किताबें- उम्र भर देखा किए
– डॉ. प्रताप सहगल पुस्तकःजीवनी- सूरज प्रकाश, लेखक- विजय अरोड़ा, प्रकाशक- इंडिया नेटबुक्स, सी 122 सेक्टर 19, नोयडा- 201301,मूल्य-200 रु. (पेपर बैक), 350 रु. (हार्ड बॉन्ड)उम्र भर देखा किए… हिन्दी के...
View Articleसंस्मरण- तुम्हारे जाने के बाद
-कल्पना मनोरमाअगरआज तुम हमारे बीच होतीं, तो हम फरवरी में तुम्हारी छाँछठवींसालगिरह मना रहे होते। वो भी बिल्कुल नासमझ बचपन को मन में समेटे हुए क्योंकि माँ के रहते इंसान कब बड़ा हुआ है! लेकिन तुम्हारे जाने...
View Articleपर्व-संस्कृति - खालसाई ओज का प्रतीक होला महल्ला
-डॉ. पूर्णिमा राय आजकी भागदौड़ भरी जिंदगी में जहाँ एक ओर त्योहारों को अनदेखा और नजर अंदाज किया जा रहा है,वहीं दूसरी ओर लोगों में आपसी सदभाव और मिलनसारिता के भाव धूमिल होने लग गएहैं। जब भी होली की बात...
View Article8 मार्च महिला दिवस - एक आँख का क्या बंद करें और क्या खोलें
-डॉ. पद्मजा शर्मा (साहित्यकार एवं शिक्षाविद) पिछलेदिनों एक खबर पढ़ी। मन गुस्से से भर गया। आज भी हम और हमारा समाज लड़के वाली ग्रंथि से बाहर नहीं आए...
View Articleकोरोना- क्या टीके की दूसरी खुराक में देरी सुरक्षित है?
सार्स-कोव-2 महामारी को नियंत्रित करने के प्रयासों में एक बड़ी समस्या टीकों की कमी और उसका वितरण है। ऐसे में कुछ वैज्ञानिकों ने दूसरी खुराक को स्थगित करने का सुझाव दिया है,ताकि अधिक से अधिक लोगों को पहली...
View Articleअनकही- प्रकृति को भी चाहिए साँस लेने की जगह...
- डॉ. रत्ना वर्मानदीका धर्म है बहते चले जाना, यदि कोई उनके मार्ग को रोकने की कोशिश करेगा,तो वह उसे तोड़कर पूरे वेग के साथ आगे बढ़ जाएगी और हुआ भी यही।हमने बाँध बनाकर उसे रोकना चाहा, पर वह तो निश्छल,...
View Articleउदंती. com, मार्च–2021
वर्ष- 13 अंक- 6नारी की करूणा अंतर्जगत का उच्चतम विकास है जिसके बल पर समस्त सदाचार ठहरे हुए हैं। -जयशंकर प्रसादइस अंक मेंअनकही:प्रकृति को भी चाहिए साँस लेने की जगह....-डॉ. रत्ना वर्मा कोरोना:क्या...
View Articleजीवन दर्शनः खुशियाँ ढूँढें अपने अंदर
-विजय जोशी (पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल , भोपाल) ज़िंदगी ज़िंदादिली का नाम हैमुर्दादिल क्या ख़ाक जिया करते हैं खुशी या गम, सुख या दुख सब अंतस की अवस्था है। यह हम पर निर्भर करता है कि हमारा खुद और...
View Articleप्रेरकः मीठा-नमकीन
-निशांतमैंने एक बहुत पुरानी कहानी सुनी है… यह यकीनन बहुत पुरानी होगी क्योंकि उन दिनों ईश्वर पृथ्वी पर रहता था। धीरे-धीरे वह मनुष्यों से उकता गया क्योंकि वे उसे बहुत सताते थे। कोई आधी रात को द्वार...
View Articleखोजः माया सभ्यता का महल खोजा गया
मेक्सिकननेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ एंथ्रोपोलॉजी एंड हिस्ट्री के पुरातत्वविदों को माया सभ्यता का पत्थरों से बना एक महल मिला है जो कुछ हज़ार वर्ष से भी अधिक पुराना है। माया सभ्यता वर्तमान के दक्षिणी मेक्सिको से...
