझा पाऊँ। 2चाहत मेरी कस्तूरी सुगंध सीछुप के रहूँ महकाऊँ जो यादें खोजें जग हिरन ।3 पावन तुमवैदिक ऋचाओं सीजीवन यज्ञ समिधा...
View Articleसंस्मरण - आहत मासूमियत
-प्रगति गुप्ताकरीबदो घंटे से एक युवती को अपने चेम्बर के बाहर गुमसुम बैठा देखकर मेरे मन में एक सवाल उठा क्यों बैठी है यह युवती? जबकि दो बार रिसेप्शनिस्ट ने उसको आवाज़ देकर पूछ लिया,क्या हुआ है आपको?...
View Articleप्रेरक- गाँधी जयंतीः सादगी और मितव्ययता के पाँच पाठ
गाँधीजी के जीवन और दर्शन में मितव्ययता और अपरिग्रह के सर्वश्रेष्ठ सूत्रों का सार मिलता है। उन्होंने अपने जीवन के हर पक्ष में सादगी और मितव्ययता को अपनाया और इन्हीं के कारण उनका जीवन एक अनुकरणीय उदाहरण...
View Article