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अनकही

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 सबक सिखाने का समय...
- डॉ. रत्नावर्मा
पिछलेमहीनेपुलवामामेंसीआरपीएफ़केकाफि़लेपरकियागयाआत्मघातीहमला, देशकेधैर्यकीपराकाष्ठाहै।आतंकवादकेविषधरोंऔरउनकोप्रश्रयदेनेवालोंकोनिर्मूलकरनाज़रूरीहै।इसहमलेकेबादपूरादेशपुलवामामेंशहीदहुए 40 जवानोंकीशाहदतकाबदलालेनेकोबेसब्रहै।वेएकहोकरपाकिस्तानकोसबकसिखानाचाहतेहैं।माहौलऐसाहैकियदियुद्धभीछिड़जाएतोलोगफौजकेसाथकंधासेकंधामिलाकरलडऩेकोतैयारहैं।भारतकीफौजनेबालकोटहमलाकरकेयहसंदेशपाकिस्तानकोतोदेहीदियाहैकिअबहमऔरचुपनहींरहसकते।हमारेजांबाजपायलटअभिनन्दनकोबिनाशर्तवापसलौटानेकीबातस्वीकारकरकेपाकिस्तानीप्रधानमंत्रीयहभीसमझगएहैंकिभारतकीफौजअबपीछेनहींहटेगी।लेकिनयहकोईसमाधाननहींहै।इतनेभरसेआतंककाअंतनहींहोनेवाला।जबतकपाकिस्तानीप्रधानमंत्रीआतंककोसमूलनष्टकरनेकीदिशामेंकोईठोसकदमउठानेकीबातनहींकरतातबतकचुपबैठनेकासमयनहींआयाहैं।
कश्मीरमेंआतंकवादऔरघुसपैठकीशुरुआततोस्वतंत्रताकेसमयसेहीशुरूहोचुकीथी, आतंककावहजहरआजइतनाफैलचुकाहैकिबढ़ते- बढ़तेनासूरबनचुकाहै।ऐसेमेंकश्मीरसमस्याकाअंतिमसमाधानऔरपाकिस्तानकोउसकीऔकातदिखानेकायहीसहीसमयहै।
इनसबघटनाओंकेबादइस्लामिकसहयोगसंगठनके 50 वेंअधिवेशनमेंभारतकीविदेशमंत्रीसुषमास्वराजकाविशेषअतिथिकेरुपमेंशामिलहोनाऔरवहाँउनकाप्रभावशालीभाषणइतिहासमेंदर्जहोगया।पुलवामाकांडऔरपाकिस्तानकेआतंकवादीठिकानोंपरभारतीयफौजकेहमलेकेबादभीउन्हेंबुलायाजानाभारतकीबड़ीउपलब्धिहै।औरपाकविदेशमंत्रीकावहाँजानेसेइंकारकरदेनाउनकीमंशाकोजाहिरकरदेताहै।
 आतंकवादसेभारतहीनहींपूराविश्वपरेशानहै।यहबातसभीजानतेहैंकिआतंकवादकोप्रश्रयदेनेवालादेशपाकिस्तानहीहै।1965 केभारत-पाकयुद्धकेपश्चातहुएताशकंदसमझौतेऔर1971 केयुद्धकेबाद1972 कोहुएशिमलासमझौतेमेंभारतऔरपाकिस्तानद्वाराद्विपक्षीयचर्चाकेद्वाराकश्मीरसमस्याकाहलनिकालनेकाउल्लेखहै, परंतुपाकिस्ताननेइसकाकभीपालननहींकिया।परिणामहुआ1999 मेंकारगिलमेंघुसपैठऔरतीनयुद्धोंमेंउनकीभारीपराजय।अपनीहारसेबौखलायापाकिस्तानकश्मीरमेंलगातारआतंकवादकाविषबेलफैलातेचलेजारहाहै, जोरुकनेकानामहीनहींलेरहा, ऐसेमेंउसेसबकसिखानाजरूरीथा।
पुलवामाहमलेकेबादजम्मू-कश्मीरप्रशासननेअलगाववादीनेताओंकोमिलीसरकारीसुरक्षाभीवापसलेलीहै, जोएकबहुतबड़ाफैसलाऔरसहीकदमहै।देशद्रोहियोंकीसुरक्षाकाजिम्मासराकारकानहीं।उन्हेंउनकेहालपरछोड़देनाचाहिए।राष्ट्रहितसर्वोपरिहै।जोसुरक्षाबलोंकेअभियानमेंबाधकबनतेहैं, वेकिसीभीआतंकवादीसेकमनहीं।उनकोनिर्दोषबताकरछोड़देनाघातकहै।अराजकतत्त्वोंकोछूटदेनासबसेबड़ीभूलहै।राजनैतिकलाभकाअवसरतलाशनेवालोंपरनकेलकसनाज़रूरीहै।आन्तरिकसुरक्षामेंकिसीभीप्रकारकीचूककेलिएअबकोईजगहनहीं।
पहलेउरीमेंसर्जिकलस्ट्राइकऔरअबबालाकोटमेंहवाईहमलेकेसाथहीवर्तमानसरकारनेस्पष्टसंकेतदेदियाहैकिभारतकेपाससभीविकल्पखुलेहैं।उम्मीदकीजानीचाहिएकियहविकल्पसिर्फराजनीतिकऔरचुनावीहथकंडाहोकरआतंककोपूरीतरहखत्मकरदेनेकासंकल्पबनकरउभरे।भारतकेलिएपुलवामाकेशहीदोंकोसच्चीश्रद्धांजलितबतकपूरीनहींहोगीजबतकआतंकवादकासफायानहींकरदियाजाता। 
8 मार्चमहिलादिवसपर...


देशकीसुरक्षासेजुड़ेउक्तमुद्देकेसाथएकऔरमुद्दाहै-  8 मार्चमहिलादिवसकेअवसरपरइसविषयमेंबातकरनाजरूरीहै।हमबेटीबचाओबेटीपढ़ाओकानाराजोर- शोरसेलगातेहै।बेटियोंकीसुरक्षाकोलेकरलम्बीचौड़ीबातकरतेहैं।बेटीजबस्कूलकॉलेजजातीहैतो, नौकरीपरजातीहैतो, यहाँतककिशादीकेबादबिदाहोकरससुरालजातीहैतो, नसीहतेंबेटीकोहीदीजातीहैकिबेटीसम्मलकेरहना, स्कूलकॉलेजसेसीधेघरआना, लड़कोंसेबातमतकरना, रातमतकरनाऔरससुरालमेंसबकाकहामानना, ऐसेरहनावैसेरहनाआदिआदि... लेकिनइनसबकेबादतोहमबेटियोंकोबचापारहेहैंउनकीसुरक्षाकरपारहेहैं।बेटेकीचाहमेंलड़कियाँआजभीकोखमेंमारीजारहीहैं, अपहरण, बलात्कार, हत्याऔरशोषणआजभीजारीहै।यहतोआपसबजानतेहैंकिबेटियोंकोइतनीसारीनसीहतेंक्योंदीजातीहैंकिससेबचनेकेलिएदीजातीहैं? जाहिरहैपुरूषोंसे।  तोअसलमेंनसीहतेंकिसेदीजानीचाहिएपुरूषोंकोना? तोसमयगयाहैकिपरिवारसेलेकरस्कूलकॉलेजतकलड़कोंकोऐसीशिक्षाऔरसंस्कारदिएजाएँकिलड़कियाँबेखौफहोकरहरकहींजासकें।तोअबबेटीपढ़ेगीइतिहासरचेगीजैसेनारोंकेसाथएकनाराऔरलगायाजाए- बेटोंकोदोऐसेसंस्कारबेटियाँकाकरेवहसम्मान।  

गीत

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हेमातृभूमि
- रामप्रसादबिस्मिल
हेमातृभूमि ! तेरेचरणोंमेंशिरनवाऊँ
मैंभक्तिभेंटअपनी, तेरीशरणमेंलाऊँ।।


माथेपेतूहोचंदन, छातीपेतूहोमाला ;
जिह्वापेगीततूहोमेरा, तेराहीनामगाऊँ।।


जिससेसपूतउपजें, श्रीराम-कृष्णजैसे;
उसधूलकोमैंतेरीनिजशीशपेचढ़ाऊँ।।


माईसमुद्रजिसकीपदरजकोनित्यधोकर;
करताप्रणामतुझको, मैंवेचरणदबाऊँ।।


सेवामेंतेरीमाता ! मैंभेदभावतजकर;
वहपुण्यनामतेरा, प्रतिदिनसुनूँसुनाऊँ।।



तेरेहीकामआऊँ, तेराहीमंत्रगाऊँ।
मनऔरदेहतुझपरबलिदानमैंजाऊँ।।

इस अंक में

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हास्य- व्यंग्य

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घायलवसंत


-हरिशंकरपरसाई
कलबसंतोत्सवथा।कविवसंतकेआगमनकीसूचनापारहाथा-
प्रिय, फिरआयामादकवसंत।
मैंनेसोचा, जिसेवसंतकेआनेकाबोधभीअपनीतरफसेकरानापड़े, उसप्रियसेतोशत्रुअच्छा।ऐसेनासमझकोप्रकृति-विज्ञानपढ़ाएँगेयाउससेप्यारकरेंगे।मगरकविकोजानेक्योंऐसाबेवकूफपसंदआताहै
कविमग्नहोकरगारहाथा-
'प्रिय, फिरआयामादकवसंत !'
पहलीपंक्तिसुनतेहीमैंसमझगयाकिइसकविताकाअंत'हाहंत'सेहोगा, औरहुआ।अंत, संत, दिगंतआदिकेबादसिवा'हाहंत'केकौनपदपूराकरता? तुककीयहीमजबूरीहै।लीककेछोरपरयहीगहरागढ़ाहोताहै।तुककीगुलामीकरोगेतोआरंभचाहे'वसंत'सेकरलो, अंतजरूर'हाहंत'सेहोगा।सिर्फकविऐसानहींकरता।औरलोगभी, सयानेलोगभी, इसचक्करमेंहोतेहै।व्यक्तिगतऔरसामाजिकजीवनमेंतुकपरतुकबिठातेचलतेहै।और'वसंत'सेशुरूकरके'हाहंत'परपहुँचतेहैं।तुकेंबराबरफिटबैठतीहैं, परजीवनकाआवेगनिकलभागताहै।तुकेंहमारापीछाछोड़हीनहींरहीहैं।हालहीमेंहमारीसमाजवादीसरकारकेअर्थमंत्रीनेदबासोनानिकालनेकीजोअपीलकी, उसकीतुकशुद्धसर्वोदयसेमिलाई - 'सोनादबानेवालो, देशकेलिएस्वेच्छासेसोनादेदो।'तुकउत्तमप्रकारकीथी; साँपतककादिलनहींदुखा।परसोनाचारहाथऔरनीचेचलागया।आखिरकबहमतुककोतिलांजलिदेंगे? कबबेतुकाचलनेकीहिम्मतकरेंगे?
कविनेकवितासमाप्तकरदीथी।उसका'हाहंत'गयाथा।मैंनेकहा, 'धत्तेरेकी!' 7तुकोंमेंहीटेंबोलगया।राष्ट्रकविइसपरकमसेकम51तुकेंबाँधते।9तुकेंतोउन्होंने'चक्र'परबाँधीहैं। (देखो'यशोधरा'पृष्ठ13) परतूमुझेक्याबताएगाकिवसंतगया।मुझेतोसुबहसेहीमालूमहै।सबेरेवसंतनेमेरादरवाजाभीखटखटायाथा।मैंरजाईओढ़ेसोरहाथा।मैंनेपूछा - 'कौन?'जवाबआया - मैंवसंत।मैंघबड़ाउठा।जिसदुकानसेसामानउधारलेताहूँ, उसकेनौकरकानामभीवसंतलालहै।वहउधारीवसूलकरनेआयाथा।कैसानामहै, औरकैसाकामकरनापड़ताहैइसे! इसकानामपतझड़दासयातुषारपातहोनाथा।वसंतअगरउधारीवसूलकरताफिरताहै, तोकिसीदिनआनंदकरथानेदारमुझेगिरफ्तारकरकेलेजाएगाऔरअमृतलालजल्लादफाँसीपरटाँगदेगा!
वसंतलालनेमेरामुहूर्तबिगाड़दिया।इधरसेकहींऋतुराजवसंतनिकलताहोगा, तोवहसोचेगाकिऐसेकेपासक्याजानाजिसकेदरवाजेपरसबेरेसेउधारीवालेखड़ेरहतेहैं! इसवसंतलालनेमेरामौसमहीखराबकरदिया।
मैंनेउसेटालाऔरफिरओढ़करसोगया।आँखेंझँपगईं।मुझेलगा, दरवाजेपरफिरदस्तकहुई।मैंनेपूछा - कौन? जवाबआया - 'मैंवसंत!'मैंखीझउठा - कहतोदियाकिफिरआना।उधरसेजवाबआया - 'मैं।बार-बारकबतकआतारहूँगा? मैंकिसीबनिएकानौकरनहींहूँ; ऋतुराजवसंतहूँ।आजतुम्हारेद्वारपरफिरआयाहूँऔरतुमफिरसोतेमिलेहो।अलाल, अभागे, उठकरबाहरतोदेख।ठूँठोंनेभीनवपल्लवपहिनरखेहैं।तुम्हारेसामनेकीप्रौढ़ानीमतकनवोढ़ासेहाव-भावकररहीहै- औरबहुतभद्दीलगरहीहै।'
मैनेमुँहउधाड़करकहा - 'भई, माफकरना, मैंनेतुम्हेंपहचानानहीं।अपनीयहीविडंबनाहैकिऋतुराजवसंतभीआए, तोलगताहै, उधारीकेतगादेवालाआया।उमंगेंतोमेरेमनमेंभीहैं, परयार, ठंडबहुतलगतीहै।वहजानेकेलिएमुड़ा।मैंनेकहा, जाते-जातेएकछोटा-साकाममेराकरतेजाना।सुनाहैतुमऊबड़-खाबड़चेहरोंकोचिकनाकरदेतेहो; 'फेसलिफ्टिंग'केअच्छेकारीगरहोतुम।तोजरायार, मेरीसीढ़ीठीककरतेजाना, उखड़गईहै।
उसेबुरालगा।बुरालगनेकीबातहै।जोसुंदरियोंकेचेहरेसुधारनेकाकारीगरहै, उससेमैंनेसीढ़ीसुधारनेकेलिएकहा।वहचलागया।
मैंउठाऔरशाललपेटकरबाहरबरामदेमेंआया।हजारोंसालोंकेसंचितसंस्कारमेरेमनपरलदेहैं; टनोंकवि-कल्पनाएँजमीहैं।सोचा, वसंतहैतोकोयलहोगीही।परकहींकोयलदिखीउसकीकूकसुनाईदी।सामनेकीहवेलीकेकंगूरेपरबैठाकौआ'काँव-काँव'करउठा।काला, कुरूप, कर्कशकौआ - मेरीसौदर्य-भावनाकोठेसलगी।मैंनेउसेभगानेकेलिएकंकड़उठाया।तभीखयालआयाकिएकपरंपरानेकौएकोभीप्रतिष्ठादेदीहै।यहविरहणीकोप्रियतमकेआगमनकासंदेसादेनेवालामानाजाताहै।सोचा, कहींयहआसपासकीकिसीविरहणीकोप्रियकेआनेकासगुनबतारहाहो।मै।विरहणियोंकेरास्तेमेंकभीनहींआता; पतिव्रताओंसेतोबहुतडरताहूँ।मैंनेकंकड़डालदिया।कौआफिरबोला।नायिकानेसोनेसेउसकीचोंचमढ़ानेकावायदाकरदियाहोगा।शामकीगाड़ीसेअगरनायकदौरेसेवापिसगया, तोकलनायिकाबाजारसेआनेवालेसामानकीजोसूचीउसकेहाथमेंदेगी, उसमेंदोतोलेसोनाभीलिखाहोगा।नायकपूछेगा, प्रिये, सोनातोअबकालाबाजारमेंमिलताहै।लेकिनअबतुमसोनेकाकरोगीक्या? नायिकालजाकरकहेगी, उसकौएकीचोंचमढ़ानाहै, जोकलसबेरेतुम्हारेआनेकासगुनबतागयाथा।तबनायककहेगा, प्रिय, तुमबहुतभोलीहो।मेरेदौरेकाकार्यक्रमयहकौआथोड़ेहीबनाताहै; वहकौआबनाताहैजिसेहम'बड़ासाहब'कहतेहैं।इसकलूटेकीचोंचसोनेसेक्योंमढ़ातीहो? हमारीदुर्दशाकायहीतोकारणहैकितमामकौएसोनेसेचोंचमढ़ातेहैं, औरइधरहमारेपासहथियारखरीदनेकोसोनानहींहैं।हमेंतोकौओंकीचोंचसेसोनाखरोंचलेनाहै।जोआनाकानीकरेंगे, उनकीचोंचकाटकरसोनानिकाललेंगे।प्रिये, वहीबड़ीगलतपरंपराहै, जिसमेंहंसऔरमोरकीचोंचतोनंगीरहे, परकौएकीचोंचसुंदरीखुदसोनामढ़े।नायिकाचुपहोजाएगी।स्वर्ण-नियंत्रणकानूनसेसबसेज्यादानुकसानकौओंऔरविरहणियोंकाहुआहै।अगरकौएने14केरेटकेसोनेसेचोंचमढ़ानास्वीकारनहींकिया, तोविरहणीकोप्रियकेआगमनकीसूचनाकौनदेगा? कौआफिरबोला।मैंइससेयुगोंसेघृणाकरताहूँ; तबसे, जबइसनेसीताकेपाँवमेंचोंचमारीथी।रामनेअपनेहाथसेफूलचुनकर, उनकेआभूषणबनाकरसीताकोपहनाए।इसीसमयइंद्रकाबिगड़ैलबेटाजयंतआवारागर्दीकरतावहाँआयाऔरकौआबनकरसीताकेपाँवमेंचोंचमारनेलगा।येबड़ेआदमीकेबिगड़ैललड़केहमेशादूसरोंकाप्रेमबिगाड़तेहैं।यहकौआभीमुझसेनाराजहैं, क्योंकिमैंनेअपनेघरकेझरोखोंमेंगौरैयोंकोघोंसलेबनालेनेदिएहैं।परइसमौसममेंकोयलकहाँहै? वहअमराईमेंहोगी।कोयलसेअमराईछूटतीनहींहै, इसलिएइसवसंतमेंकौएकीबनआईहै।वहतोमौकापरस्तहै; घुसनेकेलिएपोलढूँढ़ताहै।कोयलनेउसेजगहदेदीहै।वहअमराईकीछायामेंआरामसेबैठीहै।औरइधरहरऊँचाईपरकौआबैठा'काँव-काँव'कररहाहै।मुझेकोयलकेपक्षमेंउदासपुरातनप्रेमियोंकीआहभीसुनायीदेतीहै, 'हाय, अबवेअमराइयाँयहाँकहाँहैकिकोयलेंबोलें।यहाँतोयेशहरबसगएहैं, औरकारखानेबनगएहै।'मैंकहताहूँकिसर्वत्रअमराइयाँनहींहै, तोठीकहीनहींहैं।आखिरहमकबतकजंगलीबनेरहते? मगरअमराईऔरकुंजऔरबगीचेभीहमेंप्यारेहैं।हमकारखानेकोअमराईसेघेरदेंगेऔरहरमुहल्लेमेंबगीचालगादेंगे।अभीथोड़ीदेरहै।परकोयलकोधीरजकेसाथहमारासाथतोदेनाथा।कुछदिनधूपतोहमारेसाथसहनाथा।जिसनेधूपमेंसाथनहीदिया, वहछायाकैसेबँटाएगी? जबहमअमराईबनालेंगे, तबक्यावहउसमेंरहसकेगी? नहीं, तबतकतोकौएअमराईपरकब्जाकरलेंगे।कोयलकोअभीआनाचाहिए।अभीजबहममिट्टीखोदें, पानीसींचेऔरखाददें, तभीसेउसेगानाचाहिए।मैंबाहरनिकलपड़ताहूँ।चौराहेपरपहलीबसंतीसाड़ीदिखी।मैंउसेजानताहूँ।यौवनकीएड़ीदिखरहीहै - वहजारहाहै - वहजारहाहै।अभीकुछमहीनेपहलेहीशादीहुईहै।मैंतोकहतारहाथाकिचाहेकभीले, 'रूखीरीयहडालवसनवासंतीलेगी' - (निराला)उसनेवसनवासंतीलेलिया।कुछहजारमेंउसेयहबूढ़ाहोरहापतिमिलगया।वहभीउसकेसाथहै।वसंतकाअंतिमचरणऔरपतझड़साथजारहेहैं।उसनेमाँगमेंबहुत-सासिंदूरचुपड़रखाहै।जिसकीजितनीमुश्किलसेशादीहोतीहै, वहबेचारीउतनीहीबड़ीमाँगभरतीहै।उसनेबड़ेअभिमानसेमेरीतरफदेखा।फिरपतिकोदेखा।उसकीनजरमेंठसकऔरतानाहै, जैसेअँगूठादिखारहीहैकिले, मुझेतोयहमिलहीगया।मगरयहक्या? वहठंडसेकाँपरहीहैऔर'सीसी'कररहीहै।वसंतमेंवासंतीसाड़ीकोकँपकँपीछूटरहीहै।

