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बसंत की कविताएँ

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गीत

वसन्त की परी के प्रति
-सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

आओआओ फिरमेरे बसन्त की परी..
छवि-विभावरी;
सिहरोस्वर से भर भरअम्बर की सुन्दरी..
छबि-विभावरी;

बहे फिर चपल ध्वनि-कलकल तरंग,
तरल मुक्त नव नव छल के प्रसंग,
पूरित-परिमल निर्मल सजल-अंग,
शीतल-मुख मेरे तट की निस्तल निर्झरी..
वि-विभावरी;

निर्जन ज्योत्स्नाचुम्बित वन सघन,
सहज समीरणकली निरावरण
आलिंगन दे उभार दे मन,
तिरे नृत्य करती मेरी छोटी सी तरी..
छबि-विभावरी;

आई है फिर मेरी बेला’ की वह बेला
जुही की कली’ की प्रियतम से परिणय-हेला,
तुमसे मेरी निर्जन बातें--सुमिलन मेला,
कितने भावों से हर जब हो मन पर विहरी..
छवि-विभावरी;
ऋतुओंमेंन्यारावसंत
- महादेवीवर्मा

स्वप्नसेकिसनेजगाया?
मैंसुरभिहूँ।

छोड़कोमलफूलकाघर
ढूँढतीहूँकुंजनिर्झर।

पूछतीहूँनभधरासे-
क्यानहींऋतुराजआया?

मैंऋतुओंमेंन्यारावसंत
मैंअग-जगकाप्यारावसंत।

मेरीपगध्वनिसुनजगजागा
कण-कणनेछविमधुरसमाँगा।

नवजीवनकासंगीतबहा
पुलकोंसेभरआयादिगंत।

मेरीस्वप्नोंकीनिधिअनंत
मैंऋतुओंमेंन्यारावसंत।

वसंतगया

अज्ञेय

मलयजकाझोंकाबुलागया
खेलतेसेस्पर्शसे
रोम-रोमकोकंपागया-
जागो-जागो
जागोसखि, वसंतगयाजागो
पीपलकीसूखीखालस्निग्धहोचली
सिरिसनेरेशमसेवेणीबाँधली
नीमकेभीबौरमेंमिठासदेख
हँसउठीहैकचनारकीकली
टेसुओंकीआरतीसजाके
बनगईवधूवनस्थली
स्नेहभरेबादलोंसे
व्योमछागया
जागो-जागो
जागोसखि, वसंतगयाजागो
चेतउठीढीलीदेहमेंलहूकीधार
बेंधगईमानसकोदूरकीपुकार
गूँजउठादिग-दिगंत
चीन्हकेदुरंतवहस्वरबार
"सुनोसखि! सुनोबंधु!
प्यारहीमेंयौवनहैयौवनमेंप्यार."
आजमधुदूतनिज
गीतगागया
जागो-जागो
जागोसखि, वसंतगया, जागो!

सीधीहैभाषावसंतकी

-त्रिलोचन

सीधीहैभाषा
वसंतकी
कभीआँखनेसमझी
कभीकाननेपाई
कभीरोम-रोमसे
प्राणोंमेंभरआई
औरहैकहानी
दिगंतकी
नीलेआकाशमें
नईज्योतिछागई
कबसेप्रतीक्षाथी
वहीबातगई
एकलहरफैली
अनंतकी

वसंत
सुमित्रानंदनपंत

चंचलपगदीपशिखाकेधर
गृहमगवनमेंआयावसंत.
सुलगाफागुनकासूनापन
सौंदर्यशिखाओंमेंअनंत.
सौरभकीशीतलज्वालासे
फैलाउर-उरमेंमधुरदाह
आयावसंतभरपृथ्वीपर
स्वर्गिकसुंदरताकाप्रवाह.
पल्लवपल्लवमेंनवलरुधिर
पत्रोंमेंमांसलरंगखिला
आयानीलीपीलीलौसे
पुष्पोंकेचित्रितदीपजला.
अधरोंकीलालीसेचुपके
कोमलगुलाबसेगाललजा
आयापंखडिय़ोंकोकाले -
पीलेधब्बोंसेसहजसजा.
कलिकेपलकोंमेंमिलनस्वप्न
अलिकेअंतरमेंप्रणयगान
लेकरआयाप्रेमीवसंत-
आकुलजड़-चेतनस्नेह-प्राण.

