अहंकार के अंत का सरल सूत्र
जो आपसे झुककर मिला होगा
उसका कद आपसे ऊँचा रहा होगा
जीवन में विनम्रता एक अद्भुत गुण है यह हम सबने बचपन से सुना है और यह भी कि विद्या विनय से ही शोभित होती है
विद्यां ददाति विनय, विनयाद् याति पात्रताम्
पात्रत्वात् धनमाप्नोति, धनात् धर्मं ततः सुखम्
अर्थात विद्या से विनय, विनय से पात्रता, पात्रता से धन, धन से धर्म और अंत में सुख की प्राप्ति होती है। कुल मिलाकर विनय की नींव पर ही जीवन के सब सुख, सुविधा एवं संतोष की इमारत खड़ी होती है, लेकिन यह तथ्य जानने के बावजूद हममें से कितने इस पर अमल कर पाए। वस्तुत: होता तो यह है कि जग बौराई राज पद पाई या फिर प्यादे से फर्जी भयो टेढ़ो टेढ़ो जाय। ऐसे परिदृश्य में एक छोटा-सा प्रसंग।
किसी ने पूछा – जीवन में इतना सब प्राप्त करने के बाद भी यह सब भला क्यों।
आपको याद होगा कुछ अरसे पूर्व, स्वयं के सम्मान हेतु आयोजित समारोह में नारायण मूर्ति को मंच पर ही रतन टाटा के पैर छूते हुए देखा गया था। क्या यह सचमुच संभव है। एक ऐसा व्यक्ति जिसके पास संसार की सारी सुविधाएँ हों जैसे आलीशान बंगला, महँगी कारें वह परिवार सामान्य जन की तरह हर सामान्य कार्यरूपी सेवा पूरे समर्पण तथा श्रद्धा सहित करे। आज के दौर में यह आश्चर्य का विषय ही कहा जाएगा। ऐसे ही तो होने चाहिए हमारे आदर्श।
जो देखना हो इनकी उड़ान को
तो ऊँचा कर दो आसमान को
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