यहकैसावसंतहैजोशीतकेडरसेकाँपरहाहै? क्याकहाथाविद्यापतिने- 'सरसवसंतसमयभलपाओलिदछिनपवनबहुधीरे! नहींमेरेकवि, दक्षिणसेमलयपवननहींबहरहा।यहउत्तरसेबर्फीलीहवारहीहै।हिमालयकेउसपारसेआकरइसबर्फीलीहवानेहमारेवसंतकागलादबादियाहै।हिमालयकेपारबहुत-साबर्फबनायाजारहाहैजिसमेंसारीमनुष्यजातिकोमछलीकीतरहजमाकररखाजाएगा।यहबड़ीभारीसाजिशहैबर्फकीसाजिश! इसीबर्फकीहवानेहमारेआतेवसंतकोदबारखाहै।योंहमेंविश्वासहैकिवसंतआएगा।शेलीनेकहाहै, 'अगरशीतगईहै, तोक्यावसंतबहुतपीछेहोगा? वसंततोशीतकेपीछेलगाहुआहीरहाहै।परउसकेपीछेगरमीभीतोलगीहै।अभीउत्तरसेशीत-लहररहीहैतोफिरपश्चिमसेलूभीतोचलसकतीहै।बर्फऔरआगकेबीचमेंहमारावसंतफँसाहै।इधरशीतउसेदबारहीहैऔरउधरसेगरमी।औरवसंतसिकुड़ताजारहाहै।

मौसमकीमेहरबानीपरभरोसाकरेंगे, तोशीतसेनिपटते-निपटतेलूतंगकरनेलगेगी।मौसमकेइंतजारसेकुछनहींहोगा।वसंतअपनेआपनहींआता; उसेलायाजाताहै।सहजआनेवालातोपतझड़होताहै, वसंतनहीं।अपनेआपतोपत्तेझड़तेहैं।नएपत्तेतोवृक्षकाप्राण-रसपीकरपैदाहोतेहैं।वसंतयोंनहींआता।शीतऔरगरमीकेबीचसेजोजितनावसंतनिकालसके, निकाललें।दोपाटोंकेबीचमेंफँसाहै, देशकावसंत।पाटऔरआगेखिसकरहेहैं।वसंतकोबचानाहैतोजोरलगाकरइनदोनोंपाटोंकोपीछेढकेलो - इधरशीतको, उधरगरमीको।तबबीचमेंसेनिकलेगाहमाराघायलवसंत।

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- डॉ. रत्नावर्मा
पिछलेमहीनेपुलवामामेंसीआरपीएफ़केकाफि़लेपरकियागयाआत्मघातीहमला, देशकेधैर्यकीपराकाष्ठाहै।आतंकवादकेविषधरोंऔरउनकोप्रश्रयदेनेवालोंकोनिर्मूलकरनाज़रूरीहै।इसहमलेकेबादपूरादेशपुलवामामेंशहीदहुए 40 जवानोंकीशाहदतकाबदलालेनेकोबेसब्रहै।वेएकहोकरपाकिस्तानकोसबकसिखानाचाहतेहैं।माहौलऐसाहैकियदियुद्धभीछिड़जाएतोलोगफौजकेसाथकंधासेकंधामिलाकरलडऩेकोतैयारहैं।भारतकीफौजनेबालकोटहमलाकरकेयहसंदेशपाकिस्तानकोतोदेहीदियाहैकिअबहमऔरचुपनहींरहसकते।हमारेजाँबाजपायलटअभिनन्दनकोबिनाशर्तवापसलौटानेकीबातस्वीकारकरकेपाकिस्तानीप्रधानमंत्रीयहभीसमझगएहैंकिभारतकीफौजअबपीछेनहींहटेगी;  लेकिनयहकोईसमाधाननहींहै।इतनेभरसेआतंककाअंतनहींहोनेवाला।जबतकपाकिस्तानीप्रधानमंत्रीआतंककोसमूलनष्टकरनेकीदिशामेंकोईठोसकदमउठानेकीबातनहींकरतातबतकचुपबैठनेकासमयनहींआयाहैं।
कश्मीरमेंआतंकवादऔरघुसपैठकीशुरुआततोस्वतंत्रताकेसमयसेहीशुरूहोचुकीथी, आतंककावहजहरआजइतनाफैलचुकाहैकिबढ़ते- बढ़तेनासूरबनचुकाहै।ऐसेमेंकश्मीरसमस्याकाअंतिमसमाधानऔरपाकिस्तानकोउसकीऔकातदिखानेकायहीसहीसमयहै।
इनसबघटनाओंकेबादइस्लामिकसहयोगसंगठनके 50 वेंअधिवेशनमेंभारतकीविदेशमंत्रीसुषमास्वराजकाविशेषअतिथिकेरुपमेंशामिलहोनाऔरवहाँउनकाप्रभावशालीभाषणइतिहासमेंदर्जहोगया।पुलवामाकांडऔरपाकिस्तानकेआतंकवादीठिकानोंपरभारतीयफौजकेहमलेकेबादभीउन्हेंबुलायाजानाभारतकीबड़ीउपलब्धिहै।औरपाकविदेशमंत्रीकावहाँजानेसेइंकारकरदेनाउनकीमंशाकोजाहिरकरदेताहै।
 आतंकवादसेभारतहीनहींपूराविश्वपरेशानहै।यहबातसभीजानतेहैंकिआतंकवादकोप्रश्रयदेनेवालादेशपाकिस्तानहीहै।1965 केभारत-पाकयुद्धकेपश्चातहुएताशकंदसमझौतेऔर1971 केयुद्धकेबाद1972 कोहुएशिमलासमझौतेमेंभारतऔरपाकिस्तानद्वाराद्विपक्षीयचर्चाकेद्वाराकश्मीरसमस्याकाहलनिकालनेकाउल्लेखहै, परंतुपाकिस्ताननेइसकाकभीपालननहींकिया।परिणामहुआ1999 मेंकारगिलमेंघुसपैठऔरतीनयुद्धोंमेंउनकीभारीपराजय।अपनीहारसेबौखलायापाकिस्तानकश्मीरमेंलगातारआतंकवाद की विषबेलफैलातेचलेजारहाहै, जोरुकनेकानामहीनहींलेरही, ऐसेमेंउसेसबकसिखानाजरूरीथा।
पुलवामाहमलेकेबादजम्मू-कश्मीरप्रशासननेअलगाववादीनेताओंकोमिलीसरकारीसुरक्षाभीवापसलेलीहै, जोएकबहुतबड़ाफैसलाऔरसहीकदमहै।देशद्रोहियोंकीसुरक्षाकाजिम्मासरकारकानहीं।उन्हेंउनकेहालपरछोड़देनाचाहिए।राष्ट्रहितसर्वोपरिहै।जोसुरक्षाबलोंकेअभियानमेंबाधकबनतेहैं, वेकिसीभीआतंकवादीसेकमनहीं।उनकोनिर्दोषबताकरछोड़देनाघातकहै।अराजकतत्त्वोंकोछूटदेनासबसेबड़ीभूलहै।राजनैतिकलाभकाअवसरतलाशनेवालोंपरनकेलकसनाज़रूरीहै।आन्तरिकसुरक्षामेंकिसीभीप्रकारकीचूककेलिएअबकोईजगहनहीं।
पहलेउरीमेंसर्जिकलस्ट्राइकऔरअबबालाकोटमेंहवाईहमलेकेसाथहीवर्तमानसरकारनेस्पष्टसंकेतदेदियाहैकिभारतकेपाससभीविकल्पखुलेहैं।उम्मीदकीजानीचाहिएकियहविकल्पसिर्फराजनीतिकऔरचुनावीहथकंडाहोकरआतंककोपूरीतरहखत्मकरदेनेकासंकल्पबनकरउभरे।भारतकेलिएपुलवामाकेशहीदोंकोसच्चीश्रद्धांजलितबतकपूरीनहींहोगीजबतकआतंकवादकासफायानहींकरदियाजाता। 
8 मार्चमहिलादिवसपर...
देशकीसुरक्षासेजुड़ेउक्तमुद्देकेसाथएकऔरमुद्दाहै-  8 मार्चमहिलादिवसकेअवसरपरइसविषयमेंबातकरनाजरूरीहै।हमबेटीबचाओ,बेटीपढ़ाओकानाराजोर- शोरसेलगातेहै।बेटियोंकीसुरक्षाकोलेकरलम्बीचौड़ीबातकरतेहैं- बेटीजबस्कूलकॉलेजजातीहै, नौकरीपरजातीहै, यहाँतककिशादीकेबादबिदाहोकरससुरालजातीहै, तो नसीहतेंबेटीकोहीदीजातीहै,किबेटीसम्मलकेरहना, स्कूलकॉलेजसेसीधेघरआना, लड़कोंसेबातमतकरना, रातमतकरनाऔरससुरालमेंसबकाकहामानना, ऐसेरहनावैसेरहनाआदिआदि... लेकिनइनसबकेबादतोहमबेटियोंकोबचापारहेहैं,उनकीसुरक्षाकरपारहेहैं।बेटेकीचाहमेंलड़कियाँआजभीकोखमेंमारीजारहीहैं, अपहरण, बलात्कार, हत्याऔरशोषणआजभीजारीहै।यहतोआपसबजानतेहैंकिबेटियोंकोइतनीसारीनसीहतेंक्योंदीजातीहैं?किससेबचनेकेलिएदीजातीहैं? जाहिरहैपुरुषोंसे।  तोअसलमेंनसीहतेंकिसेदीजानीचाहिएपुरुषोंकोना? तोसमयगयाहैकिपरिवारसेलेकरस्कूलकॉलेजतकलड़कोंकोऐसीशिक्षाऔरसंस्कारदिएजाएँकिलड़कियाँबेखौफहोकरहरकहींजासकें।तोअबबेटीपढ़ेगीइतिहासरचेगीजैसेनारोंकेसाथएकनाराऔरलगायाजाए- बेटोंकोदोऐसेसंस्कारबेटियाँकाकरेंवे सम्मान।  

जीवन दर्शन

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अनुक्रिया एवं प्रतिक्रिया
- विजय जोशी
(पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल, भोपाल)
जीवनमें हमारे साथ कोई घटना घटित होने पर केवल दो ही स्थिति उभरती हैं, प्रथम यह कि या तो हम सामने वाले के प्रति को अनुकूल क्रिया व्यक्त करते हैं या फिर प्रतिक्रिया अभिव्यक्त करते हैं.  इस में पहलेवाली स्थिति सकरात्मक या स्वस्थ है जब कि दूसरी ऋणात्मक या अस्वस्थ। पहली में जहाँ  आशावाद झलकता है, जो अंतत: स्थिति को ठीक से पूरी होने या सुलझाने में सहायता करती हैं वही दूसरी न केवल उसे उलझा देती है बल्कि कभी कभी बेहद कष्टकारी और विध्वंस का कारण भी बन सकती है।
एक बार एक रेस्टोरेंट में एक काक्रोच कहीं से आकर अचानक एक महिला पर जाकर बैठ गया। वह डरकर चीख उठी और आतंकित होकर कूद-फांद करने लगी। उसके दोनों हाथ किसी भी तरह कांक्रोच से छुटकारा पाना चाहते थे।
 उसकी प्रतिक्रिया इतनी तीव्र थी कि समस्त उपस्थित समूह भय से भर गया।
किसी तरह उसने काक्रोच से छुटकारा पाया, लेकिन अब वही काक्रोच अब दूसरी महिला को उपकृत कर रहा था। अब उसके मंच पर दूसरी महिला भी वही दृश्य दोहरा रही थी। इस तरह पूरा समूह इस प्रक्रिया में नृत्य मग्न हो गया।
 तभी वहाँ पर एक वेटर मदद के लिये आगे आया। अपनी रिले रेस के तहत अब वही काक्रोचवेटर की भी सवारी कर रहा था, लेकिन वेटर निर्भय होकर खड़ा रहा तथा उस प्राणी का व्यवहार अपनी कमीज पर देखा और स्थिति थोड़ी शांत हुई तो आत्मविश्वास पूर्वक उसे पकड़ा और होटल के बाहर छोड़ आया।
आईये अब घटना का विश्लेषण करें। क्या इस दृश्य के लिए वह अदना सा काक्रोच उत्तरदायी था, तो फिर वेटर क्यों नहीं घबराया। वेटर ने तो पूरी निपुणता से अपने काम को अंजाम दिया था।
दरअसल यह काक्रोच नहीं बल्कि उसके कारण मानस में जो उथल-पुथल हुई उस स्थिति को ढंग से निपटाने की अयोग्यता का उदारण था।
 कई बार हम अपने वरिष्ठ या पत्नी या बड़ों की झल्लाहट या डाँट से परेशान हो जाते हैं। वास्तव में तो यह उस परेशानी को निपटा पाने की हमारी योग्यता के अभाव की सूचक है। समस्या से अधिक तो हमारी उसके प्रति प्रतिक्रया हमारी परेशानी का मूल कारण है।
मतलब एकदम साफ है हमें जीवन में तुरंत बगैर सोचे समझे प्रतिक्रिया देने से बचना चाहिए। हमें विपरित परिस्थिति में भी अनुकूल या शांति से व्यवहार करने की कला  को करना सीखना चाहिये। प्रतिक्रिया (Reaction) सदा बगैर सोची समझी प्रक्रिया होती हैं, जबकि अनुकूल क्रिया (Response) अच्छी तरह सोच समझकर उठाया गया कदम। जीवन में संबंध निर्वाह के मामलों में तो यह सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है ताकि हम क्रोध, चिंता, तनाव या जल्दबाजी से ऊपर उठकर सही और सामायिक निर्णय ले सकें।
सम्पर्क: 8/ सेक्टर-2, शांति निकेतन (चेतक सेतु के पास), भोपाल- 462023, मो. 09826042641E-mail- v.joshi415@gmail.com