View Articleविरासतः पुरातात्विक अध्ययनों में नए नज़रिए की ज़रूरत
पुरातात्विक स्थलों से प्राप्त वस्तुओं-कंकालों के आधार पर वैज्ञानिक उस समय के समाज-संस्कृति का अनुमान लगाते हैं। कांस्य युगीन युरोप से प्राप्त टूटे-फूटे कंकालों के देखकर यह अंदाज़ा मिलता है कि यह समय इस...
View Articleलघुकथाः श्रद्धांजलि
- सतीश दुबेपिताकी मौत हुए चार दिन हो चुके थे। वह घुटनों पर चेहरा नीचे किए बैठा था। तभी छोटा भाई कान में बुदबुदाया, ‘पिता के दफ़तर से एकाउंटेन्ट आए हैं।’उसने सर उठाकर, सामने बिछे जूट के बोरे पर गमगीन...
View Articleहाइकुः पतझड़
- डॉ. महिमा श्रीवास्तव1.झरते पातपतझड़-सा मनरूठे साजन।2.मंद बयारशरद सुहावनामन कसके।3.धवल आभाचाँद ने पसराईयाद वे आए।4.साँझ की बेलाचौखट से चिपकीउदास आँखें।5.तमस छँटेभोर का तारा हँसेआशा भी जगे।6.शेफाली...
View Articleपुस्तकः भारतीय मिट्टी की सोंधी महक से सुवासित- ‘प्रवासी मन’
-डॉ. शिवजी श्रीवास्तवप्रवासी मन (हाइकु -संग्रह)- डॉ. जेन्नी शबनम,पृष्ठ- 120,मूल्य-240रुपये,प्रकाशक-अयन प्रकाशन,1/20,महरौली,नई दिल्ली-110030, संस्करण- 2021 ‘प्रवासी मन’ डॉ. जेन्नी शबनम का प्रथम...
View Articleकाव्यः तस्वीर जूते नहीं उतारती
- डॉ. कविता भट्टवह देहरी के बीचो-बीच जूते उतारभीतर आता था,जूतों से सबको ठोकर मिलतीपत्नी कहती रही- कभी तो सही जगह रखो जूतेखाने के बाद धोकर हाथ-वह पर्दे से ही पोंछता था।बहुत से रजिस्टर भर दिए थेलिख-लिखकर...
View Articleकहानीः तलहटी
- प्रेम गुप्ता‘मानी’अगरतैयारी पूरी हो तो न जन्म लेने में वक़्त लगता है...न इस संसार से विदा होने में...। लेकिन कभी-कभी पूरी तैयारी के बावजूद वक़्त जैसे ठहर जाता है और उस ठहरे हुए वक़्त के बिछावन पर जन्म...
View Articleतीन ग़ज़ले
- डॉ. गिरिराज शरण अग्रवाल एक फूल सपनों के खिलेंगे, कामना करते चलेंसाथ लाएँगे, बहारें, फ़ैसला करते चलें जिदगी सुलझा ही लेगी अपने हर उलझाव कोउलझनें जितनी भी हैं, दिल से जुदा करते चलें आने वालों को न...
View Articleव्यंग्यः हमरा लोकतंत्र खेला हौबे
- बी. एल. आच्छा चुनावभी लोकतांत्रिक खेला है। जब भी होता है, नया-नया खेला हुइबे। लोकतांत्रिक खेला -बुद्धि इतनी चतुर कि तुम डाल- डाल हम पात -पात को भी धता बता देती है। हर बार नए पंगे। नए दाँव। बुद्धि...
View Articleगीतः वो देखें तो !
-डॉ. ज्योत्स्ना शर्माआया है रंगीला मौसम,कैसा छैल-छबीला मौसम। सब्ज धरा के अंग -अंग पर,लाल, गुलाबी , पीला मौसम। बागों में बौराया डोले, सुन्दर, खूब सजीला मौसम। आकर बैठ गया धरने पर,देखो आज हठीला मौसम।...
View Articleसंस्मरणः अंतिम उपहार
- परमजीत कौर ‘रीत’ वहबहुत छोटी उम्र में ही हमारे घर गाड़ी की ड्राइविंग के लिए आने लगा था, उससे पहली बार कब मिलना हुआ, याद नहीं। बस इतना याद है कि लगभग पाँच वर्ष पहले जब शिक्षा विभाग के नियमानुसार मेरी...
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