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माहिया- अब हुआ सवेरा है

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- डॉ. आशा पांडेय, अमरावती

1.

नभ में लाली छाई

दिनकर से मिलकर

संध्या है शरमाई ।

2.

मन में अब धीर नहीं

गहन निराशा है

दिखती ना राह कहीं।

3.

दिल में दुख गहराया

नयन गगरिया में

ऊपर तक भर आया।

4.

माँ ने दाना लाया

चहक रहे चूजे

माँ के मुँह से खाया।

5.

अब हुआ सवेरा है

पंछी ने सुर का

हर रंग बिखेरा है।

6.

ये मोती की लड़ियाँ

खुल-खुल जाती हैं

यादों की सब कड़ियाँ।

7.

सिकता -सी सरक गई

जीवन की खुशियाँ

मुठ्ठी से फिसल गई।

8.

जीवन दुख का मेला

जब तक प्राण रहें

फिर मिट्टी का ढेला।

9

ये तुलसी की क्यारी

दीप जले जगमग

छवि लगती है न्यारी।


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