प्रेरक

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आईने में हम
-रचना गौड़ भारती
शब्दोंका इस्तेमाल जब आवाज़ के साथ होता है तो उसे बोलना कहते हैं। बात दोनों प्रकार की होती है एक प्रभाव डालने वाली और दूसरी बिगाड़ने वाली। संचार की मुख्य क्रिया बोलना है। विचार विनिमय जीवन में अति आवश्यक है, दूसरों के विचार जानने और अपने विचार उन तक पहुँचाने के लिए। ये कोई नई बात नहीं है। यह तो सब जानते हैं, यहाँ हम बात करेगें मूक प्रतिक्रिया, मौन या चुप रहने पर। कहते हैं शब्द जितनी बात नहीं समझा सकते उतनी खामोशी बयां कर देती है- खामोशी बोलती है।
            बड़े बुजुर्गों को अक्सर कहते सुना है कि जब कोई झगड़ रहा हो तो उस समय चुप हो जाओ, बात आगे नहीं बढ़ेगी। मगर लोग वाद-विवाद, बहस आदि में अधिक विश्वास करते हैं। दूसरों को दबाकर जीतना एक शगल बन गया है। यहाँ सवाल हार-जीत का नहीं, बात की प्रभावोत्पादकता का है। किसी के साथ संवाद में भिड़ जाना समझदारी नहीं होती। बात को समझने या समझाने के लिए कुछ देर मौन या चुप्पी आवश्यक होती है। बात में इतना प्रभाव होना चाहिए कि आप दूसरे को समझा सकें,नहीं तो वहाँ चुप हो जाना बेहतर होता है। चुप हो जाने में यहाँ मतलब यह बिल्कुल नहीं है आप हार गए या आपकी बात में दम नहीं है। इसमें कुछ बिन्दु काम करते हैं जैसे-
1.आपने हार स्वीकार कर ली इसलिए चुप हैं-
जब कोई भी दो व्यक्ति आपस में उलझ जाते हैं और दोनों अपनी-अपनी बात पर अडिग रहते हैं तो स्थिति झगड़े का रूप ले लेती है। ऐसी परिस्थिति में एक जने को चुप हो जाना ठीक रहता है। बोलने वाला कुछ देर में अपनी भड़ास निकालकर या तो खामोश हो जाएगा या आप उससे कुछ समय के लिए दूरी कायम कर लें। स्थिति को सही अंजाम देना हमारे अपने हाथ में होता है। हाँ! यह सही है सामने आने वाला कभी-कभी यह सोचकर खुश हो जाता है कि ये चुप है मतलब इसने हार मान ली या मैंनें इसे हरा दिया। छोटी सी बात को तूल देकर लम्बा खींचना कोई समझदारी नहीं होती। चुप रहने वाला उस समय एक समझदार, शालीन व सभ्यता के दायरे में होता हैं। बोलकर चुप कराने वाला व्यक्ति अपनी वाचालता, घमण्ड और बड़बोलेपन के मद में खुश हो जाता है। दोनों व्यक्ति शांत होकर खुश हैं, मगर अपनी-अपनी सोच में। जैसे कोई दान लेकर खुश होता है तो कोई दान देकर। इंसानियत का तकाज़ा है कि जहाँ तक संभव हो क्लेश को दूर रखना चाहिए। ये एक अच्छे इंसान के गुण होते हैं। बात को आई गई करना भी एक कला है। दुनिया एक रंगमंच और हर इंसान एक कलाकार है। कोई भी कला सुख शांति व समृ़द्धि प्रदान करती है। यह बात व्यक्तिगत रूप में, सामूहिक रूप में व सामाजिक रूप में स्पष्ट नज़र आती है। हमारा जन्म गीली मिट्टी के लौंदें के समान होता है जिसे हमारे संस्कार, हमारा परिवेश व हमारी शिक्षा तराश-तराश कर एक अच्छा व्यक्ति, अच्छा नागरिक बनाते हैं। यहीं से उचित व अनुचित की कीलें हमारे मन व मस्तिष्क में ठुकनी आरम्भ होती हैं। जिसके जीवन में जितनी कड़वाहट होती है, उसी अनुपात में कीलें बढ़ती जाती हैं। कीलें यानिकुण्ठाएँ। जो धीरे-धीरे आपके व्यवहार पर हावी होती जाती हैं। जितना कुण्ठित व्यक्ति होगा वह दूसरों को उतना ही चुभेगा। आपका व्यवहार व आचरण एक कंटीले वृक्ष में परिवर्तित हो जाएगा। आप तब इंसान न होकर एक कैक्टस बन जाएँगें। आपको पता है वनस्पति में कैक्टस को घर में रखना भी अशुभ माना जाता है। यहाँ इंसान को कैक्टस इसलिए कहा है क्योंकि हमारी बातें, हमारी उपस्थिति और हमारा परिवेश अशांतिकारक, दूसरों को व्यथित करने वाला और असंतोषजनक है तो हम एक कैक्टस ही हैं।
            देखा आपने कभी-कभी की चुप्पी कितनी असरकारक होती है। जब मॉफी माँगने से कोई छोटा नहीं होता तो चुप रहने से छोटा या गलत कैसे हो सकता है। चुप रहकर वो प्रयासरत होता है बात को संभालने में, सामंजस्य बनाने और शांति स्थापित करने में।
2.आपकी बात गलत थी इसलिए चुप हैं-
वाक्युद्ध या द्वन्द में चुप हो जाना श्रेष्ठ है। सामने वाला चाहे यह सोच ले कि शायद आपको समझ आ गया है कि आपकी बात गलत थी, इसलिए आप चुप हो गए। वाद-विवाद या कोई बात आखिर क्या है-हमारे विचार। सबको अपना पक्ष और अपने विचार सदा सही लगते हैं। मगर क्या ऐसा होता है? यदि दोनों पक्ष सही होगें तो विवाद किस बात का? इसे हम ऐसे देख सकते हैं कि पक्ष और विपक्ष दोनों के विचार आपस में नहीं समझे जा रहे। दोनों को अपने विचार सही लग रहे हैं और दूसरे के गलत। कैसी भी परिस्थिति हो झगड़ा छोटा हो या बड़ा, एक बार स्वयं को दूसरे की जगह रखकर उसका दृष्टिकोण समझने की चेष्टा करनी चाहिए शायद कुछ मामला समझ आ जाए। असामान्य स्थिति में चुप रहना आपका गुण होगा, आपकी समझदारी व इंसानियत का तकाज़ा भी।  सही और गलत जब हम अपने अहम् को दूर रखकर दूसरे के स्थान व दूसरे की नज़र से देखते हैं तो स्वतः ही दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता है।
3. आप अपनी बात समझाने में सक्षम नहीं इसलिए चुप हैं -
चुप रहकर स्थिति को नियंत्रण में बनाना, बोल-बोलकर उलझने से कहीं बेहतर होता है। कभी-कभी चुप होने का सामने वाला गलत अर्थ भी निकाल लेता है। जैसे आप अपनी बात समझा नहीं पा रहे इसलिए चुप हो गए। आपके पास चुप होने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा। शिक्षित व समझदार इंसान के लिए इशारा ही काफी होता है। चुप्पी में एक अलग ही आनन्द है, विश्वास है और शांति है। चुप रहकर बात नहीं बढ़ाना अच्छा है वरना जो सामने आएगा वो शायद बहुत बुरा हो। जो आपके रिश्तो और सम्बंधों को क्षति पहुँचाने वाला हो। आपने ऐसा होने नहीं दिया अतः आपको आनन्द की अनूठी अनुभूति है। विश्वास इस बात का कि प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती अतः  कभी न कभी सच जरूर सामने आएगा जिससे सामने वालों की आँखों से गलतफहमी का पर्दा स्वतः ही उठ जाएगा। जब सारी बात ही साफ हो जाएगी तो शांति कहाँ जाएगी वो आपके पास ही पनाह लेगी। बात समझने या समझाने के लिए दिमाग शांत होना चाहिए। क्रोध में हम न समझ पाते हैं ना समझा पाते हैं। यहाँ इसलिए चुप्पी का विशेष अर्थ एवं महत्व सिद्ध होता है।
4. मानसिक स्तर में अन्तर
            जब कोई एक व्यक्ति लगातार बोले और दूसरा चुप हो जाए तो मामला स्वतः कुछ समय में ठण्डा पड़ जाता है। सामने वाला या बोलने वाला तीव्रता से अपनी बात के साथ अनर्गल बातों को जोड़कर आपको मानसिक पीड़ा पहुँचाने का प्रयास करे तो समझ लेना चाहिए उसका मानसिक स्तर गिर रहा है। इस वक्त किसी भी प्रकार वो आपकी बात नहीं समझेगा। दो व्यक्तियों की मस्तिष्क तरंगों की समानता या असमानता उनका स्तर कहलाता है। लेवल अलग-अलग होने पर विचारधाराएँ भिन्न बनतीं हैं। विचारों का टकराना ही झगड़े का कारण है। ऐसे में चुप रहना समझौते की परिधि बन जाता है। शिक्षित व्यक्ति का व्यवहार उसके लेवल को तय करता है। यहाँ शिक्षित का मतलब डिग्री प्राप्त कर लेने से न होकर बुद्धि के विकास, मानसिक विकास से है।
5. शिक्षा का अभाव, ज्ञान चक्षु का बंद होना
            वाद-विवाद में शिक्षा की अहम् भूमिका होती है। किसी भी विषय क्षेत्र में इंसान अपने ज्ञान के अनुसार बहस करता है। कभी-कभी गलत बात पर अड़ जाना भी अज्ञानता का ही प्रतिबिम्ब होता है। जिसे जितना मालूम होगा उतना ही बोलेगा। विषय की सम्पूर्ण जानकारी के बिना अपनी बात लेकर विवाद करना अनुचित है। यदि सामने वाले से हमारी बात अलग है, तो शांत मन मस्तिष्क से एक बार उसकी पूरी जानकारी हासिल कर लेनी चाहिए। कभी-कभी कुछ बातें नियमोंके अंर्तगत होते हुए भी गलत हो जाती हैं जिन्हें हम सच समझते रहते हैं। समय परिवर्तन के साथ नियम परिवर्तन का ध्यान भी रखना चाहिए। जिस नियम के बल पर हम अपनी बात पर अडिग हो रहें हैं उसके नियम भी बदल सकते हैं। जिनकी हमें जानकारी नहीं होती। ऐसी स्थिति में हम सर्वथा गलत हो जाते हैं। दूसरों की बात को किसी पूर्व धारणा के आधार से नहीं जोड़कर बुद्धि से आँकना जरूरी होता है। ऐसी परिस्थिति में चुप हो जाना बेहतर है, ये समझ कर कि सामने वाला अज्ञानता में है या उसके ज्ञान चक्षु बन्द हैं। सत्य को देखने के लिए ज्ञान चक्षु का खुला रहना अति आवश्यक है। यहाँ पूर्वाभास काम नहीं करता। आपकी बात यदि सही है तो उसे कोई समझे या ना समझे क्या फ़र्क पड़ता है। सत्यमेवजयते। जीत हमेशा सत्य की होती है। सत्य को बाहर आने में देर जरूर लगती है मगर सत्य बाहर आकर रहता है। उस समय सामने वाला यदि अच्छा इंसान है तो अपनी गलती मान लेगा अन्यथा गरूर व अहम् के मद में स्वीकार नहीं करेगा। मंुह से चाहे ना स्वीकारे लेकिन उसकी अर्न्तआत्मा जरूर जान लेगी कि वह गलत है। अतः धैर्य का आश्रय लेकर चुप रहना वक्त की मांग बन जाता है।
6. इंसानियत के कद का बौना होना
            गुण या अवगुण इंसान के होते हैं। जब किसी में इंसानियत ही नहीं होगी तो उसके गुणों और अवगुणों को हम किस कसौटी पर उतारेंगें। यदि आप उत्तरोत्तर अच्छे गुणों के विकास में लगे हैं तो आपके अंदर के इंसान का कद स्वतः बढ़ेगा। इसके विपरीत गुणों का हृास आपके इंसानी कद को बौना कर देगा। कितने लोग ऐसे हैं जो स्वार्थ को परे रख इस बात की चिन्ता करते हैं। ये जुड़ा होता है आपकी नैतिकता, आत्मा के उत्थान या पतन से। एक अच्छी आत्मा अच्छे इंसान में होगी। आजकल हम बाह्य उन्नति में दौड़ लगा रहे हैं। स्वार्थ के आगे घुटने टेक रहे हैं। हमें आवश्यकता है नैतिक उत्थान की। अन्दर से महान बनने की। जब हम किसी ऐसे धावक व्यक्ति से टकराएँ तो यहाँ चुप हो जाना समय की माँग होगी। हर तालाब पानी के ठहरने पर साफ़ नज़र आता है (जैसे हम अच्छी स्थिति में खुश व शांत) उसमें पत्थर गिरने से लहरें, नीचे बैठी गंदगी को हिलाकर पानी को गंदला कर देती हैं। ये तो खुला तालाब है, मगर हमारा मन बहुत गहरा है तथा इसको अंदर से साफ रखना हमारे हाथ में है। साफ मन का सरोवर कभी किसी के भड़काने, उकसाने से गंदा नहीं हो सकता। गन्दे पानी में साफ पानी को कितना भी मिलाएं पानी गन्दा ही होगा। जबकि साफ पानी में केवल एक मग्गा गंदा पानी उसे गंदा कर देता है। हमें अपनी चुप्पी से इस मिलावट को बंद करना होगा। यहाँ चुप होने वाला दूसरे के साथ नहीं स्वयं के साथ अच्छा करेगा। परिस्थिति कुछ भी हो कभी इंसानियत का कद बौना नहीं होना चाहिए।
7. लिंगानुगत भेद का फायदा उठाना
            अक्सर स्त्री व पुरूष के द्वन्द में, पुरूष को कहते सुना है कि तुम चुप हो जाओ। पुरूष पिता, पति, पुत्र या अफसर कोई भी हो सकता है। पुरूष अपने अहम् के आगे न तो नारी की सुनना चाहता है, न ही उसे बोलने देता है। क्या उसे डर होता है कि वह ज्ञान व समझ में उससे हार गया तो? स्त्री भी एक इंसान है, शिक्षित व समझदार है, जब नौकरी करते हुए उसके विचार वह बाह्य क्षेत्र में बेझिझक देती है तो वही विचार घर में गलत कैसे हो सकते हैं? यहाँ भी अन्तर होता है दृष्टिकोण का, हम विषय से भटक जाते हैं और रह जाती है पावर। वह पावर जो घर के मुखिया की है, एक पुरुष की है, उसके अहं की है। ऐसी स्थिति में एकमात्र उपाय चुप रहना ही क्लेश से दूर ले जाता है। नारी एक नदी है जो बहती है। उसके जल में अच्छे बुरे सब तरह के विचार आते हैं। पुरूष शुद्ध जल का फिल्टर है मगर उसकी फिल्टर वाली कैण्डल जल्दी चोक हो जाती है। यह स्वभावगत अन्तर है। बात को उसकी गरिमा से मानना चाहिए न कि आपस के ताकत प्रदर्शन से। जरूरी नहीं होता कि पुरूष सर्वदा सही और नारी गलत हो। कभी-कभी स्त्री भी सही हो सकती है, ये वहाँ होता है जहाँ उसको सुना जाता हो, बात का मूल्यांकन होता हो। जहाँ ऐसा नहीं होता वहाँ चुप रहना एक अच्छा अस्त्र होता है।सही बात की सत्यता कभी न कभी, कहीं न कहीं से सत्यापित हो ही जाती है।
8. संस्कार व रिश्तों का दबाव बनाना
            कभी-कभी विचारों की टकराहट उम्र व रिश्तों में बड़ों से हो जाती है। उस वक्त उम्र व रिश्तों का लिहाज़ कर हमें चुप हो जाना पड़ता है। यहाँ भी बात की सत्यता या उसकि मूल्यांकन को परे रखना गलत होता है। जब हम बड़ों से विचार विनिमय करते हैं और उनके विचार हमसे भिन्न होते हैं, तब भी संस्कारों के दबाव के कारण चुप रहना हमारी मज़बूरी बन जाती है। सभी लोग यदि बात की सत्यता के संदर्भ से बात करें तो शायद कहीं झगड़े ही नहीं होंगें। मैंने ऐसा कह दिया, तुम मानो। जैसे इनके कहे शब्द पत्थर की लकीर हो। एक ही शब्द जब अलग-अलग परिस्थिति में इस्तेमाल होता हो तो उसका अर्थ भी समयानुसार बदल जाता है। अच्छे व सही विचार जरूरी नहीं कि सिर्फ बड़ों के पास हों, उनपर बड़ों का एकाधिपत्य हो ऐसा बिल्कुल नहीं होता। छोटों के विचार भी सराहनीय हो सकते हैं, उनका सम्मान करना चाहिए। लेकिन जहाँ बात की महत्ता से ऊपर बड़प्पन का राज़ हो वहाँ चुप रह जाना ही श्रेष्ठ है। जहाँ संस्कार व रिश्तों का दबाव होता है वहाँ संवेदनाएँ निष्क्रिय हो जाती हैं। बड़ों के सामने चुप होना उनका सम्मान होता है मगर तब तक ही जब तक सत्य पर आँच नहीं आए। विचारों का आदान प्रदान ही संचार क्रिया है जो इन्हें पीढ़ी दर पीढ़ी संवाहित करती है। बड़ों के आगे चुप रहकर उनकी इज्ज़त करना जरूरी होता है, यहाँ कोई हार जीत नहीं होती। अपनी बात धैर्य रख विनम्रता से उन्हें स्मरण कराई जा सकती है। बशर्तें आपकी बात में वज़न होना चाहिए।
9. पद-प्रतिष्ठा का सहारा लेना
            हमारे समाज में चाहे जातिगत अन्तर कम हो रहा है लेकिन पद प्रतिष्ठा का अन्तर साफ़ नज़र आता है। आज किसी अफसर के आगे कर्मचारीगण का मौन रहना अनुशासन के अर्न्तगत आता है। व्यवसाय में मालिक व मज़देरों में अन्तर देखा जा सकता है। चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की बात कितनी भी सही होगी, वह अफसर के आगे चुप रहता है। ऐसा होना नहीं चाहिए। सत्य बात कहने में किसी से नहीं डरना चाहिए। मगर बात अनुशासन की हो तो चुप रहना बेहतर होता है। ऐसी परिस्थिति में यदि अपनी बात अपने अफसर के समक्ष रखनी हो तो बड़े साफगोई ढंग व विनम्रता के साथ प्रस्तुत करनी चाहिए। उच्चपदाधिकारी या बॉस से आप अपनी बात जबरदस्ती नहीं मनवा सकते। विनय पूर्वक अपनी बात को सिद्ध करें अन्यथा तनाव झेलने को तैयार रहें। वक्त पर अपनी बात कहना एक हिम्मत व कौशल की बात होती है। बस, बात कहने का तरीका सही होना चाहिए। वरना विपरीत स्थिति में चुप रहना सही चुनाव होगा। चुप रहने में बड़ी ताकत होती है। जितना समय लेकर, सोच विचार के उपरान्त बात की प्रस्तुति होती है उसमें उतना ही निखार आ जाता है। चुप्पी कमज़ोरी नहीं बलकि तूफान के आने से पूर्व की खामोशी भी होती है। चुप्पी , किसी बड़े फैसले या बड़ा कदम उठाने से पूर्व भी होती है। चुप्पी अपने आप में एक ताकत है, जो आपकी टूटी हिम्मत को संग्रहित कर, समय आने पर प्रयुक्त होती है।
10.चुप्पी का जवाब वक्त के खेमे में
            अपने चुप रहने से मन में दुखी न हों क्योंकि आपकी चुप्पी का जवाब वक्त देता है। समय बड़ा बलवान होता है। जो बात आप कह नहीं सके उसे समय अपने अनुरूप सामने ला देता है। किसी को शब्दों में जवाब देकर कड़वाहट ही पैदा होती है, रिश्ते खराब हो जाते हैं। आप इंतज़ार करिए वक्त सब समझा देगा, जिससे सामने वाला या तो शर्मिन्दा होगा या अफसोस करेगा। व्यवहार सोच समझकर करना चाहिए।
सम्पर्कः 304,रिद्धि सिद्धि नगर प्रथम,बूंदी रोड, कोटा राजस्थान., मो. 9414746668

सेहत

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प्रति व्यक्ति शराब की खपत दोगुनी हुई
- भरत डोगरा
वर्ष 2005 से 2016 के बीच भारत में प्रति व्यक्ति शराब उपभोग दुगने से भी ज़्यादा हो गया है। 2005 में भारत में प्रति व्यक्ति अल्कोहल उपभोग 2.4 लीटर था जबकि वर्ष 2016 में यह बढ़कर 5.7 लीटर हो गया। यह तथ्य विश्व स्वास्थ्य संगठन की वर्ष 2018 की रिपोर्ट में सामने आया है।
भारत की गिनती अब उन देशों में हो रही है जहाँ शराब की खपत बहुत तेज़ी से बढ़ रही है। ये आँकड़े बहुत दुखद हैं, पर उनके लिए बहुत आश्चर्यजनक नहीं हैं जो वर्षों से दूर-दूर के गाँवों में भी शराब के ठेके खोलने की सरकार की नीति के विरुद्ध आवाज़ उठाते रहे हैं। यह बहुत दुखद स्थिति है कि गुजरात, बिहार व उत्तर-पूर्व के कुछ राज्यों को छोड़ दें तो शेष देश में सरकारों की अपनी नीतियों ने शराब की खपत को बढ़ाया है। शराब उद्योग व व्यापार से जुड़े व्यक्तियों को बहुत शक्तिशाली व धनी बनने दिया गया है और शराब उद्योगपतियों व व्यापारियों के राजनीति में सम्पर्क व सक्रियता तेज़ी से बढ़ी है। शराब उद्योग भ्रष्टाचार का एक बड़ा स्रोत है।
इतना ही नहीं, मौजूदा प्रवृत्तियों को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि वर्ष 2025 तक भारत में प्रति व्यक्ति अल्कोहल की खपत में 2.2 लीटर वृद्धि और हो जाएगी। ये आँकड़े 15 वर्ष से अधिक आयु की जनसंख्या के संदर्भ में एकत्र किए गए हैं। संगठन ने विश्व स्तर की स्थिति पर चिंता प्रकट करते हुए बताया है कि इस समय विश्व में 230 करोड़ व्यक्ति शराब पीते हैं। जिसमें 15.5 करोड़ युवा 15-19 आयु वर्ग के हैं, जो कि इस आयु वर्ग के 27 प्रतिशत हैं। (स्रोत फीचर्स)

व्यंग्य

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किसे वोट देंगी आप ?
डॉ. रत्ना वर्मा
अबचुनाव प्रचार दरवाजे पर है। प्रत्याशी हाथ जोड़ रहे हैं और अखबार वाले मतदाताओं को टटोल रहे हैं।
जहाँ ब्यूटीपार्लर का विज्ञापन दीवार पर हैठीक उसके नीचे हाथी छाप को प्रचंड बहुमत से विजयी बनाने का चुनावी विज्ञापन अपना दावा ठोक रहा है। व्हील छाप साबुन के व्हील का उपयोग कार्यकर्ताओं ने जिस सूझबूझ के साथ किया हैउससे तबियत प्रसन्न हो रही है। व्हील तो जहाँ था वहीं है, लेकिन साबुन पर सफेदा पोत कर कार्यकर्ताओं ने प्रत्याशी का नाम लिख दिया है और पढ़ने से लगता है सफेदी और चमक के लिये व्हील छाप साबुन ही उपयोग करें। महिलाओं में अत्यंत लोकप्रिय साबुन “व्हील छाप साबुन।
मतदाताओं को टटोलने का सीजन शुरु हो गया है। मैंने भी सोचा कि इसी बहाने कुछ महिलाओं को टटोल लूँ।
एक बड़ा -सा मकानगेट पर लिखा था-कुत्तों से सावधान। चुनाव चल रहा है। इसलिए मुझे इस तरह का नया विज्ञापन अच्छा लगा। मैं ठिठक गई। कोई बाहर दिखे तो मैं किसी महिला को टटोलूँ। मैं सोच ही रही थी कि एक आदमी दिखा। मुझे असमंजस में खड़ा देख कर बोलाआइए... अंदर आ जाइए। बोर्ड देखकर डर रही है आपअभी इस बंगले में कुत्ता नहीं है। मेम साहब ने अलशेसियन पिल्ले का आर्डर बुक कर रखा है।
मेरी इच्छा हुई कि उससे कहूँ कि जब इस घर में स्वागत के लिए आपके अलावा और कोई नहीं है तो फिर इस बोर्ड की क्या जरूरत हैलेकिन उसने बीच में ही कहाबोर्ड लगा देने से चोर और भिखारियों का डर नहीं रहता.... वे इस दरवाजे पर नहीं आते। आप तो अंदर आ जाइए।
गेट के बंगले की दूरी पार करते हुए मैं चुपचाप चल रही थी। थोड़ी दूर वह आदमी मेरे साथ चला। फिर बोलाआप मेम साहब से मिल लीजिए... मुझे गमलों में पानी डालना है।
मेरे कालबेल दबाते ही पक्षियों के चहचहाने की आवाज गूँज उठी। घरेलू-सी दिखने वाली एक महिला ने दरवाजा खोला और बोलीक्या है?
मैंने कहा- मेम साहब से कह देना टीवी वाली आई है।
टीवी की बात मैंने इसलिए की कि अपनी तस्वीर टीवी पर दिखाए जाने के लालच में मेरा आदर सत्कार सही होगा। मैं बैठक में आ गई। थोड़ी देर बाद नौकरानी नाश्ते की प्लेट और चाय ले आई तभी मेरी समझ में आ गया कि अपना इम्प्रेशन ठीक जम गया है। वह बोलीमेम साहब तैयार हो रही है... आप तब तक चाय लीजिए।
मैं जानती हूँ कि बिना सजे धजे वे बाहर नहीं आएँगी। महिलाओं के साथ यही प्राब्लम है। चाहे उन्हें मतदान में जाना हो या किसी शोकसभा मेंवे बिना मेकअप किए नहीं जाती। टीवी सीरियलों ने महिलाओं को कम से कम इतना जागरूक तो किया ही है।
मेम साहब आधे घंटे के बाद चेहरे पर मुस्कान बिखेरती हुई बैठक में आ गईं। मैंने औपचारिकता और शिष्टाचार के बाद सीधा सवाल कियाआप किस पार्टी को वोट देंगी?
मेरे इस प्रश्न से वो बौखला गई। इस प्रश्न के बदले मुझे उनकी साड़ी की तारीफ करनी थी और कहना था कि आप कितनी स्मार्ट लग रही है। ऐसे प्रश्न महिलाओं को हर मौसम में प्रसन्न रखते हैं।
वह बोली- क्या पार्टीकिटीमैंने कहा लगता है आप किसी पार्टी में जा रही हैं?
इस बार मेरा प्रश्न सुनकर वे खुश हुई। बोली- ये पार्टियाँ न हो तो हम जैसी महिलाओं का टाइम पास ही न हो।
मैंने फिर पूछा- इस बार चुनाव में वोट आप किसे देंगी?
वह बोली- अभी कुछ सोचा नहीं है...मिसेज भटनागर और मिसेज़चंद्रा से डिसकस करेंगे आज की किटी पार्टी में। मूड हुआ तो चले जाएँगे वोट देने...
मैंने सोचा ऐसी जागरुक महिला मतदाता के पीछे समय बर्बाद करना ठीक नहीं। यही सोच कर मैंने कहा- अच्छाआप पार्टी में जाइएमैं चलती हूँ।
वह बोलीलेकिन टीवी... बात पूरी होने के पहले ही मैं बंगले से बाहर आ गई।
थोड़ी दूर पैदल चलने के बाद एक महिला अपने घर के दरवाजे पर खड़ी बार-बार सड़क की ओर देख रही थी। मैंने सोचा उन्हें भी टटोल लूँ।
मैंने पूछा- किसी का इंतजार कर रही हैं आप?
वह बोलीजी हाँ... बच्चों का स्कूल से आने का समय हो गया है और ‘वे’ भी आते ही होंगे। जैसे ही उनकी गाड़ी और बच्चों का रिक्शा दिखेगामैं दूध और चाय गैस पर रख देती हूँ;क्योंकि इसमें यदि थोड़ी भी देर भी हुई तो वे पूरा घर सिर पर उठा लेते हैं।
मैं महिलाओं से इसी गृहस्थी के किस्से से डरती हूँ। कहीं यह किस्सा आगे चला तो मेरा पूरा समय बर्बाद हो जाएगा। यही सोचकर मैंने उनसे सीधा सवाल कियाइस बार आप चुनाव में किसे वोट देंगी?
तभी बच्चों का रिक्शा आता दिखाई दिया। वह बोली- बच्चे आ गएआप अंदर आकर बैठिए मैं चाय चढ़ा देती हूँ।
मैंने कहा- लेकिन मुझे यह तो बताइए कि आप वोट किसे देंगी?
वह बोली- वे जिसे कहेंगे उसे ही दे दूँगी... हम औरतों को तो जिंदगी भर किचन में रहना है। शादी के इतने साल बाद भी मैं आज तक उनका ही कहना मानती हूँ। फिर वोट से हमें क्या करना हैकिसी को भी देंमहँगाई कम होने वाली नहीं है।
मैं सोच रही थी कि महिलाओं को लेकर लंबे- लंबे सर्वेक्षण होते हैं और आज भी महिलाएँ सोचती हैं कि उनकी जिम्मेदारी किचन तक ही सीमित है। बच्चों को दूध गरम कर देने और पतियों के ऑफिस से लौटने के बाद गरम चाय पिलाने तक ही।
थोड़ी दूर जाने के बाद झुग्गी झोपडियों वाला मुहल्ला शुरु हो गया। मैंने सोचा इन गरीब महिलाओं को भी टटोल लूँ। एक झोपड़ी के सामने तीन चार धूल से सने गंदे बच्चे खेल रहे थे। एक महिला उन्हें गालियाँ दे रही थी। थोड़ी देर बाद उसका पति झोपड़ी से बाहर आया ,तो महिला उसे भी कोसने लगी। गुस्से में बोली- जब बच्चों का पेट नहीं भर सकते थे ,तो इतने बच्चे क्यों पैदा करवा दियेमैं दिन भर काम करते मर रही हूँ और तुम दिन भर घूमते हो और रात को पीकर पड़े रहते हो... तुम्हें ना मेरी फिकर है और ना बच्चों की।
पति मुँह झुकाए चुपचाप चला गया।
मैंने सोचा देश के सही और निर्णायक मतदाता तो यही हैं। जिसे वोट दे देंगेवे ही सरकार बना लेंगे और पाँच साल तक मौज करेंगे। मैं उसकी झोपड़ी के सामने रुक गई। मुझे देखकर वह बोली-क्या हैकौन सी पार्टी वाली होजल्दी बोलो... मुझे बहुत काम है।
मैंने पूछा- तुम्हारा पति कुछ काम नहीं करता है?
वह बोली- तुमको क्या करने कामेरा पति है... काम करे कि नई करे। तुम जल्दी बोलो- क्या तुम्हारी पार्टी काम दे देगीकोई काम देगी तो बोलो... अभीचपइसा दे दो तभीच वोट देंगेतुम्हारी पार्टी को।
मैं समझ नहीं पा रही थी कि उसे किस तरह टटोलूँ। मैंने कहा– मैं तो पूछने आई थी कि तुम किसको वोट दोगी।
वह गुस्से में बोली- तुमको पहलेच बोला ना कि जो पईसा देगा उसीच को वोट देने का... बोलदिलाती क्या पईसाअभी रोज पार्टी वाला आता है लेकिन पईसा कोई नहीं देता। जो पहले देगाउसी को वोट दे दूंगी... इस चुनाव में बच्चों का कपड़ा सिलवाना है। जल्दी बोलकित्तापईसा देती है?
मैं उसकी बात का जवाब दिये बिना ही आगे बढ़ गई। समय कम हैमुझे अभी भी महिलाओं की मानसिकता को टटोलना है। अखबार के लिये महिलाओं की जागरूकता पर रपट तैयार करनी है।