संस्मरण

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वसंतकाअग्रदूत
अज्ञेय
'निराला'जीकोस्मरणकरतेहुएएकाएकशांतिप्रियद्विवेदीकीयादजाए, इसकीपूरीव्यंजनातोवहीसमझसकेंगेजिन्होंनेइनदोनोंमहानविभूतियोंकोप्रत्यक्षदेखाथा।योंऔरोंनेशांतिप्रियजीकानामप्राय: सुमित्रानंदनपंतकेसंदर्भमेंलियाहैक्योंकिवास्तवमेंतोवहपंतजीकेहीभक्तथे, लेकिनमैंनिरालाजीकेपहलेदर्शनकेलिएइलाहाबादमेंपंडितवाचस्पतिपाठककेघरजारहाथातोदेहरीपरहीएकसींकियापहलवानकेदर्शनहोगएजिसनेमेरारास्तारोकतेहुएएकटेढ़ीउँगलीमेरीओरउठाकरपूछा, ''आपनेनिरालाजीकेबारेमें'विश्वभारती'पत्रिकामेंबड़ीअनर्गलबातेंलिखदीहैं।''यहसींकियापहलवान, जोयोंअपनेकोकृष्ण-कन्हैयासेकमनहींसमझताथाऔरइसलिएहिंदीकेसारेरसिकसमाजकेविनोदकालक्ष्यबनारहताथा, शांतिप्रियकीअभिधाकाभूषणथा।
जिसस्वरमेंसवालमुझसेपूछागयाथाउससेशांतिप्रियताटपकरहीहोऐसानहींथा।आवाजतोरसिक-शिरोमणिकीजैसीथीवैसीथीही, उसमेंभीकुछआक्रामकचिड़चिड़ापनभरकरसवालमेरीओरफेंकागयाथा।मैंनेकहा, ''लेखआपनेपढ़ाहै?''
''नहीं, मैंनेनहींपढ़ा।लेकिनमेरेपासरिपोर्टेंआईहैं! ''
''तबलेखआपपढ़लीजिएगातभीबातहोगी,''कहकरमैंआगेबढ़गया।शांतिप्रियजीकी'युद्धंदेहि'वालीमुद्राएककुंठितमुद्रामेंबदलगईऔरवहबाहरचलेगए।
यों'रिपोर्टें'सहीथीं।'विश्वभारती'पत्रिकामेंमेराएकलंबालेखछपाथा।आजयहमाननेमेंभीमुझेकोईसंकोचनहींहैकिउसमेंनिरालाकेसाथघोरअन्यायकियागयाथा।यहबात1936कीहैजब'विशालभारत'मेंपंडितबनारसीदासचतुर्वेदीनिरालाकेविरुद्धअभियानचलारहेथे।योंचतुर्वेदीकाआक्रोशनिरालाजीकेकुछलेखोंपरहीथा, उनकीकविताओंपरउतनानहीं (कवितासेतोवहबिलकुलअछूतेथे), लेकिनउपहासऔरविडंबनकाजोस्वरचतुर्वेदीजीकीटिप्पणियोंमेंमुखरथाउसकाप्रभावनिरालाजीकेसमग्रकृतित्वकेमूल्यांकनपरपड़ताहीथाऔरमेरीअपरिपक्वबुद्धिपरभीथाही।
अबयहभीएकरोचकव्यंजना-भरासंयोगहीहैकिसींकियापहलवानसेपारपाकरमैंभीतरपहुँचातोवहाँनिरालाजीकेसाथएकदूसरेदिग्गजभीविराजमानथेजिनकेखिलाफभीचतुर्वेदीजीएकअभियानचलाचुकेथे।एकचौकीकेनिकटआमने-सामनेनिरालाऔर'उग्र'बैठेथे।दोनोंकेसामनेचौकीपरअधभरेगिलासरखेथेऔरदोनोंकेहाथोंमेंअधजलेसिगरेटथे।
उग्रजीसेमिलनापहलेभीहोचुकाथा; मेरेनमस्कारकोसिरहिलाकरस्वीकारकरतेहुएउन्होंनेनिरालासेकहा, ''यहअज्ञेयहै।''
निरालाजीनेएकबारसिरसेपैरतकमुझेदेखा।मेरेनमस्कारकेजवाबमेंकेवलकहा, ''बैठो।''
मैंबैठनेहीजारहाथाकिएकबारफिरउन्होंनेकहा, ''जरासीधेखड़ेहोजाओ।''
मुझेकुछआश्चर्यतोहुआ, लेकिनमैंफिरसीधाखड़ाहोगया।निरालाजीभीउठेऔरमेरेसामनेखड़ेहुए।एकबारफिरउन्होंनेसिरसेपैरतकमुझेदेखा, मानोतौलाऔरफिरबोले, ''ठीकहै।''फिरबैठतेहुएउन्होंनेमुझेभीबैठनेकोकहा।मैंबैठगयातोमानोस्वगत-सेस्वरमेंउन्होंनेकहा, ''डौलतोरामबिलासजैसाहीहै।''
रामविलास (डॉ. रामविलासशर्मा) परउनकेगहरेस्नेहकीबातमैंजानताथा, इसलिएउनकीबातकाअर्थमैंनेयहीलगायाकिऔरकिसीक्षेत्रमेंसही, एकक्षेत्रमेंतोनिरालाजीकाअनुमोदनमुझेमिलगयाहै।मैंनेयहभीअनुमानकियाकिमेरेलेखकी'रिपोर्टें'अभीउनतकनहींपहुँचीयापहुँचायीगईहैं।
निरालाजीसामान्यशिष्टाचारकीबातेंकरतेरहे-क्याकरताहूँ, कैसेआनाहुआआदि।बीचमेंउग्रजीनेएकाएकगिलासकीओरइशाराकरतेहुएपूछा, ''लोगे?''मैंनेसिरहिलादियातोफिरकुछचिढ़ातेहुएस्वरमेंबोले, ''पानीनहींहै, शराबहै, शराब।''
मैंनेकहा, ''समझगया, लेकिनमैंनहींलेता।''
निरालाजीकेसाथफिरइधर-उधरकीबातेंहोतीरहीं।कविताकीबातउठानामैंनेभीश्रेयस्करसमझा।
थोड़ीदेरबादउग्रजीनेफिरकहा, ''जानतेहो, यहक्याहै? शराबहै, शराब।''
अपनीअनुभवहीनताकेबावजूदतबभीइतनातोमैंसमझहीसकताथाकिउग्रजीकेइसआक्रामकरवैयेकाकारणवहआलोचनाऔरभर्त्सनाहीहै,जोउन्हेंवर्षोंसेमिलतीरहीहै।लेकिनउसकेकारणवहमुझेचुनौतीदेंऔरमैंउसेमानकरअखाड़ेमेंउतरूँ, इसकामुझेकोईकारणनहींदीखा।यहभीनहींकिमेरेजानतेशराबपीनेकासमयशामकाहोता, दिनकेग्यारहबजेकानहीं! मैंनेशांतस्वरमेंकहा, ''तोक्याहुआ, उग्रजी, आपसोचतेहैंकिशराबकेनामसेमैंडरजाऊँगा? देशमेंबहुतसेलोगशराबपीतेहैं।''
निरालाजीकेवलमुस्कुरादिए, कुछबोलेनहीं।थोड़ीदेरबादमैंविदालेनेकोउठातोउन्होंनेकहा, ''अबकीबारमिलोगेतोतुम्हारीरचनासुनेंगे।''
मैंनेखैरमनायीकिउन्होंनेतत्कालकुछसुनानेकोनहींकहा, ''निरालाजी, मैंतोयहीआशाकरताहूँकिअबकीबारआपसेकुछसुननेकोमिलेगा।''
आशामेरीहीपूरीहुई : इसकेबाददो-तीनबारनिरालाजीकेदर्शनऐसेहीअवसरोंपरहुएजबउनकीकवितासुननेकोमिली।ऐसीस्थितिनहींबनीकिउन्हेंमुझसेकुछसुननेकीसूझेऔरमैंनेइसमेंअपनीकुशलहीसमझी।
इसकेबादकीजिसभेंटकाउल्लेखकरनाचाहताहूँउससेपहलेनिरालाजीकेकाव्यकेविषयमेंमेरामनपूरीतरहबदलचुकाथा।वहपरिवर्तनकुछनाटकीयढंगसेहीहुआ।शायदकुछपाठकोंकेलिएयहभीआश्चर्यकीबातहोगीकिवहउनकी'जुहीकीकली'अथवा'रामकीशक्तिपूजा'पढ़करनहींहुआ, उनका'तुलसीदास'पढ़करहुआ।अबभीउसअनुभवकोयादकरताहूँतोमानोएकगहराईमेंखोजाताहूँ।अबभी'रामकीशक्तिपूजा'अथवानिरालाकेअनेकगीतबार-बारपढ़ताहूँ, लेकिन'तुलसीदास'जब-जबपढ़नेबैठताहूँतोइतनाहीनहींकिएकनयासंसारमेरेसामनेखुलताहै, उससेभीविलक्षणबातयहहैकिवहसंसारमानोएकऐतिहासिकअनुक्रममेंघटितहोताहुआदीखताहै।मैंमानोसंसारकाएकस्थिरचित्रनहींबल्किएकजीवंतचलचित्रदेखरहाहूँ।ऐसीरचनाएँतोकईहोतीहैंजिनमेंएकरसिकहृदयबोलताहै।विरलीहीरचनाऐसीहोतीहैजिसमेंएकसांस्कृतिकचेतनासर्जनात्मकरूपसेअवतरितहुईहो।'तुलसीदास'मेरीसमझमेंऐसीहीएकरचनाहै।उसेपहलीहीबारपढ़ातोकईबारपढ़ा।मेरीबातमेंजोविरोधाभासहैवहबातकोस्पष्टहीकरताहै।'तुलसीदास'केइसआविष्कारकेबादसंभवनहींथाकिमैंनिरालाकीअन्यसभीरचनाएँफिरसेपढूँ, 'तुलसीदास'केबारेमेंअपनीधारणाकोअन्यरचनाओंकीकसौटीपरकसकरदेखूँ।
अगलीजिसभेंटकाउल्लेखकरनाचाहताहूँउसकीपृष्ठभूमिमेंकविनिरालाकेप्रतियहप्रगाढ़सम्मानहीथा।कालकीदृष्टिसेयहखासाव्यतिक्रमहैक्योंकिजिसभेंटकीबातमैंकरचुकाहूँ, वहसन्36मेंहुईथीऔरयहदूसरीभेंटसन्51केग्रीष्ममें।बीचकेअंतरालमेंअनेकबारअनेकस्थलोंपरउनसेमिलनाहुआथाऔरवहएक-एक, दो-दोदिनमेरेयहाँरहभीचुकेथे, लेकिनउसअंतरालकीबातबादमेंकरूँगा।
मैंइलाहाबादछोड़करदिल्लीचलाआयाथा, लेकिनदिल्लीमेंअभीऐसाकोईकामनहींथाकिउससेबँधारहूँ; अकसरपाँच-सातदिनकेलिएइलाहाबादचलाजाताथा।निरालाजीतबदारागंजमेंरहतेथे।मानसिकविक्षेपकुछबढ़नेलगाथाऔरकभी-कभीवहबिलकुलहीबहकीहुईबातेंकरतेथे, लेकिनमेरानिजीअनुभवयहीथाकिकाफ़ीदेरतकवहबिलकुलसंयतऔरसंतुलितविचार-विनिमयकरलेतेथे; बीच-बीचमेंकभीबहकतेभीतोदो-चारमिनटमेंहीफिरलौटआतेथे।मैंशायदउनकीविक्षिप्तस्थितिकीबातोंकोभीसहजभावसेलेलेताथा, याबहुतगहरेमेंसमझताथाकिजीनियसऔरपागलपनकेबीचकापर्दाकाफ़ीझीनाहोताहै- किनिरालाकापागलपन'जीनियसकापागलपन'है, इसीलिएवहभीसहजहीप्रकृतावस्थामेंलौटआतेथे।इतनाहीथाकिदो-चारव्यक्तियोंऔरदो-तीनसंस्थाओंकेनाममैंउनकेसामनेनहींलेताथाऔरअँग्रेज़ीकाकोईशब्दयापदअपनीबातमेंनहींआनेदेताथा;क्योंकियहमैंलक्ष्यकरचुकाथाकिइन्हींसेउनकेवास्तविकताबोधकीगाड़ीपटरीसेउतरजातीथी।
उसबार'सुमन' (शिवमंगलसिंह) भीआएहुएथेऔरमेरेसाथहीठहरेथे।मैंनिरालाजीसेमिलनेजानेवालाथाऔर'सुमन'भीसाथचलनेकोउत्सुकथे।निश्चयहुआकिसवेरे-सवेरेहीनिरालाजीसेमिलनेजायाजाएगा- वहीसमयठीकरहेगा।लेकिनसुमनजीकोसवेरेतैयारहोनेमेंबड़ीकठिनाईहोतीहै।पलंग-चाय, पूजा-पाठऔरसिंगार-पट्टीमेंनौबजहीजातेहैंऔरउसदिनभीबजगए।हमदारागंजपहुँचेतोप्राय: दसबजेकासमयथा।
निरालाजीअपनेबैठकेमेंनहींथे।हमलोगवहाँबैठगएऔरउनकेपाससूचनाचलीगईकिमेहमानआएहैं।निरालाजीउनदिनोंअपनाभोजनस्वयंबनातेथेऔरउससमयरसोईमेंहीथे।कोईदोमिनटबादउन्होंनेआकरबैठकेमेंझाँकाऔरबोले, ''अरेतुम !''औरतत्कालओटहोगए।
सुमनजीतोरसोईमेंखबरभिजवानेकेलिएमेरापूरानामबतानेचलेगएथे, लेकिनअपनेनामकीकठिनाईमैंजानताहूँइसीलिएमैंनेसंक्षिप्तसूचनाभिजवायीथीकि'कोईमिलनेआएहैं'क्षणभरकीझाँकीमेंहमनेदेखलियाकिनिरालाजीकेवलकौपीनपहनेहुएथे।थोड़ीदेरबादआएतोउन्होंनेतहमदलगालीथीऔरकंधेपरअँगोछाडाललियाथा।
बातेंहोनेलगीं।मैंतोबहुतकमबोला।योंभीकमबोलताऔरइससमययहदेखकरकिनिरालाजीबड़ीसंतुलितबातेंकररहेहैंमैंनेचुपचापसुननाहीठीकसमझा।लेकिनसुमनजीऔरचुपरहना? फिरवहतोनिरालाकोप्रसन्नदेखकरउन्हेंऔरभीप्रसन्नकरनाचाहरहेथे, इसलिएपूछबैठे, ''निरालाजी, आजकलआपक्यालिखरहेहैं?''
योंतोकिसीभीलेखककोयहप्रश्नएकमूर्खतापूर्णप्रश्नजानपड़ताहै।शायदसुमनसेकोईपूछे,तोउन्हेंभीऐसाहीलगे।फिरभीजानेक्योंलोगयहप्रश्नपूछबैठतेहैं।
निरालानेएकाएककहा, ''निराला, कौननिराला? निरालातोमरगया।निरालाइज़डेड।''
अँग्रेज़ीकावाक्यसुनकरमैंडराकिअबनिरालाबिलकुलबहकजाएँगेऔरअँग्रेज़ीमेंजानेक्या-क्याकहेंगे, लेकिनसौभाग्यसेऐसाहुआनहीं।हमनेअनुभवकियाकिनिरालाजोबातकहरहेहैंवहमानोसच्चेअनुभवकीहीबातहै : जिसनिरालाकेबारेमेंसुमननेप्रश्नपूछाथावहसचमुचउनसेपीछेकहींछूटगयाहै।निरालानेमुझसेपूछा, ''तुमकुछलिखरहेहो?''
मैंनेटालतेहुएकहा, ''कुछ--कुछतोलिखताहीहूँ, लेकिनउससेसंतोषनहींहै- वहउल्लेखकरनेलायकभीनहींहै।''
इसकेबादनिरालाजीनेजोचार-छहवाक्यकहेउनसेमैंआश्चर्यचकितरहगया।उन्हेंयादकरताहूँतोआजभीमुझेआश्चर्यहोताहैकिहिंदीकाव्य-रचनामेंजोपरिवर्तनहोरहाथा, उसकीइतनीखरीपहचाननिरालाकोथी-उससमयकेतमामहिंदीआचार्योंसेकहींअधिकसहीऔरअचूक- औरवहतबजबकियेसारेआचार्यउन्हेंकम-से-कमआधाविक्षिप्ततोमानहीरहेथे।
निरालानेकहा, ''तुमजोलिखतेहोवहमैंनेपढ़ाहै।'' (इसपरसुमननेकुछउमँगकरपूछनाचाहाथा, ''अरेनिरालाजी, आपअज्ञेयकालिखाहुआभीपढ़तेहैं?''मैंनेपीठमेंचिकोटीकाटकरसुमनकोचुपकराया, औरअचरजयहकिवहचुपभीहोगए- शायदनिरालाकीबातसुननेकाकुतूहलजयीहुआ) निरालाकाकहनाजारीरहा, ''तुमक्याकरनाचाहतेहोवहहमसमझतेहैं।''थोड़ीदेररुककरऔरहमदोनोंकोचुपचापसुनतेपाकरउन्होंनेबातजारीरखी।''स्वरकीबाततोहमभीसोचतेथे।लेकिनअसलमेंहमारेसामनेसंगीतकास्वररहताथाऔरतुम्हारेसामनेबोलचालकीभाषाकास्वररहताहै।''वहफिरथोड़ारुकगए; सुमनफिरकुछकहनेकोकुलबुलाएऔरमैंनेउन्हेंफिरटोकदिया।''ऐसानहींहैकिहमबातकोसमझतेनहींहैं।हमनेसबपढ़ाहैऔरहमसबसमझतेहैं।लेकिनहमनेशब्दकेस्वरकोवैसामहत्त्वनहींदिया, हमारेलिएसंगीतकास्वरहीप्रमाणथा।''मैंफिरभीचुपरहा, सुनतारहा।मेरेलिएयहसुखदआश्चर्यकीबातथीकिनिरालाइसअंतरकोइतनास्पष्टपहचानतेहैं।बड़ीतेजीसेमेरेमनकेसामनेउनकी'गीतिका'कीभूमिकाऔरफिरसुमित्रानंदनपंतके'पल्लव'कीभूमिकादौड़गईथी।दोनोंहीकवियोंनेअपनेप्रारंभिककालकीकविताकीपृष्ठभूमिमेंस्वरकाविचारकियाथा, यद्यपिबिलकुलअलग-अलगढंगसे।उनभूमिकाओंमेंभीयहस्पष्टथाकिनिरालाकेसामनेसंगीतकास्वरहै, कविताकेस्वरऔरतालकाविचारवहसंगीतकीभूमिपरखड़ेहोकरहीकरतेहैं; जबकिस्वरऔरस्वर-मात्राकेविचारमेंपंतकेसामनेसंगीतकानहीं, भाषाकाहीस्वरथाऔरसांगीतिकताकेविचारमेंभीवहव्यंजन-संगीतसेहटकरस्वर-संगीतकोवरीयतादेरहेथे।इसदृष्टिसेकहाजासकताहैकि'पल्लव'केपंत, 'गीतिका'केनिरालासेआगेयाअधिक'आधुनिक'थे।लेकिनजिसभेंटकाउल्लेखमैंकररहाहूँउसमेंनिरालाकास्वर-संवेदनकहींआगेथाजबकिउससमयतकपंतअपनीप्रारंभिकस्थापनाओंसेकेवलआगेनहींबढ़ेथेबल्किकुछपीछेहीहटेथे (औरफिरपीछेहीहटतेगए)उससमयकानएसेनयाकविभीमाननेकोबाध्यहोताकिअगरकोईपाठकउसकेस्वरसेस्वरमिलाकरउसेपढ़सकताहै,तोवहआदर्शसहृदयपाठकनिरालाहीहै।एकपीढ़ीकामहाकविपरवर्तीपीढ़ीकेकाव्यकोइसतरहसमझसके, परवर्तीकविकेलिएइससेअधिकआप्यायितकरनेवालीबातक्याहोसकतीहै।
सुमननेकहा, ''निरालाजी, अबइसीबातपरअपनाएकनयागीतसुनादीजिए।''
मैंनेआशंका-भरीआशाकेसाथनिरालाकीओरदेखा।निरालानेअपनीपुरानीबातदोहरादी, ''निरालाइज़डेड।आईएमनॉटनिराला!''
सुमनकुछहारमानतेहुएबोले, ''मैंनेसुनाहै, आपकीनईपुस्तकआईहै'अर्चना'वहआपकेपासहै-हमेंदिखाएँगे?''
निरालानेएकवैसेहीखोयेहुएस्वरमेंकहा, ''हाँ, आईतोहै, देखताहूँ।''वहउठकरभीतरगएऔरथोड़ीदेरमेंपुस्तककीदोप्रतियाँलेआए।बैठतेहुएउन्होंनेएकप्रतिसुमनकीओरबढ़ायीजोसुमननेलेली।दूसरीप्रतिनिरालानेदूसरेहाथसेउठायी, लेकिनमेरीओरबढ़ायीनहीं, उसेफिरअपनेसामनेरखतेहुएबोले, ''यहतुमकोदूँगा।''
सुमननेललककरकहा, ''तोयहप्रतिमेरेलिएहै? तोइसमेंकुछलिखदेंगे?''
निरालानेप्रतिसुमनसेलेलीऔरआवरणखोलकरमुखपृष्ठकीओरथोड़ीदेरदेखतेरहे।फिरपुस्तकसुमनकोलौटातेहुएबोले, ''नहीं, मैंनहींलिखूँगा।वहनिरालातोमरगया।''
सुमननेपुस्तकलेली, थोड़े-सेहतप्रभतोहुए, लेकिनयहतोसमझरहेथेकिइससमयनिरालाकोउनकीबातसेडिगानासंभवनहींहोगा।
निरालाफिरउठकरभीतरगएऔरकलमलेकरआए।दूसरीप्रतिउन्होंनेउठा, खोलकरउसकेपुश्तेपरकुछलिखनेलगे।मैंसाँसरोककरप्रतीक्षाकरनेलगा।मनतोहुआकिजराझुककरदेखूँकिक्यालिखनेजारहेहैं, लेकिनअपनेकोरोकलिया।कलमकीचालसेमैंनेअनुमानकियाकिकुछअँग्रेज़ीमेंलिखरहेहैं।
दो-तीनपंक्तियाँलिखकरउनकाहाथथमा।आँखउठाकरएकबारउन्होंनेमेरीओरदेखाऔरफिरकुछलिखनेलगे।इसीबीचसुमननेकुछइतरातेहुए-सेस्वरमेंकहा, ''निरालाजी, इतनापक्षपात? मेरेलिएतोआपनेकुछलिखानहींऔर...''
निरालाजीनेएक-दोअक्षरलिखेथे; लेकिनसुमनकीबातपरचौंककररुकगए।उन्होंनेफिरकहा, ''नहीं, नहीं, निरालातोमरगया।देयरइजनोनिराला।निरालाइज़डेड।''
अबमैंनेदेखाकिपुस्तकमेंउन्होंनेअँग्रेज़ीमेंनामकेपहलेदोअक्षरलिखेथे-एन, आई, लेकिनअबउसकेआगेदोबिंदियाँलगाकरनामअधूराछोड़दिया, नीचेएकलकीरखींचीऔरउसकेनीचेतारीखडाली18-5-51औरपुस्तकमेरीओरबढ़ादी।
पुस्तकमैंनेलेली।तत्कालखोलकरपढ़ानहींकिउन्होंनेक्यालिखाहै।निरालानेइसकाअवसरभीतत्कालनहींदिया।खड़ेहोतेहुएबोले : ''तुमलोगोंकेलिएकुछलाताहूँ।''
मैंनेबातकीव्यर्थताजानतेहुएकहा, ''निरालाजी, हमलोगअभीनाश्ताकरकेचलेथे, रहनेदीजिए।''औरइसीप्रकारसुमननेभीजोड़दिया, ''बस, एकगिलासपानीदेदीजिए।''
''पानीभीमिलेगा,''कहतेहुएनिरालाभीतरचलेगए।हमदोनोंनेअर्थभरीदृष्टिसेएक-दूसरेकोदेखा।मैंनेदबेस्वरमेंकहा, ''इसीलिएकहताथाकिसवेरेजल्दीचलो।''
फिरमैंनेजल्दीसेपुस्तकखोलकरदेखाकिनिरालाजीनेक्यालिखाथा।कृतकृत्यहोकरमैंनेपुस्तकफुर्तीसेबंदकीतोसुमननेउतावलीसेकहा, ''देखें, देखें...''
मैंनेनिर्णयात्मकढंगसेपुस्तकघुटनेकेनीचेदबाली, दिखाईनहीं।घरपहुँचकरभीदेखनेकाकाफ़ीसमयरहेगा।
इसबीचनिरालाएकबड़ीबाटीमेंकुछलेआएऔरहमदोनोंकेबीचबाटीरखतेहुएबोले, ''लो, खाओ, मैंपानीलेकरआताहूँ,''औरफिरभीतरलौटगए।
बाटीमेंकटहलकीभुजियाथी।बाटीमेंहीसफाईसेउसकेदोहिस्सेकरदिएगएथे।
निरालाकेलौटनेतकहमदोनोंरुकेरहे।यहक्लेशहमदोनोंकेमनमेंथाकिनिरालाजीअपनेलिएजोभोजनबनारहेथेवहसारा-का-साराउन्होंनेहमारेसामनेपरोसदियाऔरअबदिन-भरभूखेरहेंगे।लेकिनमैंयहभीजानताथाकिहमाराकुछभीकहनाव्यर्थहोगा-निरालाकाआतिथ्यऐसाहीजालिमआतिथ्यहै।सुमननेकहा, ''निरालाजी, आप...''
''हमक्या?''
''निरालाजी, आपनहींखाएँगे,तोहमभीनहींखाएँगे।''
निरालाजीनेएकहाथसुमनकीगर्दनकीओरबढ़ातेहुएकहा, ''खाओगेकैसेनहीं? हमगुद्दीपकड़करखिलाएँगे।''
सुमननेफिरहठकरतेहुएकहा, ''लेकिन, निरालाजी, यहतोआपकाभोजनथा।अबआपक्याउपवासकरेंगे?''
निरालानेस्थिरदृष्टिसेसुमनकीओरदेखतेहुएकहा, ''तोभलेआदमी, किसीसेमिलनेजाओतोसमय-असमयकाविचारभीतोकरनाहोताहै।''औरफिरथोड़ाघुड़ककरबोले : ''अबआएहोतोभुगतो।''
हमदोनोंनेकटहलकीवहभुजियाकिसीतरहगलेसेनीचेउतारी।बहुतस्वादिष्टबनीथी, लेकिनउससमयस्वादकाविचारकरनेकीहालतहमारीनहींथी।
जबहमलोगबाहरनिकलेतोसुमननेखिन्नस्वरमेंकहा, ''भाई, यहतोबड़ाअन्यायहोगया।''
मैंनेकहा, ''इसीलिएमैंकलसेकहरहाथाकिसवेरेजल्दीचलनाहै, लेकिनआपकोतोसिंगार-पट्टीसेऔरकोल्ड-क्रीमसेफ़ुरसतमिलेतबतो! नाम'सुमन'रखलेनेसेक्याहोताहैअगरसवेरे-सवेरेसहजखिलभीसकें!''
योंहमलोगलौटआए।घरआकरफिरअर्चनाकीमेरीप्रतिखोलकरहमदोनोंनेपढ़ा।निरालानेलिखाथा :
To Ajneya,
the Poet, Writer and Novelist
in the foremost rank.
Ni...
18.5.51
सन्'36औरसन्'51केबीच, जैसामैंपहलेकहचुकाहूँ, निरालाजीसेअनेकबारमिलनहुआ।उनके'तुलसीदास'कापहलाप्रकाशन1938मेंहुआथाऔरमैंनेउनकीरचनाओंकेबारेमेंअपनीधारणाकेआमूलपरिवर्तनकीघोषणारेडियोसेजिससमीक्षामेंकीथीउसकाप्रसारणशायद1940केआरंभमेंहुआथा।मेरठमें'हिंदीसाहित्यपरिषद्'केसमारोहकेलिएमैंनेउन्हेंआमंत्रितकियातोआमंत्रणउन्होंनेसहर्षस्वीकारकियाऔरमेरठकेप्रवासमेंवहकुछसमयश्रीमतीहोमवतीदेवीकेयहाँऔरकुछसमयमेरेयहाँठहरे।होमवतीजीउससमयपरिषद्कीअध्यक्षाभीथींऔरनिरालाजीकोअपनेयहाँठहरानेकीउनकीहार्दिकइच्छाथी।जिसबँगलेमेंवहरहतीथीं,उसकेअलावाएकऔरबँगलाउनकेपासथाजोउनदिनोंआधाखालीथाऔरनिरालाजीकेवहींठहरनेकीव्यवस्थाकीगई।वहबँगलाहोमवतीजीकेआवाससेसटाहुआहोकरभीअलगथा, इसलिएसभीआश्वस्तथेकिअतिथिअथवाआतिथेयकोकोईअसुविधानहींहोगी- योंथोड़ीचिंताभीथीकिहोमवतीजीकेपरमवैष्णवसंस्कारनिरालाजीकीआदतोंकोकैसेसँभालपाएँगे।मेराघरवहाँसेतीन-एकफर्लांगदूरथाऔरछोटाभीथा; सुमन, प्रभाकरमाचवेऔरभारतभूषणअग्रवालकोमेरेयहाँठहरानेकानिश्चयहुआथा।
होमवतीजीनेश्रद्धापूर्वकनिरालाजीकोठहरातोलिया, लेकिनदोपहरकाभोजनउन्हेंकरानेकेबादवहदौड़ीहुईमेरेयहाँआईं।''भाईजी, शामकाभोजनक्याहोगा? लोगतोकहरहेहैंकिनिरालाजीतोशामकोशराबकेबिनाभोजननहींकरतेऔरभोजनभीमाँसकेबिनानहींकरते।हमारेयहाँतोयहसबनहींचलसकता।औरफिरअगरहमउधरअलगइंतजामकरेंभीतोलाएगाकौनऔरसँभालेगाकौन?''
यहकठिनाईहोनेवालीहैइसकाहमेंअनुमानतोथा, लेकिनहोमवतीजीकेउत्साहऔरउनकीस्नेहभरीआदेशनाकेसामनेकोईबोलानहींथा।
उन्हेंतोकिसीतरहसमझा-बुझाकरलौटादियागयाकिहमलोगकुछव्यवस्थाकरलेंगे, उन्हेंइसमेंनहींपड़नाहोगा।संयोजकोंमेंशराबसेपरिचितकोईहोऐसातोनहींथा।शामकोएकअद्धानिरालाजीकीसेवामेंपहुँचादियागयाऔरनिश्चयहुआकिभोजनकरानेभीउन्हेंसदरकेहोटलमेंलेजायाजाएगा।
इधरहमलोगशामकाभोजनकरनेबैठेहीथेकिहोटलसेलौटतेहुएनिरालाजीमेरेयहाँगए। (मैंदूसरीमंजिलपररहताथा।) पतालगाकिउन्होंनेहीसीधेबँगलेपरलौटकरमेरेयहाँआनेकीइच्छाप्रकटकीथी।सुरूरकीजिसहालतमेंवहथे,उससेमैंनेयहअनुमानकियाकिऐसानिरालाजीनेइसीलिएकियाहोगाकिवहउसहालतमेंहोमवतीजीकेसामनेनहींपड़नाचाहतेथे। (मैंनेदूसरेअवसरोंपरभीलक्ष्यकियाकिऐसेमामलोंमेंउनकाशिष्टआचरणकासंस्कारबड़ाप्रबलरहताथा।) लेकिनयहाँपरभीमेरीबहिनअतिथियोंकोभोजनकरारहीथीं, इससेनिरालाजीकोथोड़ाअसमंजसहुआ।वहचुपचापएकतरफएकखाटपरबैठगए।हमलोगोंनेभोजनजल्दीसमाप्तकरकेउनकामनबहलानेकीकोशिशकी, लेकिनवहचुपहीरहे।एक-आधबार'हूँ'सेअधिककुछबोलेनहीं।उनसेजोबातकरताउसकीओरएकटकदेखतेरहतेमानोकहनाचाहतेहों, ''हमजानतेहैंकिहमेंबहलानेकीकोशिशकीजारहीहै, लेकिनहमबहलेंगेनहीं।''
एकाएकनिरालाजीनेकहा, ''सुमन, इधरआओ।''सुमनजीउनकेसमीपगएतोनिरालानेउनकीकलाईपकड़लीऔरकहा, ''चलो।''
''कहाँ, निरालाजी?''
''घूमने।''सुमननेबेबसीसेमेरीओरदेखा।वहभीजानतेथेकिछुटकारानहींहैऔरमैंभीसमझगयाकिबहसव्यर्थहोगी।नीचेउतरकरमैंएकबढिय़ा-साताँगाबुलालाया।निरालाजीसुमनकेसाथउतरेऔरउसपरआगेसवारहोनेलगेतोताँगेवालेनेटोकतेहुएकहा, ''सरकार, घोड़ादबजाएगा-आपपीछेबैठेंऔरआपकेसाथीआगेबैठजाएँगे।''
निरालाजीक्षणहीभरठिठके।फिरअगलीतरफ़हीसवारहोतेहुएबोले, ''येपीछेबैठेंगे, ताँगादबाऊहोताहैतोतुमभीपीछेबैठकरचलाओ।नहींतोरासहमेंदो-हमचलाएँगे।''
ताँगेवालेनेएकबारसबकीओरदेखकरहुक्ममाननाहीठीकसमझा।वहभीपीछेबैठगया, रासउसनेनहींछोड़ी।पूछा, ''कहाँचलनाहोगा, सरकार?''
निरालाजीनेउसीआज्ञापनाभरेस्वरमेंकहा, ''देखो, दोघंटेतकयहसवालहमसेमतपूछना।जहाँतुमचाहोलेतेचलो।अच्छीसड़कोंपरसैरकरेंगे।दोघंटेबादइसीजगहपहुँचादेना, पैसेपूरेमिलेंगे।''
ताँगेवालेनेकहा, 'सरकार'औरताँगाचलपड़ा।मैंदोघंटेकेलिएनिश्चिंतहोकरऊपरचलाआया।
रातकेलगभगबारहबजेताँगालौटाऔरसुमनअकेलेऊपरआए।निरालाजीदेरसेलौटनेपरवहींसोसकतेहैं, यहसोचकरउनकेलिएएकबिस्तरऔरलगादियागयाथा, लेकिनसुमननेबतायाकिनिरालाजीसोएँगेतोवहीं,जहाँठहरेहैंक्योंकिहोमवतीजीसेकहकरनहींआएथे।लिहाजामैंनेउसीताँगेमेंउन्हेंबँगलेपरपहुँचादियाऔरटहलताहुआपैदललौटआया।
अगलेदिनसवेरेहीहोमवतीजीकेयहाँदेखनेगयाकिसबकुछठीक-ठाकतोहै, तोहोमवतीजीनेअलगलेजाकरमुझेकहा, ''भैया, तुम्हारेकविजीनेकलशामकोबाहरजोकियाहो, यहाँतोबड़ेशांतभावसे, शिष्टढंगसेरहतेहैं।''
मैंनेकहा, ''चलिए, आपनिश्चिंतहुईंतोहमभीनिश्चिंतहुए।योंडरनेकीकोईबातथीनहीं।''
दूसरेदिनमैंशामसेहीनिरालाजीकोअपनेयहाँलेआया।भोजनउन्होंनेवहींकियाऔरप्रसन्नहोकरकईकविताएँसुनाईंकाशकिउनदिनोंटेपरिकार्डरहोते-'रामकीशक्तिपूजा'अथवा'जागोफिरएकबार'अथवा'बादलराग'केवेवाचनपरवर्तीपीढिय़ोंकेलिएसंचितकरदिएगएहोते।प्राचीनकालमेंकाव्य-वाचकजैसेभीरहेहों, मेरेयुगमेंतोनिरालाजैसाकाव्य-वाचकदूसरानहींहुआ।
रघुवीरसहायनेलिखाहै, ''मेरेमनमेंपानीकेकईसंस्मरणहैं।''निरालाकेकाव्यकोअजस्रनिर्झरमानकरमैंभीकहसकताहूँकि'मेरेमनमेंपानीकेअनेकसंस्मरणहैं- अजस्रबहतेपानीके, फिरवहबहनाचाहेमूसलाधारवृष्टिकाहो, चाहेधुआँधारजल-प्रपातका, चाहेपहाड़ीनदीका, क्योंकिनिरालाजबकवितापढ़तेथेतबवहऐसीहीवेगवतीधारा-सीबहतीथी।किसीरोककीकल्पनाभीतबनहींकीजासकतीथी- सरोवर-साठहरावउनकेवाचनमेंअकल्पनीयथा।'
औरक्योंकिपानीकेअनेकसंस्मरणहैं, इसलिएउन्हेंदोहराऊँगानहीं।
उन्हींदिनोंकेआसपासउनसेऔरभीकईबारमिलनाहुआ; दिल्लीमेंवहमेरेयहाँआएथेऔरदिल्लीमेंएकाधिकबारउन्होंनेमेरेअनुरोधकियेबिनाहीसहजउदारतावशअपनीनईकविताएँसुनाईं।फिरइलाहाबादमेंभीजब-तबमिलनाहोता; परकवितासुननेकाढंगकाअवसरकेवलएकबारहुआक्योंकिइलाहाबादमेंधीरे-धीरेएकअवसादउनपरछातागयाथा,जोउन्हेंअपनेपरिचितोंकेबीचरहतेभीउनसेअलगकरताजारहाथा।पहलेभीउन्होंनेगायाथा :
मैंअकेला
देखताहूँरही
मेरीदिवसकीसांध्यवेला।
... ...
जानताहूँनदीझरने
जोमुझेथेपारकरने
करचुकाहूँ
हँसरहायहदेख
कोईनहींभेला।
अथवा
स्नेहनिर्झरबहगयाहै
रेत-सातनरहगयाहै
... ...
बहरहीहैहृदयपरकेवलअमा
मैंअलक्षितरहूँ, यह
कविकहगयाहै।
लेकिनइनकविताओंकेअकेलेपनअथवाअवसादकास्वरएकसंचारीभावकाप्रतिबिंबहैजिससेदूसरेभीकविपरिचितहोंगे।इसकेअनेकवर्षबादके,
बाँधोनावइसठाँव, बंधु
पूछेगासारागाँव, बंधु!
काअवसादमानोएकस्थायीमनोभावहै।पहलेकास्वरकेवलएकतात्कालिकअवस्थाकोप्रकटकरताहैजैसेऔरभीपहलेकी'सखिवसंतआया'अथवा'सुमनभरलिए, सखिवसंतगया'आदिकविताएँप्रतिक्रियाअथवाभावदशाकोदर्शातीहै।लेकिन'अर्चना'औरउसकेबादकीकविताओंमेंहताशअवसादकाजोभावछायाहुआदीखताहैवहतत्कालीनप्रतिक्रियाकानहीं, जीवनकेदीर्घप्रत्यवलोकनकापरिणामहैजिससेनिरालाजब-तबउबरतेदीखतेहैंतोअपनेभक्ति-गीतोंमेंही :
तुमहीहुएरखवाल
तोउसकाकौनहोगा।
अथवा
वेदुखकेदिन
काटेहैंजिसने
गिन-गिनकर
पल-छिन, तिन-तिन
आँसूकीलड़केमोतीके
हारपिरोये
गलेडालकरप्रियतमके
लखनेकोशशिमुख
दु:खनिशामें
उज्ज्वल, अमलिन।
कहनहींसकता, इसस्थायीभावकेविकासमेंकहाँतकमहादेवीजीद्वारास्थापितसाहित्यकारसंसदकेउनकेप्रवासनेयोगदियाजिसमेंनिरालाकेसम्मानमेंदावतेंभीहुईं,तोमानोऐसीहीजोउन्हेंहिंदीकवि-समाजकेनिकटलाकरउससेथोड़ाऔरअलगहीकरगईं।संसदकेगंगातटवर्तीबँगलेकोछोड़करहीनिरालाजीफिरदारागंजकीअपनीपुरानीकोठरीमेंचलेगए; वहींअवसादऔरभक्तिकायहमिश्रस्वरमुखरतरहोतागया।औरवहींगहरेधुँधलकेऔरतीखेप्रकाशकेबीचभँवरातेहुएनिरालाउसस्थितिकीओरबढ़तेगएजहाँएकओरवहकहसकतेथे, ''कौननिराला? निरालाइज़डेड!''औरदूसरीओरदृढ़विश्वासपूर्वक'हिंदीकेसुमनोंकेप्रति'सम्बोधितहोकरएकआहत;  किंतुअखंडआत्मविश्वासकेसाथयहभीकहसकतेथे, ''मैंहीवसंतकाअग्रदूत''सचमुचवसंतपंचमीकेदिनजन्मलेनेवालेनिरालाहिंदीकाव्यकेवसंतकेअग्रदूतथे।लेकिनअबजबवहनहींहैंतोउनकीकविताएँबार-बारपढ़तेहुएमेरामनउनकीइसआत्मविश्वासभरीउक्तिपरअटककरउनके'तुलसीदास'कीकुछपंक्तियोंपरहीअटकताहैजहाँमानोउनकाकविभवितव्यदर्शीहोउठताहै- उसभवितव्यकोदेखलेताहैजोखंडकाव्यकेनायकतुलसीदासकानहीं, उसकेरचयितानिरालाकाहीहै :
यहजागाकविअशेषछविधर
इसकास्वरभरभारतीमुक्तहोएँगी
... ...
तमकेअमाज्यरेतार-तार
जो, उनपरपड़ीप्रकाशधार
जगवीणाकेस्वरकेबहाररेजागो;
इसपरअपनेकारुणिकप्राण
करलोसमक्षदेदीप्यमान-
देगीतविश्वकोरुको, दानफिरमाँगो।
इसअशेषछविधरकविनेदानकभीनहींमाँगा, परविश्वकोदिया- गीतदिया, परउसकेलिएभीरुकानहीं, बाँटते-बाँटतेहीतिरोधानहोगया : मैंअलक्षितरहूँ, यहकविकहगयाहै।

