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Channel: उदंती.com
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नवगीत- जागो! गाँव बहुत पिछड़े हैं

- शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’बंसी बजती है विकास की?कहो! आज तक इन गाँवों में,जागो! गाँव बहुत पिछड़े हैं। चकबंदी के पाँव गाँव की,पगडण्डी को मिटा गए हैं,नई लकीरों से खेतों को,एक सीध में  लिटा गए हैं,अभी तलक...

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कहानी- पूरा चाँद अधूरी बातें

-भावना सक्सैनापढ़ते-पढ़ते आँख लग गयी थी शायद… खुली तो देखा रात बहुत गहरा चुकी थी। उठकर कुछ और करने का साहस न था तो उसने सोचा कि वापस नींद की गिरफ्त में खो जाना ही बेहतर होगा। टेबल लैंप बुझाया,तो चाँद...

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ग़ज़ल- अधूरा रह गया

- रमेशराज पत्थरों ने मोम खुद को औ’ कहा पत्थर हमें प्रेम में जज़्बात के कैसे मिले उत्तर हमें। आप कहते और क्या जब आपने डस ही लियाअन्ततः कह ही दिया अब आपने विषधर  हमें। इस धुँए का, इस घुटन का कम सताता डर...

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किताबें- जाबाज़ वीरों की सत्य कहानियाँ

-स्वराज सिंहपुस्तकः निर्भीक योद्धाओं की कहानियाँलेखिका:शशि पाधा प्रकाशक: प्रतिभा प्रतिष्ठाननई दिल्ली,पृष्ठ: 150,मूल्य: 300/-भारतीयजनमानस को प्रेरित करने वाली, देश के प्रति देशवासियों को उनका कर्तव्य...

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स्मरणः साहित्य के मूक साधक- पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी

- विनोद सावआधुनिककाल में हिन्दी निबंधों के विकास का पहला युग भारतेंदु युग कहलाया और दूसरा युग द्विवेदी युग। तीसरा युग शुक्ल युग। इस तीसरे युग में रामचंद शुक्ल के साथ बाबू गुलाबराय, पदुमलाल पुन्नालाल...

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डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जयंती- 3 दिसम्बर

शुचिता का सफ़रनामा-विजय जोशी (पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल, भोपाल)निर्मल मन जन सो मोहि पावामोहि कपट ,छल, छिद्र न भावा        स्वाधीनता के उपरांत हमारे प्रजातंत्र में मूल्य कैसे गिरे इसका साक्षात उदाहरण...

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आलेख- छत्तीसगढ़ और उड़ीसा की साझी संस्कृति- महानदी

-प्रो. अश्विनी केशरवानी महानदी, छत्तीसगढ़ प्रदेश एवं उड़ीसा की अधिकांश भूमि़ को सिंचित ही नहीं करती,वरन् दोनों प्रदेशों की सांस्कृतिक परम्पराओं को जोड़ती भी है। आज भी छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक परम्पराएँ...

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कोविड-19- इस महामारी का अंत कैसे होगा?

कोईभी घातक महामारी हमेशा टिकी नहीं रहती। उदाहरण के लिए 1918में फैले इन्फ्लूएंज़ा ने तब दुनिया के लाखों लोगों की जान ले ली थी लेकिन अब इसका वायरस बहुत कम घातक हो गया है। अब यह साधारण मौसमी फ्लू का कारण...

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पर्यावरण- हरित पटाखे, पर्यावरण और स्वास्थ्य

-सुदर्शन सोलंकीदिवाली आई और निकल गई। कुछ राज्यों में पटाखों पर प्रतिबंध लगाए गए थे;लेकिन कुछ राज्यों में समय-सीमा के अलावा और कोई रोक नहीं थी। वैसे तो इस बार दिवाली पर पटाखों का शोर पिछले सालों की...

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आलेख- घृणा का स्थान

-प्रेमचंदनिंदा,क्रोध और घृणा ये सभी दुर्गुण हैं, लेकिन मानव जीवन में से अगर इन दुर्गुणों को निकल दीजिए, तो संसार नरक हो जायेगा। यह निंदा का ही भय है, जो दुराचारियों पर अंकुश का काम करता है। यह क्रोध ही...