कहानी

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खुद्दार
-डॉ. आशा पाण्डेय
हरे-पीले, पके-अधपके आमों से लदे पेड़ों का बगीचा। बीच से निकली है सड़क । बगीचे को पार करती हुई मेरी कार एक घने आम के पेड़ के नीचे रुक जाती है। हम सभी कार से उतरते हैं।
    नीचे,पेड़ की जड़ के पास, पके हुए सात आठ आम पड़े हैं। मैं कुछ बोल पाऊँ उसके पहले ही मेरे बच्चे आम उठाकर खाना शुरू कर देते हैं। पेड़ की एक डाल आमों से लदी हुई काफी नीचे झुकी है। पति ने डाल को पकड़कर हिला दिया। तीन-चार आम टपक पड़े ।मैं मना करती हूँ। मुझे डर है कि अभी पेड़ का मालिक आकर लड़ने न लगे। इन लोगों का क्या भरोसा । लड़ने लगेंगे तो ऐसा चिल्ला-चिल्लाकर लड़ेगे कि अपनी तो बोलती ही बन्द हो जाएगी। इनका तो कुछ मान-अपमान होता नहीं, अपनी इज्जत का जरूर फालूदा बन जाएगा, किन्तु मेरी बातों का बच्चों पर असर नहींपड़ता। बच्चे आम उठाकर गाड़ी में रख लेते हैं। शहरी सभ्यताओं को ढो-ढोकर थके मेरे बच्चे यहाँ आकर स्वतंत्र हो गए हैं। मैं चुप हो जाती हूँ। मन में सोचती हूँ, बच्चों को खुश हो लेने दो। ये बाग-बगीचे, ये गाँव इन्हें कहाँ देखने को मिलते हैं। अगर पेड़ का मालिक आएगा ही तो मैं इन आमों की कीमत चुका दूँगी। यह सोचते हुए मेरे मन में दर्प भाव उमड़ उठता है।
बगीचे से कुछ फर्लांग की दूरी पर छह-सात घरों का एक छोटा-सा गाँव है। वहाँ भी इक्के-दुक्के आम, महुआ, नीम के पेड़ दिखाई दे रहे हैं।  उनमें से दो-तीन घरों का दरवाजा बाग की तरफ खुलता है। एक घर के सामने नीम की छाँव में खटिया बिछाए तीन-चार व्यक्ति ताश खेल रहे हैं। समीप ही दूसरी खटिया पर एक अधेड़ किस्म का व्यक्ति लेटा है। जब हमारी कार बगीचे में रुकी तब उन सभी की निगाह हमारी तरफ हो गई। थोड़ी देर तक हमारी तरफ देखने के बाद उस अधेड़व्यक्ति ने किसी को आवाज लगाई। घर के अन्दर से दो लड़कियाँ निकलकर पेड़ की तरफ आने लगीं। एक दस-बारह साल की है, दूसरी उससे कुछ छोटी, लगभग आठ-नौ साल की। दोनों नेफ्राक पहनी हैं, किन्तु बटन दोनों के ही फ्राक से गायब है। पीठ को उघाड़ता हुआ उनका फ्राक कन्धे से नीचे लटका जा रहा है। लड़कियाँ उसे कन्धे के ऊपर चढ़ा लेती हैं। फ्राक बार-बार लटक रहा है,लड़कियाँ बार-बार उसे कन्धे पर चढ़ा रही हैं।फ्राक को पकड़े –पकड़े  ही छोटी लड़की पेड़ के इर्द-गिर्द नजरे गड़ाए कुछ खोजने लगी।दोनों परेशान हैं,वे आपस में कुछ फुसफुसा भी रही हैं। दरअसल लड़कियों ने पेड़ के नीचे जिन आमों को इकट्ठा किया था, वे  उन्हें तलाश रही हैं। मेरी बेटी आगे बढ़कर उनसे पूछती है, ‘यहाँ जो आम गिरे थे, उन्हें खोज रही हो  क्या?’
 ‘गिरे नहीं थे, हमने उन्हें वहाँ रखा था।जवाब में अकड़ है।
 ‘हाँ, जो भी हो, वो बड़े मीठे थे। उनमें से कुछ हमने खा लिये, कुछ गाड़ी में रख लिये हैं ।’ मेरी बेटी की आवाज में लापरवाही है ।
बड़ीलड़की के चेहरे पर कई भाव आए और गए। ऐसा तो नहीं हुआ होगा कि हमारी जबरदस्ती उसे खराब न लगी हो, किन्तु न जाने क्योंवे चुप रह गईं। मैं उसके चुप रह जाने का कारण खोजती हूँ- हमारी अकड़? हमारा शहरीपन? हमारी चमक-दमक या उसकी उदारता?...पता नहीं।मैं लड़कियों के पास आती हूँ।
            ‘ये बगीचा तुम्हारा है?’
            ‘नहीं ,पूरा बगीचा मेरा नहीं है। इसमें सिर्फ तीन पेड़ मेरे हैं।... उधर जो दो पेड़ दिख रहे हैं ,वो और ये जिसके नीचे आप लोग खड़े हैं।बड़ी लड़की ने गर्व से जवाब दिया।
            ‘आम तो बहुत निकलते होंगे, यहाँ गाँव में बिक जाते हैं?’
            ‘गाँव में तो सभी के पास पेड़ है, यहाँ कौन खरीदेगा। हाँ, पकने पर बाबा बाजार में ले जाते हैं।... कच्चे आम की खटाई और पके आम का अमावट भी बिक जाता है।
            ‘हम लोग खाते भी हैं। दोपहर में हमारे घर रोटी नहीं बनती, आम ही खाकर रह लेते हैं।अब तक चुप खड़ी छोटी लड़की ने मुँह खोला।
            ‘शाम को रोटी बनती है?’मेरी जिज्ञासा बढ़ गई।
            ‘हाँ, शाम को पना (आम रस) के साथ हम लोग रोटी खाते हैं। आज शाम को हमारे घर में दाल भी बनेगी और अगर सुनीता के घर से चावल मिल जाएगा तो भात भी   बनेगा ।’छोटी  लड़कीने चहकते हुए कहा बड़ी बहन ने छोटी को घूर कर देखा। छोटी सहम कर चुप हो गई।
            ‘तुम्हारे  पास खेत भी है ?
            ‘हाँ, है न। एक छोटा-सा खेत भी है।बड़ी लड़की ने जवाब दिया।
            ‘बस एक ही?’
            ‘हाँ, ...... वही जो उस कुएँ के पास दिख रहा है।लड़की ने हाथ से इशारा किया। मेरी नजरें उसके हाथ का पीछा करती हुई कुएँ के पास जाकर ठहर गईं । लगभग दो हजार स्क्वायर फिट का जमीन का एक छोटा टुकड़ा ।
            ‘इसमें क्या बोते हैं तुम्हारे बाबा?’
            ‘सब कुछ, कभी गेहूँ, कभी मूँग, कभी उड़द। सब्जियाँ भी लगाते हैं। देखिये अभी सब्जी ही लगी है ।
            ‘बाबा कह रहे थे इस बार सब्जियाँ बेचने से जो पैसे मिलेंगे उससे हम लोगों के लिए कपड़े  और चप्पल भी लाएंगे।छोटी लड़की फिर बोल पड़ी । बड़ी ने छोटी के हाथ में चिकोटी काट ली ।छोटी थोड़ा उचक कर दर्द को भीतर ही भीतर सह गई। मैं उन दोनों लड़कियों को देखकर मुस्कुरा दी ।
      लड़कियाँ अब खेलने में लग गई हैं । आम की एक डाल काफी नीचे तक लटक रही है,छोटी लड़की उस डाल को पकड़ कर झूलने लगी । मेरे बच्चे भी उन दोनों के साथ खेल रहे हैं । लड़कियों का संकोच अब कुछ कम हो गया है,वे दोनों मेरे बच्चों के साथ घुलने का प्रयास कर रही हैं । बाग के दूसरे किनारे पर एक पेड़ के नीचे दो औरतें बैठी आपस में बतिया रही हैं , कुछ-कुछ देर पर दोनों हमारी ओर देखे जा रही हैं, लगता है उनकी बातों के केंद्र में हम लोग ही हैं ।
जिस पेड़ के नीचे हम लोग खड़े हैं, उसकी एकबड़ीजड़ जमीन के ऊपर निकल कर गोल आकार बनाती हुई फिर से जमीन के नीचे धँसी हुई है। पति उस जड़ पर बैठ गए हैं ।मैं वहीं समीप खड़ी हूँ।
 ‘ कितना सुन्दर बाग है। यहाँ का हर पेड़ कुछ न कुछ आकार बना रहा है। डालियाँ कितने नीचे तक झुकी हैं । मन कर रहा है कि पकड़ कर झूलने लगूँ । हमारे गाँव में एक ऐसा ही पेड़  था। हम सब बच्चे पूरी दोपहर उसी के इर्द-गिर्द जमा रहते थे। यहाँ आकर  मुझे अपना  गाँव याद आ गया ।पति की आवाज कुछ गहरी और भीगी-भीगी लग रही है। ये जगह मुझे भी अच्छी लग रही है ।मैं पति से कहती हूँ -
बाग तो सचमुच अच्छा है। मैं तो कुछ और ही सोच रही हूँ।
क्या सोच रही हो ?’
यही कि अगर यहाँ थोड़ी-सी जमीन मिल जाए, यहाँ .... बाग से लगकर ,तब हम एक छोटा सा बंगला यहाँ बनवालें और छुट्टियों में कभी-कभी यहाँ रहने आया करें। शहर से अधिक दूर भी तो नहीं है यह जगह।
जमीन मिल जाए’का क्या मतलब ?अरे अगर हम चाहेंगे तो क्यों नहीं मिल जाएगी? पति की आवाज में दम्-भरा आत्मविश्वास है। पैसा हो तो क्या नहीं मिल सकता ?’
वो तो ठीक है, पर कोई बेचे तब न?’
क्यों नहीं बेचेंगे ? .... दुगुना पैसा दे दूँगा, दौड़कर बेचेंगे। कोई खरीदने वाला तो मिले, गाँव में कौन खरीदता है जमीन ?... फिर इन्हें तो पैसा मिलेगा न ।
ऐसा हो सके तो, वह जो कुएँ के बगल वाली जमीन है, उसे ही खरीद लिया जाएगा । लड़कियाँ कह रहीं थी कि यह  जमीन उनकी है।..... बहुत गरीब हैं बेचारे.... रोज भोजन भी नहीं बनता इनके घर... ये जरूर बेंच देंगे। पैसे की इन्हें बहुत जरूरत होगी ... बेचारे, इनका भी भला हो जाएगा।
वैसे ये बात मज़ाक की नहीं है। तुम्हारी योजना मुझे अच्छी लग गई है। घर चलकर इस पर गंभीरता से विचार करूँगा। यहाँ यदि घर बनेगा तो गाँव वालों को भी घर बनते तक रोज़गार मिल जाएगा। यह एक तरह से इनकी सेवा होगी।पति के जवाब से मैं गदगद हूँ।
मेरे बच्चे अब भी उन लड़कियों के साथ खेल रहे हैं। इन खेतों तथा इस बाग के बीच एक सुंदर सा बंगला अब मेरी आँखों में तैरने लगा है। शहर चलकर इस योजना पर विचार करना है। पति गाड़ी में बैठ चुके हैं । दोनों बच्चे भी अपनी-अपनी जगह ले चुके हैं । गाड़ी में बैठने से पूर्व मैंने बड़ी लड़की को पचास रुपये की नोट देते हुए कहा ..मेरे बच्चों ने तुम्हारे आम ले लिये थे न, इसलिए ये पैसे रख लो।नोट हाथ में पकड़ते हुए लड़की ने जवाब दिया पहले  मैं बाबा से पूछकर आती हूँ, आप यही रुकिएगा।
मैंने कहा रख लो, पूछने की क्या बात है।’किन्तु मेरी बात को अनसुना कर वे दोनों लड़कियाँ अपने घर की तरफ भागीं ।
आम पन्द्रह-बीस रुपये से अधिक के नहीं रहे होंगे। मैं पचास रुपये  दे रही हूँ, गरीब हैं बेचारे, खुश हो जाएँगे। ऐसी अनेक बातें सोचते हुए मैं अपनी उदारता पर मन ही मन इठला रही हूँ। तभी वे दोनों लड़कियाँ दौड़ते हुए मेरे पास पहुँची और पचास का नोट मेरी तरफ बढ़ाते हुए उन्होंने कहा बाबा कह रहे हैं, हम पैसे नहीं लेंगे। अगर हम इन आमों को बेच रहे होते और तब आपने खरीदा होता ,तो हम जरूर पैसे लेते। आपने तो अपनी इच्छा से जबरदस्ती मेरे आमों को उठाया है, इसके पैसे हम नहीं लेंगे।
मेरी दानशीलता को धक्का लगा। अति उत्साह में मैं यह नहीं सोच पाई थी कि चीजों को जबरदस्ती उठा लेना खरीदने की श्रेणी में नहीं लूटने की श्रेणी में आता है, और कोई खुद्दार व्यक्ति लूटी हुई वस्तु की कीमत पाकर खुश नहीं होता।
नोट हाथ में पकड़ कर मैं बुझे मन से गाड़ी में बैठ गई । पति के चेहरे पर मायूसी है। उन्होंने गाड़ी स्टार्ट कर दी। बाग पीछे छूट रहा है और बाग की बगल में हमारे दर्प का बंगला बिना बने ही धराशायी हो गया है।
लेखक परिचय: डॉ. आशा पाण्डेय, शिक्षा: एम् .ए .,पी. एच . डी . (प्राचीन इतिहास)
प्रकाशन: 1 धूप का गुलाब, (कहानी संग्रह), चबूतरे  का सच (कहानी संग्रह), बादल को घिरते देखा है (यात्रा वृत्तांत), तख्त बनने लगा आकाश (कविता संग्रह), खिले हैं शब्द  (हाइकु संग्रह), ये गठरी है प्रेम की (दोहा संग्रह)
विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में कहानियाँ, लेख, यात्रा वृत्तांत एवं कविताएँ प्रकाशित। कई कहानियाँउडिय़ा एवं मलयालम भाषा में अनूदित, प्रकाशित, प्रसारित।
संपर्क : 5, योगिराज शिल्प , स्पेशल आई . जी . बंगला के सामने ,कैम्प, अमरावती –444602 (महाराष्ट्र )
दूरभाष- 0721 2660396 , मो.- 09422917252 , 9112813033,  Email-…ashapandey286@gmail.com 

कविता

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क्षणिकाएँ
गीत बना गा लेना
- प्रियंका गुप्ता
1
तुमने
शब्द कहे थे;
मैंने
अर्थ जी लिया।
2
सूरज
कतरा कतरा पिघल के
बह गया,
धरती बूँद बूँद
पीती गई;
ऐसे ही तो
सृष्टि बनी।
3
मुझे
गीत बना गा लेना,
या
नज़्म की तरह
लिख लेना;
मैं हवा की तरह
तुम्हारे आस- पास रहूँगा,
बिखर जाऊँगा
खुश्बू की तरह;
इश्क करने से ज़्यादा
बेहतर होगा
इश्क में घुल जाना।
4
उसने धरती पर
फसल लिखी,
पौधों में
ज़िन्दगी पढ़ी,
और एक दिन
आसमान ताकते हुए
उसने मौत चुनी;
इस तरह
कहानी मुकम्मल हुई।
5
ज़िन्दगी मुझे
विष देती रहे
तुम छू के मुझे
अमृत कर देना;
खेल ऐसे ही तो
जीतते हैं न ?