प्रयाग कुंभ मेला

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मकर संक्रांति से शिवरात्रि तक
प्रयागराज में प्रतिवर्ष चलने वाले कुंभ मेले में 6 प्रमुख स्नान तिथियाँ होती हैं, जो मकर संक्रांति से लेकर महा शिवरात्रि तक चलती हैं।
कुंभ की शुरुआत मकर संक्रांति के दिन पहले स्नानसे होती है। इसे शाही स्नान और राजयोगी स्नान भी कहा जाता है। इस दिन संगम, प्रयागराज पर विभिन्न अखाड़ों के संत की पहले शोभा यात्रा निकलती है और फिर स्नान। माघ महीने के इस पहले दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है, इसलिए इस दिन को मकर संक्राति भी कहते हैं। लोग इस दिन व्रत रखने के साथ-साथ दान भी करते हैं।
मान्यताओं के अनुसार पौष महीने की 15वीं तिथि को पौष पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन चाँद पूरा निकलता है. इस पूर्णिमा के बाद ही माघ महीने की शुरुआत होती है।
माना जाता है कि जो व्यक्ति इस दिन विधिपूर्ण तरीके से सुबह स्नान करता है उसे मोक्ष प्राप्त होता है। वहीं, इस दूसरे स्नानसे सभी शुभ कार्यों की शुरुआत कर दी जाती है। वहीं, इस दिन संगम पर सुबह स्नान के बाद कुंभ की अनौपचारिक शुरुआत हो जाती है। इस दिन से कल्पवास भी आरंभ हो जाता है।
कुंभ मेले में तीसरा स्नानमौनी अमावस्या के दिन किया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन कुंभ के पहले तीर्थाकर ऋषभ देव ने अपनी लंबी तपस्या का मौन व्रत तोड़ा था और संगम के पवित्र जल में स्नान किया था। मौनी अमावस्या के दिन कुंभ मेले में बहुत बड़ा मेला लगता है, जिसमें लाखों की संख्या में भीड़ उमड़ती है।
पंचाग के अनुसार बसंत पंचमी माघ महीने की पंचमी तिथि को मनाई जाती है। बसंत पंचमी के दिन से ही बसंत ऋतु शुरू हो जाती है। कड़कड़ाती ठंड के सुस्त मौसम के बाद बसंत पंचमी से ही प्रकृति की छटा देखते ही बनती है। वहीं, हिन्दू मान्यताओं के अनुसार इस दिन देवी सरस्वती का जन्म हुआ था। पवित्र नदियों में इस चौथे स्नान का विशेष महत्त्व है। पवित्र नदियों के तट और तीर्थ स्थानों पर बसंत मेला भी लगता है।
बसंत पंचमी के बाद कुंभ मेले में पांचवाँ स्नान माघी पूर्णिमा को होता है। मान्यता है कि इस दिन सभी हिन्दू देवता स्वर्ग से संगम पधारे थे। वहीं, माघ महीने की पूर्णिमा (माघी पूर्णिमा) को कल्पवास की पूर्णता का पर्व भी कहा जाता है। क्योंकि इस दिन माघी पूर्णिमा समाप्त हो जाती है। इस दिन संगम के तट पर कठिन कल्पवास व्रतधारी स्नान कर उत्साह मनाते हैं। इस दिन गुरु बृहस्पति की पूजा की जाती है।
कुंभ मेले का आखिरी स्नानमहा शिवरात्रि के दिन होता है। इस दिन सभी कल्पवासी अंतिम स्नान कर अपने घरों को लौट जाते हैं। भगवान शिव और माता पार्वती के इस पावन पर्व पर कुंभ में आए सभी भक्त संगम में डुबकी जरूर लगाते हैं। मान्यता है कि इस पर्व का देवलोक में भी इंतज़ार रहता है।

पर्व-संस्कृति

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राजिम
माघी पुन्नी मेला
कुछ वर्ष पहले तक राजिम में प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक पंद्रह दिनों तक नदी किनारे श्रद्धालुओं का जो समागम होता था वह मेले के स्वरुप में ही होता था। छत्तीसगढ़ राज्य जब अपने अस्तित्व में आया तब वर्ष 2001 से राजिम मेले को राजीव लोचन महोत्सव के रूप में मनाया जाने लगा, फिर 2005 से इसे कुम्भ का स्वरूप दे दिया गया, और अब 2019 से वर्तमान सरकार ने माघ पूर्णिमा पर हर साल होने वाले राजिम कुंभ का नामकरण उसके ऐतिहासिक महत्त्व के अनुरूप राजिम माघी पुन्नी मेला करने का निर्णय लिया गया है।

राजिम छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 45 किलोमीटर दूर गरियाबंद जिले का एक तहसील है। महानदी के तट पर बसे राजिम क्षेत्र का अपना एक अलग ही माहात्म्य है। प्राचीनकाल में इस क्षेत्र को चित्रोत्पला नगरी, कमल क्षेत्र, पद्मावाती एवं पौराणिक आख्यानों में इसे देवपुरी के नाम से जाना जाता था। उत्तर प्रदेश के प्रयाग को गंगा यमुना एवं सरस्वती नदियों का पावन संगम होने के कारण जिस तरह त्रिवेणी संगम कहा जाने लगा, उसी तरह राजिम में महानदी, सोंढूर और पैरी नदियों के संगम के कारण इसे छ्त्तीसगढ़ का प्रयाग कहा जाने लगा। संगम में अस्थि- विसर्जन तथा संगम किनारे पिंडदान, श्राद्ध एवं तर्पण किया जाता है। मंदिरों की महानगरी राजिम की मान्यता है कि जगन्नाथपुरी की यात्रा तब तक संपूर्ण नहीं होती, जब तक यात्री राजिम की यात्रा नहीं कर लेता। माना जाता है कि भगवान शिव और विष्णु यहाँ साक्षात रूप में विराजमान हैं, जिन्हें राजीवलोचन और कुलेश्वर महादेव के रूप में जाना जाता है।
प्राचीन समय से राजिम अपने पुरातत्व और प्राचीन सभ्यता के लिए प्रसिद्द है। राजिम मुख्य रूप से भगवान श्री राजीव लोचन जी के मंदिर के कारण प्रसिद्ध है।
कमल दल से आच्छादित भू-भाग बाद में पद्म क्षेत्र के नाम से प्रसिद्द हुआ। प्राचीन काल में राजिम अथवा कमल क्षेत्र पद्मावती पुरी दक्षिण कौशल का एक वैभवशाली नगर था। छत्तीसगढ़ अंचल में इस पद्म क्षेत्र की प्रदक्षिणा का विशेष धार्मिक, सांस्कृतिक महत्त्व है। पुन्नी मेला के पंद्रह दिन पहले ही भक्तगण पैदल ही पंचकोशी की यात्रा प्रारंभ कर देते हैं।
राजिम में इस परम्परागत वार्षिक मेले का आयोजन माघ पूर्णिमा को होता है। पूर्णिमा जिसे छत्तीसगढ़ी में 'पुन्नी’ कहते हैं। पुन्नी मेलों का सिलसिला छत्तीसगढ़ में लगातार चलता रहता है, जो भिन्न-भिन्न स्थानों में नदियों के किनारे सम्पन्न होते हैं। सामाजिक मेल मिलाप और सांस्कृतिक केन्द्र के रूप में मेलों का अपना महत्त्व है। अब तो सड़कें बन गई हैं यातायात के साधन उपलब्ध हो गए हैं अन्यथा छत्तीसगढ़ के ग्रामीण युगों से इन मेलों में पैदल, घोड़ा गाड़ी, बैल गाड़ी जैसे साधनों से आते-जाते रहे हैं और अपने मित्रों, रिश्तेदारों से मिलते हैं। पुराने समय में इन मेलों में ही अपने बच्चों के लिए वर-वधू तलाशने की परंपरा भी रही है।
कुलेश्वरनाथ मंदिर
महानदी, पैरी और सोढुर नदी के तट पर लगने वाले इस मेले में मुख्य आकर्षण का केंद्र संगम के मध्य में स्थित कुलेश्वर महादेव का विशाल मंदिर स्थित है, कुलेश्वर महादेव को पहले उत्पलेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता था। पाश्चात्य पुरातत्तववेत्ता वेलगर ने इस मंदिर को 8वीं-9वीं शताब्दी का मन्दिर माना है। ।
यह स्थापत्य का बेजोड़ नमूना होने के साथ-साथ प्राचीन भवन निर्माण तकनीक का जीवंत उदाहरण है। इसका निर्माण बड़ी सादगी से किया गया है। मन्दिर के पास 'सोमा’, 'नाला’ और कलचुरी वंश के स्तम्भ भी पाए गए हैं। मंदिर का आकार 37.75 गुना 37.30 मीटर है। इसकी ऊंचाई 4.8 मीटर है। मंदिर का अधिष्ठान भाग तराशे हुए पत्थरों से बना है। रेत एवं चूने के गारे से चिनाई की गई है।
इसके विशाल चबूतरे पर तीन तरफ से सीढिय़ां बनी है। इसी चबूतरे पर पीपल का एक विशाल पेड़ भी है। चबूतरा अष्टकोणीय होने के साथ ऊपर की ओर पतला होता गया है। मंदिर निर्माण के लिए लगभग 2 कि.मी. चौड़ी नदी में उस समय निर्माताओं ने ठोस चट्टानों का भूतल ढूँढ निकाला था। बरसात के दिनों में बाढ़ का पानी कई-कई दिनों तक मंदिर को डुबोए रखता है लेकिन मंदिर को कभी कोई नुकसान नहीं पहुँचा।
इसमें कोई दो मत नहीं कि कुलेश्वर मंदिर प्राचीन काल की इंजीनियरिंग का अद्भुत प्रमाण है। त्रिवेणी संगम पर पंचेश्वर महादेव और भूतेश्वर महादेव के मंदिर हैं, वे भी कलचुरी काल की स्थापत्य कला के अनुपम उदाहरण हैं।
राजीव लोचन मंदिर
राजिम का प्रमुख मन्दिर राजीवलोचन है। राजीव लोचन मंदिर में भगवान विष्णु प्रतिष्ठित हैं। इस मन्दिर में बारह स्तम्भ हैं। स्तम्भों पर अष्ट भुजा वाली दुर्गा, गंगा- यमुना और विष्णु के विभिन्न अवतारों, जैसे- राम, वराह और नरसिंह आदि के चित्र बने हुए हैं। यहाँ से प्राप्त दो अभिलेखों से ज्ञात होता है कि इस मन्दिर के निर्माता राजा जगतपाल थे। इनमें से एक अभिलेख राजा वसंतराज से सम्बंधित है, किंतु लक्ष्मणदेवालय के एक दूसरे अभिलेख से विदित होता है कि इस मन्दिर को मगध नरेश सूर्यवर्मा (8वीं शती ई.) की पुत्री तथा शिवगुप्त की माता 'वासटा’ ने बनवाया था। राजीवलोचन मन्दिर के पास 'बोधि वृक्ष’ के नीचे तपस्या करते बुद्ध की प्रतिमा भी है।
मन्दिर के स्तंभ पर चालुक्य नरेशों के समय में निर्मित नरवराह की चतुर्भुज मूर्ति उल्लेखनीय है। वराह के वामहस्त पर भू-देवी अवस्थित हैं। शायद यह प्रदेश में प्राप्त सबसे प्राचीनतम मूर्ति है।
राजीवलोचन मंदिर राजिम के सभी मंदिरों में सबसे पुराना है। यह स्थान शिव और वैष्णव धर्म का संगम तीर्थ है। राजीव लोचन मंदिर के बारे में भी यह माना जाता है कि इसे भगवान विश्वकर्मा ने खुद बनाया था।
पंचकोसी यात्रा
इस क्षेत्र के आसपास अनेक स्वयंभू लिंग हैं जैसे कि कोपरा में कोपेश्वर महादेव, फिंगेश्वर में फणेन्द्र महादेव, चम्पारण में चम्पेश्वर महादेव, पटेवा में पटेश्वर महादेव, ब्रह्मनी में ब्रह्मनेश्वर महादेव यह स्थल पंचकोशी नाम से जाना जाता है। और भक्त जन अपनी पंचकोशी यात्रा का शुभारम्भ कुलेश्वर महादेव के मन्दिर से करते हैं और यात्रा का समापन भी इसी मन्दिर में होता है। माघी पुन्नी से महाशिवरात्रि पर्व तक इस क्षेत्र का महत्त्व और भी बढ़ जाता है। यहाँ प्रतिवर्ष मेला लगता है। श्रद्धालु जन संगम तीर्थ में स्नान कर पुण्य प्राप्त करते हैं। मेला की शुरुआत कल्पवाश से होती है पखवाड़े भर पहले से श्रद्धालु पंचकोशी यात्रा प्रारंभ कर देते है पंचकोशी यात्रा में श्रद्धालु पैदल भ्रमण कर दर्शन करते है तथा धुनी रमाते है, इस तरह 101 कि? मी? की यात्रा का समापन होता है
पंचकोसी यात्रा के बारे में भी एक किंवदंती प्रचलित है-
एक बार विष्णु ने विश्वकर्मा से कहा कि धरती पर वे एक ऐसी जगह उनके मंदिर का निर्माण करें, जहाँ पाँच कोस के अन्दर कोई शव न जला हो। अब विश्वकर्मा जी धरती पर आए, और ढूंढ़ते रहे, पर ऐसा कोई स्थान उन्हें दिखाई नहीं दिया। उन्होंने वापस जाकर जब विष्णु जी यह बात बताई तब विष्णु जी ने एक कमल का फूल धरती पर ऊपर से छोड़ दिया और विश्वकर्मा जी से कहा कि- यह फूल जहाँ गिरेगा, वहीं मंदिर का निर्माण होगा। कमल फूल का परागकण जहाँ पर गिरा वहाँ पर विष्णु भगवान का मन्दिर है और पंखुडिय़ाँ जहाँ जहाँ गिरी वहाँ पंचकोसी धाम बसा हुआ है।
पटेश्वर महादेव (पटेवा गाँव) सबसे पहले पटेश्वर महादेव के दर्शन करने पटेवा गाँव जो राजिम से 5 कि.मी. दूर है की ओर प्रस्थान करते हैं। पटेवा का प्राचीन नाम पट्टनापुरी है। यहाँ पटेश्वर महादेव की अन्नब्रह्म के रुप में पूजा की जाती है। इनकी अद्र्धांगिनी हैं भगवती।

चम्पकेश्वर महादेव (चम्पारण्य) अगला पड़ाव होता है चम्पारण्य। राजिम के उत्तर की ओर 14 कि.मी. पर चम्पारण ग्राम है जहाँ चम्पकेश्वर महादेव का मंदिर है। 18 एकड़ में फैले इस गाँव में चम्पा फूल के पेड़ों की बहुतायत थी इसीलिए इसका नाम चम्पारण्य पड़ा । चम्पकेश्वर महादेव को तत्पुरुष महादेव भी कहा जाता है। यहाँ उनकी अद्र्धांगिनी हैं कालिका (पार्वती)। यहाँ शिव की उपासना प्राण रूप में की जाती है।
वैष्णव सम्प्रदाय की शुरुआत करने वाले महाप्रभु वल्लभाचार्य की जन्मस्थली चम्पारण्य ही है। वल्लभाचार्य के कारण चम्पारण एक वैष्णव पीठ के रुप में भी प्रतिष्ठित है। जो शैव एवं वैष्णव सम्प्रदायों के संगम स्थल के रुप में एकता का प्रतीक बन गया है। वल्लाभाचार्य ने तीन बार पूरे देश का भ्रमण किया। वे अष्टछाप के महाकवियों के गुरु थे। सूरदास जैसे महाकवि को उन्होंने ही दिशा देकर कृष्ण की भक्ति काव्य का सिरमौर बनने हेतु प्रेरित किया। राजिम मेले के अवसर पर चम्पारण्य में भी महोत्सव का आयोजन होता है।
ब्रह्मकेश्वर महादेव (ब्राह्मनी गाँव) तीसरा पड़ाव होता है ब्राह्मनी गाँव में जहाँ ब्रह्मकेश्वर महादेव की पूजा अर्चना करते हैं। चम्पारण से 9 कि.मी. दूरी पर उत्तर पूर्व की ओर ब्रह्मनी नामक गाँव है जो ब्रह्मनी नदी या बधनई नदी के किनारे बसा हुआ है। बधनई नदी के किनारे एक कुंड है जिसके उत्तरी छोर पर ब्रह्मकेश्वर महादेव का मन्दिर है। इस कुंड के जलस्रोत को श्वेत या सेतगंगा के नाम से जानते हैं। कहते हैं ब्रह्मकेश्वर महादेव को जो एक बार जान जाता है वह कभी भयभीत नहीं होता।
फणिकेश्वर महादेव (फिंगेश्वर) ब्रह्मकेश्वर महादेव की पूजा करने के बाद यात्री फिंगेश्वर नगर की ओर बढ़ते हैं। राजिम से 16 कि.मी. (पूर्व दिशा) की दूरी पर है बसा है फिंगेश्वर नगर। यहाँ स्थित फणिकेश्वर महादेव का मंदिर, फणिकेश्वर महादेव में है शम्भू की ईशान नाम वाली मूर्ति। इनकी अद्र्धांगिनी हैं अंबिका। फणिकेश्वर महादेव शुभगति देने वाले देवता माने जाते हैं।
कर्पूरेश्वर महादेव (कोपरा गाँव) यहाँ से यात्री चल पड़ते हैं राजिम से 16 कि.मी. की दूरी पर कोपरा गाँव की ओर। यहाँ है कर्पूरेश्वर महादेव या कोपेश्वर नाथ का मंदिर। यह पंचकोसी यात्रा का आखरी पड़ाव। कोपरा गांव के पश्चिम में दलदली तालाब है, उसी तालाब के भीतर, गहरे पानी में यह मंदिर हैं। इस तालाब को शंख सरोवर भी कहा जाता है। कर्पूरेश्वर महादेव में शम्भू की वामदेव नाम की मूर्ति है। उनकी पत्नी भवानी हैं। यह आनंद के देवता के रुप में जाने जाते हैं।
किंवदंतियाँ
कुलेश्वरनाथ मंदिर के शिवलिंग की उत्पत्ति के संबंध में एक जन-श्रुति यह है कि त्रेतायुग में भगवान श्रीराम अपनी पत्नी सीता और अनुज लक्ष्मण के साथ वन गमन काल में यहाँ आये थे और उन्होंने यहाँ कुछ समय व्यतीत किया था। सीता जी स्नान करने के बाद इष्ट देव शिव जी की पूजा-अर्चना किया करती थीं। उन्हें जब यहाँ शिव की कोई मूर्ति दिखाई नहीं दी तो उन्होंने महानदी की रेत से शिवलिंग का निर्माण किया औऱ कालान्तर में यही शिवलिंग कुलेश्वर महादेव के नाम से विख्यात हुआ। यह भी कहा जाता है कि सीता जी ने रेत से बने शिवलिंग पर जैसे ही जल चढ़ाया तो उनकी अँगुलियों के बीच से जल की पंच धारायें निकलने लगीं और शिवलिंग ने पंचमुखी शिवलिंग का रूप धारण कर लिया
किम्बदन्तियों का अन्त नहीं है। यह भी कहा जाता है कि महानदी के बीच जो कुलेश्वर मन्दिर है, उसे राजा मोरध्वज के पुत्र ताम्रध्वज ने बनवाया था और जो भी इस शिव क्षेत्र में आता था, उसकी मनोकामना पूर्ण होती थी। यहाँ तक की यदि को गर्भवती स्त्री यहाँ आती तो वह पुत्रवती होकर ही वापिस लौटती थी। चम्पारण में महाप्रभुवल्लभाचार्य के जन्म की कथा को भी इस किम्वदन्ती के साथ जोड़कर देखा जाने लगा।
मामा-भांजे का मंदिर- नदी के किनारे पर एक ओर महादेव मंदिर है, जिसे मामा का मंदिर कहा जाता है। कुलेश्वर महादेव मंदिर को भांजे का मंदिर कहते हैं। किवदंती है कि बाढ़ में जब कुलेश्वर महादेव का मंदिर डूबता था तो वहां से आवाज आती थी, मामा बचाओ। इसी मान्यता के कारण यहाँ आज भी नाव पर मामा-भांजे को एक साथ सवार नहीं होने दिया जाता है। नदी किनारे बने मामा के मंदिर के शिवलिंग को जैसे ही नदी का जल छूता है उसके बाद बाढ़ उतरनी शुरू हो जाती है।
राजीव लोचन मंदिर के संबंध में एक जनश्रुति है कि राजीम नाम की तेलिन महिला प्रति दिन अपना तेल का पात्र भर कर बेचने जाया करती थी। एक दिन की बात है कि वह कुछ समय विश्राम के लिए बैठ गई और उसने अपना तेल से भरा पात्र वहीं पास में औंधी पड़ी एक शिला पर रख दिया।
कुछ देर विश्राम करने के बाद उसने अपना तेल भरा पात्र उठाया और पुन: तेल बेचने के लिए चल पड़ी। उसने पात्र का पूरा तेल बेचकर पात्र खाली कर दिया, किन्तु उसने देखा और वह आश्चर्यचकित रह गई कि तेल का पात्र पुन: पूरा भर गया है। उसने यह घटना अपनी सास एवं अन्य सदस्यों को बतलाई, किन्तु उसकी बात पर किसी को सहज विश्वास नहीं हुआ। दूसरे दिन राजीवा तेलिन की सास तेल बेचने निकली और उसने भी अपना तेल का पात्र उसी शिला पर रख दिया और स्वयं विश्राम करने लगी। थोड़ी देर विश्राम करने के बाद वह भी तेल बेचने निकल पड़ी और उसके साथ भी वही घटना घटी और बेचने के बाद भी पूरा पात्र तेल से भर गया। राजीवा तेलिन के परिवार वालों ने इस शिला को अपने घर ले जाने की योजना बनाई और ले जाने के लिए जैसे ही उस औंधी पड़ी शिला को सीधा किया तो कोई साधारण सी शिला नहीं थी, बल्कि यह शिला विष्णु जी की प्रतिमा थी, कहा जाता है कि दुर्ग जिले के नरेश जयपाल को स्वप्न में उस प्रतिमा के दर्शन हुए और उनके मन में एक भव्य मंदिर का निर्माण कर उसमें उस प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा करने की प्रबल इच्छा जाग्रत हुई और उसने राजीवा तेलिन से उस प्रतिमा की माँग की, किन्तु राजीवा तेलिन उस प्रतिमा को देने के लिए तैयार नहीं हुई और उसने शर्त रख दी कि वह मूर्ति तभी देगी जब उस मन्दिर और मूर्ति के साथ कहीं न कहीं उसका नाम भी जुड़ा होगा। कहा जाता है कि तभी से इसे 'राजीव-लोचन’ मंदिर कहा जाने लगा और कालान्तर में अपभ्रंश के रूप में राजीव के स्थान पर राजिम शब्द का उपयोग होने लगा और यह 'राजिम-लोचन’ मन्दिर के नाम से सुविख्यात हुआ। मन्दिर के विशाल प्रांगण में एक स्थान राजीवा तेलिन के लिए भी सुरक्षित कर दिया गया। राजीवा तेलिन विष्णु भगवान की अनन्य भक्त हो गयी थी और कहा जाता है कि जब उसने अपने जीवन की अन्तिम साँस ली तो वह टकटकी बाँधे हुए विष्णु जी की प्रतिमा को ही भाव-विभोर हो देख रही थी और वह भगवान विष्णु को निहारते हुए ही सदा-सदा के लिए चिर निद्रा में लीन हो गई थी।
विष्णु जी की मूर्ति के संबंध में भी जनश्रुति है कि काँकेर के कंडरा राजा ने नगर ध्वस्त करने के बाद सोचा कि वह जहाँ जाएगा अपने साथ मूर्ति भी ले जायेगा, किन्तु मूर्ति ले जाते समय उसे मार्ग में कुछ अशुभ संकेत मिले और वह मूर्ति को रास्ते में औंधी फेंककर स्वयं आगे बढ़ गया। कहा जाता है कि वह वही मूर्ति है जो राजीवा तेलिन को औंधी पड़ी मिली थी।
राजीव लोचन नाम के संदर्भ में यह भी कहा जाता है कि भगवान के नेत्र राजीव के समान हैं। अत: इसका नाम राजीव लोचन पड़ गया जिसका अपभ्रंश राजीव से राजिम हो गया।
ऐसी भी मान्यता है कि सृष्टि के आरम्भ में भगवान विष्णु के नाभि से निकला कमल यहीं पर स्थित था और ब्रह्मा जी ने यहीं से सृष्टि की रचना की थी। इसीलिये इसका नाम कमलक्षेत्र पड़ा। एक यह भी जन-श्रुति है कि विष्णु जी की नाभि से एक कमल प्रस्फुटित हुआ और इसी कमल से ब्रह्मा प्रकट हुए और जब यह कमल मुरझा कर झडऩे लगा तो इसके पत्तों से शिव की मूर्तियाँ प्रकट होने लगीं और वे चम्पेश्वर, वानेश्वर, फिंगेश्वर, कोपेश्वर और पाटेश्वर के रूप में विख्यात हुए। (संकलित)