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अनकही- जाते हुए साल में...

- डॉ. रत्ना वर्मा2020के जाते हुए इस साल ने हमें बहुत कुछ सिखाया है। इस कठिन समय में अपने परिवार का साथ कितना जरूरी है,यह तो सबने जान ही लिया है;पर जो सबसे बड़ी बात हमने इस दौर में सीखी है , वह है...

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उदंती.com, दिसम्बर-2020

चित्र- सुधा भार्गववर्ष- 13, अंक-3अगर आप आपदाओं के बारे में सोचेंगे,तो वह आ ही जाएगी, अगर आप मृत्यु के बारे में गंभीरता से सोचते हैं,तो आप अपनी मौत की ओर बढ़ने लगते हैं , जब आप सकारात्मक और स्वेच्छा से...

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जीवन- दर्शन

  अहंकार के अंत का सरल सूत्र  -विजय जोशी (पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल , भोपाल)जो आपसे झुककर मिला होगाउसका कद आपसे ऊँचा रहा होगा       जीवन में विनम्रता एक अद्भुत गुण है यह हम सबने बचपन से सुना है और यह...

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क्षणिकाएँ

माँ वो ख़त तुम्हारा ही है ना! -मीनू खरे(1)कल रात इक ख़त को खोलते ही बत्ती चली गई माँ वो ख़त तुम्हारा ही है ना!अँधेरे में मैंने अक्षरों को सहला कर देखा था बड़े मुलायम थे हर्फ़!(2)अकेलापनहै खाद जो करे...

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बालकथा

लॉक डाउन -मंजूषा  मनलॉकडाउन को अभी पाँच -छह दिन ही हुए थे। बच्चे रिया और ऋषभ दोनों ही मोबाइल में गेम खेल खेल कर बोर हो गए थे। कहाँ दोनों बच्चे मोबाइल चलाने के लिए जिद करते थे। पर इस लॉक डाउन में जब कुछ...

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किताबें

 प्रासंगिक और अनुभूतिपरक रचनाएँ ‘मौन की आहटें’ डॉ.कविता भट्ट ‘शैलपुत्री’वरिष्ठ रचनाकार शशि पाधा को पढ़ना प्रत्येक बार एक नईअनुभूति उत्पन्न करता है। उन्होंने साहित्य -जगत्को अपनी अनेक कृतियों से...

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कुछ क्षणिकाएँ

पहरे पर होता चाँद-रचना श्रीवास्तव   1साँवली  रात कीसिलवटों मेंखोए रहते थे हमऔर पहरे पर होता चाँदखुल चुकी हैंसिलवटें अब तो ,और घायल है चाँद2सौपके खुशबूदर्द  ने बढ़ायासदा हौसला मेराआज जो मुड़के देखावो...

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चार लघुकथाएँ

- डॉ. शैलेष गुप्त ‘वीर’1. अकृतज्ञबसमें बहुत ज़्यादा भीड़ थी। बैठना तो दूर, ठीक से खड़े होने तक की जगह नहीं थी। कुछ देर बाद बस अगले ठहराव पर रुकी। वहाँ से एक दम्पती चढ़े, उनके साथ एक दुधमुँहा बच्चा भी था।...

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कविता

 नूतनता के विभ्रम में-डॉ. कुँवर दिनेश सिंहभोर जागी, तम सो गया,काल की अथक चक्की में...जो दल गया, सो खो गया। साल आया व साल गया,नूतनता के विभ्रम में...ठग हमको हर साल गया। फिर आया है साल नया,दिन बदला,...

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लघुकथा

 पेट पर लात-विक्रम सोनीउसेआज भी मजदूरी नहीं मिली। मजबूत कद–काठी का था। अत:, भीख माँगना उसको बीमार बना देता। शहर भर की सड़क नापने के बाद वह मोटर स्टैण्ड के शैड में सुस्ताने बैठ गया है। करीब ही एक बाबू...

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