लघु कथा

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विक्रम सोनी की
 चार लघुकथाएँ
1-कारण
चमचमाती, झंडीदार अंबेसडर कार बड़े फौजी साज–सामान बनानेवाली फैक्टरी के मुख्य द्वार से भीतर समा गई। नियत स्थान पर वे उतरे। अफसरान सब पानी जैसे होकर उनके चरणों को पखारने लगे। कुछ गण्यमान्य कहे जानेवाले खास लोग विनम्रता के स्टूच्यू सरीखे खड़े हो गए। फैक्टरी के इंजीनियर स्वचालित मशीनों की तरह चल पड़े। उनकी निगाहे बाई ओर घूमीं।
‘‘इधर विद्युत् संबंधी काम होता है सर!’’
उन्होंने दाईं ओर देखा।
‘‘इधर टूलरूम है महोदय!’’
वे आगे बढ़ गए।
‘‘सामने बारूद का काम होता है सरकार!’’
वे बारूद के ढेर में सम्मिलित हो गए।
सुबह अखबारों ने मुँह खोल दिए। जब मैंने निकाले गए मजदूर तथा तकनीशियनों से उनके निकाले जाने के कारण जानना चाहा तो सात छोटे–बड़े पारिवारिक बेटों के मुखिया ने कहा, ‘‘भइया जी, कल हमारे कारखानों में लोकतंत्र घुस आया था।’’
2-अंतहीन सिलसिला
दस वर्ष के नेतराम ने अपने बाप की अर्थी को कंधा दिया, तभी कलप–कलपकर रो पड़ा। जो लोग अभी तक उसे बज्जर कलेजे वाला कह रहे थे, वे खुश हो गए। चिता में आग देने से पूर्व नेतराम को भीड़ सम्मुख खड़ा किया गया। गाँव के बैगा पुजारी ने कहा, ‘‘नेतराम…!’’साथ ही उसके सामने उसके पिता का पुराना जूता रख दिया गया, ‘‘नेतराम बेटा, अपने बाप का यह जूता पहन ले।’’
‘‘मगर ये तो मेरे पाँव से बड़े हैं।’’
‘‘तो क्या हुआ, पहन ले।’’ भीड़ से दो–चार जनों ने कहा।
नेतराम ने जूते पहन लिये तो बैगा बोला, ‘‘अब बोल, मैंने अपने बाप के जूते पहन लिये हैं।’’
नेतराम चुप रहा।
एक बार, दूसरी दफे, आखिर तीसरी मर्तबा उसे बोलना ही पड़ा, ‘‘मैंने अपने बाप के जूते पहन लिये हैं।’’ और वह एक बार फिर रो पड़ा।
अब कल से उसे अपने बाप की जगह पटेल की मजदूरी–हलवाही में तब तक खटते रहना है, जब तक कि उसकी औलाद के पाँव उसके जूते के बराबर नहीं हो जाते।
3-मुआवजा
वह बोझिल कदमों से अस्पताल की सीढि़याँ उतर रहा था। उसके पीछे–पीछे उसकी पत्नी बिसूरती हुई चली आ रही थी। उसके दोनों हाथों के समानंतर फैलाव पर उसके सातेक साल के बच्चे की लाश बेकफन पसरी हुई थी। बाहर अब भी वर्षा हो रही थी।
पिछले कई दिनों से वर्षा थमी नहीं थी। और वह था तेज का मजदूर। चौथे दिन के ढलते–ढलते बच्चा भूख और तेज ज्वर से बिलबिलाने लगा था। घर में बचा–खुचा जो भी था, दाना–दाना लील लिया गया। बच्चे को पोलीथिन की छप्पर तले अधिक देर तक नहीं रखा जा सकता था। भीगी कथरी में बच्चे को लपेटकर सुबह ही वह सरकारी अस्पताल जा पहुँचा। बच्चे को भरती कर लिया गया। अभी उसके हाथों में दवाई की पर्ची तथा दूध, फल देने की हिदायतें पकड़ाई ही गई थीं कि बच्चे ने दम तोड़ दिया। डॉक्टर ने लाश जल्दी उठाने को कहते हुए सलाह दी, ‘‘करीब ही सरकारी राहत पड़ाव है। वहाँ चले जाओ। बरसात से हुई हानि का मुआवजा मिल जाएगा और तुम दोनों भी सुरक्षित रहोगे।’’
वह बच्चे को उठा ही रहा था कि नर्स ने कुढ़ते हुए–सा कहा, ‘‘बच्चा बरसाती पानी में डूबकर मरा होता तब तो मुआवजा मिलता। यह तो भूख से मरा है।’’
अंतिम सीढ़ी पर पहुँचते–पहुँचते उसकी पत्नी के खाली पेट में जमकर मरोड़ उठा। रुलाई की वजह से नस–नस में ऐंठन–सी हो रही थी। उसने पत्नी को दिलासा दी और दोनों भीगते हुए ही घुटने भर पानी में चल पड़े। सड़क जनशून्य थी। सामने से एक लॉरी आदमी, औरतों, बच्चों से ठसाठस भरी आ रही थी। उसने उसे रोकना चाहा, मगर तभी लॉरी लड़खड़ाई तथा बाईं ओर बनी दीवार से टकराकर अधउलटी रुक गई। कई जिस्म नीचे पानी में गिरकर छटपटाने लगे। कोहराम मच गया। वह बच्चे की लाश को फेंककर छटपटाते लोगों के बीच खड़ा हो चिल्ला पड़ा ‘‘हाय मेरा बच्चा, मेरी औ…..र…त।’’
उसकी निगाहें पीछे आती पत्नी को ढूँढ रही थीं और उसकी पत्नी अपने ही करीब तैरती बच्चे की लाश से परे हिलोरें खाती डबलरोटी को झपटने की कोशिश कर रही थी।
4-सर्वशक्तिमान
उस नवनिर्मित के द्वार पर दिन–ब–दिन भीड़ बढ़ती जा रही थी। चौबीसों घंटे श्रद्धालुओं की उपस्थिति से मंदिर का मुख्य द्वार कभी बंद नहीं हो पाता था। पूजन–अर्चन के बाद लौटते हुए इतनी संतुष्टि,आज से पहले दुनिया के किसी भी धर्मगढ़ से निकलते लोगों के चेहरों पर नहीं देखी गई। खास बात तो यह कि इस मंदिर में सभी धर्मों और समुदायों के लोग आ–जा रहे थे।
किसी से पूछते कि इस मंदिर में किसकी मूर्ति रखी हुई है तो लोग एक ही उत्तर देते, ‘सर्वशक्तिमान की,’ और श्रद्धा–भक्ति से आँख मूँद लेते।
सरकार एक दिन खुद ताव खाते मंदिर में घुस पड़े। आखिर उनसे ज्यादा ताकतवर यह कौन सर्वशक्तिमान अवतरित होकर एक धर्म साम्राज्य पर फावड़ा चला रहा है? वे पहुँचे। दर्शन पाते ही उनकी गर्दन झुक गई। वे फर्श से माथा टेककर बड़बड़ाए, ‘‘हे सर्वशक्तिमान, मुझ दरिद्र पर कृपा करो।’’ दरअसल वहाँ स्वर्ण–सिंहासन पर चाँदी का एक गोल सिक्का रखा हुआ था।

धर्म संस्कृति

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छत्तीसगढ़ में माता की उपासना
- सुशील भोले
सतबहिनिया माता की पूजा परंपरा...
छत्तीसगढ़की मूल संस्कृति इस देश में प्रचलित वैदिक या कहें शास्त्र आधारित संस्कृति से बिल्कुल अलगहटकर एक मौलिक और स्वतंत्र संस्कृति है। आप सभी जानते हैं, कि नवरात्र में वैदिक मान्यता के अनुसार माता के नौ रूपों की उपासना की जाती है। जबकि छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति में माता के सात रूपों की पूजा-उपासना की जाती हैजिन्हें हम सतबहिनिया माता के नाम से जानते हैं। यहाँ की संस्कृति प्रकृति पर आधारित संस्कृति है, इसलिए यहाँ प्रकृति पूजा के रूप में जंवारा बोने और उसकी पूजा-उपासना करने की परंपरा है।
हमारे यहाँ सतबहिनिया माता के जिन सात रूपों की उपासना की जाती हैउनमें मुख्यतः - शीतला दाईमावली दाईबूढ़ी माईठकुराईन दाई, कुंवर माईमरहीमाई, दरश माता आदि प्रमुख हैं।  इनके अलावा भी अलग- अलग लोगों से और कई अन्य नाम ज्ञात हुए हैंजिनमें -कंकालीन दाईदंतेश्वरीमाईजलदेवती माताकोदाई माता या अन्नपूर्णा माता आदि-आदि नाम बताए जाते हैं।
हमारे यहाँ सतबहिनिया माता की पूजा-उपासना आदि काल से होती चली आ रही है, इसीलिए यहाँ के प्राय: सभी गाँवशहर और मोहल्ले में शीतला मातामावली माता, सतबहिनिया माता आदि के मंदिर देखे जाते हैं। 
माँ गंगा मैया मंदिर, झलमला... 
छत्तीसगढ़ के बालोद जिला मुख्यालय से महज तीन किलोमीटर पर स्थित ग्राम पंचायत झलमला का प्रसिद्ध देवी मंदिर है। मंदिर ऐसा कि दर्शन मात्र से ही जीवन धन्य हो जाए। माता की अदभुत प्रतिमा को देखकर ही भक्त जनों का रोम-रोम पुलकित हुए बिना नहीं रहता।
प्राचीन कथा जुड़ी देवी माँ के मंदिर से..
धार्मिक स्थल माँ गंगा मैया की कहानी अंग्रेज शासन काल से जुड़ी हुई है। उस समय जिले की जीवन दायिनीतांदुला नदी के नहर का निर्माण चल रहा था, करीब 125 साल पहले। उस दौरान झलमला की आबादी महज 100 के लगभग थी, जहाँ सोमवार के दिन ही यहाँ का बड़ा बाजार लगता था। जहाँ दूर-दराज से पशुओं के विशाल समूह के साथ बंजारे आया करते थे। उस दौरान पशुओं की संख्या अधिक होने के कारण पानी की कमी महसूस की जाती थी। पानी की कमी को पूरा करने के लिए बांधा तालाब नामक एक तालाब की खुदाई कराई गई। माँ गंगा मैय्या के प्रादुर्भाव की कहानी इसी तालाब से शुरू होती है।
बार-बार जाल में फंसती रही मूर्ति...
किवदंती अनुसार एक दिन ग्राम सिवनी का एक केवट मछली पकडऩे के लिए इस तालाब में गया, लेकिन जाल में मछली की जगह एक पत्थर की प्रतिमा फँस गई, लेकिन केवट ने अज्ञानतावश उसे साधारण पत्थर समझ कर फिर से तालाब में डाल दिया। इस प्रक्रिया के कई बार पुनरावृत्ति से परेशान होकर केवट जाल लेकर घर चला गया।
स्वप्न में कहा मुझे निकालें बाहर...
देवी माँ की प्रतिमा को लेकर कई किवदंतियां प्रचलित हैं। केवट के जाल में बार-बार फंसने के बाद भी केवट ने मूर्ति को साधारण पत्थर समझ कर तालाब में ही फेंक दिया। इसके बाद देवी ने उसी गांव के गोंड़ जाति के बैगा को स्वप्न में आकर कहा कि मैं जल के अंदर पड़ी हूं। मुझे जल से निकालकर मेरी प्राण-प्रतिष्ठा करवाओ।
माता के स्वप्न के बाद प्रतिमा को निकाला बाहर...
स्वप्न की सत्यता को जानने के लिए तत्कालीन मालगुजार छवि प्रसाद तिवारी, केंवट तथा गांव के अन्य प्रमुख को साथ लेकर बैगा तालाब पहुँचा, उसके बाद केंवट द्वारा जाल फेंके जाने पर वही प्रतिमा फिर जाल में फंसी। प्रतिमा को बाहर निकाला गया, उसके बाद देवी के आदेशानुसार तिवारी ने अपने संरक्षण में प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा करवाई गई। जल से प्रतिमा निकली होने के कारण गंगा मैय्या के नाम से जानी जाने लगी।
शक्ति लहरी सतधरा धाम दर्शन...
छत्तीसगढ की शक्तिपीठों में अब शक्ति लहरी सतधरा धाम का नाम भी प्रमुखता से जुड़ने लगा है। लगभग पिछले एक शताब्दी पूर्व से स्थापित माता के इस मंदिर में भक्तजनों का आना निरंतर बढता जा रहा है।
सात नदियों के एक साथ मिलने से सतधरा या सप्तधारा के नाम से जाने जाना वाला यह स्थल गरियाबंद जिला महासमुंद जिला और रायपुर जिला की सीमारेखा पर ग्राम हथखोज के अंतर्गत स्थित है। ऐसी मान्यता है कि यहाँ महानदी, सोढुल नदी और पैरी नदी की तीन धाराओं के साथ सूखा नदी, सरगी नदी, केशवा नदी और बगनई नदी आपस में एक साथ मिलती हैं, इसीलिए इस विराट भू-भाग में फैले संगम को सप्तधारा या सतधराकहते हैं। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि संभवतः समूचे छत्तीसगढ में नदियों का संगम स्थल इतना विस्तारित कहीं पर नहीं है, जितना विस्तारित यहाँ का संगम पाट है।
माता जी के यहाँ पर स्थापित होने के संबंध में बताया जाता है, कि माता की यह बिना शीश वाली प्रतिमा नदी में बहकर आयी है, एक यादव को यह प्राप्त हुई है। बताया जाता है कि वह व्यक्ति अपनी भैंसोथ को लेकर संगम स्थल पर जाया करता था, वहाँ उसकी भैंस एक स्थान विशेष पर हमेशा चमक जाती थी। यादव को आश्चर्य होता था कि आखिर भैंस यहाँ पर चमक या झिझक क्यों जाती है। उसने उस स्थल को ठीक से देखकर रेत में टटोलने लगा कि आखिर यहाँ है क्या? तब यह प्रतिमा उसके हाथों में आयी।
बताया जाता है, कि तब माता ने उस यादव को स्वप्न दिया कि मुझे यहाँ से निकालकर अन्य स्थल पर स्थापित करवा दो। उन्होंने बताया कि मुझे उठाकर ले जाते समय हर कदम पर एक-एक नारियल रखते जाना और जहाँ पर नारियल अपने आप फूट जाए उस स्थल पर मुझे स्थापित कर देना। वर्तमान में स्थापित जगह पर ही नारियल के फूटे जाने का जिक्र किया जाता है।
वर्तमान में यह स्थल देवी उपासना के प्रमुख पीठ के रूप में विकसित हो रहा है। राजिम से महासमुंद को जोड़ने वाले इस मार्ग पर स्थित सूखा नदी पर भव्य पुल बन जाने के कारण यहाँ से होकर गुजरने वालों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है, इसका प्रतिफल मंदिर के दर्शनार्थियों के लिए भी सार्थक रहा है, उनकी संख्या में भी वृद्धि हुई है।
यहाँ पर प्रतिवर्ष मकर संक्रांति के अवसर पर तीन दिनों का मेला भरता है। मेला का स्वरूप दिनों दिन बढता ही जा रहा है। इसी अवसर पर यहाँ सूखा लहरा लिया जाता है। बताया जाता है, कि संगम स्थल की रेत पर लोग लोट कर लहरा लेते हैं। जिसके भाग्य में होता है, वह उंगली के स्पर्श मात्र से काफी दूर तक लुढकते हुए चला जाता है, और निढाल होने के पश्चात ही रुकता पाता है।
माता के इस स्थल पर नवरात्र के दोनों ही अवसर पर ज्योति कलश की स्थापना की जाती है, जहाँ श्रद्धालु अपनी मनोकामना को लेकर ज्योति प्रज्वलित करते हैं।
जंगल के बीच जतमाई माता का बसेरा... 
जतमई छत्तीसगढ़ के प्रमुख तीर्थ आैर पर्यटन स्थलों में से एक है। ये प्रकृति की गोद में बसा हुआ है। यह स्थान अब देवी का एक चर्चित तीर्थ का रूप धारण कर चुका है। जतमाई छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से करीब 65 किमी की दूरी पर स्थित एक प्राकृतिक स्थल है आैर यह जंगल के बीचों-बीच बना हुआ है। जतमाई अपने कल कल करते प्राकृतिक सदाबहार झरनों के लिए भी प्रसिद्ध है। गरियाबंद जिले में प्रकृति की गोद में बसा, वनों से आच्छादित यह अत्यंत सुंदर स्थान है, जहाँ वर्षा ऋतु में कल कल करते झरने बहते रहते हैं। यही शहर के प्रदूषण से मुक्त शांत जगहों मेंसे एक जतमई धाम है। यहाँ माँजतमाई का प्रसिद्घ मंदिर है जो की पहाड़ों की देवी है। माता के मंदिर के ठीक सटी हुई जलधाराएं उनके चरणों को छूकर चट्टानों से नीचे गिरती हैं। इसमें युवा नहाने से नहीं चूकते हैं। स्‍थानीयमान्‍यताओं के अनुसार, ये जलधाराएं माता की सेविकाएं हैं जो देवी माँ के भक्‍तों को नहलाती हैं। यहाँ आने वाला हर शख्स यही कहता है कि वह जन्नत में आ गया।
बहुत मशहूर है यह स्थान...
वैसे तो यहाँ साल भर ही भक्तों की भीड़ आती है और माँ के दर्शनों का लाभ उठाती है, परंतु प्रतिवर्ष चैत्र और कुवांर के नवरात्र में मेला भी लगता है। जतमाई में दूर दूर से लोग माता के दर्शन करने आते हैं तथा पिकनिक का भी आनंद उठाते हैं। जतमई वनों के मध्य में स्थित होने के कारण एक खूबसूरत पिकनिक स्थल के रूप में भी प्रसिद्ध है। यहाँ के झरने लोगों के मन मोह लेते हैं और लोग झरने में भीगने से आपने आप को रोक नहीं पाते हैं। जतमाई से लगा हुआ घटारानी भी जतमाई की तरह ही एक प्राकृतिक पर्यटन स्थल है। यहाँ भी जतमाई की तरह ही झरने बहते हैं और माँ घटारानी का मंदिर है, जतमाई के पास ही एक छोटा सा बांध भी है जिसे पर्यटक देखना नहीं भूलते।
सम्पर्कःसंजय नगररायपुर, मो.982699281

पर्व संस्कृति

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छत्तीसगढ़ के जसगीत
-संजीव तिवारी
छत्तीसगढ़में पारंपरिक रूप में गाये जाने वाले लोकगीतों में जसगीत का अहम स्थान है। छत्तीसगढ़ का यह लोकगीत मुख्यत-  क्वांर व चैत्र नवरात में नौ दिन तक गाया जाता है। प्राचीन काल में जब चेचक एक महामारी के रूप में पूरे गांव में छा जाता था तब गांवों में चेचक प्रभावित व्यक्ति के घरों मै इसे गाया जाता था। आल्हाउदल के शौर्य गाथाओं एवं माता के श्रृंगार व माता की महिमा पर आधारित छत्तीसगढ़ के जसगीतों में अब नित नये अभिनव प्रयोग हो रहे हैं, हिंगलाज, मैहर, रतनपुर व डोंगरगढ, कोण्डागांव एवं अन्य स्थानीय देवियों का वर्णन एवं अन्य धार्मिक प्रसंगों को इसमें जोडा जा रहा है, नये गायक गायिकाओं, संगीत वाद्यों को शामिक कर इसका नया प्रयोग अनावरतचालु है।
पारंपरिक रूप से मांदर, झांझ व मंजिरे के साथ गाये जाने वाला यह गीत अपने स्वरों के ऊतारचढाव में ऐसी भक्ति की मादकता जगाता है जिससे सुनने वाले का रोमरोम माता के भक्ति में विभोर हो उठता है । छत्तीसगढ़ के शौर्य का प्रतीक एवं मॉं आदि शक्ति के प्रति असीम श्रद्धा को प्रदर्शित करता यह लोकगीत नसों में बहते रक्त को खौला देता है, यह अघ्यात्मिक आनंद का ऐसा अलौकिक ऊर्जा तनमन में जगाता है जिससे छत्तीसगढ़ के सीधे साधे सरल व्यक्ति के रग रग में ओज उमडपडता है एवं माता के सम्मान में इस गीत के रस में लीन भक्त लोहे के बने नुकीले लम्बे तारों, त्रिशुलों से अपने जीभ, गाल व हाथों को छेद लेते हैं व जसगीत के स्वर लहरियों में थिरकते हुए 'बोलबम''बोलबम'कहते हुए माता के प्रति अपनी श्रद्धा प्रदर्शित करते हुए 'बाना चढाते'हैं वहीं गांव के महामाया का पुजारी 'बैइगा'आनंद से अभिभूत हो 'माता चढे'बम बम बोलते लोगों को बगई के रस्सी से बने मोटे रस्से से पूरी ताकत से मारता है, शरीर में सोटे के निशान उभर पडते हैं पर भक्त बम बम कहते हुए आनंद में और डूबता जाता है और सोंटे का प्रहार मांदर के थाप के साथ ही गहराते जाता है ।
छत्तीसगढ़ के हर गाँव में ग्राम्या देवी के रूप में महामाया, शीतला मां, मातादेवाला का एक नियत स्थान होता है जहाँ इन दोनों नवरात्रियों में जंवारा बोया जाता है एवं नौ दिन तक अखण्ड'योति जलाया जाता है, रात को गाँवके पुरूष एक जगह एकत्र होकर मांदर के थापों के साथ जसगीत गाते हुए महामाया, शीतला, माता देवाला मंदिर की ओर निकलते हैं -
अलिन गलिन मैं तो खोजेंव,
मइया ओ मोर खोजेंव
सेऊकनइ तो पाएव,
मइया ओ मोर मालनिया
मइया ओ मोर भोजलिया.........
रास्ते में माता सेवा जसगीत गाने वाले गीत के साथ जुडते जाते हैं, जसगीत गाने वालों का कारवां जस गीत गाते हुए महामाया मंदिर की ओर बढता चला जाता है । शुरूआत में यह गीत मध्यम स्वर में गाया जाता है गीतों के विषय भक्तिपरक होते हैं, प्रश्नोत्तर के रूप में गीत के बोल मुखरित होते हैं -
कउने भिंगोवय मइया गेहूंवा के बिहरी
कउने जगावय नवराते हो माय...
सेऊक भिंगोवय मइया गेहूंवा के बिहरी
लंगुरे जगावय नवराते हो माय...
जसगीत के साथ दल महामाया मंदिर पहुंचता है वहाँ माता की पूजा अर्चना की जाती हैं फिर विभिन्न गांवों में अलग अलग प्रचलित गीतों के अनुसार पारंपरिक छत्तीसगढ़ी आरती गाई जाती है -
महामायलेलो आरती हो माय
गढ हींगलाज में गढे हिंडोलना
 लख आवय लख जाय
माता लख आवय लख जाय
एक नहीं आवय लाल लंगुरवा
जियरा के प्राण आधार...
जसगीत में लाल लंगुरवा यानि हनुमान जी सातों बहनिया माँ आदिशक्ति के सात रूपों के परमप्रिय भाई के रूप में जगह जगह प्रदर्शित होते हैं जहाँ माता आदि शक्ति लंगुरवा के भ्रातृ प्रेम व उसके बाल हठ को पूरा करने के लिये दिल्ली के राजा जयचंद से भी युद्ध कर उसे परास्त करनें का वर्णन गीतों में आता हैं । जसगीतों में दिल्ली व हिंगलाज के भवनों की भव्यता का भी वर्णन आता है -
कउन बसावय मइया दिल्ली ओ शहर ला,
कउन बसावय हिंगलाजे हो माय
राजा जयचंद बसावय दिल्ली शहर ला,
 माता वो भवानी हिंगलाजे हो माय
कउने बरन हे दिल्ली वो शहर हा,
कउने बरन हिंगलाजे हो माय
चंदन बरन मइया दिल्ली वो शहर हा,
बंदन बरन हिंगलाजे हो माय
आरती के बाद महामाया मंदिर प्रांगण में सभी भक्त बैठकर माता का सेवा गीतों में प्रस्तुत करते हैं । सभी देवी देवताओं को आव्हान करते हुए गाते हैं - 
पहिली मयसुमरेव भइया चंदा- सुरूज ला
दुसरे में सुमरेंव आकाश हो माय......
सुमरने व न्यौता देने का यह क्रम लंबा चलता है ज्ञात अज्ञात देवी देवताओं का आहवान गीतों के द्वारा होता है । गीतों में ऐसे भी वाक्यों का उल्लेख आता है जब गांवों के सभी देवी- देवताओं को सुमरने के बाद भी यदि भूल से किसी देवी को बुलाना छूट गया रहता है तो वह नाराज होती है गीतों में तीखें सवाल जवाब जाग उठते हैं - -
अरे बेंदरा बेंदराझन कह बराइन मैं हनुमंता बीरा
मैं हनुमंता बीरा ग देव मोर मैं हनुमंता बीरा
जब सरिस के सोन के तोर गढ लंका
कलसा ला तोर फोरहॉं, समुंद्र में डुबोवैं,
कलसा ला तोरे फोरहाँ ...
भक्त अपनी श्रद्धा के फुलों से एवं भक्ति भाव से मानस पूजा प्रस्तुत करते हैं, गीतों में माता का श्रृंगार करते हैं मालिन से फूल गजरा रखवाते हैं । सातों रंगो से माता का श्रृंगार करते हैं - -
मइयासांतों रंग सोला हो श्रृंगार हो माय...
लाल लाल तोरे चुनरी महामाय
लालै चोला तुम्हारे हो माय...
लाल हावै तोर माथे की टिकली
 लाल ध्वजा तुम्हारे हो माय....
खात पान मुख लाल बाल है
सिर के सेंदूर लाल हो माय...
मइया सातों रंग...
पुष्प की माला में मोंगरा फूल माता को अतिप्रिय है। भक्त सेउक गाता है - 
हो माय के फूल गजरा,
गूथौ हो मालिन के धियरी फूल गजरा
कउनेमाय बर गजरा कउने माय बर हार,
कउने भाई बर माथ मटुकिया
सोला हो श्रृंगार...
बूढी माय बर गजरा धनईया माय बर हार,
लंगुरे भाई बर माथ मटुकिया
सोला हो श्रृंगार ...
माता का मानसिक श्रृंगार व पूजा के गीतों के बाद सेऊक जसगीत के अन्य पहलुओं में रम जाते हैं तब जसगीत अपने चढाव पर आता है मांदर के थाप उत्तेजित घ्वनि में बारंबार ता बढाते हैं गीत के बोल में तेजी और उत्तेजना छा जाता हैं -
अगिन शेत मुख भारत भारेव,
भारेव लखन कुमारा
चंदा सुरूज दोन्नो ला भारेव,
तहूं ला मैं भारेहौं हां
मोर लाल बराईन,
तहूं ला मैं भरे हंव हाँ ...
गीतों में मस्त सेऊक भक्ति भाव में लीन हो, वाद्य यंत्रों की धुनों व गीतों में ऐसा रमता है कि वह बम बम के घोष के साथ थिरकने लगता है, क्षेत्र में इसे देवता चढना कहते हैं अर्थात देवी स्वरूप इन पर आ जाता है । दरअसल यह ब्रम्हानंद जैसी स्थिति है जहाँ भक्त माता में पूर्णतया लीन होकर नृत्य करने लगता है सेऊक ऐसी स्थिति में कई बार अपना उग्र रूप भी दिखाने लगता है तब महामाई का पुजारी सोंटे से व कोमल बांस से बने बेंत से उन्हें पीटता है एवं माता के सामने 'हूमदेवाता'है ।
भक्ति की यह रसधारा अविरल तब तक बहती है जब तक भगत थक कर चूर नहीं हो जाते। सेवा समाप्ति के बाद अर्धरात्रि को जब सेऊक अपने अपने घर को जाते हैं तो माता को सोने के लिये भी गीत गाते हैं -
पउढौ पउढौ मईयां अपने भुवन में,
सेउक बिदा दे घर जाही बूढी माया मोर
दसो अंगुरी से मईया बिनती करत हौं,
 डंडा ओ शरण लागौं पायें हो माय ...
आठ दिन की सेवा के बाद अष्टमी को संध्या 'आठेमें 'हूम हवनव पूजा अर्चना पंडित के .द्धारा विधि विधान के साथ किया जाता है । दुर्गा सप्तशती के मंत्र गूंजते हैं और जस गीत के मधुर धुन वातावरण को भक्तिमय बना देता है । नवें दिन प्रात-  इसी प्रकार से तीव्र चढावजस गीत गांए जाते हैं जिससे कि कई भगत मगन होकर बाना, सांग चढाते हैं एवं मगन होकर नाचते हैं । मंदिर से जवांरा एवं जोत को सर में उढाए महिलाएं कतारबद्ध होकर निकलती है गाना चलते रहता है । अखण्ड'योति की रक्षा करने का भार बइगा का रहता है क्योंकि पाशविक शक्ति उसे बुझाने के लिये अपनी शक्ति का प्रयोग करती है जिसे परास्त करने के लिये बईगा बम बम के भयंकर गर्जना के साथ नीबूचांवल को मंत्रों से अभिमंत्रित कर 'योति व जवांरा को सिर पर लिए कतारबद्ध महिलाओं के उपर हवा में फेंकता है व उस प्रभाव को दूर भगाता है । गीत में मस्त नाचते गाता भगतों का कारवां नदी पहुंचता है जहाँ 'योति व जवांरा को विसर्जित किया जाता है । पूरी श्रद्धा व भक्ति के साथ सभी माता को प्रणाम कर अपने गांव की सुख समृद्धि का वरदान मांगते हैं, सेऊक माता के बिदाई की गीत गाते हैं -
सरा मोर सत्तीमाय ओ छोडी के चले हो बन जाए
सरा मोर सत्ती माय वो ...
सम्पर्कःए 40, खण्डेलवाल कालोनी, दुर्ग, मो. 09926615707