अनकही

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भाषा की टूटती मर्यादा...
- डॉ. रत्ना वर्मा
इन दिनों सुबह- सुबह अखबार पढ़ो या टीवी पर समाचार देखो ,सब जगह एक ही चर्चा कि अमुख पार्टी के नेता ने दूसरी पार्टी के नेता के लिए अनुचित शब्दों का इस्तेमाल किया। ऐसे शब्दों का प्रयोग करने वालों को हमारे बड़े बुजुर्ग अनपढ़- गँवार, बेअक्ल और न जाने क्या क्या कह कर कोसते हैं, पर आज की राजनीति में नेताओं के एक- दूसरे पर अभद्र भाषा में आरोप- प्रत्यारोप का जैसे दौर ही चल पड़ा है। लोकतंत्र में बोलने की आजादी का यह तो मतलब नहीं होता कि आप अपनी मर्यादा को लाँघ दें और बेलगाम होकर स्तरहीन भाषा का इस्तेमाल शुरू कर दें। दरअसल पिछले कुछ समय से राजनीति में जिस तरह से अमर्यादित भाषा का उपयोग होने लगा है ,वह राजनति के स्तर में आ रही गिरावट को इंगित करता है। स्वस्थ राजनीति न जाने कहाँ गुम हो गई है। इसे राजनीतिक पतन का दौर कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
चुनाव के निकट आते ही आरोप- प्रत्यारोप का यह दौर और अधिक भड़कीला हो जाता है। एक दूसरे पर कीचड़ उछालने का जैसे उन्हें लाइसेंस मिल जाता है । विरोधी को नीचा दिखाने के लिए गड़े मूर्दे उखाड़ना आज के नेताओं के लिए चुनावी मुद्दा बन गया है। कभी राजनीति में एक ऐसा भी दौर था, जब किसी भी पार्टी के लिए जनता, प्रदेश और देश का हित सर्वोपरि होता था। जनहित को ध्यान में रखकर चुनाव लड़े जाते थे ; लेकिन आज विकास के मुद्दे हाशिए पर चले गए हैं और व्यक्ति विशेष के विरुद्ध अनर्गल भाषा का प्रयोग आम हो चला है। कुल मिलाकर राजनीति से ‘नीति’ गायब हो गई है। जन- भावनाओं को भड़काकर हंगामा खड़ा करना, चुनाव जीतना और सत्ता हथियाना बस यही मकसद रह गया है।
वे राजनेता, जिन्हें जनता अपना अमूल्य वोट देकर सत्ता पर आसीन करती है , कभी जनता के लिए आदर्श और सम्माननीय माने जाते थे ; लेकिन आज स्तरहीन भाषा का प्रयोग करके उन्होंने अपना स्तर गिरा लिया है। संसद में बैठकर पूरे देश के लिए नियम- कायदे बनाने वालों के लिए क्या स्वयं के लिए कोई सीमा रेखा नहीं होती? संसद भवन में होने वाली बहसों में भी अब नेता जिस भाषा का उपयोग एक दूसरे के लिए करते हैं ,वह जग- जाहिर है। सारी मर्यादा को लाँघते हुए संसद में आए दिन होने वाले हंगामे से हम सब परिचित हैं। पर अब समय आ गया कि संसद में और संसद के बाहर इस तरह की आपत्तिजनक भाषा, अमर्यादित व्यवहार पर लगाम लगाई जाए। आलोचना और समालोचना की भी एक मर्यादित भाषा, नियम कानून होने चाहिए।
दुःखद तो यह है कि आजकल मीडिया भी उनकी बातों को स्कूप की तरह अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करती है। ऐसे में समाचार पत्रों और न्यूज चैनल वालों का दायित्व और अधिक बढ़ जाता है कि अभद्र भाषा का इस्तेमाल करने वाले बयानों को नजरअंदाज़ करते हुए उनकी आलोचना करें, ताकि आगे से वे अपनी जुबान पर लगाम लगा सकें। अगर किसी पर धोखाधड़ी, कालाबाजारी, भ्रष्टाचार और देशद्रोह का आरोप है, तो सबूत के साथ उसे प्रस्तुत करें ,न कि किसी नेता के एक बयान पर उनके आरोप- प्रत्यारोप को हेडिंग बनाकर सनसनी पैदा करें। झूठ के पाँव ज्यादा दिन नहीं टिकते। न्याय और कानून है, तो उन्हें सजा जरूर मिलेगी। किसी भी संस्था की विश्वसनीयता तभी कायम रहती है ,जब आप सच को सामने लाते हैं।
अब तो सोशल मीडिया भी फेक न्यूज फैलाने और एक दूसरे पर छींटाकशी करते हुए चटखारे लेने का बहुत बड़ा माध्यम बन गया है। ऐसे फेक न्यूज पर भी लगाम लगाने की जरूरत है। फेक न्यूज से जनता बहुत जल्दी गुमराह हो जाती है। यह कहावत तो सदियों से प्रचलित है कि एक झूठ को अगर सौ बार बोला जाए ,तो वह सच बन जाता है। सोशल मीडिया का यदि बेहतर तरीके से इस्तेमाल हो ,तो यह जन-जाग्रति का सबसे बड़ा माध्यम बन सकता है। वर्तमान स्थिति को युवा पीढ़ी और समाज के लिए आदर्श नहीं कहा जा सकता। जनता को भी सोचना होगा कि वह अपने विवेक और बुद्धि का इस्तेमाल करे ,ताकि सही और गलत में अंतर कर सके। अफवाहों पर विश्वास न करे। चुनावी हथकंडों के दाँव-पेंच को समझे।
हमारी भाषा और बोली हमारे व्यक्तित्व का आईना होती है। हम अपनी बातचीत में जिस तरह के शब्दों का इस्तेमाल करते हैं, उससे उसके संस्कारी और व्यावहारिक होने का सबूत मिलता है। गाली गलौच का इस्तेमाल करने वाले और बात बात में तू- तू मैं- मैं करने वाले को कभी भी सम्मान के साथ नहीं देखा जाता। उसे अभद्र, अनपढ़ की संज्ञा दी जाती है। मर्यादा में रहकर की कही गई बात का सभी सम्मान करते हैं।
अब चिंतन करने का समय आ गया है कि राजनैतिक मूल्यों में तेजी से आ रही गिरावट के लिए जो जिम्मेदार हैं, उनको किनारे किया जाए ।

इस अंक में

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उदंती.comफरवरी 2019

अभी न होगा मेरा अंत
अभी-अभी तो आया है।
मेरे वन में मृदुल वसन्त
अभी न होगा मेरा अन्त।
       -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला


कविता

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बादल बना है फिर सवाली
- सलिल सरोज

बादल बना है फिर सवाली
आसमाँ क्यों खाली-खाली
किसने लूटा है गुलिस्तां को
बिखरा हुआ है डाली-डाली
किस-किस से करे हिफाज़त
डरा हुआ हर माली-माली
चाँद खा गया सेंक के कोई
रात रह गई काली-काली
उम्मीदें मर गईं चिल्ला के
खूँ से भरा है थाली-थाली
मंदिर-मस्जिद तोड़-ताड़ के
अब बोलते हैं आली-आली
कीमतें तय की हर चीज़ की
और नोट मिले जाली-जाली
खुद ही बोलते, खुद ही सुनते
खुद ही बजाते ताली-ताली
ये भी हद है नारेबाजी की
वायदे पड़े हैं नाली-नाली
बातें हो गईं बन्द कभी की
ज़ुबानें हो गईं गाली-गाली

सम्पर्कःबी 302, तीसरी मंजिल
 सिग्नेचर व्यू अपार्टमेंट्स
मुखर्जी नगरनई दिल्ली-110009

E-mail-salilmumtaz@gmail.com

कविताः ८ मार्च महिला दिवस

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कबतककोमलकहलाओगी
डॉ.सुरंगमायादव

नारीतुमकबतककोमलकहलाओगी
जीवनभरयूँहीपीयूषस्रोत-सीबहतीजाओगी
फिरभीश्रद्धा-सीहरयुगमेंमनुसेठुकराईजाओगी
औरोंकीकरनीकाऐसेहीतुम
दण्डभोगतीजाओगी
प्रणयनिवेदनकरनेपर
शूर्पणखा-साफलपाओगी
ठुकरानेपरएसिडअटैककरवाओगी
कभीशिलाबनकभीपरित्यक्ताबन
जीवनयूँहीबिताओगी
कभीदाँवपरलगजाओगी
कभीउपहारोंमेंबाँटीजाओगी
बोलोनारीतुमकबतककोमलकहलाओगी
रावण-दुर्योधननिंदितहैं
परजिनकेकारणकृत्यहुएयह
वेजनजगमेंसम्मानितहैं
मर्यादापुरुषोत्तमहोकर
नारीकाअपमानकिया
जीवनभरजिसकादण्डभोगतीसिया
धर्मराजनेकैसाधर्मनिभाया
दाँवपरपत्नीकोनिःसंकोचलगाया
छलकियाइन्द्रने
शापितहुईअहिल्या
बाहुबलीइन्द्रकाबालबाँकाहुआ
कबतकअपमानोंकीज्वालामेंजल
अग्निपरीक्षादेतीजाओगी
बोलोनारीतुमकबतककोमलकहलाओगी
युगों-युगोंकीकारासेमुक्तअगरहोनाहै
कठोरनहीं,साहसीबननाहैतुमको
पुरुषनहीं, मानवीबनरहनाहैतुमको

सम्प्रतिःअसि.प्रो.हिन्दी, महामायाराजकीयमहाविद्यालयमहोना, लखनऊ
E-mail- dr.surangmayadav@gmail.com

कविता- ८ मार्च महिला दिवस

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कल्पनापरआधारित...
कविताएँऔरलड़कियाँ
-भावनाशर्मा
 सहजसरलकोमलकठोर
कविताओंसरीखी
खिलखिलातीहैलड़कियाँ

कविताएँढ़ोतीहैं
बहुतसाबोझ
भावनाएँ, जज्बात, जि़दंगी
बेतरतीबसीजि़दंगीको
तरतीबसेसहेजती

खुदकोखुदमेंसहेजती
कभीभावनाओंको
कभीजज्बातोंको
कविकीकल्पनामें
अदम्यशक्तिसेभरी
कविताएँढ़ोतीहैं

बहुतसीभावनाएँ
कभीप्रेमकासौन्दर्य
कभीविरहकीवेदना
कभीचमकतीचाँदनी
कभीप्रकृतिकीवेदना
ढोतीहैबहुतसीकहानियाँ

कविताएँसुरम्यतारत्म्यतासी
सुरलयतालआलंबनसेयुक्त
कविताएँलड़कियोंसीहोतीहैं
त्यागसमर्पणसहेजे
खुदकोसहेजकरढ़लतीसी

बहतीसीकोईनदी
मिलतीज्योंसागरकेगर्तमें
कविकीसुन्दरकल्पनासे
घिरीकविताएँबनजातीहैं
अक्सरनिबंध, उपन्यासकहानियाँ

फिरक्याकभीदेखाहैकिसी
कविताकोकभीबंधतेहुए
कविताबंधंनमुक्तहैहमेशासे

फिरक्याकभीकिसीउपन्यासको
देखाहैकोईकविताबनतेहुए????

पर्व त्योहार

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गयीमहाशिवरात्रि- पधारिएशंकरजी  
-सुशील यादव    
महाशिवरात्रिकाअर्थवहरात्रिहैजिसकाशिवतत्वकेसाथघनिष्टसम्बन्धहै. भगवानशिवकिअतिप्रियरात्रिकोशिवरात्रिकहागयाहै.
शिवार्चनऔरजागरणहीइसव्रतकीविशेषताहै. इसमेंरात्रिभरजागरणएवंशिवाभिषेककाविधानहै.
श्रीपार्वतीजीकीजिज्ञासापरभगवानशिवजीनेबतलायाकिफ़ाल्गुनकृष्णपक्षकीचतुर्दशीशिवरात्रिकहलातीहै. जोइसदिनउपवासकरताहै, वहमुझेप्रसन्नकरलेताहै. मैंअभिषेक, वस्त्र, धूप, अर्चनतथापुष्पादिसमार्पणसेउतनाप्रसन्ननहींहोताजितनाकिव्रतोपवाससे.
ईशानसंहितामेंबतलायागयाहैकिफ़ाल्गुनकृष्णचतुर्दशीकीरात्रिकोआदिदेवश्रीशिवकरोडॊंसूर्योंकेसमानप्रभावालेलिंगरुपमेंप्रकटहुए.
ज्योतिषशास्त्रकेअनुसारफ़ाल्गुनकृष्णचतुर्दशीतिथिमेंचन्द्रमासूर्यकेसमीपहोताहै. अतःवहीसमयजीवनरुपीचन्द्रमाकाशिवरुपीसूर्यकेसाथयोग-मिलनहोताहै. अतःइसचतुर्दशीकोशिवपूजाकरनेसेअभीष्टतमपदार्थकीप्राप्तिहोतीहै. यहीशिवरात्रिकारहस्यहै.
महाशिवरात्रिकापर्वपरमात्माशिवकेदिव्यअवतरणकामंगलसूचकहै. उनकेनिराकारसेसाकाररुपमेंअवतरणकीरात्रिहीशिवरात्रिकहलातीहै. वेहमेंकाम, क्रोध, लोभ, मोह, मत्सरादिविकारोंसेमुक्तकरके, परमसुख, शांति, ऐश्वर्यादिप्रदानकरतेहैं.
चारप्रहरपूजाकाविधान-  चारप्रहरमेंचारबारपूजाकाविधानहै. इसमेंशिवजीकोपंचामृतसेस्नानकराकरचन्दन, पुष्प, अक्षत, वस्त्रादिसेश्रृंगारकरआरतीकरनीचाहिए. रात्रिभरजागरणतथापंचाक्षर-मंत्रकाजपकरनाचाहिए. रुद्राभिषेक, रुद्राष्टाध्यायीतथारुद्रीपाठकाभीविधानहै.       शिवरात्रिकेमहत्वकोप्रतिपादितकरनेवालीदोकथाएंपढनेकोमिलतीहै,जिसमेंशिवरात्रिकेरहस्यकोजानाजासकताहै.
ईशानसंहिताकेअनुसार- सारीसृष्टिकानिर्माणकरचुकनेकेबादब्रह्माजीकोघमंडउत्पन्नहोगयाऔरवेअपनेकोसर्वश्रेष्ठसमझनेलगे. वेचाहतेथेकिकोईउनकेइसकार्यकीप्रसंशाकरे. घूमते-घूमतेवेक्षीरसागरजापहुँचेजहाँभगवानविष्णुविश्रामकररहेथे. उन्हेब्रह्माजीकेआगमनकापताहीनहींचला. ब्रह्माजीकोलगाकिविष्णुजानबूझकरउनकीउपेक्षाकररहेहैं. अबउनकेक्रोधकापारावारबढनेलगाथा. उन्होंनेअत्यन्तक्रोधितहोतेहुएश्रीविष्णुकेसमीपजाकरकहा-उठॊ...तुमजानतेनहींकिमैंकौनहूँ.....मैंसृष्टिकानिर्माताब्रह्मातुम्हारेसामनेखडाहूँश्रीविष्णुनेजागतेहुएउनसेबैठनेकाअनुरोधकिया, लेकिनब्रह्माजीतोक्रोधमेंभरेहुएथे. झल्लातेहुएउन्होंनेकहा-मैंतुम्हारारक्षक, जगतकापितामहहूँ. तुमकोमेरासम्मानकरनाचाहिए.
बातछोटीसीथीलेकिनवाकयुद्धअबसचमुचकेयुद्धमेंतबदिलहोचुकाथा. ब्रह्माजीनेपाशुपतऔरश्रीविष्णुनेमाहेश्वरअस्त्रउठालिया. दिशाएँअस्त्रोंकेतेजसेजालनेलगी. सृष्टिमेंप्रलयकीआशंकाहोगई. देवगणभागतेहुएकैलाशपर्वतपरभगवानविश्वनाथकेपासपहुँचेऔरइसयुद्दकोरोकनेकेप्रार्थनाकरनेलगे. देवताओंकीप्रार्थनासुनतेहीभगवानशिवदोनोकेमध्यमेंअनादि, अनन्त-ज्योतिर्मयस्तम्भकेरुपमेंप्रकटहुए. उनकेप्रकटहोतेहीदोनोदिव्यास्त्रशांतहोकरउसीज्योतिर्लिंगमेंलीनहोगए. तबजाकरब्रह्माजीकोअपनीगलतीकाअहसासहुआ. श्रीविष्णुऔरब्रह्माजीनेउसज्योतिर्लिंगकीपूजा-अर्चनाकीऔरअपनेकृत्यकेलिएक्षमामांगी.      यहलिंगनिष्कलब्रह्म, निराकारब्रह्मकाप्रतीकहै. यहलिंगफ़ाल्गुनकृष्णचतुर्दशीकोप्रकटहुआ,तभीसेआजतकलिंगपूजानिरन्तरचलीरहीहै
शिवपुराणकेअनुसारएककथाआतीहै-गुरुद्रुहनामकएकभीलवाराणसीकेवनमेंरहताथा. वहअत्यन्तहीबलवानऔरक्रूरथा. अतःप्रतिदिनवनमेंजाकरमृगोंकोमारता. वहींरहकरनानाप्रकारकीचोरियांभीकरताथा.
प्रतिदिनकीभांतिवहवनमेंजाकरअपनेशिकारकीतलाशकररहाथा. लेकिनदुर्भाग्यसेउसेउसदिनएकभीशिकारनहींमिला. भटकते-भटकतेवहकाफ़ीदूरचलाआयाथा. शामभीघिरआयीथी. अतःउसनेकिसीपॆडपरबैठकररात्रिविश्रामकरनाउचितसमझा. वहएकपेडपरजाचढा. संयोगसेवहपेडबिल्व-पत्रकाथा. नींदकोसोंदूरथी. पेडकीडालपरबैठे-बैठेवहपत्तियाँतोड-तॊडकरनीचेगिरानेलगा. ऎसाकरतेहुएतीनप्रहरबीतगए. चौथेप्रहरमेंभीउसकीयहहरकतजारीरही. वहबेल-पत्रतोडताजाताऔरउसेनीचेगिरादेता.
रातभरशिकारकीचिन्तामेंव्याधनिर्जल, भोजनराहितजागरणकरतारहाथा. वहयहनहींजानताथाकिउसबिल्व-पत्रवृक्षकेनीचेशिवलिंगस्थापितहै. इसतरहउसकीचारोंप्रहरकीपूजाअनजानेमेंस्वतःहीहोगई. उसदिनमहाशिवरात्रिथी. भगवानशिवउसकेसामनेप्रकटहोगएऔरउससेवरमांगनेकोकहा. मैंनेसबकुछपालियायहकहतेहुएवहव्याधउनकेचरणॊंमेंगिरपडा. शिवनेप्रसन्नहोकरउसकानामगुहरखदियाऔरवरदानद्दियाकिभगवानरामएकदिनअवश्यहीतुम्हारेघरपधारेंगेऔरतुम्हारेसाथमित्रताकरेंगे.तुममोक्षप्राप्तकरोगे, वहीव्याधशृंग्वेरपुरमेंनिषाद्रराज“:गुहबना,जिसनेभगवानरामकाआतिथ्यकिया.
यहमहाशिवरात्रिव्रतराजकेनामसेभीविख्यातहै. यहशिवरात्रियमराजकेशासनकोमिटानेवालीहैऔरशिवलोककोदेनेवालीहै. शास्त्रोक्तविधिसेजोइसकाजागरणसहितउपवासकरतेहैंउन्हेंमोक्षकीप्राप्तहोतीहै. इसकेकरनेमात्रसेसबपापोंकाक्षयहोजाताहै.

सम्पर्कः१०३, कावेरी नगर छिन्दवाड़ा म, प्र, -४८०००१, फोन न ०७१६२ –२४६६५१, ९४२४३५६४००, E-mail- goverdhanyadav44@gmail.com

आलेख ८ मार्च- महिला दिवस

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 क्योंस्त्रीहोनेकाउत्सवमनायाजाए
- नीलममहेंद्र

यूँतोसमस्तसंसारएवंप्रकृतिईश्वरकीबेहतरीनरचनाहैकिन्तुस्त्रीउसकीअनूठीरचनाहै, उसकेदिलकेबेहदकरीब।
इसीलिएतोउसनेउसेउनशक्तियोंसेलैसकरकेइसधरतीपरभेजाजोस्वयंउसकेपासहैं- मसलनप्रेमएवंममतासेभराह्दय, सहनशीलताएवंधैर्यसेभरपूरव्यक्तित्व, क्षमाकरनेवालाह्रदय, बाहरसेफूलसीकोमलकिन्तुभीतरसेचट्टानसीइच्छाशक्तिसेपरिपूर्णऔरसबसेमहवत्त्पूर्ण, वहशक्तिजोएकमहिलाकोईश्वरनेदीहै, वहहैउसकीसृजनशक्ति।
सृजन, जोकेवलईश्वरस्वयंकरतेहैं, मनुष्यकाजन्मजोस्वयंईश्वरकेहाथहैउसकेधरतीपरआनेकाजरियास्त्रीकोबनाकरउसपरअपनाभरोसाजताया।
उसनेस्त्रीऔरपुरुषदोनोंकोअलगअलगबनायाहैऔरवेअलगअलगहीहैं।
अभीहालहीमेंआक्सफोर्डयूनिवर्सिटीनेलिंगभेदखत्मकरनेकेलिए  'हीऔर'शीकेस्थानपर'जीशब्दकाप्रयोगकरनेकेलिएकहाहै।
यूनिवर्सिटीनेस्टूडेन्ट्सकेलिएनईगाइडलाइनजारीकीहै।'ज़ीशब्दकाप्रयोगअकसरट्रांसजेन्डरलोगोंद्वाराकियाजाताहै।यूनिवर्सिटीकाकहनायहहैकिइससेट्रांसजेन्डरस्टूडेन्ट्सअसहजमहसूसनहींकरेंगेसाथही लैंगिक  समानताभीआएगीतोवहाँपरविषयकेवलस्त्रीपुरुषनहींवरन्ट्रान्स्जेन्डरसमेंभीलिंगभेदखत्मकरनेकेलिएउठायागयाकदमहै।
समाजसेलिंगभेदखत्मकरनेकेलिएकियागयायहकोईपहलाप्रयासनहींहै।लेकिनविचारकरनेवालीबातयहहैकिइतनेसालोंसेसम्पूर्णविश्वमेंइतनेप्रयासोंकेबावजूदआजतकतकनीकीऔरवैज्ञानिकतौरपरइतनीतरक्कीकेबादभीमहिलाओंकीस्थितिआशाकेअनुरूपक्योंनहींहै? प्रयासोंकेअनुकूलपरिणामप्राप्तक्योंनहींहुए?
क्योंकिइनसभीप्रयासोंमेंस्त्रीनेसरकारोंऔरसमाजसेअपेक्षाकीकिन्तुजिसदिनवहखुदकोबदलेगी, अपनीलड़ाईस्वयंलड़ेगीवहजीतजाएगी।
महिलाएवंपुरुषोंकीसमानता, महिलासशक्तिकरण, समाजमेंउन्हेंपुरुषोंकेसमानअधिकारदिलानेकेलिएभारतसमेतसम्पूर्णविश्वमेंअनेकोंप्रयासकियागएहैं।
महिलाएँभीस्वयंअपनामुकाबलापुरुषोंसेकरकेयहसिद्धकरनेकेप्रयासकरतीरहीहैंकिवेकिसीभीतरहसेपुरुषोंसेकमनहींहैं
भलेहीकानूनीतौरपरउन्हेंसमानताकेअधिकारप्राप्तहैंकिन्तुक्याव्यवहारिकरूपसेसमाजमेंमहिलाओंकोसमानताकादर्जाहासिलहै?
केवललड़कोंजैसेजीन्सशर्टपहनकरघूमनायाफिरबालकटवालेनाअथवास्कूटरबाइककारचलाना, रातकोदेरतकबाहररहनेकीआजादीजैसेअधिकारमिलजानेसेमहिलाएँ  पुरुषोंकेसमानअधिकारप्राप्तकरलेंगी? इसप्रकारकीबराबरीकरकेमहिलाएँस्वयंअपनास्तरगिरालेतीहैं।
हनुमानजीकोतो  उनकीशक्तियोंकाएहसासजामवंतजीनेकरायाथा, लेकिनआजमहिलाओंकोअपनीशक्तियोंएवंक्षमताओंकाएहसासस्वयंकरानाहोगाउन्हेंयहसमझनाहोगाकिशक्तिकास्थानशरीरनहींहृदयहोताहै, शक्तिकाअनुभवएकमानसिकअवस्थाहै, हमउतनेहीशक्तिशालीहोतेहैंजितनाकिहमस्वयंकोसमझतेहैं।
जबईश्वरनेहीदोनोंकोएकदूसरेसेअलगबनायाहैतोयहविद्रोहवहसमाजसेनहींस्वयंईश्वरसेकररहीहैं।
यहहरस्त्रीकेसमझनेकाविषयहैकि-
स्त्रीकीपुरुषसेभिन्नताहीउसकीशक्तिहैउसकीखूबसूरतीहैउसेवहअपनीशक्तिकेरूपमेंहीस्वीकारकरेअपनीकमजोरीबनाए।
अत: बातसमानताकीनहींस्वीकार्यताकीहो!
बात'समानताकेअधिकारकेबजाय'सम्मानकेअधिकारकीहो।औरइससम्मानकीशुरूआतस्त्रीकोहीकरनीहोगीस्वयंसे।सबसेपहलेवहअपनाखुदकासम्मानकरेअपनेस्त्रीहोनेकाउत्सवमनाए।
स्त्रीयहअपेक्षाभीकरेकिउसेकेवलइसलिएसम्मानदियाजाएक्योंकिवहएकस्त्रीहै
यहसम्मानकिसीसंस्कृतियाकानूनअथवासमाजसेभीखमेंमिलनेवालीभौतिकचीज़नहींहै।
स्त्रीसमाजकोअपने अस्तित्व काएहसासकराएकिवहकेवलएकभौतिकशरीरनहींवरन्एकबौद्धिकशक्तिहै, एक  स्वतंत्रआत्मनिर्भरव्यक्तित्त्वहैजोअपनेपरिवारऔरसमाजकीशक्तिहैंकिकमजोरीजोसहारादेनेवालीहैकिसहारालेनेवाली।
सर्वप्रथमवहखुदकोअपनीदेहसेऊपरउठकरस्वयंस्वीकारकरेंतोहीवेइसदेहसेइतरअपना अस्तित्व समाजमेंस्वीकारकरापाएँगी।
हमारेसमाजमेंऐसीमहिलाओंकीकमीनहींहैजिन्होंनेइसपुरुषप्रधानसमाजमेंभीमुकामहासिलकिएहैं, इंदिरागाँधीचन्दाकोचरइंन्द्रानूयी, सुषमास्वराज, जयललिताअरुंधतीभट्टाचार्य, किरणबेदी, कल्पनाचावलाआदि।
स्त्रीके  स्वतंत्रसम्मानजनक अस्तित्व कीस्वीकार्यता  एकमानसिकअवस्थाहैएकविचारहैएकएहसासहैएकजीवनशैलीहैजोजबसंस्कृतिमेंपरिवर्तितहोतीहैजिसे  हरसभ्यसमाजअपनाताहैतोनिश्चितहीयहसम्भवहोसकताहै।
बड़ेसेबड़ेसंघर्षकीशुरुआत  पहलेकदमसेहोतीहैऔरजबवहबदलाव समाजकेविचारों  आचरणएवंनैतिकमूल्योंसेजुड़ाहोतोइसपरिवर्तनकीशुरुआतसमाजकीइससबसेछोटीइकाईसेअर्थात्हरएकपरिवारसेहीहोसकतीहै।
यहएकखेदकाविषयहैकिभारतीयसंस्कृतिमेंमहिलाओंकोदेवीकादर्जाप्राप्तहोनेकेबावजूदहकीकतमेंमहिलाओंकीस्थितिदयनीयहै।
आजभीकन्याभ्रूणहत्याएँहोरहीहैं, बेटियाँदहेजरूपीदानवकीभेंटचढ़रहीहैं  कठोरसेकठोरकानूनइन्हेंनहींरोकपारहेहैं  तोबातकानूनसेनहींबनेगी।
हरव्यक्तिकोहरघरकोहरबच्चेकोसमाजकी  छोटीसेछोटी छोटी इकाई कोइसेअपनेविचारोंमेंअपनेआचरणमेंअपनेव्यवहारमेंअपनीजीवनशैलीमेंसमाजकीसंस्कृतिमेंशामिलकरनाहोगा।
यहसमझनाहोगाकिबातसमानतानहींसम्मानकीहै
तुलनानहींस्वीकार्यताकीहै
स्त्रीपरिवारएवंसमाजकाहिस्सानहींपूरकहै।
अत: सम्बोधनभलेहीबदलकर'जीकरदियाजाएलेकिनईश्वरनेजिननैसर्गिकगुणोंकेसाथ'हीऔर'शीकीरचनाकीहैउन्हेंतोबदलाजासकताहैऔरहीऐसीकोईकोशिशकीजानीचाहिए।
सम्पर्कःC/O Bobby Readymade Garments, Phalka Bazar, Lashkar, Gwalior, MP- 474001Mob - 9200050232, Email- drneelammahendra@hotmail.com

व्यंग्य

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लातोंकेभूत..!
- गिरीश पंकज
उसदिन हिंदुस्तान बनाम भारत की मुलाकात खुराफात के लिए चर्चित पाकिस्तान से हो गई। हिंदुस्तान ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, "मेरे छोटे भाई ! तुम्हारे यहाँ  न तो ठीक से खाने के लिए है, और न पीने के लिए, लेकिन तुम लोग का कलेजा बहुत बड्डा है। कमाल ही करते हो।"
 अपनी तारीफ सुनकर पाकिस्तान फूल कर चीन टाइप का चौड़ा हो गया। वह बोला, "हमारी तो बात ही निराली है। वैसे, तुम कहना क्या चाहते हो ? मैं ठीक से समझ नहीं सका?"
हिंदुस्तान ने कहा, "हम कहना यह चाहते हैं बंधु कि तुम खाली पेट रह कर भी भारत में आए दिन जो आतंकवाद की गंदगी फैलाने की कोशिश करते रहते हो न,वह देखकर हम सोचते हैं कि तुम लोग ऐसा कब तक करोगे और आख़िर करते ही क्यों हो? अमन चैन से रहते क्यों नहीं? ...इससे तुम लोगों को क्या फायदा पहुँचताहै ?"
पाकिस्तान ने दाँत निपोरते हुए कहा, "इससे हमें बड़ा सुख मिलता है । बड़ा मजा आता है। हमको लगता है कि ऊपर वाला खुश होगा। शाबाशी देगा। सुना है कि जन्नत में हूरें होती है। हमारे आतंकवादी लोगों को मारने के बाद जब एक दिन मरेंगे तो सीधे हूरों के पास जाएँगे। तो हम लोग एक बड़ा काम करते हैं। धीरे-धीरे अपने लोगों को  हूरों के पास भेज रहे हैं, और क्या।"
"लेकिन ऐसा करते वक्त तुम लोग यह नहीं सोचते कि भारत देश के निर्दोष लोग मारे जाते हैं। ऐसा खून- खराबा देखकर ऊपरवाला तो नाराज ही होता होगा। और तुम सबके लिए दोजख में यानी नरक में जगह तैयार करके रखता होगा?" 
भारत की बात सुनकर पाकिस्तान ने कहा, "नहीं, हम ऐसा नहीं सोचते। हमें पता है कि अल्लाह को प्यारी है कुर्बानी। और हम हिंदुस्तान के लोगों की कुर्बानी देकर अल्लाह को खुश करते हैं ।"
हिंदुस्तान ने हँसते हुए कहा, "अगर कुर्बानी देनी है ,तो अपनी ही दो न!! दूसरों की क्यों देते हो ?"
पाकिस्तान ने कहा,"यही तो मजा है। दूसरों की कुर्बानी देने से ऊपरवाला खुश होता है।"
 हिंदुस्तान ने कहा, "इसका मतलब है, तुमने ऊपर वाले को ठीक से समझा नहीं है। तुम्हारा ऊपरवाला हो, चाहे हमारा ऊपरवाला, किसी को खून -खराबा पसंद नहीं। सब अमन- चैन चाहते हैं। पता नहीं, तुमने किस किताब में गलत- सलत पढ़ लिया है कि ऊपर वाले को हिंसा पसंद है। अरे, ऊपरवाला प्रेम का भूखा होता है। उसे  करुणा चाहिए। उसे दया चाहिए ।उसे सद्भावना चाहिए। वह दुर्भावना की खेती करने वालों को नापसंद करता है। और तुम लोग पिछले सत्तर सालों से दुर्भावना की खेती किए जा रहे हो। कभी हमारे देश में आकर आतंकवाद फैलाते हो और कभी अपने देश में भी बेकसूरों की जान लेते रहते हो। धन्य है तुम्हारी सोच।"
अब पाकिस्तान  थोड़ा गुस्से में आ गया। उसने कहा, "बहुत देर से मैं तुम्हारी बकवास सुन रहा हूँ। हमें मत सिखाओ। तुम्हारे यहाँ  महावीर हुए, बुद्ध हुए ।स्वामी विवेकानंद हुए। और वो क्या कहते हैं... हाँ, महात्मा गांधी हो गए। इन सब लोगों के कारण तुम लोग करुणा- करुणा,दया- दया करते रहते हो। हमारे यहाँ तो ऐसा कोई महापुरुष नहीं हुआ। हालांकि 1947 के पहले सारे महापुरुष हमारे ही महापुरुष थे। लेकिन जब विभाजन हो गया, तो हो गया। हम एक देश हो गए। हमारे यहाँ अब कोई गाँधी नहीं है। कोई महापुरुष नहीं है। हमारे यहाँ महापुरुषों का भयंकर अकाल है। कोई हमें समझाने वाला नहीं। दो -चार अच्छे शायर हमें समझाने में लगे रहते हैं लेकिन हम समझने की कोशिश ही नहीं करते। कोई हमारा माई-बाप नहीं। कोई यह नहीं कहता कि बेटे आत्मघाती मत बनो। बम बारूद से दूर रहो। पढ़ाई-लिखाई करो। अच्छे विश्व नागरिक बनो और सुख चैन से रहो। हमारे यहाँ  तो जो भी बड़ा नेता आता है, वही पट्टी पढ़ाता है कि जा बेटा, चुपचाप कश्मीर जा और वहाँ जाकर के देश की सुरक्षा में लगे सैनिकों की हत्या करके आजा। तो हमने यही सीखा है भविष्य में भी यही करते रहेंगे तुम लोगों अमन चैन की बात करते रहो शांति की बात करते रहो और हमको खाली पीली धमकाते रहो कि बहुत हो गया, अब बर्दाश्त नहीं करेंगे, पानी सर से ऊपर जा चुका है। लेकिन हमें पता है कि तुम लोग शांति प्रिय देश हो। कभी हमला नहीं करोगे। इसलिए हम लोग बहुत निश्चिंत हैं ।"
भारत ने हँसते हुए कहा, "अद्भुत है तुम्हारी सोच। तुमने देखा होगा  कि अनेक घरों में चूहे होते हैं।  तुम्हारे यहाँ भी होंगे। चूहे कितना परेशान करते हैं, घर के मालिक को। सामान कुतरते हैं। गंदगी करते हैं और पकड़ में नहीं आते। अब तो चूहे जहरीली गोलियाँ भी पचा जाते हैं। मरते ही नहीं। मरते भी है तो बड़ी मुश्किल से। तुम लोग को देखता हूं, तो लगता है कि  चूहे परेशान करने की कला पाकिस्तान से सीख कर आ रहे हैं या फिर  पाकिस्तान यह कला इनसे सीख चुका है।"
भारत की बात सुनकर पाकिस्तान चुप हो गया। उसने सिर झुका लिया ।फिर धीरे से कहा,  "तुमने चूहे वाला उदाहरण बहुत सही दिया। हम बिल्कुल वैसा ही करते हैं;लेकिन अल्लाह की कसमअब से हम ऐसा नहीं करेंगे। बड़े भाई, तुमने हमारी आँखें खोल दी हैं। अब हम लोग सुधर जाएँगे।"
 पाकिस्तान की बात सुनकर भारत बहुत खुश हुआ। उसने दिल से दुआ दी कि "तुम फलो फूलो। खुश रहो, आबाद रहो। लाहौर रहो या इस्लामाबाद रहो।'
 इतना बोल कर भारत अपने रास्ते चला गया ।दो दिन नहीं बीते थे कि फिर कश्मीर में बम का धमाका हुआ और कुछ लोग शहीद हो गए। भारत ने अपना माथा टोका और और बड़बड़ाया, "लातों के भूत बातों से नहीं मानते।"
इतना बोलकर भारत उठ खड़ा हुआ। भारत की बात सुनकर मैं प्रसन्न हो गया। मैं बधाई देने के लिए तेजी के साथ उसकी ओर लपका। लेकिन... तब तक मेरी नींद खुल गई ।... ओह! तो मैं सपना देख रहा था
मेरा सुंदर सपना टूट गया।
सम्पर्क:एचआइजी-2, घरनं. 2, सेक्टर-3, दीनदयालउपाध्यायनगर, रायपुर-492010, मो.- 8770969574, E-mail- girishpankaj1@gmail.com

कविता: 8 मार्च महिला दिवस

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अगलेजनममोहेबिटियाकीजो
- प्रेमगुप्ता'मानी

माँ,         
आजतुम्हारीइजाज़केब़गैर
मैं
तुम्हारेभीतरकीसुरंगमेंउतररहीहूँ
यद्यपि,
तुमनेजीतेजी
कभीवहाँझाँकनेभीनहींदिया
परआज,
जबमेरेपाँवतलेकीधरती
खिसकरहीहै
मैंजाननाचाहतीहूँकि
बिनाकिसीठोसआधारके
तुमजीतीकैसेथी?
एकइतिहास
जोढेरो-ढेरस्त्रियोंकेक्रंदनकाहै
तुमनेरचा
औरबंदकरलियाअपनीगुफामें
वहगुफा
काफीलम्बी...गहरीऔरअँधेरेसेभरीहुईहै

माँ,
मैंजानतीहूँकि
ऊबड़-खाबड़पत्थरों
दलदलीमिट्टी
औरदरकतीदीवारोंवालीखोहमें
कहीं$फनहैवहइतिहास
औरउसकेपीलेपन्नोंमें
आजभीदर्जहै
प्रागैतिहासिककालकासच

माँ,
मैंतुम्हारीबड़की
देखतीथीकि
जब-जबतुम्हारेभीतरकाअँधेरा
तुम्हारीआँखोंकेरस्ते
बाहरआनेकोललकताथा
तब-तब
पानीकीएकघूंटभरकर
तुमउसेभीतरसरकादेतीथी
क्यातुम्हेंपतानहींथाकि
उसेभी,
हवा-पानीऔररोशनीकीदरकारथी

माँ,
तुम्हारीकोशिशकोनकार
तुम्हाराअँधेरा
तुम्हारीआँखोंकीकोर-बिन्दुसेटपक
मेरेभीतरभरगयाथा
औरउसीदिन
तुम्हारीआँखोंसेटपका
एकमोती
मैंनेचुपकेसेचुरालियाथा
समयसेपरेवहमोती
आजभीमेरेआँचलसेबँधाहै
औरअक्सर  मेरेएकांतमें
तुम्हारीचुगलीकरताहै

माँ...
नानीकीकहानीसुनातेवक़्त
तुमकितना-कितनातोरोईथी
आठबेटियोंकेबोझ (?) सेदबी
मेरीनानी
अपनीकोखकाबदलाचुकातेवक़्त
कैसेभूलजातीथी
तुम्हारेनन्हें-नन्हेंहाथोंको
जोबर्तनघिसते-घिसते
खुदघिसगएथे
औरकच्चेफर्शकीधूल

तुमआठोंबहनोंकीआँखोंमेंभरकर
तुमसबकेसपनोंकीउजासको
ढँकलेतीथी
आजजब
नन्हें-मुन्नोंसेलेकर
जवान-जहानलड़कियोंको
टाइटस्कर्टऔरजीन्समेंदेखतीहूँ
तबसोंचतीहूँकि
मात्रआठबरसकीउमरमें
कैसेपहनतीथीतुम
पाँचगज़कीसाड़ी...?
औरतेरहबरसकीकच्चीउम्रमें
ढेरसारे
भारीगहनोंसेलदकर
नन्हें-नन्हेंपाँवोंमेंमहावररचा
नंगेपाँव
कैसेउतरीहोगीपालकीसे
सासरेकीठोस-पथरीलीज़मीनपर?

माँ,
आजपूरीनिडरतासेपूछतीहूँतुमसे
क्यानानीकीछातीमें
दिलनहींधड़कताथा?
तुमआठोंबहनोंका
क्याकसूरथा?
तुम्हारीमासूमियत
उन्हेंपिघलातीनहींथी?