सामयिक

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चंदा को चर गया भ्रष्टाचार
- डॉ. महेश परिमल
अभी-अभीहमारे बहुत ही करीब से अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस गुजरा। इसके पहले जब भी सफल महिलाओं की बात होती, तो एक नाम अवश्य उभरता, जो इस साल पूरी तरह से भुला दिया गया। वह नाम है चंदा कोचर का। अब तक इनका नाम महिलाओं के प्रतिनिधित्व में विशेष रूप से लिया जाता था।  बैंकिंग के क्षेत्र में चंदा कोचर की सलाह को विशेष रूप से प्राथमिकता दी जाती थी। पर कुछ भूलों के कारण उनकी काफी बदनामी हुई। अब उनके खिलाफ इंवेस्टिगेशनडिरेक्टोरेट (इडी) का छापा पड़ रहा है। संभवत: वे जेल भी जा सकतीं हैं। पति और देवर ने मिलकर उनके बैंकिंग कैरियर को एक तरह से रौंद ही डाला है। समझ में नहीं आता कि बैंकिंग के क्षेत्र में कार्य करते हुए हमेशा भ्रष्टाचार से दूर रहने की सलाह देने वाली वे स्वयं कैसे ग़ाफिल रह गई कि उनके नाक के नीचे भ्रष्टाचार होता रहा और वे समझ नहीं पाईं।
चंदा कोचर ने जाँच से पीछा छुड़ाने के लिए काफी कोशिशें की। उनके पति दीपक कोचर के दोस्त और वीडियोकॉन के चेयरमैन वेणुगोपाल धूत ने आईसीआईसीआई बैंक को पूरी तैयारी के साथ लूट लिया। चोर-डाकू तो बैंक को बंदूक की नोक पर लूटते हैं, पर चंदा कोचर के पति दीपक कोचरऔर वेणुगोपाल ने अपना काम इतनी खामोशी से किया कि किसी को पता भी नहीं चल पाया। चंदा कोचर ने जो काम किए, वह पकड़ में बिलकुल भी नहीं आती। पर एक व्हीसलब्लॉगर ने इस घोटाले की जानकारी देते हुए ब्लॉग लिखा। यह ब्लॉग देश की विख्यात बैंक के चेयरमैन के खिलाफ जानकारी दे रहा था, इसलिए इसे कोई अनदेखा कर रहा था। यहाँ तक कि स्वयं चंदा कोचर ने इस ब्लॉग की खिल्ली उड़ाई थी। बाद में इसकी गंभीरता को समझते हुए उसने समाधान के प्रयास भी किए। 3250 करोड़ वापस करने के लिए भी वे तैयार थीं। इसके लिए वित्त मंत्रालय के अधिकारियों को साधने के लिए कुछ बिचौलिओं को सक्रिय किया गया था। बाद में उन्हें सूचना मिली कि पहले राशि की भरपाई करो, उसके बाद मामला वापस लेने पर विचार किया जाएगा। चंदा कोचर और उनके पति  दीपक कोचर और वेणुगोपाल जान गए थे कि सरकार उनसे राशि ले लेगी और उन्हें गिरफ्तार भी कर लेगी। वास्तविकता यही है कि चंदा कोचर एंड कंपनी को बैंक की देनदारी भी वापस करनी होगी और उनके खिलाफ कार्रवाई भी की जाएगी।
वीडियोकॉन के साथ सम्बद्ध अन्य कंपनियों को भी भारी लोन दिया गया था। साफ शब्दों में कहा जाए, तो चंदा कोचर के पति और उनके देवर ने इन कंपनियों को धोखा दिया था। यदि इडी के सामने चंदा कोचर सब कुछ सही-सही बता देतीं हैं, तो उनके पति और देवर सलाखों के पीछे हो सकते हैं। इसलिए सरकार ने चारों घोटालेबाजों के खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी किया। एंफोर्समेंट डायरेक्टरोरेट द्वारा पूछताछ के लिए बुलाए जाने पर ही कई लोग अपना अपराध स्वीकार लेते हैं। प्रियंका वाड्रा के पति रॉबर्ट वाड्रा से इडी ने जब लगातार चार दिनों तक पूछताछ की, तो राबर्ट के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगी थी।
किसका पैसा, कहाँ से आया, प्राप्त की गई राशि का टैक्स भरा या नहीं आदि ऐसे प्रश्नों से आर्थिक अपराधी सरेंडर हो जाते हैं। लोन किस दस्तावेज के आधार पर दिया गया? वेणुगोपाल से आपकी क्या रिश्तेदारी है। इसका जवाब देते समय चंदा कोचर भी घबरा गई थीं। चंदा कोचर ने बैंकिंग सिस्टम पर जमे विश्वास को डांवाडोल कर दिया है। इन दिनों बैंक स्वयं नान परफार्मिंगएसेट (एनपीए) के वायरस से पीड़ित है, तो दूसरी तरफ बड़ी बैंकिंग के चेयरमैन द्वारा ही धड़ाधड़ लोन देने का सिलसिला जारी रखे हुए हैं। आर्थिक अपराध में सामान्य रूप से बैंक के स्टाफ को ही बलि का बकरा बनाया है, पर इस मामले में बाड़ ही खेत को खा गई।
एक समय ऐसा भी था, जब आईसीआईसीआई बैंक के अन्य डायरेक्टरों ने चंदा कोचर को क्लीनचीट दी थी। इन डिरेक्टरों के खिलाफ भी जांच चल रही है। चंदा कोचर को अपनी प्रतिष्ठा को बनाए रखना था। अपने उद्बोधन में वे हमेशा कर्मचारियों को भ्रष्टाचार से दूर रहने की सलाह दिया करती थीं। जब घोटाले की आँच उनकी कुर्सी तक पहुँची, तब तक उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि ऐसा भी हो सकता है। आखिर में वे जब घोटाले की सूत्रधार के रूप में उभरकर सामने आई, तब मुँह छिपाने की भी जगह नहीं बची थी।
बैंकिंग के क्षेत्र में एक दैदीप्यमान तारा अचानक धुँधला हो गया। उस पर कालिख पोत दी गई। जिसका नाम गर्व के साथ लिया जाता था, वह नाम ही आज बदनामी का शिकार हो गया। आखिर पति की हरकतों को क्यों नहीं समझ पाई चंदा कोचर। अब नारियाँ भला अपने आदर्श को इस तरह से सीखचों के पीछे देख पाएँगी। विश्वास का एक नाम था चंदा कोचर, जो आज भ्रष्टाचार का पर्याय बन गया। इसके बाद यह कहा जा सकता है कि देश में आज भी पितृ सत्तात्मक सत्ता जारी है। चंदा कोचर कितनी भी आधुनिक महिला हो जाएँ, वह कितनी भी सफल हो जाएँ, पर आज भी वह कहीं न कहीं पति के हाथों विवश हैं। पति ने जो चाहा, उससे करवा लिया। पति ने अपनों के लिए लोन की जितनी सिफारिशें की, चंदा ने आँख बंदकर उसे आगे बढ़ा दिया। वह यह भी नहीं समझ पाई कि पति गलत भी हो सकते हैं। इस तरह से वह विशेष नारी होने के बाद एक आम साधारण नारी ही बनकर रह गईं।

संस्मरण

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फिर मिलूँ मैं न मिलूँ 
दीदार तो कर लो  
-मंजूषा मन

उसदिनहमारीकालोनीकेमहिलामंडलकीबैठकथी।यूँमुझेऐसीबैठकोंमेंशामिलहोनापसन्दनहीं... परउसदिनमहिलामंडलकीअध्यक्षमहोदयाकाविदाईसमारोहभीथा... सोमंडलकेकार्यकारीमहिलाओंनेविशेषअनुरोधकियाकिआपज़रूरआइयेगा... 
अवसरभीऐसाथाकिजानाउचितलगा... सोमैंपहुंचगई... औरबैठकमेंसबसेपीछेकीकुर्सीपरअपनाआसनजमालियाथा।
बैठकमेंसबमहिलाओंनेअध्यक्षमहोदयाकेसाथबिताएपलोंकीयादेंसाझाकीं। 
आयोजकसदस्यनेमेरेपासआकरकानमेंकहा - "आपभीकुछकहिएगा"
मैंनेकहा - "अरे.. परअध्यक्षमहोदयाकेसाथमेराकोईखासअनुभवतोहैनहीं... मैंक्याकहूंगी?"
"अरेआपतोकवयित्रीहैं... कोईकवितासुनादीजिएगा" - वेसमझातेहुएबोलीं.... औरआगेअपनीसीटपरपहुँचगईं।
मुझेभीलगा... चलोअच्छाहैएकविदाईगीतबहुतपहलेलिखाथावहीसुनादूँगी।मेरीबारीआईतोमैंनेवहीगीतजिसकेबोलहैं...
*"फिरमिलूँमैंमिलूँदीदारतोकरलो
आखरीहैयेमिलनअबप्यारतोकरलो।"* 
सुनायाऔरपुनःअपनीपीछेकीसीटपरगई। 
मैनेदेखाआगेकीसीटसेउठकरएकमहिलामेरेपासआईं... जिन्हेंमैंनेमंडलकीबैठकमेंपहलेभीदेखाथा... परकभीबातनहींहुईथी।वेपासआईंऔरभावुकहोतींहुईंबोलीं... आपकीकविता... बहुत... इतनाकहनेकेबादकुछशब्दउनकेगलेमेंअटकगये... वेसचमुचबहुतभावुकथीं।वेकुछरुककर  फिरबोलीं... सचमेआपकीकविताबहुतअच्छीहै... मेरेदिलकोछूगई.... मैंतोरोनेलगीथी।औरवेसचमुचरोनेलगीं। 
मुझेसमझनहींआयाकिक्याकहूँ... किसीरचनाकारकेलिएइससेबड़ीखुशीकीबातक्याहोगीकिउसकीरचनाकिसीपरइतनाअसरकरेकिवोभरीमहफ़िलमेंसबकेसामनेरोनेलगे।
मैंनेउनसेकहा - "यहगीतमैंनेकईबारगाया... लोगोंनेपसन्दभीकिया... परऐसापहलीबारहोरहाहैकिकोईरुंधेलगेऔरहमआँखोंसेपासकरयूँरोनेलगे... आपकाबहुतबहुतशुक्रिया... कहतेहुएमैंनेउन्हेंगलेलगाया... 
मुझेसमझमेनहींरहाथाकियहअच्छीबातहैयानहीं... किसीकोरुलादेनाअच्छातोनहींहै।परलगाकिशायदमेरेगीतमेंकिसीकीपीड़ाआँखोंसेबहजाएयेबहुतबड़ीबातहै... शादीमुझेखुशहोनाचाहिए।
उन्होंनेअपनामोबाइलनम्बरदेतेहुएकहाकिअपनायहगीतमुझेभेजदीजिए। 
उनकानम्बरलेकरमैंनेउन्हेंअपनागीतभेजा... औरउन्हेंएकसन्देशभेजा... *"आपबहुतप्यारीहैं.. रोतेहुएअच्छीनहींलगतीं"*
औरहममित्रबनगए।

शताब्दी विशेष

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जलियाँवालाबाग़गोलीकांड’ 
अप्रैलकाकालाऔरक्रूरतम दिन
- डॉ. कुँवरदिनेशसिंह

अमेरिकीकविएलियटकीबहुचर्चितउक्ति-"अप्रैलएकक्रूरतममाहहै"केबहुत-सेमानीनिकालेजातेरहेहैं, परन्तुइसकासर्वाधिकमान्यभावार्थहै-दिसम्बरमाहमेंशीतऋतुमेंहुईहानिह्रासकाविषाद, जिसकीस्मृति-मात्रअप्रैलमेंवसन्तकेचरमपरभीमानव-मनकोखिन्नकरदेताहै।इसीआशयसेएलियटनेअप्रैलकोक्रूरतममाहकहदिया।भारतीयइतिहासमेंयहउक्तिएकअन्यसन्दर्भमेंभीचरितार्थहोतीहै,वहहैपराधीनभारतमें13अप्रैल1919कोअमृतसरकेजलियाँवालाबाग़मेंअंग्रेज़ोंद्वाराकियागयानरसंहार।आजसौसालबीतजानेकेबादभीजैसेहीजलियाँवालाबाग़गोलीकाण्डकाज़िक्रजाताहै, मनमेंउदासीकेसाथ-साथरोषभरआताहै, आक्रोशजाताहै।
उसदिनबैसाखीथी।  पूरेभारतमेंबैसाखीकात्योहारमनायाजाताहै, परन्तुपंजाबऔरहरियाणामेंइसकाविशेषमहत्त्वहै।किसानरबीकीफसलकाटलेनेकेबादनएसालकीखुशियाँमनातेहैं।बैसाखीकेदिन, यानी13अप्रैल1699कोसिक्खोंकेदसवेंगुरुगोविंदसिंहनेखालसापंथकीस्थापनाकीथी।इसकारणसेभीबैसाखीपंजाबऔरआस-पासकेप्रान्तोंमेंएकबड़ेपर्वकेरूपमेंमनाईजातीहै।अपनेपंथकीस्थापनाकेकारणसिक्खइसदिनकोसामूहिकजन्मदिवसकेरूपमेंमनातेहैं।अमृतसरमेंबैसाखीमेलासैंकड़ोंसालोंसेलगताचलारहाथा।  उसदिनभीबैसाखीकेमेलेकेलिएदूर-दूरसेआएहज़ारोंलोगस्वर्ण-मन्दिरकेनिकटजलियाँवालाबाग़मेंएकत्रहुएथे।  इसीबाग़मेंरॉलेटएक्‍टकाविरोधकरनेकेलिएभीएकसभाहोरहीथी।  1918मेंएकब्रिटिशजजसिडनीरॉलेटकीअध्यक्षतामेंनियुक्तएकसेडीशनसमिति  केसुझावोंकेअनुसारभारतप्रतिरक्षाविधान (1915) काविस्तारकरकेभारतमेंरॉलटएक्टलागूकियागयाथा, जोभारतीयोंद्वारास्वतन्त्रताकेलिएकिएजारहेआंदोलनपररोकलगानेकेलिएथा।इसकेअन्तर्गतब्रिटिशसरकारकोऐसेअधिकारदिएगएथे, जिनसेवहप्रेसपरसेंसरशिपलगासकतीथी, लोगोंकोबिनावॉरण्टकेगिरफ़्तारकरसकतीथीऔरबिनामुकद्दमेकेजेलमेंरखसकतीथी, उनपरबंदकमरोंमेंअपनापक्षरखेबिनामुकद्दमाचलासकतीथी, इत्यादि।इसकारणइसएक्टकापूरेभारतमेंलोगआन्दोलनकररहेथेऔरगिरफ़्तारियाँदेरहेथे। 