माँ,
तुम्हीसेजानाथा
नानाअंग्रेजोंकेज़मानेकेअफसरथे
हिन्दुस्तानीहोनेकेबावज़ूद
उनकेअंग्रेजमातहतभीकाँपतेथेउनसे
अंग्रेजोंकासाम्राज्य
ऐसेविद्वानफ़सरोंपरहीतोटिकाथा
मैंजाननाचाहतीहूँकि
ऐसेविद्वान-कड़कआदमीकोभी
एकबेटेकासहाराचाहिएथा?
नाना,
दूसरीशादीकरतेकि
नानीएककेबादएक
चारबेटोंकीसौगातदेमुक्तहोगई
उसदुनियासेही
जहाँबेटियोंकीकोईकदरनहींथी
और,
भारतमाताकीतरह
बेटियोंकीमाएँभीगुलामथी
वेपरम्पराओंकीजंजीरसेबँधकर
उसमेंअपनीबेटियोंकोभीजकड़लेतीथी
परमाँ,
मैंपूछतीहूँतुमसे
तुमतोआज़ादभारतमेंमाँबनीथी?
पिताभीआज़ादीकासमर्थनकरतेथे
फिरकिनसरोकारोंकेचलते
एकबेटेकीचाहतने
तुमदोनोंकोजकड़लियाथा
औरबड़ेअरमानसेतुमने
अपनीमन्नतोंकीकोखकोसींचकर
सड़ी-गलीमान्यताओंकी
अँधेरी...सीलनभरीउसकोठरीमें
जहाँदसबेटियाँजन्मीथी
तुमनेसहसा
एकबेटेकोजनमदे
चौंकादियाथा
दादा-दादीऔरपिताको
उनसबकाबसयहीएकअरमानथा
माँ - यादहै?
पूरामहीना'घर
रोशनीसेनहायारहा
औरतुम्हारेवेपाँव
जोमात्रतेरहबरसकीउमरमें
पथरीलीज़मीनकीठसकसेआहतथे
अबउनपरपिताकेहाथोंकामरहमथा
माँ- तुमनेऔरपिताने
उसबेटेकानामभीरखातो...'अरमान
परमाँ
एकबेटेकीकीमतपर
कहीं--कहींनानीकीतरह
तुमभीहारीथी
यद्यपि
पिताजीनानाजीकीतरहकड़कनहींथे
परपरम्पराओंसेआज़ादभीनहींथे
वंशकोआगेबढ़ानेकेलिए
उन्हेंभीचाहिएथा
एकबेटा...
एकऐसाबेटाजोबुढ़ापेकासहाराबने
माँ...तुम्हीबताओ
क्याबेटियाँसहारानहींबनती?
वंश-ग्रंथावलीमेंउनकानामक्योंनहींहोता?

माँ,
तुमनानीकीतरह
अपनेबोझ (?) काबदला
अपनीबेटियोंसेनहींलेतीथी
परहरबरस
जबतुम्हारीकोखहरीहोती
तबपूरेनौमहीने
तुम्हारीआँखोंमें
एकअनकहीपीड़ाभरीरहती
पिताजी,
अपनेसपनोकीसारीउजास
सारीखुशियाँ
तुम्हारेआँचलमेंडालदेते
परउन्हेंलेतेभी
तुम्हारेहाथकाँप-काँपजाते
चकितहूँमाँ
यहसोचकरकि
साल-दर-सालकाहीफ़र्कथाहमबहनोंमें
परफिरभी
अपनीमासूमआँखोंसे
तुम्हारेदर्दकोमहसूसतीहीनहींथी
बल्कि,
अपनीनन्हींहथेलियोंसेउन्हें
समेटनेकीकोशिशकरतीथी
अपनेगोलघड़ेजैसेपेटको
सावधानीसेपकड़कर
अपनेभीषणदर्दकोहोंठोसेदबाकर
अपनेबच्चोंकेलिएढेरसी
पूड़ी-सब्जीबनाकर
जबतुमपतली-मरगिल्लीसी
दाईकेसाथ
अँधेरीकोठरीमेंजातीथी
तबपलभरकेलिए
हमसबकीसांसेथमजातीथी
पिताबहुतबेचैनहोउठते
उनकेहरक़दमकेसाथ
तुम्हारीज़िन्दगीभीजैसे
चलती-थमतीथी
औरहमसबकीखुशियाँभी
माँ,
ग्यारहवींबारतुमने
कूड़ेकेढेर ( बेटियों) पर
एकहीरे (?) कोजनमदिया

माँ-
आजतुमनहींहो
पिताभीनहींहैं
परकाश! माँ,
उसवक्तहमनन्हींबच्चियाँ
तुम्हेंबतासकती
पिताजीकेसपनोंकीउसउजासकीबात
जोपूरेघरमेंफैलगईथी
मरियलसीदाईकेपैरोंपरझुके
पिताजीकीआँखोंसेगिरे
खुशीकेवेआँसू
आजभी
हमारेघरकीदीवारपरटँगी
पिताजीकीतस्वीरपर
ठहरीहुईहै

माँ-
तुमनानीकीतरहनहींथी
परउनकाअंशतुम्हारेभीतरथा
तभीतो
अरमानकोपालने, बड़ाकरने
खूबपढ़ाने
औरबड़ाआदमीबनानेकेजनूनमें
अपनीबेटियोंकेअरमानोंकोभूलगई
औरजबयादआया
पिताजीनेतुम्हारासाथछोड़़दिया
औरउसकेचंदमहीनेबाद
तुमनेअपनीबेटियोंका...

माँ-
आजमैंतुम्हेंबतानाचाहतीहूँ
किजिसअरमानको
तुमनेबड़ेअरमानसेपालाथा
वहविदेशमें
अपनीपत्नीकेसाथसुखीहै
औरइतनासुखीकि
उसनेहमारीओरमुड़करभीनहींदेखा
माँ,
क्यातुमजाननानहींचाहोगी
कितुम्हारीबेटियाँकैसीहैं?
आजमैंतुम्हेंहीनहीं
पिताजीकोभीबतानाचाहतीहूँ
किछुटकी
किसीआवारालड़केकेसाथभागगईहै
औरमँझली...
गैंगरेपकाशिकारहो
ख़ुदकुशीकरचुकीहै

माँ,
दु:केक्षणोंमेंतुम्हींकहाकरतीथी
किहम
दसबहनेंनहीं,
दसउँगलियाँहैंतुम्हारी
मुट्ठीबंधजाएतोतुम्हारीताकतहैं
परमाँ
दोउँगलियाँतोकटगई
औरआठउँगलियोंसेमुट्ठीनहींबँधती
बाँधनेकीकोशिशकरतेहैं
तोएकखालीपनघेरलेताहै

माँ,
हमआज़ाददेशकीलड़कियाँहैं
हमेंपूरीआज़ादीहै
चाहेतोछोटे-छोटेकपड़ेपहनकर
बाज़ारोंमेंघूमसकतेहैं
बिनाकपड़ोंकेभी
खुलीहवामेंसाँसलेसकतेहैं

माँ,
जानतीहो
आजहमारेदेशमें
हरबरस
अन्तराष्ट्रीयमहिलादिवसमनायाजाताहै
उन्हेंशिक्षितकरनेकासंकल्पलियाजाताहै
पुरुषोंकेकँधे-से-कँधामिलाकर
चलनेकीहिम्मतदीजातीहै
सबकुछहै
इसआज़ाद (?) देशमें
परबेटियोंके
जिस्मकीसुरक्षाकासंकल्पनहीं
जिनबेटियोंकेपासकोई'अरमान’  नहीं
उनकीसुरक्षाकासंकल्पकौनलेगा?
मंदिर-मस्जि़द-गुरुद्वारा
याकोईमहिला-आश्रम...?

माँ,
हमपूरीदुनियाकोबतानाचाहतेहैं
किहमभीझाँसीकीरानीहै
हमभीइंदिरागाँधीहैं
हमभीठोसहैं- इसधरतीकीतरह
परमाँ,
अबदुनियाहमेंबतारहीहै
झाँसीकीरानीकाअंत
इंदिरागाँधीकाहश्र
औरख़त्महोतीओजोनपरतसे
सूखतीधरतीकाभविष्य...

माँ,
जिसघरको
पिताजीनेअरमानकेलिए
बड़े'अरमानसेबनायाथा
अबउसकेचौबारेपर
गुंडोंकाकब्जाहै
सारीरातशराबऔरशबाबकादौरहै
औरहैकाँपतीहुईफिज़़ा
माँ, यादहैतुम्हें?
दसवींबारमेंजबतुमनेछुटकीकोजन्माथा
तबतुम्हारेहोंठबुरीतरहकाँपेथे
औरतुम्हारीआँखोंसेबहाथा
खारेपानीकाझरना
सारीरातउसझरनेकेनीचेबैठकर
तुमनेकिससेकहाथा-
'अगलेजनममोहेबिटियाकीजो

माँ...
वहझरनाआजभीबहरहाहै
औरतुम्हारीबेटियाँभी
सारीरातभीगतीहैंउसमें
परमाँ,
इसजनमकाक्याकरूँ?
सोचतीहूँ
इसपुरानी...जर्जरहवेलीका
चरमरातादरवाज़ाटूटे
उससेपहलेही
हमेंपूरीहिम्मतकेसाथ
बाहरआनाहोगा...

सम्पर्क:एम.आई.जी- 292, कैलाशविहार, आवासविकासयोजनासं-एक, कल्याणपुर, कानपुर- 208017 (.प्र),E-mail- premgupta.mani.knpr@gmail.com

आलेखः ८ मार्च- महिला दिवस

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इप्पापल्ली गाँव की श्यामलम्मा के खेत के अनाज - फोटो अशीष कोठारी
महिलाकिसानोंकाअन्नस्वराज
 -बाबामायाराम
तेलंगाना का संगारेड्डी जिला महिला किसानों की पौष्टिक अनाजों की खेती का तीर्थ बन गया है। इस खेती को जानने समझने के लिए देश-विदेश से लोगों का ताँता लगा रहता है। किसान, पत्रकार, शोधकर्ता और सामाजिक कार्यकर्ता सबका ध्यान इसने खींचा है। इस खेती ने न केवल खाद्य सुरक्षा की,बल्कि जैव विविधता और पर्यावरण का संरक्षण भी किया है। यह सब हुआ है डैक्कनडेवलपमेंटसोसायटी (डीडीएस)  की पहल से, जो इस इलाके में पिछले तीन दशक से ज्यादा समय से कार्यरत है।
हाल ही मुझे यहाँ जाने का मौका मिला। 26-29नवंबर को पस्तापुर ( जहीराबाद) में विकल्प संगम की कोर समूह की बैठक थी। इसमें मैं भी शामिल था। इस दौरान मुझे डैक्कनडेवलपमेंटसोसायटी ( गैर सरकारी संस्था) और दलित महिला किसानों की खेती को नजदीक से देखने का मौका मिला। कई महिला किसानों से बात की। उनके खेतों का भ्रमण किया। देसी पौष्टिक अनाजों के बीज बैंक देखे। महिलाओं के द्वारा संचालित संगम रेडियो स्टेशन देखा, उनके द्वारा बनाई खेती-किसानी पर फिल्में देखीं और उनकी बातें सुनी व विचार जाने। महिलाओं द्वारा संचालित संगम रेडियो देश का पहला सामुदायिक रेडियो है।
इपापल्ली गांव की श्यामलम्मा
आगे बढ़ने से पहले यहाँ यह बताना उचित होगा कि यह इलाका सूखा क्षेत्र है। यहाँ बहुत कम बारिश होती है। 600मिलीमीटर सालाना वर्षा का अनुमान है। जमीन कम उपजाऊ है। पथरीली लाल और लैटराइट मिट्टी है, जो चट्टानों की टूट-फूट से बनती है।
डैक्कन डेवलपमेंट सोसायटी कैसे बनी, और कैसे दलित महिला किसानों के बीच काम शुरू हुआ, इसकी भी कहानी है। 80के दशक में पी.व्हीसतीश (जो वर्तमान में डीडीएस के निदेशक हैं) पत्रकार थे, भारतीय जन संचार संस्थान, दिल्ली (इंडियन इंस्टीट्यूटआफ मास कम्युनिकेशन) से जुड़े थे। इस दौरान उनका कई गाँवों में जाना होता था। कई डाक्यूमेंट्री फिल्में बनाईं।
उन्होंने गाँवों को नजदीक से देखा। उनकी समस्याएँ सुनी और देखीं, उन्हें लगा कि उनकी जरूरत दिल्ली में नहीं, गाँवों में है। और यहीं से उनके जीवन में मोड़ आया। उनके कुछ मित्र भी साथ थे, सबने मिलकर गाँव की राह पकड़ी। लेकिन वे अकेले ही टिके जो अब भी इस इलाके में हैं और महिला किसानों के साथ काम कर रहे हैं।
पी.व्ही. सतीश बताते हैं कि हम गाँव में कुछ करना चाहते थे, लेकिन क्या करें, यह पता नहीं था। जब हम यहाँ आए और लोगों के साथ बात की। उनकी बातें ध्यान से सुनी। और यहाँ बेरोजगारी की हालत देखी। लोगों को काम नहीं मिलता था। रोजाना मजदूरी में 2रुपये मिलते थे। दूसरी तरफ सूखे की खेती थी, उपज नहीं होती थी। इन दोनों स्थितियों को मिलाकर देखने पर हमें लगा कि खेती को बेहतर बनाकर रोजगार की समस्या हल हो सकती है। 
महिलाओं के साथ काम करने का विचार ऐसे आया कि उस समय इंदिरा आवास योजना के मकान बनाए जा रहे थे। महिलाएँ वहाँ काम करने आती थीं। इस दौरान हमने देखा कि उनमें काम करने का बहुत धीरज है और किफायत से पैसा खर्च करने की आदत भी है। उन्हें ही परिवार चलाना होता था। खेती के बारे में उनकी दिलचस्पी और जानकारी दोनों थी। इस तरह महिलाओं के संगम ( समूह ) बनाए और देसी बीजों की खेती का काम चलने लगा। और आजीविका के मुख्य स्रोत खेती को सुधारने का काम शुरू हो गया।
वे आगे बताते हैं कि वाटरशेड के माध्यम से खेतों का पानी खेतों में रोका गया। जमीन को कम्पोस्ट खाद आदि से उपजाऊ बनाया गया। जब जमीन अच्छी हुई तो खेती-बाड़ी अच्छी होने लगी। एक फसल की जगह मिश्रित फसलें होने लगीं। एक ही खेत में 10-10फसलें बोई जाने लगीं। मिट्टी-पानी को बचाने का नजरिया बना और इससे खेतों में जैव-विविधता बढ़ी।
लम्बाड़ी आदिवासी महिलाएँ
वे आगे बताते हैं कि लोगों की भोजन की थाली में पौष्टिक अनाज शामिल होने लगा। चावल, ज्वार, मड़िया, तुअर जैसी कई प्रकार की दालें शामिल होने लगीं। यहाँ ज्वार की ही 10प्रजातियाँ हैं। बीहड़ भोजन ( अन-कल्टीवेटेडफुड) की पहचान भी की गई। इसमें पोषण ज्यादा होता है। करीब 165प्रकार के गैर खेती भोजन की पहचान हुई। एक ही खेत में 40-50प्रकार की प्रजातियाँ मिली। इसके बारे में लोगों को ज्यादा मालूम नहीं था। लेकिन हमने और कृषि वैज्ञानिकों ने गाँववालों के साथ मिलकर इनकी खोज की। इससे एक सोच बनी कि जहाँ  खेती कम होती है, वहाँ बीहड़ भोजन ज्यादा मिलता है। यानी सीधे खेतों व जंगलों से कुदरती तौर पर मिलने वाले कंद, अनाज, हरे पत्ते, फल और फूल इत्यादि।
पी. व्ही. सतीश कहते हैं कि यह सब समुदाय से, किसानों से, महिलाओं से सीखकर हमने समाज को बताया है, यह उनका ज्ञान है, जिसे पहले सीखा और फिर सबको सिखाया। अब हम 75गाँव में काम करते हैं। यह सभी गाँव 30किलोमीटर के क्षेत्र में हैं। जिसमें 15से 20प्रतिशत दलित आबादी है।
हम महिला किसानों से मिलने उनके गाँव गए। 29नवंबर को हमारी (विकल्प संगम की) पूरी टीम इप्पापल्ली गाँव पहुँची, जहाँ हम श्यामलम्मा से मिले, जो उनके डेढ़ एकड़ खेत में खेती करती हैं। उन्होंने पूरे अनाज को फर्श पर सजाया कर हमें देसी बीजों की खास बातें बताईं। रंग बिरंगे बीज न केवल रंग-रूप में बहुत सुंदर लग रहे थे, और लुभा रहे थे बल्कि स्वाद में भी बेजोड़ थे। उन्होंने बताया कि खेत में 28से 30प्रजातियाँ बोती हैं।
इनमें से 9से 15रबी की किस्में थीं, बाकी सभी खरीफ की। उन्होंने बताया कि अगर बारिश ठीक हुई तो उसकी नमी में रबी की फसलें बोती हैं। यहाँ दो प्रकार की मिट्टी है, लाल और काली। काली मिट्टी हो तो रबी की फसलें होती हैं। उन्होंने सभी तरह की फसलें दिखाई जिनमें ज्वार, मड़िया, सांवा, काकुम, बरबटी, तिल,सरसों अलसी, चना, मूँग, मटर आदि थीं। श्यामलम्मा ने बताया कि यह सभी फसलें पूरी तरह जैविक हैं। उनके परिवार की भोजन की जरूरत इससे पूरी हो जाती हैं। अगर जरूरत से ज्यादा हुई तो बेचते भी हैं।
अगला गाँव लच्छीनाथांडा था। इसमें लम्बाड़ी आदिवासी रहते हैं। डेक्कनडेवलपमेंटसोसायटी का काम दलित महिलाओं में बरसों से रहा है। लेकिन दो-तीन साल पहले ही आदिवासियों में पौष्टिक अनाज की खेती का काम शुरू किया है। खेती के साथ स्वास्थ्य और कानूनी मुद्दों पर भी काम हो रहा है। इसके लिए अलग कार्यकर्ता भी हैं। सामुदायिक रेडियो ( संगम रेडियो) और वीडियो फिल्म भी महिलाएं ही बनाती हैं।
संगम रेडियो की मैनेजर जनरल नरसम्मा
डैक्कनडेवलपमेंटसोसायटी की इस दिन नियमित बैठक थी। जिसे संगम पर्व (संगम फेस्टिवल) कहा जाता है। संगम पर्व की प्रक्रिया में हम सब भागीदार थे, जहाँ आदिवासी महिलाओं ने अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने देसी बीजों की जानकारी दी। यह बताया एक साल में क्या क्या किया। बीजों को बोने से लेकर भंडारण तक की प्रक्रिया बताई।
यहाँ की मोतीबाई ने बताया कि पहले हम अनाज खरीदते थे, अब खेत में ही 30अनाज की किस्में लगाते हैं। संगम यानी समूह होता है जिसमें 20से 40या उससे भी ज्यादा महिलाएँ होती हैं। अगर अनाज जरूरत से ज्यादा होता है ,तो बेचते हैं। अब मवेशियों के लिए पर्याप्त चारा है। खेत के लिए केंचुआ खाद और जैवकीटनाशक गाँव में ही तैयार कर लेते हैं। संगम में हर सदस्य प्रत्येक माह 100 रुपयेजमा करते हैं और जरूरत पड़ने पर ऋण ले लेते हैं।
महिलाओं ने बताया कि उनकी खेती में हैदराबाद के लोगों ने मदद की है। असल में इसके लिए एक समूह  है, जिसे कन्यजूमर-फार्मरकाम्पेक्ट कहा जाता है। यानी उपभोक्ता और किसानों का समूह। किसानों की मदद उपभोक्ता करेंगे और समय -समय पर वे किसान की खेती की प्रक्रिया में शामिल होंगे। यानी बुआई और कटाई के समय आएँगे। फसलें देखेंगे और किसान से मिलेंगे। उनमें खेती से जुड़ाव भी होगा और उन्हें जैव उत्पाद सीधे किसान से मिल पाएगा। इसमें कोई बिचौलिए नहीं होंगे। यह नई पहल है।
इसके अलावा, वैकल्पिक जन वितरण प्रणाली यानी सस्ते दामों पर जैविक अनाज लोगों को उपलब्ध कराना। यानी उत्पादन करना, भंडारण करना और वितरण करना, तीनों ही काम स्थानीय स्तर महिलाओं ने सँभाले हैं।
महिलाओं ने बताया कि छोटी-मोटी बीमारियों का इलाज गाँव में ही हो जाता है। इसके लिए स्वास्थ्य कार्यकर्ता हैं। और गाँव के छोटे-मोटे झगड़े गाँव में ही सुलझा लेते हैं। इसके लिए कानूनी मदद कार्यकर्ता देते हैं।
जो देसी बीज लुप्त हो रहे थे उनका बीज बैंक बनाया है। किसानों के पास खुद बीज बैंक है। एक बीज बैंक पस्तापुर में है जिसे मैंने देखा। बेडकन्या गाँव की मोलेगिरीचन्द्रम्मा और उमनापुर गाँव की ब्यागरीलक्षम्मा ने मुझे यह बीज बैंक दिखाया और बीजों की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि यहाँ 70देसी बीजों की किस्में हैं। जिसमें पौष्टिक अनाजों के साथ, तिलहन, दलहन और मसाले शामिल हैं।
इसके अलावा, हर वर्ष जैव विविधता मेला भी होता है। यह 1998से चल रहा है। यह मेला हर साल की शुरूआत में होता है। इसमें गाँव-गाँव में महिला किसान का जत्था जाता है। एक साथ मिलकर और हर गाँव में उनके खेत की जैव विविधता को दिखाते हैं। इसमें टिकाऊ खेती, स्वावलंबी खेती, देसी बीजों के गुणधर्म, जैविक उत्पादों का बाजार, मिट्टी और किसान के रिश्ते पर चर्चा होती है। यह एक माह तक चलता है जिसमें महिलाएं देसी बीजों को सजाकर उनका प्रदर्शन करती हैं। इस प्रकार, खेती को एक पूरी संस्कृति बना दिया जो पूर्व में हमारी संस्कृति थी ही। लोगों में खेती को लेकर उत्साह जगाया और उसे फिर से लोगों की मुख्य आजीविका बना दिया।
माचनूर गाँव में बीज बैंक
कुल मिलाकर, डैक्कनडेवलपमेंटसोसायटी और महिला किसानों की पौष्टिक अनाजों के खेती के बारे में चार-पाँच बातें कही जा सकती है, उससे कुछ सीखा जा सकता है। एक, जहाँ कम वर्षा हो, अनियमित वर्षा हो या सूखा हो, सभी परिस्थितियों में हो यह खेती हो जाती है। यानी इन अनाजों में मौसमी उतार-चढ़ाव तथा पारिस्थितिकी हालात का मुकाबला करने की क्षमता होती है। कम उपजाऊ मिट्टी में भी ये आसानी से हो जाते हैं। इनमें किसी प्रकार के रासायनिक खाद की जरूरत नहीं होती और न ही किसी प्रकार का कीट-प्रकोप होता है। यानी यह अनाज कीट-मुक्त होते हैं। पौष्टिक अनाज की फसलें पूरी तरह मौसम बदलाव के लिए उपयुक्त हैं।
दो,यह ऐसे अनाज हैं जो लुप्त होते जा रहे हैं। हरित  क्रांति के बाद गेहूँ और चावल का उत्पादन तो बढ़ा है लेकिन अन्य अनाजों में हम पीछे हो गए हैं, जिनमें कई फसलों के तो अब देसी बीज मिलना मुश्किल हो रहा है। देसी बीजों की खेती की ओर वापस लौटे। देसी परंपरागत ज्ञान से उन्होंने सीखा। उनकी समस्याओं का हल उन्हें पारंपरिक ज्ञान में मिला और आधुनिक ज्ञान ने उनकी राह को आसान बनाया।
तीन,कुपोषण भी कम हुआ। ये सभी अनाज पोषण से भरपूर है। इनमें कई तरह के पोषक तत्त्व होते हैं। जैसे रेशा, लौह तत्व, प्रोटीन, कैल्शियम खनिज जैसे पोषक तत्व काफी मात्रा में पाए जाते हैं। ये अनाज न केवल मनुष्य के भोजन की जरूरत पूरी करते हैं बल्कि पशुओं के लिए चारा भी प्रदान करते हैं। खाद्यान्न के साथ भरपूर पोषण भी देते हैं। स्वास्थ्य के लिए उपयोगी हैं। जैव विविधता और पर्यावरण की रक्षा करते हैं।
चार, फली वाले अनाजों से जैव खाद बनती हैं, जो मिट्टी को उर्वर बनाती है। यानी ये अनाज न केवल मिट्टी की उर्वरता का इस्तेमाल करते हैं बल्कि मिट्टी में उर्वरता वापस भी देते हैं। महिला सशक्तीकरण तो हुआ ही, उनमें गजब का आत्मविश्वास देखने में आता है। आज वे वीडियोग्राफी से लेकर फोटोग्राफी कर रही हैं। फिल्में बना रही हैं। रेडियो कार्यक्रम बना रही हैं।

एक और बात जो कही जा सकती है कि विकल्प धीरे-धीरे बनता है। एक जगह टिककर काम करने के नतीजे देर से निकलते हैं, लेकिन वे टिकाऊ और मार्गदर्शक होते हैं। खेत में अनाज का उत्पादन, भंडारण और वितरण का काम महिलाओं ने किया है, जो पूरी तरह स्वावलंबी है। यह अन्न स्वराज है। (विकल्प संगम से साभार)

२० मार्च गौरैया दिवसः

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फुदकने लगी मेरे घर-आँगन मेंगौरैया
-डॉ. रत्नावर्मा
मुझे अपना बचपन याद है जब हम गर्मियों की छुट्टियों में अपने गाँव जाया करते थे।  पक्षी तब हमारे जीवन का हिस्सा हुआ करते थे। खासकर गौरैया, कबूतर, कौआँ और तोता। दादा जी ने घर की कोठी के एक तरफ ऊपरी मंजिल पर 10-12 मटके बँधवा दिए थे जहाँ ढेर सारे कबूतरों ने अपना स्थायी बसेरा बना लिया था। इनके गूटरगूँ से पूरा घर गुजायमान रहता था। हम उनके इतने आदी थे कि जब उन्हें सैर के बाद शाम को घर लौटने में देर हो जाती थी तो हम चिंतित हो जाते थे। 
सुबह आँगन में जब भी अनाज सुखाने या साफ करने के लिए डाले जाते सारे कबूतर मटकों से ऐसे उतर कर नीचे ऐसे चले आते थे मानों वे अनाज उनके लिए ही डाले गए हों। हम बच्चे उनके पीछे भागते वे उड़कर फिर अपने मटके के ऊपर जा बैठते। यह हमारा कुछ देर का खेल ही बन जाता था। इसके साथ- साथ कौओं के झुंड के झुंड भी न जाने कहाँ से उड़ कर आते और काँव- काँव से सारा घर आँगन भर जाते। जिसे सुनकर माँ कहती न जाने आज कौन मेहमान आने वाला है। ...और गौरैयों का तो कहना ही क्या। वे तो इतनी अधिक संख्या में आँगन और घर की मुंडेरों पर आ बैठते कि गिनती करना मुश्किल होता।
हमारेआँगन में तुलसी चौरा के पास एक बहुत ऊँचा हरसिंगार का पेड़ था, यह पेड़ उनकी चहचहाहट से सुबह शाम गूँजता ही रहता। आँगन में सुखाने के लिए फैलाए चावल को देखते ही गौरैया से पूरा आँगन भर जाता और जब सफाई के लिए बरामदे में चावल दाल के बोरे रखे जाते तो वे बरामदे तक उतर आया करती थीं, उन्हें पता था यहाँ हमें कोई नुकसान नहीं पहुँचाएगा।
 और इस तरह हम बच्चे पूरी छुट्टियों में माँ से  पका हुआ चावल या रोटी का टुकड़ा माँगकर लाते और कबूतरों, गौरैयों को अपने पास बुलाने का जतन करते। जब वे रोटी या चावल खाने नीचे उतरते तो हम खुश होकर तालियाँ बजाते ...तो इस तरह गुजरा है अपने घर के आँगन में इन पक्षियों के संग मेरा बचपन।
यह खुशी की बात है कि मेरे शहर वाले घर के आस- पास भी कुछ बड़े पेड़ अब भी बचे हैं जिनमें कोयल की कूहू- कूहू और बुलबुल के गीत सुनाई पड़ते हैं। और बड़ी संख्या में गौरैया फुदकती हुई घर की छत तक आकर पानी और दाना खातीं। शाम होते ही दूसरे कई तरह के छोटे- बड़े पक्षी भी अपने बसेरे की ओर लौटते हुए नजर आते हैं।
यही नहीं घर के सामने सड़क के किनारे एक पेड़, जिसे पेड़ लगाओ अभियान के तहत कुछ वर्ष पहले नगर निगम ने लगवाया था ,वह अब इतना बड़ा हो गया है कि वहाँ पक्षी अपना बसेरा बनाने लगे हैं।  बुलबुल के जोड़े ने इस छोटे से पेड़ पर अपना घोंसला बनाया और अंडे दिए। जब तक अंडे से बच्चा नहीं निकला और उड़ऩे लायक नहीं हुआ रोज उसकी माँ उसे दाना खिलाने आती रही। बुलबुल के इस बच्चे को बड़ा होते मैंने देखा है।
पक्षियों को आकाश में उड़ते देखकर खुश होना और उसके विलुप्त होते जाने पर दु:ख व्यक्त करना बहुत आसान होता है;पर जब उन्हें बचाने की दिशा में आपके हाथ भी आगे आते हैं तो उस आनंद को शब्दों में बयान करना मुश्किल हो जाता है। ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ। पिछले कुछ वर्षों से 20 मार्च गौरैया दिवस के अवसर गौरैया को बचाए जाने के प्रयास में  मैंने भी अपने घर की छत पर मिट्टी के बर्तनों में पानी, धान और चावल के दाने रखना शुरु कर दिया।  शुरू में तो एक- दो गौरैया ही नजर आती थी पर आपको बताते हुए खुशी हो रही है कि साल के बीतते- बीतते छत पर गौरेया के चार जोड़े नियमित रुप से दाना चुगने और पानी पीने आते हैं तथा ऊपर की छत पर तो ढेरोंगौरेया चहचहाने लगीं हैं। अब सुबह शाम उनकी चहचआहट से पूरा घर गूंजायमान रहता है। यही नहीं छत पर शाम होते ही जब कभी पहुँचों तो आसमान में और भी कई प्रकार पक्षी उड़ते हुए नजर आते हैं। उन्हें उड़ते हुए देखने का अहसास बहुत ही सुखद होता है। जाहिर है वे अपने बसेरे की ओर लौटते हैं। इनमें से बहुत से प्रवासी पक्षी होते हैं।
 मैं चूँकि किसान परिवार से ताल्लुक रखती हूँ;अत: दीवाली के समय जब फसल कटकर आती हैतो गाँव में किसान धान की पकी हुई नई बालियों से बहुत खूबसूरत झालर बनाते हैं। मैं भी पिछले वर्ष से ऐसे झालर बनवाकर लाती हूँ और इन्हें छत पर ऐसी जगह लटका देती हूँ जहाँ आ कर गौरेया इनके दाने चुग सके। गौरैया इन झालरों के धान कुछ ही दिनों में सफाचट कर जाते हैं। पर झालरों में लटक कर धान खाते गौरैया को देखने में बहुत आनंद आता है।  
 पिछले कुछ वर्षों से  शहरों की विभिन्न संस्थाएँ और मीडिया गौरैया बचाओ अभियान के तहत जागरूकता अभियान जोर -शोर से चला रही हैं।  रायपुर की एक सामाजिक संस्था बढ़ते कदम, तो साल भर चिड़िया के दाने और पानी के लिए सकोरे मुफ्त में वितरित करती है।
यह सही है कि किसी संस्था या मीडिया द्वारा अभियान चलाने से लोगों में जागरूकता आती तो है पर अक्सर यह देखा गया है कि कुछ दिनों तक तो लोग उस बात को याद रखते हैं;लेकिन जैसे ही अभियान की गति मंद पड़ती है या बंद कर दी जाती है ,तो लोग उस बात को भूलने लगते हैं।
मुझे याद है पिछले कुछ वर्ष पूर्व गौरैया को बचाने के लिए कुछ संस्थाओं और समाचार पत्रों ने जागरूकता का बिगुल फूँका था और उसका असर भी दिखाई देने लगा था। तब समाचार पत्रों में लोगों द्वारा गौरैया के लिए अपने घरों के आस- पास घोंसले बनाकर रखने तथा पानी और दाना रखे जाने के समाचार बड़ी संख्या में प्रकाशित हो रहे थे। कितना अच्छा होता समाचार पत्र ऐसे अभियानों के लिए अपने अखबार का एक कोना प्रतिदिन सुरक्षित रख देते ताकि पशु- पक्षियों के संरक्षण के लिए जागरूकता का यह अभियान प्रतिदिन चलता रहता... और हमारे घर- आँगन में गौरैया सालों- साल यूँ ही फुदकती रहती।
देर अभी भी नहीं हुई है,  आप अपने घर के आस पास हरियाली रखिए, पेड़- पौधे लगाइए फिर आप खुद देतख लीजिएगा सैकडों गौरैया आपके आँगन में फुदकती नज़र आएँगी। 


शहीदों की याद में

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 सतयुगी सावित्रीकापुनर्जन्म
-विजयजोशी
होतेहैंबलिदानकईतबदेशखड़ाहोताहै
अपनेप्राणोंसेभीबढ़करदेशबड़ाहोताहै.
किसीभीदेशकीउन्नतिकाएकमात्रआधारहोताहैउसकेनागरिकोंकेचरित्रमेंईमानदारीऔरदेशभक्ति. दूसरेविश्वयुद्धमेंपूरीतरहतबाहजापानकाविनाशकेबादबादपुन: निर्माण  काउदाहरणहमारेसामनेहै. औरसचकहेंतोइसीकेसाथएकऔरतत्वकासमावेशशामिलहैऔरवहहैअपनेमिशनकेप्रतिप्रतिबद्धताजिसकेतहतउसकालखंडमेंसावित्रीअपनेपतिकोयमराजकेचंगुलसेमुक्तकराकरहीवापिसलौटीथी. उत्कटदेशभक्तिकाएकअनुपमउदाहरणप्रस्तुतकियाहै 21वींपेरास्पेशलफोर्सकेकर्नलसंतोषमहाडिकनेकुपवाड़ाक्षेत्रमेंआतंकवादियोंसेलोहालेतेहुएअपनेप्राणोंकोदेशकीबलिवेदीपरचढ़ाकर. आगेकीबाततोऔरभीअदभुतहै. इसीघटनाकेपरिप्रेक्ष्यमेंउदयहुईइसदौरकीसावित्रीयानीकर्नलमहाडिककीकीपत्नीसुधामहाडिककेरूपमेंजिसनेपतिकीमृत्युकेउपरांतउनकीचिताकेसम्मुखहीपतिकीविरासतकोआगेजारीरखनेहेतुस्वयंकेसेनामेंभर्तीहोनेकाप्रणजाहिरकरके. सेनाकीवर्दीऔरउनकीइच्छाकेमध्यएकमात्रअवरोधथीउनकीआयु.
रक्षामंत्रीमनोहरपर्रिकरनेथलसेनाअध्यक्षजनरलदलबीरसिंहकीसिफारिशऔरसहमतिपरउन्हेंआयुमेंछूटकीअनुमतिप्रदानकी. अगलीसीढ़ीथीभर्तीहेतुआवश्यकएस. एस. बी. टेस्टकोउत्तीर्णकरपानेकी. इसकेलियेउन्हेंअपनेपुत्रएवंपुत्रीकोबोर्डिंगस्कूलमेंभर्तीकरनापड़ाताकिवेइसप्राथमिकटेस्टहेतुतैयारीकरसकें. आगेकीयात्राऔरअधिककठिनथीजबसुधाकोचेन्नईस्थितआफिसर्सट्रेनिंगएकेडमीमेंअपनेसेकमसेकम 10 वर्षछोटेयुवाप्रतिभागियोंकेसमकक्षखराउतरनाथा. अबआपखुदअंदाजालगासकतेहैंकिअपनेदुखऔरअपूरणीयक्षतिकोपरेरखकरहृदयकोसंतुलितरखपानाकितनाकठिनरहाहोगा. यदिआजकर्नकमहाडिकभीजीवितहोतेतोअपनीसहधर्मिणीकीसंकल्पशक्तिदृढ़आत्मविश्वास,कठिनपरिश्रमलगनकोदेखकरअभिभूतहोगएहोते.
बातकासारसिर्फइतनासाहैकिसुधानेभारतीयनारीशक्तिकेसाहससामर्थ्यकोदेशकेप्रतिसमर्पणकेचिरस्थायीप्रतीककेरूपमेंदेशकेजनमानसकेहृदयपटलपरहमेशाकेलियेएकअमिटरेखाखींचदी. उसदौरकीसावित्रीकोहममेंसेकिसीनेनहींदेखालेकिनइसयुगकीसावित्रीयानीसुधामहाडिकउससेकिसीभीमायनेमेंकमतरनहींहै. इसीलियेतोहमारेदेशमेंनारीकेशक्तिरूपकीदुर्गास्वरूपउपासनाकीगईहै : यादेवीसर्वभूतेषुशक्तिरूपेणसंस्थितानमस्तस्यैनमस्तस्यैनमस्तस्यैनमोनम:.
-    जगकेमरुथलमेंजीवनकी
-    नारीज्वलंतपरिभाषाहै
-    ममताकीत्यागतपस्याकी
-    यहश्रद्धाकीपरिभाषाहै
10वींकीकिताबमें'सम्मानएकमहिलाफौजीका'


शहीदकर्नलसंतोषमहादिककीपत्नीस्वातिमहादिककेजीवनकेसंघर्षकीकहानीकोमराठीपाठ्यपुस्तकोंकाहिस्साबनायाजारहाहै. जहांउनकीसाहसऔरप्रेरणादायककहानीको 10वींकक्षाकीमराठीकिताबमेंएसएससीबोर्ड (सेकेंडरीस्कूलसर्टिफिकेट) केद्वारापढ़ायाजाएगा.
पतिकीमौतकेबाददेशकेप्रतिअधूरीजिम्मेदारीकोपूराकरनेकेलिएस्वातिनेसेनाकादामनथामलियाथा. जिसकेबादराज्यशिक्षाविभागनेउनकेजीवनकेसंघर्षकीकहानीकोमराठीपाठ्यपुस्तकोंकाहिस्साबनानेकाफैसलाकिया.
10वींकीकिताबमें'सम्मानएकमहिलाफौजीका'केनामसेयेचैप्टरहोगा. जिसमेंस्वातिकीकहानीपढ़ाईजाएगी. बतादें, स्वातिनेपिछलेवर्ष'ऑफिसर्सट्रेनिंगअकादमी', चेन्नईसेट्रेनिंगहासिलकीहै.
सेनाजॉइनकरतेहुएस्वातिनेबतायाकिमेरेपतिकापहलाप्यारउनकीवर्दीथी, इसलिएमुझेएकदिनतोइसेपहननाहीथा. लेफ्टिनेंटस्वातिनेअपनेपतिकीशहादतकेबादसेनामेंशामिलहोनेकीइच्छाजताईथी. बतादें, स्वातिनेशिवाजीविद्यापीठसेबीएससीऔरएमएसडब्लूकीपढ़ाईकी. फिरपुणेकेमहानगरपालिकामेंझोपडपट्टीपुर्नवासमेंकुछसमयनौकरीकरनेबादउनकाविवाहमहाराष्ट्रकेसाताराजिलेमेंरहनेवालेकर्नलसंतोषमहादिककेसाथहुआथा.
बतादें, ऑफिसरकर्नलसंतोषमहादिकसाल 2015 कोदेशकीसेवाकरतेसमयजम्मूकश्मीरकेकुपवाड़ाजिलेमेंनियंत्रणरेखाकेपासआतंकियोंसेलड़तेहुएशहीदहोगएथे. जिसकेबादउनकीपत्नीस्वातिनेसेनासेजुडऩेकानिश्चयकियाथा.
स्वातिऔरसंतोषकेदोबच्चेहैं. एकलड़काऔरएकलड़कीउनकेलिएदोनोंबच्चोंकीपरवरिशएकबड़ीजिम्मेदारीथी. वहींउन्होंनेसिर्फबच्चोंकोसंभालाबल्किअपनेपतिकेअधूरेसपनेकोभीपूराकिया.
शौर्यसेसम्मान
       जीवनमेंसाहसपूर्वकसम्पन्नकार्यशौर्यकेप्रतीकबनतेहुएव्यक्तिकोसम्मानकासिंहासनप्रदानकरताहै।परइसकेलिएआवश्यकहैसंकटकेसमयआत्मविश्वासकोसहजतेहुएनिर्णयलेनाऔरफिरउसपरबिनाडिगेटिकेरहना।
       विश्वयुद्धद्वितीयऐसीअनेकशौर्यगाथाओंसेभराहुआहैलेफ्टिनेंटकमांडरबुचहेयरएकसाहसीपायलटथे।जिनकीतैनातीदक्षिणप्रशांतमहासागरमेंउपस्थितएयरक्राफ्टकैरियरजहाजलेक्सिंगरपरथी।एकदिनपूरीवायुटुकड़ीकोमिशनपरभेजागयाहेयरनेउड़ानकेतुरंतबादपायाकिउनकेप्लेनमेंपेट्रोलकमथा।जहाजकर्मीटेंकभरनाभूलगयाथा।
अतःमिशनलीडरनेउन्हेंलौटनेकाआदेशदिया।जबवेलौटनेलगेतोअचंभितहोकरदेखाकिजापानवायुसेनाकीएकटुकड़ीजहाजकीओरतेजीसेबढ़रहीथी।अमेरिकीजहाजदूरमिशनपरथेतथाजहाजअसुरक्षित. हेयरकेपासवापिसलौटकरअपनीस्क्वेड्रनकोलापानेकातोसमयथाऔरहीईंधन. जहाजबचानाभीआवश्यकथा।केवलएकउपायथाकिकिसीतरहजापानीवायुदलकोलौटनेपरविवशकियाजाए।
      हेयरनेएकपलमेंनिर्णयलेलियातथाजापानीवायुटुकड़ीकीदिशामेंअपनीदिशाकरदी।  उनकाएकमात्रलक्ष्यजापानीप्लेनोंकोअधिकतमसंख्यामेंनुकसानपहुंचानाथा।एकएककरकेउन्होने 5 प्लेनोंकोक्षतिग्रस्तकरदियाहताशहोकरजापानीवायुदलकोलौटनापड़ा।
     हेयरअपनेक्षतिग्रस्तप्लेनकेसाथजहाजपरलौटआए।प्लेनमेंलगीगनकैमराकीफिल्मनेउनकेइसदुस्साहसपूर्णसाहसकीकथाकोप्रमाणितकरदिया।
      यहघटना 20 फरवरी 1942 कोहुई।हेयरकोप्रथमनेवलहवाबाजमेडलसेसम्मानितकियागया।एकवर्षबादवेहवाईमुकाबलेकेआपरेशनमेंमारेगए।नगरनिवासियोंनेउनकीयादकोअमररखनेहेतुशिकागोएयरपोर्टकोहेयरऐयरपोर्टनामप्रदानकियाजोउनकीशौर्यकाज्वलंतप्रमाणहै।अगरआपकभीजाएंतोयहमेडलतथाउनकास्टेच्यूभीआपआजवहांपाऐंगेयहटर्मिनल 1 तथा 2 केमध्यस्थापितहै।
     मित्रोंमनुष्यकेजीवनमेंजन्मकेबादकेवलएकबातसुनिश्चितहैऔरवहहैमृत्यु. एकदिनहमसबकोचलेजानाहै।परइतिहासमेंवेहीअपनानामकरपाएजोसमाजदेशहितमेंस्वयंकोसमर्पितकरपाए।यहांसंदर्भप्राणोंकेउत्सर्गकानहींअपितुदेशकेलिएकुछकरपाने  केमिशनकाहै।देशहैतोहमहैंदेशनहींतोफिरहमभीकहांहोंगे।यादरखियेहमदेशसेहैं।देशहमसेनहीं।
जीवनरणमेंवीरपधारो
मार्गतुम्हारामंगलमयहो
गिरीपरचढ़नाचढ़करबढ़ना,
तुमसेसबविघ्नोंकोभयहो
सम्पर्क: 8/ सेक्टर-2, शांतिनिकेतन (चेतकसेतुकेपास), भोपाल- 462023, मो. 09826042641, E-mail-v.joshi415@gmail.com

जब्त शुदा गीत

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रचनाकाल- सन 1930
कहता यहीरहूँगा।

जन्मभूमिजननी, सेवातेरीकरूँगा,
तेरेलिएजिऊँगा, तेरेलिएमरूँगा।

हरजगह, हरसमयमें, तेराहीध्यानहोगा,
निजदेश-भेष-भाषाकाभक्तमैंरहूँगा।

संसारकीविपत्तिहँस-हँसकेसबसहूँगा,
तन-मनसभीसमर्पित, तेरेलिए, जननी!

परदेश-द्रोहीबनकरयहपेटनहींभरूँगा,
धन-मालऔरसर्वस्व, यहप्राणवारदूँगा।

होगीहराममुझको, दुनियाकीऐशो-इशरत,
जबतकस्वतंत्रतुझको, मातामैंकरलूँगा।

कह-कहकेमाता! तेरेदुख-दर्दकीकहानी,
भारतकीलता-पेड़ोंतककोजगामैंदूँगा।

हमहिन्दकेहैंबच्चे, हिन्दोस्तांहमारा,

मैंमात! मरतेदमतककहतायहीरहूँगा।

दहशत का रास्ता....