उसदिनअमृतसरपहुँचेबहुत-सेलोगऐसेथे, जोपरिवारकेसाथमेलादेखनेऔरअमृतसरशहरघूमनेआएथे,लेकिनसभाकीखबरसुनकरहाँजापहुंचेथे।जबनेताबाग़मेंपड़ीरोड़ीकेढेरोंपरखड़ेहोकरभाषणदेरहेथे, तभीब्रिगेडियरजनरलरेजीनॉल्डडायर90 ब्रिटिशसैनिकोंकोलेकरहाँपहुँचगया।उनसबकेहाथोंमेंभरीहुईराइफलेंथीं।आन्दोलनकारीनेताओंनेब्रिटिशसैनिकोंकोदेखकरवहांमौजूदलोगोंसेशांतबैठेरहनेकेलिएकहा।लेकिनसैनिकोंनेबाग़कोघेरकरबिनाकोईचेतावनीदिएनिहत्थेलोगोंपरगोलियाँचलानीशुरुकरदीं।वहांमौजूदलोगोंनेबाहरनिकलनेकीकोशिशभीकी, लेकिनअन्दरआनेऔरबाहरजानेकेलिएरास्ताएकहीथाऔरबहुतसँकराथा, औरडायरकेफौजीउसेरोककरखड़ेथे।इसीवजहसेकोईबाहरनहींनिकलपाया।कुछलोगजानबचानेकेलिएमैदानमेंमौजूदएकमात्रकुएंमेंकूदगए, परदेखतेहीदेखतेवहकुआँभीलाशोंसेभरगया।  डायरकेआदेशपरब्रिटिशसैनिकोंनेबिनारुकेलगभग10मिनटतकगोलियाँबरसाईं।करीब1650राउंडफायरिंगकीगई।बुलेटख़त्महोजानेतकफ़िरंगीफ़ौजलगातारफ़ायरिंगकरतीरही।
अमृतसरकेडिप्टीकमिश्नरकार्यालयमें484 शहीदोंकीसूचीहै, जबकिजलियाँवालाबाग़मेंकुल388 शहीदोंकीसूचीहै।बाग़मेंलगीपट्टिकापरलिखाहैकि120शवतोसिर्फकुएँसेहीमिले।ब्रिटिशराजकेअभिलेखइसघटनामें200 लोगोंकेघायलहोनेऔर379 लोगोंकेशहीदहोनेकीबातस्वीकारकरतेहै,जिनमेंसे337 पुरुष, 41 नाबालिग़लड़केऔरएक6-सप्ताहकाबच्चाथा।भारतीयराष्ट्रीयकांग्रेसकेमुताबिक1000 सेअधिकलोगमारेगएऔर2000 सेअधिकघायलहुए।पंडित मदनमोहनमालवीय केअनुसारकमसेकम1300लोगमारेगए। स्वामीश्रद्धानंद केअनुसारमरनेवालोंकीसंख्या1500सेअधिकथी,जबकिअमृतसरकेतत्कालीनसिविलसर्जनडॉक्टरस्मिथकेअनुसारमरनेवालोंकीसंख्या1800सेअधिकथी।घायलोंकोइलाजकेलिएभीकहींलेजायानहींजासका,जिससे लोगोंनेतड़प-तड़पकरवहींदमतोड़दिया 
जनरलडायररॉलेटएक्‍टकाबहुतबड़ासमर्थकथा, औरउसेइसकाविरोधमंज़ूरनहींथा।उसकीमंशाथीकिइसहत्‍याकांडकेबादभारतीयडरजाएँगे, लेकिनइसकेठीकउलटब्रिटिशसरकारकेखिलाफपूरादेशआंदोलितहोउठा।हत्‍याकांडकीपूरीदुनियामेंआलोचनाहुई।आखिरकारदबावमेंभारतकेलिएसेक्रेटरीऑफस्‍टेटएडविनमॉन्टेग्यूने1919केअंतमेंइसकीजाँकेलिएहंटरकमीशनबनाया।कमीशनकीरिपोर्टआनेकेबादडायरकाडिमोशनकरउसेकर्नलबनादियागया, औरसाथहीउसेब्रिटेनवापसभेजदियागया।मुख्यालयवापसपहुँचकरब्रिगेडियरजनरलरेजीनॉल्डडायरनेअपनेवरिष्ठअधिकारियोंकोटेलीग्रामकियाकिउसपरभारतीयोंकीएकफ़ौजनेहमलाकियाथा,जिससेबचनेकेलिएउसकोगोलियाँचलानीपड़ीं।ब्रिटिशलेफ़्टिनेण्टगवर्नरमायकलड्वायरनेइसकेउत्तरमेंब्रिगेडियरजनरलरेजीनॉल्डडायरकोटेलीग्रामकियाकितुमनेसहीकदमउठाया।मैंतुम्हारेनिर्णयकोअनुमोदितकरताहूँ।फिरब्रिटिशलेफ़्टिनेण्टगवर्नरमायकलड्वायरनेअमृतसरऔरअन्यक्षेत्रोंमेंमार्शललॉलगानेकीमाँगकी,जोअंग्रेज़सरकारलगानहींपाई।हंटरकमीशनकीपूछताछकेदौरानडायरनेगोलीचलानेकायहकारणदिया: "मैंसमझताहूँमैंबिनाफ़ायरिंगकेभीभीड़कोतितर-बितरकरसकताथा, लेकिनवेफिरइकट्ठाहोकरवापिसजातेऔरहँसते, औरमैंबेवक़ूफ़बनजाता. . ."  औरउसनेबड़ीनिर्लज्जताकेसाथयहभीस्वीकारकियाकिफ़ायरिंगकेबादउसनेघायलोंकाइलाजनहींकरवाया: "बिल्कुलनहीं।यहमेराकामनहींथा।अस्पतालखुलेथे; वेलोगवहाँजासकतेथे।"किन्तुविश्वव्यापीनिंदाकेदबावमेंब्रिटिशसरकारनेउसकानिंदाप्रस्तावपारितकियाऔर1920 मेंब्रिगेडियरजनरलरेजीनॉल्डडायरकोइस्तीफ़ादेनापड़ा।23 जुलाई 1927 कोपक्षाघातसेउसकीमृत्युहोगई।
जबजलियाँवालाबाग़मेंयहहत्याकांडहोरहाथा, उससमयख़ालसायतीमख़ानेमेंपलाएकसिक्खयुवक,  धमसिंहवहींमौजूदथेऔरउन्हेंभीगोलीलगीथी।इसघटनानेऊधमसिंहकोझकझोरकररखदियाऔरउन्होंनेअंग्रेजोंसेइसकाबदलालेनेकीठानी।हिन्दू, मुस्लिमऔरसिक्खएकताकीनींवरखनेवालेऊधमसिंहउर्फराममोहम्मदआजादसिंहनेइसबर्बरघटनाकेलिएमायकलड्वायरकोजिम्मेदारमानाजोउससमयपंजाबप्रांतकागवर्नरथा, जिसके  आदेशपरहीब्रिगेडियरजनरलडायरनेजलियाँवालाबाग़कोचारोंतरफ़सेघेरकरगोलियाँचलवाईं। 13 मार्च1940 कोउधमसिंहनेलंदनकेकैक्सटनहॉलमेंलेफ़्टिनेण्टगवर्नरमायकलड्वायरकोगोलीचलाकेमारडाला।  31 जुलाई1940 कोऊधमसिंह कोफाँसीपरचढ़ादियागया।गांधीऔरजवाहरलालनेहरूनेऊधमसिंहद्वाराकीगईइसहत्याकीनिंदाकरीथी;लेकिनउधमसिंहनेफ़ाँसीसेपहलेलेफ़्टीनेंटगवर्नरकोमारनेकेअपनेउद्देश्यकेबारेमेंअदालतमेंयेशब्दकहेथे: "यहीअसलीमुजरिमथा।यहइसीकेयोग्यथे।यहमेरेदेशकेलोगोंकीआत्माकोकुचलनाचाहताथा; इसलिएमुझेइसेकुचलनाहीथा।"
इसहत्याकांडनेतब12वर्षकीउम्रकेभगतसिंहकीसोचपरगहराप्रभावडालाथा।इसकीसूचनामिलतेहीभगतसिंहअपनेस्कूलसे12मीलपैदलचलकरजलियाँवालाबाग़हुँगएथे।अंग्रेज़ीहुक़ूमतकेख़िलाफ़उग्रआन्दोलनकरतेहुएवेभीभारतकीआज़ादीकेलिएशहीदहोगए।इसकांडकेबादभारतीयोंकाहौसलापस्तनहींहुआ, बल्किइसके  कारणदेशमेंआज़ादीकाआन्दोलनऔरअधिकउग्रऔरतेज़होगयाथा।उनदिनोंसंचारऔरपरस्परसंवादकेसाधनोंकेअभावमेंभीइसगोलीकांडकीखबरपूरेदेशमेंआगकीतरहफैलगई।अबकेवलपंजाबनहीं, बल्किपूरेदेशमेंआज़ादीकीजंगशुरूहोगईथी।पंजाबतबतकमुख्यभारतसेकुछअलगचलाकरताथा, लेकिनइसकांडकेबादपंजाबपूरीतरहसेभारतीयस्वतंत्रताआंदोलनसेजुड़गया।1920मेंमहात्मागांधीद्वाराशुरूकिएगएअसहयोगआंदोलनकीनींवभीजलियाँवालाबाग़कागोलीकांडहीथा।

            1920 में भारतीयराष्ट्रीयकांग्रेस द्वाराएकप्रस्तावपारितहोनेकेबादसाइटपरएकस्मारकबनानेकेलिएएकट्रस्टकीस्थापनाकीगईथी, जिसकेतहत 1923 मेंस्मारकपरियोजनाकेलिएभूमिख़रीदीगईथी।अमेरिकीवास्तुकारबेंजामिनपोल्कद्वारास्मारककाडिज़ाइनतैयारकियागयाथा।13 अप्रैल1961कोजवाहरलालनेहरूऔरअन्यनेताओंकीउपस्थितिमेंभारतकेतत्कालीनराष्ट्रपति डॉ.राजेंद्रप्रसाद नेइसस्मारक  काउद्घाटनकियाथा।बुलेटकीगोलियाँदीवारोंऔरआस-पासकीइमारतोंमेंआजभीदेखीजासकतीहैं।गोलियोंसेखुदकोबचानेकीकोशिशकररहे लोगजिसकुएँमेंकूदगएथे, वहशहीदीकुआँआजभीपार्ककेअंदरएकसंरक्षितस्मारककेरूपमेंहै। 1997में महारानीएलिज़ाबेथ नेइसस्मारकपरशहीदोंकोश्रद्धांजलिअर्पितकीथी।2013मेंब्रिटिशप्रधानमंत्री डेविडकैमरॉन भीइसस्मारकपरआएऔरउन्होंनेविज़िटर्ज़बुकमेंयेशब्ददर्ज़किए: "ब्रिटिशइतिहासकीयहएकशर्मनाकघटनाथी।"
यदिकिसीएकघटनानेभारतीयस्वतंत्रतासंग्रामपरसबसेअधिकप्रभावडालाथा,तोवहघटनायहजघन्यहत्याकाण्डहीथा।कवयित्रीसुभद्राकुमारीचौहानकीकविताजलियाँवालाबाग़मेंबसन्त"इसनरसंहारकीनृशंसताएवंकुरूपताकोबड़ेहीकरुणऔरमार्मिकशब्दोंमेंकुछइसतरहबयानकरतीहै:

परिमल-हीनपरागदागसाबनापड़ाहै, /  हा! यहप्याराबागखूनसेसनापड़ाहै।
, प्रियऋतुराज! किन्तुधीरेसेआना, / यहहैशोक-स्थानयहाँमतशोरमचाना।
वायुचले, परमंदचालसेउसेचलाना, / दुःखकीआहेंसंगउड़ाकरमतलेजाना।
कोकिलगावें, किन्तुरागरोनेकागावें, / भ्रमरकरेंगुंजारकष्टकीकथासुनावें।
लानासंगमेंपुष्प, होंवेअधिकसजीले, / तोसुगंधभीमंद, ओससेकुछकुछगीले।
किन्तुतुमउपहारभावकरदिखलाना, / स्मृतिमेंपूजाहेतुयहाँथोड़ेबिखराना।
कोमलबालकमरेयहाँगोलीखाकर, / कलियाँउनकेलियेगिरानाथोड़ीलाकर।
आशाओंसेभरेहृदयभीछिन्नहुएहैं, / अपनेप्रियपरिवारदेशसेभिन्नहुएहैं।
कुछकलियाँअधखिलीयहाँइसलिएचढ़ाना, / करकेउनकीयादअश्रुकेओसबहाना।
तड़पतड़पकरवृद्धमरेहैंगोलीखाकर, / शुष्कपुष्पकुछवहाँगिरादेनातुमजाकर।
यहसबकरना, किन्तुयहाँमतशोरमचाना, / यहहैशोक-स्थानबहुतधीरेसेआना।

इंग्लैण्डकेप्रधानमन्त्रीविन्स्टनचर्चिलनेइसगोलीकाण्डकोइनशब्दोंमेंबयानकियाहै: "भारतीयोंकीऐसीभीड़जमाथीकिएकहीबुलेटतीन-चारशरीरोंकेपारहोरहाथा. . . लोगपागलोंकीतरहयहाँ-वहाँभागनेलगे।जबमध्यमेंगोलियाँचलाईंगईं, तोवेकिनारोंकीओरभागरहेथे।फिरकिनारोंपरगोलियाँचलाईंगईं।बहुतसेलोगज़मीनपरलेटगए।फिरज़मीनकीओरगोलियाँचलाईंगईं।ऐसाआठसेदसमिनटतककियागया, तबतकजबतककिअस्लाह  ख़त्मनहींहोगया. . . "उनकेविवरणमेंकहींकहींखेदतोहै, मगरउससमय,औरहीउसकेबादआजतकअंग्रेज़ीसरकारद्वाराइसहत्याकांडकीपुरज़ोरभर्त्सनाकीगईथी।ब्रिटिशउच्चायुक्तडोमिनिकअस्किथ  अमृतसरमेंजलियाँवालाबाग़में पहुँचे  औरशहीदोंकोश्रद्धांजलिदीउन्होंनेइस कांडकोशर्मनाकबताकर खेदभीप्रकटदिया।  इतिहासउन्हेंइसबर्बरताकेलिएकभीक्षमानहींकरसकता; औरभारतीयोंकेलिए13अप्रैल1919कादिनकालादिनरहेगा।भारतशहीदोंकीक़ुर्बानीकोहमेशायादरखेगा, सदाउनकाऋणीरहेगा।¡

लेखक के बारे में- हिन्दीऔरअंग्रेज़ीकेजाने-मानेलेखक, कवि, कथाकारएवंसाहित्य-समालोचकहैं।वर्तमानमेंशिमलाकेराजकीयमहाविद्यालयमेंअंग्रेज़ीकेएसोशिएटप्रोफ़ेसरहैंऔरसाहित्यिकपत्रिका"हाइफ़न"केसम्पादकहैं।  सम्पर्क:#3, सिसिलक्वार्टर्ज़, चौड़ामैदान, शिमला: 171004हिमाचलप्रदेश।-मेल:kanwardineshsingh@gmail.com  मोबाइल: +91-94186-26090

चुनाव

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नई लोकसभा की तकदीर लिखेंगे युवा
-प्रमोद भार्गव
            देशकी सत्रहवीं लोकसभा की तकदीर लिखने में युवाओं की अहम एवं निर्णायक भूमिका होगी। गोया, सभी राजनीतिक दलों की निगाहें युवाओं पर टिकी हैं। बढ़ती बेरोजगारी को लेकर युवा नरेंद्र मोदी सरकार से नाराज़ दिख रहे थे, लेकिन पुलवामा में सुरक्षाबल पर हुए आत्मघाती हमले और फिर बालाकोट में की गई वायुसेना की एयरस्ट्राइक के बाद ऐसा लग रहा है कि राष्ट्रीय सुरक्षा ने युवाओं के भीतर राष्ट्रवाद को जबरदस्त ढंग उभारा है। सोशल मीडिया ने इस ज्वार को उभारने में तीव्रता की भूमिका निभाई है। बहरहाल, 2019के आम चुनाव में 8.1करोड़ ऐसे मतदाता होंगे, जो पहली बार अपने मत का उपयोग करेंगे ? इन्होंने 2014के लोकसभा चुनाव के बीते छह माह के भीतर 18वर्ष की उम्र पूरी की है। इनमें से अनेक ऐसे भी रहे हैं, जिन्होंने 2018के अंत में हुए पाँच विधानसभाओं के चुनाव में भी मतदान किया है। यानी अनेक की मतदान की ललक मतदान के पहले अनुभव में तब्दील हो चुकी है।
            2019के लोकसभा चुनाव की ढपली अब बजने वाली है। इसमें नए मतदाताओं की भूमिका यदि वे विवेक से मतदान करें तो निर्णायक हो सकती है;क्योंकि निर्वाचन आयोग द्वारा जारी किए, ताजा आँकड़ों के मुताबिक 282लोकसभा सीटों पर उम्मीदवारों की किस्मत की कुंजी उन्हीं के हाथ में है। आयोग द्वारा उम्रवार मतदाताओं के वर्गीकरण व विश्लेषण की जो रिपोर्ट आई है, उसके अनुसार इस चुनाव में 8.1करोड़ नए मतदाता होंगे। ये युवा मतदाता 29राज्यों की कम से कम 282 सीटों पर चुनावी समीकरणों को प्रभावित करेंगे। प्रत्येक लोकस्सभा सीट पर करीब 1.5लाख मतदाता ऐसे होंगे, जो पहली बार मतदान करेंगे। रिपोर्ट के मुताबिक 2014के लोकसभा चुनाव में 282सीटों पर मिली जीत के अंतर के लिहाज से इन मतदाताओं की संख्या ज्यादा है। 1997और 2001के बीच जन्मेइनमें से कुछ युवा मतदाताओं ने विधानसभा चुनाव में मतदान किया है, लेकिन आमचुनाव में वे पहली बार मतदान करेंगे।
            रिपोर्ट के अनुसार विभिन्न राज्यों में 2015में हुए विधानसभा चुनावों के नए मतदाताओं से लेकर 2018तक के विधानसभा चुनावों के नए मतदाताओं की संख्या का औसत निकाला गया है। इसमें पाया गया है कि 12प्रांतों के नए मतदाताओं की संख्या 2014के लोकसभा चुनाव में 217सीटों पर जीत के अंतर से कहीं ज्यादा है। इन राज्यों में पश्चिम बंगाल में 32, बिहार 29, उत्तर प्रदेश 24, कर्नाटक 20, तमिलनाडू20, राजस्थान 17, केरल 17, झारखंड13, आंध्र प्रदेश 12, महाराष्ट्र 12, मध्य-प्रदेश 11व असम 10सीटें हैं। देश में सबसे ज्यादा 80सीटों वाले उत्तर प्रदेश में नूतन मतदाताओं की औसत संख्या 1.15लाख है। यह 2014के चुनावों में यहाँ की लोकसभा सीटों पर जीत के औसत अंतर 1.86लाख से कम है। तब सपा एवं बसपा ने अलग-अलग रहते हुए चुनाव लड़ा था। किंतु अब अखिलेश यादव और मायावती ने अपने दलों को गठबंधन का रूप देकर वोट के विभाजन को कम करने का काम कर लिया है। फिलहाल इस गठबंधन में कांग्रेस शामिल नहीं है। कांग्रेस भी यदि कालांतर में गठबंधन का हिस्सा बन जाती है तो इस बंटे विपक्ष की ताकत बढ़ जाएगी। बावजूद जरूरी नहीं कि राष्ट्रवाद के ज्वार से व्याकुल युवा इस गठबंधन को वोट दे ही ? क्योंकि राहुल गांधी और मायावती समेत कांग्रेस व विपक्ष के अनेक नेता एयरस्ट्राइक में मरे आतंकवादियों की संख्या और सबूत बताने की जो जिद्द कर रहे हैं, उससे वे नुकसान उठाने की जद में आते जा रहे हैं।
            1997-2001के वर्षें में जन्मा यह मतदाता 2014के चुनाव में मतदान के योग्य नहीं था। अब उत्तर-प्रदेश में 24सीटें ऐसी हैं, जिनके भाग्य का फैसला युवा मतदाता करेगा। यदि 18से 35वर्ष के मतदाताओं को युवा मतदाताओं की श्रेणी में रखें तो उत्तर-प्रदेश में इनकी संख्या 12करोड़ 36लाख बैठती है। जाहिर है, ये नई लोकसभा की तकदीर लिखने में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। वैसे भी सबसे ज्यादा सांसद देने के कारण उत्तर-प्रदेश के साथ यह विशेषण जुड़ा हुआ है कि देश की सरकार और प्रधानमंत्री बनने का रास्ता उत्तर-प्रदेश से ही निकलता है। गोया, युवा ठान लें तो इस परंपरा की एक बार फिर से पुनरावृत्ति हो सकती है।
            बहरहाल, इस लोकसभा चुनाव में युवाओं की मंशा और हवा का रुख जो भी रहे, उसमें युवाओं द्वारा लाए जाने वाले बदलाव की झलक मिलना तय है। ऐसी धरणा है कि युवा मतदाता जब 18वर्ष की आयु पूरी होने पर पहली बार मतदान करता है तो वह समझ के स्तर पर कमोबेश अपरिपक्व होता है। इसलिए उसमें रूढ़िवादी, साम्प्रदायिक और जातीय जड़ता नहीं होती है। इसलिए वह निर्लिप्त भाव से निष्पक्ष मतदान करता है। यह युवा अभिभावक की इच्छा के मुताबिक भी मतदान करता रहा है। किंतु अब मुठ्ठी में मोबाइल होने के कारण वह धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक और हरेक राजनीतिक घटनाक्रम की जानकारी हासिल कर लेता है और अपनी मानसिकता इन प्रभावों के अनुरूप ढाल लेता है। इसलिए वह सोशलसाइटों पर अपनी बेवाक प्रतिक्रिया भी उजागर कर देता है और किस राजनीतिक नेतृत्व के प्रभाव में क्यों है, इस भाव का भी प्रगटीकरण कर देता है। समाचार चैनल उसे प्रभावित तो करते हैं, लेकिन मीडिया के राजनीतिक प्रबंधन की चालाकी को वह समझने में परिपक्व हो गया है। इसलिए फर्जी या उत्सर्जित समाचार और वास्तविक समाचार के अंतर को वह भली-भाँति समझने लगा है। इस असलियत को चित्र व दृश्य के माध्यमों से जानने के उसके पास अनेक स्रोत हैं, इसलिए वह इन्हें देखकर स्वयं तुलनात्मक विश्लेषण करता है और अपनी राय बनाता है।
          
  पुलवामा हमले से पहले और उसके बाद आतंकी शिविरों पर की गई एयरस्ट्राइक ने युवाओं के मन को मथने का काम किया है। इन घटनाचक्रों से पहले तक युवाओं के मन में रोजगार का संकट बड़ी समस्या के रूप में घर कर गया था। लेकिन पुलवामा में 44सैनिकों की शाहादत और फिर अभिनंदन की बहादुरी ने युवाओं के मन में गहरा राष्ट्रीयता का भाव जगाने का काम किया है। इसे कई मतवाद से ग्रस्त पूर्वाग्रही अंध राष्ट्रवाद कहकर इन युवाओं को बुद्धिहीन भी ठहराने की भूल कर रहे हैं। युवा समझ रहा है कि आतंकियों की संख्या बताने के जो बयान विपक्षी नेता दे रहे हैं, वे सिर्फ अपने राजनीतिक हित साधने के लिए हैं। सेना के पराक्रम पर संदेह ज्यादातर युवाओं के मन को बेचैन कर रहा है। ऐसे में यह कश्मकश उनके भीतर उमड़-धुमड़ रही है कि वंशवादी, परिवारवादी और जातिवादी राजनीति के क्या राष्ट्रहित हो सकते हैं? राष्ट्रीय सुरक्षा, आतंकवाद व देश के भीतर ही अलगाववाद की चिंगारी को भड़काने में लगे देशद्रोहियों पर नियंत्रण का शिकंजा कौन कस सकता है? इस तरह के जिन राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर पुलवामा हमले के बाद ज्वार आया हुआ है, वह पारंपारिक राजनीतिक विचारधारा से भिन्न है। नतीजतन यह युवा मतदाता परिवारिक विचारधारा के प्रतिकूल जाकर भी मतदान कर सकता है। दरअसल युवाओं को पता है एयरस्ट्राइक हुई है। ऐसे मामलों में दुनिया का कोई भी देश सरकार और सेना से सबूत नहीं माँगता है। फिर भी अपने ही देश के कुछ नेताओं को एयरस्ट्राइक पर संदेह है ,तो युवा उनकी देशभक्ति पर भी प्रश्नचिह्न खड़े करने लग गए हैं। इसे सोशलसाइटों पर युवाओं द्वारा की जा रही टिप्पाणियों से आसानी से समझा जा सकता है? फिर भी युवा मतदाता राष्ट्रवाद के ज्वार में बहकर इकतरफा मतदान करेगा, ऐसा मानना भी भूल होगी?  विपक्षी राजनेता यदि अनर्गल प्रलाप से बचते,तो ज्यादा बेहतर होता; क्योंकि इस प्रलाप से जाने-अनजाने युवाओं में यह संदेश गया है कि आतंक से लड़ने की विपक्षी नेताओं में साहस मोदी की तुलना में कम है। इसीलिए पुलवामा हमले के बाद केन्द्र सरकार द्वारा की गई जबाबी कार्यवाही को युवा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दुस्साहसिक पहल मान रहे हैं। गोया इन युवाओं का झुकाव भाजपा के पक्ष में जाता दिख रहा है।
सम्पर्कःशब्दार्थ 49,श्रीरामकॉलोनी, शिवपुरी म.प्र., मो. 09425488224,09981061100

चिंतन

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राजनैतिक बुजुर्गों से

- भगवानदास केला
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प्रस्तुत आलेख मासिक पत्रिका जीवन साहित्यवर्ष-14, अंक-1, जनवरी- 1953 से साभार लिया गया है। इसमें लेखक ने आजादी के बाद सरकार में चुने गए प्रतिनिधियों द्वारा उपयोग किए जाने वाली आलीशान सुविधाओं पर सवाल उठाने के साथ देश की आर्थिक सामाजिक स्थिति पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उस दौर के ये सवाल आज की व्यवस्था पर भी सटीक बैठते हैं।
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सन१९१५ से भारतीय शासन और राजनैतिक- से  अधिक समस्याओं की बात करते हुए अब सैंतीस वर्ष बाद अपनी जीवन-संध्या की बेला में मुझे कुछ प्रकाशमिला है। अब हुकूमत की बागडोर सँभालने वालों से राजेंद्रप्रसाद से, श्री नेहरू से, श्री आजाद से, श्री राजगोपालाचारी से, श्री पन्त से और अन्य विविध राजनैतिक बुजुर्गों से कुछ साफ़-साफ़ निवेदन करना जरूरी है।मान्यवर! आपने देश को विदेशी सरकार के जाल  से आजाद करने में जिसे त्याग, साहस और कष्ट-सहन का  परिचय दिया उसके लिए आपको चिर-काल तक आदर-मान और प्रतिष्ठा मिलेगी। परन्तु पीछे आकर आपने जाने या अनजाने कई भूल या गलतियाँ कीं, यदि समय रहते उनका सुधार न किया गया तो उनके लिए इतिहास आपको क्षमा भी नहीं करेगा। आपने शासन के उस शाही, केन्द्रित और खर्चाले ढाँचे को अपनायाजो अंग्रेजों ने यहाँ जनता का शोषण करने और वैभव तथा विलासिता का जीवन बिताने के लिए तैयार किया था और जिसकी आपने समय-समय पर काफी जोशीली और कटु आलोचना की थी।
भारत के नये संविधान के निर्माण की बहुत कुछ जिम्मेदारी आप पर है। अपने ऊँचे पदाधिकारियों के लिए इतने ऊँचे वेतन और भत्ते निर्धारित किये कि उन गद्दियों पर बैठनेवाले आदमी गरीब जनता के सेवक न बन कर मालिक ही बन गए। जितने हजार रुपये मासिक उन्हें देने की व्यवस्था की गई, उतने सौ, अर्थात् दसवां हिस्सा भी यहाँ के साधारण नागरिक को सुलभ नहीं हैं- उस नागरिक को जो भारतीय गणतंत्र के बराबर के भागीदार कहा जाता है और माना जाता है।
आप इंगलैड अमरीका आदि की छाप के तथाकथित लोकतंत्र'और 'पार्लिमेंटरी पद्धति के मोह-जाल में फँसे है, जिसमें होने वाली घातक दलबन्दी, अनीतिपूर्ण निर्वाचनऔर आदि से लेकर अन्त तक के विविध भ्रष्टाचारों से आप अपरिचित नहीं हैं।
क्या आप नहीं जानते कि केन्द्रित शासन-पद्धति में स्वदेशी राज्य भले ही हो, स्वराज्य असम्भव है ? स्वदेशी राष्ट्रपति, स्वदेशी प्रधानमन्त्री, स्वदेशी राज्यपाल और मंत्री और स्वदेशियों की बनी संसद या विधानसभाओं के सदस्य–इन थोड़े से व्यक्तियों से, चाहे इनकी संख्या हजारों तक हो- स्वराज्य नहीं होता। स्वराज्य का अर्थ है, भारत के छत्तीस करोड़ आदमियों का राज्य।
आप बालिग मताधिकार और प्रतिनिधि-शासन की. बात कहकर हमें भुलावे में नहीं डाल सकते। कहाँ भारत की भूखी-नंगी जनता, और कहाँ हजारों रुपये मासिक वेतन और भत्ता पानेवाले, शाही बंगलों में रहने वाले, बिजली के पंखे और खस की टट्टियों का आनन्द लेनेवाले ये प्रतिनिधि !
  आपने भारत के नवनिर्माण के लिए विचित्र ढंग  अपनाया है ! पूंजीवाद और केन्द्रीकरण अधिकाधिक बढ़ाया जा रहा है। ग्रामोद्योगों को संरक्षण देकर उनके लिए कोई ऐसा क्षेत्र सुरक्षित नहीं किया जा रहा है, जिसमें उन्हें यंत्रोद्योगों से घातक टक्कर न लेनी पड़े।
आप अरबों रुपये का अन्न विदेशों से मँगाने और करोड़ों रुपये ‘अधिक अन्न उपजाओ आंदोलन में खर्च करने को तैयार रहते हैं, परन्तु यह नहीं सोचते कि जिन बेकारों के पास खरीदने की शक्ति का अभाव है,वे देश में अन्न होते हुए भी भूखे मर सकते हैं और मरते हैं। इसलिए जरूरी है कि जिन ग्रामोद्योगों से लाखों करोड़ों आदमियों को रोजगार मिले, उन्हें यांत्रिक न बनने दिया जाय, उनका ह्रास रोका जाए, और उन्हें यथेष्ट प्रोत्साहन दिया जाए।
अफसोस आपके जमाने में, और आपकी मेहरबानी से अमरीका चुपचाप इस देश पर हावी होता जा रहा है।
आप यहाँ अमरीकी पूंजीवाद और अमरीकी विशेषज्ञों को निमन्त्रण देते जा रहे हैं। भारत की अगली पीढ़ी के लिए यह कैसी विनाशकारी विरासत है ! अमरीकी विशेषज्ञ, जिन्हें अपने यहाँ की शहरी अर्थ-व्यवस्था का अनुभव है, वे हमारी ग्रामीण-व्यवस्था का क्या उद्धार करेंगे । वे मशीनों के आदी हैं और हम जन-शक्ति के धनी हैं। हमारा उनका मेल नहीं बैठता । वे हमारी प्रगति में रोड़े ही अटकाने वाले हैं। अपने शाही वेतन, भत्तों और विशेषाधिकारों या सुविधाओं के कारण ये हमारे गरीब देश के लिए सफेद हाथी हैं, यह बात रही अलग।
हमें अपनी योजनाएँ अपने बल-बूते पर अमल में लानी चाहिए। हमें दूसरों की आर्थिक दासता का शिकार नहीं बनना चाहिए। अमरीका की नकल और अन्धभक्ति करके आप हमें अमरीका की आर्थिक गुलामी में फँसा रहे हैं।
  हमें भारत के उज्ज्वल भविष्य में आशा है। इस देश ने अंगरेजों के साम्राज्यवाद से मुक्ति पाई है,तो यह अमरीका की इस प्रभुता को भी मिटा कर रहेगा। इसके लिए एक महान् क्रांति होगी; वह क्रांति आ रही है, देखनेवालों को वह आती दिखाई दे रही है। अब भी समय है, आप है समय रहते चेत जाए तो अच्छा हैं।
क्या आप मानसिक दृष्टि से इतने बूढ़े हो गए हैं कि विदेशी पूँजीवाद, आर्थिक साम्राज्यवाद, पार्लमेंटरी पद्धति और वर्तमान ढंग के लोकतंत्र के दोषों को जानते हुए भीआप इन्हें बदलने और विकेंद्रित शासन जारी करने लिए कुछ जोरदार कदम नहीं उठा सकते। अगर ऐसा है तो नए नेता आएँगे, नया दृष्टिकोण अपनाएंगे और सच्चा स्वराज्य, सर्वोदय राज स्थापित करेंगे। आप उन्हें आशीर्वाद दीजिए, उनके लिए शुभ कामना प्रकट कीजिए।
इन थोड़ी -सी बातों की ओर, मैं अपनी नई पुस्तक में आपका ध्यान दिला रहा हूँ। आपको स्मरण दिलाने के लिए राष्ट्रपिता के कुछ चुने हुए आदेश भी आपकी भेंट हैं। हमारे राष्ट्रपति, हमारे राज्यपाल, हमारे मंत्री, और अन्य ‘लोकसेवक'उनकी आशा और भावना के कुछ तो- नजदीक आने की कोशिश करें।
(लेखक की पुस्तक 'सर्वोदय राज, क्यों और कैसे?'से । )

अनकही

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लोकसभा चुनाव-
 वादे और इरादे...         
  - डॉ. रत्ना वर्मा
पाँचसाल में होने वाले चुनावों में जनता किस आधार पर वोट देती है, अब इसका चुनावी विश्लेषण शुरू हो गया है। बड़े- बड़े विशेषज्ञ अपनी अपनी राय जाहिर करके अपना मत रखते हैं। इनके मत का अपना महत्व तो है पर सही मायनों में जनता का मत ही असली मत होता है। चुनाव पूर्व ये चाहे जितना आंकलन कर लें नतीजे तो जनता के वोट ही तय करते हैं। ऐसे में असली विश्लेषण आम जनता के मन का करना चहिए।
तो आम जनता क्या चाहती है? जाहिर हैवे मुलभूत सुविधाएँ जिनके बिना जीवन असंभव है। यानी कम शब्दों में रोटी कपड़ा और मकान। पर यह इतना छोटा शब्द भी नहीं है। यह  छोटा -सा शब्द पूरे देश का आईना होता है। रोटी यानी देश का कोई भी व्यक्ति भूखा न रहे और वह तभी भूखा नहीं रहेगा,जब प्रत्येक  हाथ में काम होगा, कोई बेरोजगार नहीं होगा। जाहिर है जब कोई बेरोजगार नहीं होगा तो उसे अच्छा कपड़ा मिलेगा यानी उसकी जिंदगी में जीवन में वे सभी सुख सुविधाएँ होंगी,जिसकी उन्हें व उनके परिवार को जरूरत है। मकान यानी छत। थक हार कर जब वह घर लौटे तो अपने परिवार को हँसता मुस्कुराता सुरक्षित पाए और वह स्वयं भी सुकून की नींद ले पाए।
 पर यह सब कैसे संभव हैतब ना जब जनता देश की कमान उस व्यक्ति के हाथों में सौंपे हो,जो अपने देश के सभी परिवार को ऐसी खुशहाल जिंदगी दे सके। इस  खुशहाल जीवन के साथ और भी कई सुख- सुविधाएँ जुड़ी होती हैं जैसे शुद्ध पानी, शुद्ध हवा, आवागमन के पर्याप्त साधन, अच्छी सड़कें, स्वास्थय सुविधाएँ और न जाने ऐसी कितनी अनगिनत  सुविधाएँ जुड़ी हैं, जो देश की जनता सरकार से चाहती हैं। पर ऐसी सुख- सुविधायुक्त देश के बारे में सोचना तो अब किस्से कहानियों की बात और सपना देखने जैसा लगता है। आज देश में जिस प्रकार से राजनैतिक उठापटक, जोड़- तोड़, आरोप प्रत्यारोप के साथ सिर्फ जीत हासिल करने के लिए उल्टे सीधे दांव- पेंच का उपयोग किया जाता है, गड़े मुर्दे उखाड़े जाते हैं वहाँ एक निष्पक्ष चुनाव की उम्मीद करना दिए को रोशनी दिखाने के समान लगता है। देखा तो यही जा रहा है कि देश में भ्रष्टाचार अपनी चरम सीमा पर है। देश के अमीर और अमीर होते जा रहे हैं और गरीब और गरीब। राजनेता भी जनता की भलाई के पहले अपना भला सोचते हैं। विकास की बड़ी बड़ी बातें की जाती हैं। जनता से कभी न पूरे होने वाले वादे किए जाते हैं।
ऐसे में  मतदाता अपना मन किसी के पक्ष या विपक्ष में तभी बनाते हैं जब पार्टी की नीतियाँ स्पष्ट हों, देश तथा जनता के हित में सही सोच रखती हों. साथ ही प्रत्याशी की छवि भी साफ सुथरी हो।  कई बार यह भी देखा गया है कि जनता का रूझान किसी एक पार्टी के पक्ष में होने के बाद भी उन्हें वोट इसलिए नहीं मिल पाता क्योंकि प्रत्याशी उनके मन के अनुकूल नहीं होता। ऐसे में बहुत बड़ा नुकसान पार्टी को झेलना पड़ सकता है। तो पार्टियों का पहला काम सही  प्रत्याशी का चयन और जनता का मन टटोलना होना चाहिए। आजकल विभिन्न  ऐजेंसियों द्वारा चुनाव पूर्व सर्वेक्षण कराने का चलन हो चला है। मीडिया भी बहुत शोर- शराबा करते हुए चुनावी नतीजों का पूर्व आंकलन करके अपना पक्ष रखती है। कई बार जिसके पक्ष में हवा बह रही हो या कहना चाहिए माहौल बना दिया गया हो तब भी नुकसान दूसरे सही प्रत्याशी को उठाना पड़ता है। ये बात अलग है कि माहौल जैसा भी  हो  कमान तो अंतत: जनता के हाथ में होती है।
चुनाव में मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। आजकल तो मीडया अपनी टीआरपी के चक्कर में सनसनी फैलाने का काम करती है। जनता को भ्रमित करने में मीडया भी बड़ी भूमिका निभाती है। एक वह भी समय था जब समाचार पत्र की खबरें सच पर आधारित होती थीं। उनकी लिखी बातों पर जनता का अटूट विश्वास होता था। पर समय बदल गया है। चैनलों की बाढ़ लग गई है। सब अपने को सबसे तेज कहलाने के चक्कर में सच्चाई से कहीं दूर चले जा रहे हैं। इसी तरह सोशलमीडिया ने तो सबसे ज्यादा नुकसान किया है। लोगों को जितनी तेजी  से  यह जोड़ता है उससे कहीं सौ गुना तेजी से तोड़ भी देता है। एक झूठी खबर को वायरल होते देर नहीं लगती।
ऐसे में  पार्टियों और  प्रतिनिधियों के लिए यह चिंतन मनन का समय होता है। जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने की एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी उनके सिर पर आ जाती है। ऐसे में बहुत जरूरी हो जाता है कि वे केवल जीत हासिल करने के लिए चुनावी वादे न करें।प्रलोभन देकर वोट खरीदने का चलन  इधर कुछ दशकों में बहुत ज्यादा बढ़ गया है। कम्बल और साड़ियाँ  बाँटना आम हो चला है। हाँ अब जागरूक मतदाता इन सब प्रलोभनों में नहीं आता ;परंतु आज भी हमारे देश में आबादी का एक बहुत बड़ा हिस्सा पढ़ा-लिखा  नहीं है । उनकी महिलाएँ आज भी अपनी मर्जी से निर्णय लेने की काबिलियत नहीं रखती। या तो वे उनके पति जो कहते हैं वहीं करती हैं या फिर उनका मुखिया जिस  बटन दबाने कहता है वह  बटन दबा देती है। चुनाव के दौरान इस प्रकार के कई अलग अलग तरह की घटनाएँ और अनुभव भी  होते हैं।
अभी हाल ही में सम्पन्न हुए लोकसभा चुनाव में जो कुछ अनुभव मुझे हुआ मैं उसे आप सबके साथ साझा करना चाहती हूँ। घरों का काम करने वाली महिला से जब मैंने पूछा-‘वोट डालने क्यों नहीं जा रही होतो उसका जवाब था दूसरे पहर में जाएँगे समूह की सब महिलाएँ एक साथ। मैंने उसे मजाक में पूछ लिया -किसे वोट दे रही हो,तब उसने जो जवाब दिया वह चौकाने वाला था- उसने कहा हमारे समूह की मुखिया जिसे कहेगी,उसे ही वोट देंगे। उसने यह भी कहा कि अभी तो कोई भी पार्टी हमें साड़ी कम्बल या कुछ भी बांटने  नहीं आई है। तब मैंने पूछा,जो साड़ी देगा क्या उसे ही वोट दोगी। इसपर उसने कहा-  साड़ी भले ही ले लेंगे वोट तो देंगे उसे ही,जिसे हमारा मन करेगा। अब आप समझ गए होंगे कि इस महिला के मन की बात।
लोकसभा चुनाव को लेकर एक धारणा यह भी है- खासकर मध्यम और उच्च वर्ग मेंकि जनता किसे वोट देगीइसका फैसला वह प्रदेश की सरकार को देखकर नहीं करती। भले ही उसने प्रदेश में किसी एक पार्टी को चुना है, जरूरी नहीं है कि केन्द्र में भी वह उसी पार्टी को देखना चाहे। केन्द्र के मुद्दों को वह अलग ही नजरिए से देखती है, केन्द्र का चुनाव पूरे देश के विकास से जुड़ा होता है। चाहे वह देश की सुरक्षा का मामला हो, आर्थिक मुद्दा हो या जनता के हितों का मामला। यही वजह है कि केन्द्र में एक पार्टी का शासन होता है ,तो राज्यों में अलग अलग पार्टियाँ काबिज होती हैं।
कहने को तो चुनाव की कमान हर बार जनता के हाथ होती है। पर जनता को भ्रमित करने की कोशिश प्रत्येक पार्टी करती है। लोक लुभावन वादें चुनाव का प्रमुख हथकंडा होता है। इन दिनों पिछले विधानसभा चुनाव में  जिन पार्टियों ने जीत हासिल  की है ,उन राज्यों की सरकार जनता से किए वादे पूरे करने में लगी है ; ताकि उनकी पार्टी को लोकसभा चुनाव में भी अच्छा रिजल्ट मिले। पिछले विधानसभा चुनाव में कई राज्यों में इतने अप्रत्याशित परिणाम आए हैं कि लोकसभा चुनाव में भी वे इसी तरह अप्रत्याशित परिणाम की आस लागाए हैं। यद्यपि बालाकोट एयरस्ट्राइक और हाल ही में ऐंटी सेटेलाइट मिसाइल के सफल परीक्षण के बाद तो भाजपा जनता का फैसला अपनी तरफ ही मान कर चल रही है।
इन चुनावी हथकंडों के बीच अंतत: कमान जनता के हाथों ही होती है। अंतिम फैसला तो उसे ही लेना है बिना किसी दबाव और लालच के। तभी देश का भविष्य सुरक्षित हाथों में रहेगा। उम्मीद की जानी चाहिए देश की कमान जनता उसे ही सौंपेगी जो जनता के हितों की बात करे।  
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