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 अलगाववादियोंपरशिकंजा
-प्रमोदभार्गव
     यह  भारतजैसेउदारसहिष्णुदेशोंमेंहीसंभवहैकिआपअलगावऔरदेशद्रोहकाखुलेआमरागअलापिए, मासूमयुवाओंकोभड़काइए, राज्यराष्ट्रकीसंपत्तिकोनुकसानपहुँचाइए, बावजूदआपकाबालभीबाँकाहोनेवालानहींहै? पाकिस्तानकेपक्षमेंऔरभारतकेविरोधमेंनारेलगानेवालेऐसेलोगोंकोहमदेशद्रोहीनहींमानते, अलबत्ताउनकीसुरक्षाऔरएेशो-आरामपरकरोड़ोंरुपएखर्चकररहेहैं।यहएकऐसीहैरानीमेंडालनेवालीवजहहै, जोअलगाववादियोंकाकेवलभारतमेंपोषणकररहीहै, बल्किवेभारतीयपासपोर्टकेजरिएदूसरेदेशोंकीसरजमींपरइतरातेहुएभारतकेखिलाफमानवाधिकारोंकेहननकीवकालतकरतेहुएविद्रोहकीआगभीउगलतेहैं।सुरक्षाऔरसरकारीधनकीयहइफरातहीअलगाववादियोंकोदुनियामेंइतरातेफिरनेकामौकादेरहीहै।अबबड़ीचोटसहकरभारतपाकपरस्तपाँचअलगाववादियोंकीसरकारीसुरक्षाहटानेकोमजबूरहुईहै।जबकिइनसुविधाओंकोबंदकरनेकीमाँगअर्सेसेउठरहीथी।2016मेंभाजपाविधायकनेजम्मू-कश्मीरविधानसभामेंभीपृथकतावादियोंपरअरबोंरुपएखर्चकरनेकामुद्दाउठायाथा।
        
    पुलवामाकेभीषणहमलेऔर40जबाँजोंकेप्राणखोनेकेबादजम्मू-कश्मीरप्रशासननेपाँचअलगाववादियोंकोमिलीसुरक्षावापसलेलीहैं।अबतकयहसुरक्षाकेंद्रकेपरामर्शसेराज्यसरकारअस्थायी तौरपरमुहैयाकरारहीथी।इननेताओंमेंऑलपार्टीजहुर्रियतक्रांफ्रेसकेअध्यक्षमीरवाइजउमरफारूक, जम्मू-कश्मीरडेमोक्रेटिकपार्टीकेसंस्थापकअध्यक्षब्बीरशा, जम्मू-कश्मीरलिबरेशनफ्रांटहासिमकुर्रेशी, पीपुल्सइंडिपेंडेंटमूवमेंटकेअध्यक्षबिलाललोन, औरमुस्लिमक्रांफ्रेसकेअध्यक्षअब्दुलगनीबटशामिलहैं।उमरफारूकपर29जनवरीकोपाककेविदेशमंत्रीशामहमूदकुरैशीसेवार्ताकीथी।जिसपरविवादहुआथा।ब्बीरशाकश्मीरमेंआत्मनिर्णयकेअधिकारकीबातकरतेहैं।जबकिकश्मीरसेचारलाखसेभीज्यादापंडित, सिख, बौद्ध, जैनऔरअन्यअल्पसंख्यकोंकोतीससालपहलेविस्थापितकरदियागयाहै।यदिशामेंथोड़ीभीराष्ट्रभक्तिहोतीतोवेयहांबहुलतावादीचरित्रकीबहालीकेलिएइनविस्थापितोंकेपुनर्वासकीबातकरते? हाशिमकुरैशी1971मेंइंडियनएयरलाइंसकेविमानअपहर्ताओंमेंशामिलथा।बिलाललोनपीपुल्सक्रांफ्रेंसकेएकअलगाववादीधड़ेकानेताहै।फारसीकाप्राध्यापकरहाअब्दुलगनीबटहुर्रियतकाहिस्साहै।इसनेकश्मीरीपंडितोंकेघरजलानेऔरउन्हेंघाटीसेबाहरखदेड़नेमेंअहम भूमिकानिभाईथी।इसकारणइसे1986मेंसरकारीनौकरीसेबर्खास्तकरदियागयाथा।इनलोगोंपरपाकिस्तानसेपैसालेनेआईएसआईकेलिएजासूसीकरनेकाभीआरोपहै।इसकाखुलासाहिंदीकेएकराष्ट्रीयसमाचारचैनलनेकियाथा।जबकिअबगृहमंत्रालयकहरहाहैकिइनअलगाववादियोंकेपाकखुफियाएजेंसीआईएसआईसेसंपर्करखनेऔरविदेशीआर्थिकमददलेनेकीजानकारीउसेपहलेसेहै।बाबजूदइनदेशद्रोहियोंपरनरेंद्रमोदीसरकारकड़ीकानूनीकार्रवाहीकरनेसेबचतीरही।

विडंबनादेखिएजोदेश-विरोधीगतिविधियोंमेंढाईदशकसेलिप्तहैं, उन्हेंराज्यएवंकेंद्रसरकारकीतरफसेसुरक्षा-कवचमिलाहुआहै।यहीनहीं, इन्हेंसुरक्षितस्थलोंपरठहराने, देश-विदेशकीयात्राएँकरानेऔरस्वास्थ्यसुविधाएँउपलब्धकरानेपरपिछले5सालमेंही560करोड़रुपएखर्चकिएहैं।मसलनसालानाकरीब112करोड़रुपएइनअलगाववादियोंकापृथक्तावादीचरित्रबनाएरखनेपरखर्चहुएहैं।इनकीसुरक्षामेंनिजीअंगरक्षकोंकेरूपमेंलगभग500औरइनकेआवासोंपरसुरक्षाहेतु1000जवानतैनातहैं।पूरेजम्मू-कश्मीरराज्यके22जिलोंमें670अलगाववादियोंकोविशेषसुरक्षादीगईहै।जबकियेपाकिस्तानकापृथक्तावादीअजेंडाआगेबढ़ारहेहैं।इनकेस्वरबद्जुबानतोहैंही, पाकिस्तानपरस्तभीहैं।कश्मीरकेसबसेउम्रदराजअलगाववादीनेतासैयदअलीगिलानीकहतेहैं, ‘यहाँकेवलइस्लामचलेगा।इस्लामकीवजहसेहमपाकिस्तानकेहैंऔरपाकहमाराहै।अलगाववादीमहिलानेत्रीअसियाअंद्राबीपाककाकश्मीरमेंदखलकानूनीहकमानतीहैं।कमोबेशयहीस्वरयासीनमलिकऔरमीरवाइजउमरफारुककाहै।यहविडंबनानहींतोऔरक्याहैकिहमइनकीबद्जुबानीभीसहरहेहैंऔरइन्हेंसुरक्षाव्यक्तिगतखर्चकेलिएधनभीमुहैयाकरारहेहैं।विश्वमेंशायदहीकिसीअन्यदेशमेंऐसीविरोधाभासीतस्वीरदेखनेकोमिले? बावजूदभारतसरकारऐसेबर्ताबकोदेशद्रोहीनहींमानतीहै, तोतयहै, इनअलगाववादियोंकासरंक्षणकालांतरमेंदेशकेलिएआत्मघातीहीसाबितहोगा?
            कश्मीरीअलगाववादियोंकोदेश-विदेशमेंहवाई-यात्राकेलिएटिकटसुविधा, पाँचसिताराहोटलोंमेंठहरनेवाहनकीसुविधाएँमुहैयाकराईजारहीहैं।स्वास्थ्यखराबहोनेपरदिल्लीकेएम्ससेलेकरअपोलोएस्कॉर्टऔरवेदांताजैसेमहंगेअस्पतालोंमेंइनकाउपचारकरायाजाताहै।इनसबखर्चोंकोराज्यऔरकेंद्रसरकारमिलकरउठातीहैं।जम्मू-कश्मीरविधानसभापरिषद्मेंभाजपासदस्यअजातत्रुनेइसपरिप्रेक्ष्य1916मेंआश्चर्यजनकखुलासाकियाथा।उन्होंनेबतायाथाकिपृथक्तावादियोंकोविधायकों, मंत्रियोंऔरविधानपरिषद्केसदस्योंसेकहींज्यादासुरक्षामिलीहुईहै? बादमेंअजातत्रुनेजोआंकड़ेप्रस्तुतकिए, उससेसदनअवाकरहगयाथा।राज्यमेंकुल73,363पुलिसकर्मीहैं, इनमेंसेसमूचेराज्यके670अलगाववादियोंकीसुरक्षामें18000कर्मीतैनातहैं।राज्यकेसर्वशिक्षाअभियानकाकुलवार्षिकखर्च486करोड़है, जबकिइससुरक्षापर560करोड़रुपएखर्चहोरहेहैं।अलगाववादियोंकोठहरनेकेलिएमहँगेहोटलोंमें500कमरेभीआरक्षितहैं।देशकेखिलाफबगावतकास्वरउगलनेवालोंकोइतनीसुख-सुविधाएँसरकारदेरहीहै, तोभलावेअलगावसेअलगहोनेकीबातसोचेंहीक्यों? देशकीमुख्यधारामेंक्योंआएँ? राज्यसरकारइससुरक्षाकोउपलब्धकरानेकाकारणअलगाववादीनेताओंऔरआतंकीसंगठनोंमेंकईमुद्दोंपरमतभेदबतातीरहीहै।इसतकरीरसेहीसाफहैकिअलगाववादीराष्ट्रयाराज्यकेनहीं, बल्किआतंकवादियोंकेकहींज्यादानिकटहैं।लिहाजाइनकेअलगावकेस्वरकोपनाहदेनाकतईराष्ट्रहितमेंनहींहै।
            येअलगाववादीकितनेचतुरहैंऔरअपनेपरिवारकेसदस्योंकेसुरक्षितभविष्यकेलिएकितनेचिंतितहैं, यहइनकीकश्मीरियोंकेप्रतिअपनाईजारहीदोगलीनीतिसेपताचलताहै।इनकायहआचरणतुमसाँपकेबिलमेंहाथडालो, मैंमंत्रपढ़ताहूँ जैसेमुहाबरेकोचरितार्थकरताहै।2010मेंपुलिससेनापरबच्चों, किशोरोंऔरयुवाओंसेपत्थरफेंकनेकातारीकामसरतआलमनामकेअलगाववादीनेइजादकियाथा।किंतुइसभारतविरोधीगतिविधिमेंमसरतकीकभीकोईसंतानशामिलनहींरही।इनकेसभीबच्चेघाटीसेबाहरदिल्लीकेमहँगेशिक्षासंस्थानोंमेंपढ़करभविष्यसंवारकरदेश-विदेशमेंनौकरीकररहेहैं।खुदखाएँगुलगुलेऔरगुड़सेकरेंपरहेजवालीकहावतसैयदअलीगिलानीपरभीलागूहोतीहै।आतंकीबुरहानबानीकीकब्रपरजमालोगोंकोअपनेऑडियोसंदेशकेजरिएजिहादऔरइस्लामकापाठपढ़ानेवालेइसचरमपंथीकेतीनबेटेऔरतीनबेटियोंमेंसेएकभीअलगाववादीजमातकाहिस्सानहींहै।येघाटीसेबाहरदिल्लीऔरअमेरिकामेंपढ़-लिखकरवैभवशालीजीवनजीरहेहैं।यहीनहींइनकीमौज-मस्तीऔरकश्मीरमेंअलगाववादीगतिविधियाँचलानेकेलिएइन्हेंविदेशोंसेभीअकूतधनमिलरहाहै।

            इनसबहकीकतोंकेबावजूदपुलवामामेंहुएसेनापरहमलेकेबादजोसर्वदलीयबैठकसंपत्रहुई, उसमेंनेताओंनेआतंकवादकोनेस्तनाबूदकरनेकीबहुमतसेप्रतिबद्धतातोजताई।सीमापारसेनिर्यातकिएजारहेआतंककीकड़ीनिंदाभीकी, लेकिन  पाकिस्तानकानामलेनेसेबचतेदिखाईदिए।जबकिइननेताओंकोपाकिस्तानकानामलेनेकेसाथधारा-370केखत्मकरनेकीबातभीपुरजोरीसेकरनीथी? इसधाराकेचलतेहीकश्मीरीजनतामेंअलगाववादपला-पोषाहै? इसकीछायामेंअवामयहमाननेलगाहैकियहीवहधाराहै, जिसकेचलतेकश्मीरियोंकोविशिष्टअधिकारमिलेहैं।नतीजतनवेभारतसेअलगहैं।गोयावहकश्मीरियतकीबाततोकरतेहैं, लेकिनउसेभारतीयतासेभिन्नमानतेहैं।इसमानसिकताकोउकसानेकाकामअलगाववादीबीते30सालसेकररहेहैं।लिहाजाअलगाववादियोंपरअंकुशकेसाथइसमानसिकताकोभीबदलनेकेलिएएकवैचारिकमुहिमकश्मीरमेंचलानेकीजरूरतहै।
सम्पर्कःशब्दार्थ49,श्रीरामकॉलोनी, शिवपुरी.प्र., मो. 09425488224,9981061100

कविता

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 सरहदों पर लड़ाई 

-मंजु मिश्रा 


सरहदों पर यह लड़ाई
न जाने कब ख़त्म होगी
क्यों नहीं जान पाते लोग
कि इन हमलों में सरकारें नहीं
परिवार तबाह होते हैं

कितनों का प्रेम
उजड़ गया आज ऐन
प्रेम के त्यौहार के दिन
जिस प्रिय को कहना था
प्यार से हैप्पी वैलेंटाइन
उसी को सदा के लिए खो दिया
एक ख़ूंरेज़ पागलपन और
वहशत के हाथों

अरे भाई
कुछ मसले हल करने हैं
तो आओ न...
इंसानों की तरह
बैठें और बात करें
सुलझाएं साथ मिल कर
लेकिन नहींतुम्हे तो बस
हैवानियत ही दिखानी है
तुम्हे इंसानियत से क्या वास्ता
तुमने तो चुन ही लिया है

दहशत का रास्ता ....

शहीदों की याद में

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डर भी जिसके आगे काँपता था

( कैप्टन सुशील खजुरिया,कीर्ति चक्र)

- शशि पाधा

उनदिनों मैं अमेरिका में रह रही थी।देश में रहो या विदेश में, सुबह उठते ही चाय के कप के साथ समाचार पत्र पढ़ना पुरानी आदत है ,जो यहाँ साथ ही आ गई।अंतर केवल इतना है कि विदेश में हम लैप-टॉप खोलकर भारत के सभी समाचार पत्रों की सुर्खियाँ अवश्य पढ़ लेते हैं।उस दिन भी वैसा ही हुआ।जम्मू निवासी होने के कारण जम्मू-कश्मीर का दैनिक समाचार पत्र डेलीएक्ससेल्सियरखोला।मुख पृष्ठ पर जो चित्र और समाचार था ,उसे देख कर पूरे शरीर में कँपकँपी दौड़ गई।तीन दिन से हम कश्मीर घाटी में भारतीय सेना एवं आतंकवादियों के बीच हो रही मुठभेड़ का समाचार पढ़ रहे थे, और प्रभु से सैनिकों की सुरक्षा की प्रार्थना भी कर रहे थे;किन्तु होनी को कौन टाल सकता है।उस मुठभेड़ में आतंकवादियों का संहार करते हुए भारतीय सेना ने और जम्मू नगर ने एक और वीर सेनानी को खो दिया था।चित्र में उस शहीद की अंत्येष्टि के समय तिरंगे में लिपटे उसके शरीर के आसपास उसके परिजन, मित्र और हज़ारों की संख्या में न जाने कितने लोग उसे श्रद्धांजलि देने को खड़े थे।
मैंने उस अमर शहीद का नाम पढ़ा – ‘लेफ्टीनेंट सुशील खजुरिया।बहुत सोचा, नहीं जानती उसे, कभी नहीं मिली उससे, किन्तु  मन में इतनी पीड़ा हुई कि सोचने लगी,'काश मैं भी वहाँ उसे श्रद्धांजलि दे सकती, शायद उसकी माँ से मिलती, कुछ सांत्वना दे सकती। न जाने क्या-क्या सोचती रह गई।पर, सात समंदर पार की दूरी पाट नहीं पाई।केवल नम आँखों से उस नवयुवक शहीद को मौन श्रद्धांजलि दी।
 उस वर्ष तो नहीं किन्तु अगले वर्ष मेरा जम्मू जाना हुआ।मेरे मन मस्तिष्क पर सुशील खजुरिया का चित्र तो अंकित था ही;अत:मैंने वहाँ जाते ही सुशील के परिवार से मिलने का यत्न किया।एक रविवार को मैं सुशील के बड़े भाई मेजर अनिल खजुरिया के निवास स्थान पर आमंत्रित थी।वहीं पर सुशील के माता पिता भी रह रहे थे।जाने से पहले मैं स्वयं से ही जूझ रही थी।मन में कई प्रश्न थे, 'क्या पूछूँगी, कैसे मिलूँगी।पता नहीं उनकी मनोदशा कैसी होगी’,आदि -आदि।
 घर के द्वार तक पहुँचते ही मुझे किसी महिला द्वारा गायत्री मन्त्रके सस्वर पाठ के मधुर स्वर सुनाई
दिए।सुशील के पिता और भाई ने मुझे अंदर बिठाया।माँ अंदर आई और मेरे गले लगकर सुबकने लगीं।सैनिक पत्नी होने के नाते मैं भी स्वयं को सुशील की माँ जैसी ही मानती थी।हम दोनों  कुछ पल यूँ ही चुपचाप गले लगी रहीं।
धीरे से मैंने उन्हें बिठाते हुए कहा,“ मैं बहुत दूर से आपसे मिलने आई हूँ।जब से समाचार-पत्रों में मातृभूमि की रक्षा के लिए सुशील जैसे योद्धा के बलिदान की गाथा पढ़ी है, मैं आपसे मिलना चाहती थी।
मेरे दोनों हाथ थामकर अश्रुसिक्त स्वर में कहने लगीं, “ बहुत अच्छा किया आप आईं।मुझे भी सुशील के विषय में बात करके कुछ शान्ति मिलती है।लगता है ,वह यहीं है, मेरे आस-पास।
  वातावरण कुछ सहज हो गया था।मैंने पूछा, "क्या आप हर संध्या को गायत्री मन्त्र का पाठ करती हैं?"
वे कहने लगीं, "मेरे पति, मेरे तीनों बेटे और अब बेटी भी भारतीय सेना में ही हैं।उन सबकी  रक्षा के लिए एक यही तो कवच है मेरे पास।यही मेरा नियम है।"
उनकी गोदी में दो साल का उनका पोता हृदान बैठा था।उसे स्नेह से देखते हुए मैने पूछा, "क्या आप सुशील को भी ऐसे ही गोद में बिठाकर पाठ करती थीं?"
मन के किसी कोने में झाँकते हुए कहने लगीं, "नियम तो वर्षों से यही रहा है, हमारे संस्कार ही ऐसे हैं।"
कुछ पल रुककर वो कहने लगीं, "सुशील मेरा सब से छोटा बेटा था।बचपन से ही उसे फौज में भर्ती होने की ललक थी।हमने कहा भी कि अब हम वृद्धावस्था में प्रवेश कर रहे हैं, तुम्हारे दोनों बड़े भाई भी घर से दूर रहते हैं।तुम कोई सिविल की नौकरी कर लो, हमारा सहारा बनो;लेकिन वो तो छुटपन से ही पहले पिता की और फिर भाई की वर्दी पहन कर भागता- दौड़ता था।उसे बस फौज में भर्ती होने की धुन सवार थी।
इसी बात को आगे बढ़ाते हुए उनके पिता सोम नाथ जी (रिटायर्ड नायब सूबेदार) बोले, "बचपन से ही ज़िद्दी था, बस अपनी बात ज़रूर मनवाता था।"-यह सुन कर अब हम सब हँसने लगे।
सुशील की ट्रेनिंग के विषय में बताते हुए वो बोले, "ट्रेनिंग के बाद जब हम उसकी पासिंगऑउट परेड में गए ,तो बड़े गर्व से मुझे कहने लगा,"डैडी, मैंने की न अपनी ज़िद्द पूरी।पर डैडी, बड़ा रगड़ा लगा ।"
 उसका संकेत शायद इस कठिन ट्रेनिंग के दौरान होने वाली रगड़ा पट्टी की ओर था।इसी अवसर पर सुशील के कमांडिंग अफसर ने उनसे कहा था लोहे जैसा जिगरा है आपके बेटे का।You should be proud that you have a brave son like him. ऐसा बेटा अगर हर घर में हो तो हिन्दोस्तान का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता |”
मेरे सामने सुबह-शाम कड़ी मेहनत करते हुए एक दुबले-पतले और चुस्त शरीर वाले नवयुवक की मूर्ति आ गई।
 और क्या-क्या शौक थे आपके बेटे के?”  मेरा अगला सवाल था।
पिता कहने लगे,"बास्केट बॉल, हॉकी, फुटबॉल, बॉक्सिंग, सभी खेलों में उसकी रुचि थी,लेकिन जब घर आता था ,तो बस अपनी दादी और माँ की बहुत सेवा करता था।दादी माँ के ठाकुर द्वारे में उनके साथ बैठ जाता था।एक बार जब दादी वैष्णों देवी की कठिन चढ़ाई नहीं चढ़ पाईं तो उनको अपनी पीठ पर उठाकर दर्शन करा लाया।सेवा भाव उसमे कूट-कूट कर भरा हुआ था।जब भी छुट्टी आता ,तो अपनी क्लासफैलो लड़की की बीमार माँ का इलाज करवाता था।उस परिवार में और कोई नहीं था। अत:, उनके घर के काम काज भी कर देता था।बहुत से गरीब बच्चों की पढ़ाई का शुल्क उनके स्कूल में दे आता था।"
मन में विचार आया कि इसी सेवा भाव के कारण ही तो वो भारत माँ की रक्षा के लिए पूर्ण रूप से समर्पित था।
पास बैठी सुशील की भाभी इशिका ने बड़े लाड़ के साथ उसके व्यक्तित्व के एक और रूप को उजागर किया।कहने लगीं, "सजने का बड़ा शौक था उसे।फैशनेबल कपड़े पहनकर, मेरे सामने खड़े हो कर पूछता,"भाभी बताओ मैं कैसा लग रहा हूँ।मेरी कुछ तो तारीफ़ करो।"
मैंने सामने की दीवार पर टँगी सुशील की तस्वीर की और देखा जिसमें पूरी वर्दी में सजा सँवरावोमुस्कुरा रहा था, मानो पूछ रहा हो, "मैं कैसा लग रहा हूँ ?"सचमुच बहुत सुन्दर तस्वीर थी उसकी।
 मैंने उनके पिता से अगला प्रश्न किया "आख़िरी बार आप सब कब मिले थे उससे?"
अपने पुत्र की तस्वीर की ओर स्नेह भरी दृष्टि से देखते हुए वे बोले, "तीस दिन की छुट्टी पर आया था, पाँव में चोट भी लगी हुई थी। जैसे ही उसे पता चला कि उसकी टीम को कश्मीर घाटी के कुपवाड़ा क्षेत्र के जंगलों में छिपे आतंकवादियों के ठिकानों को नष्ट करने के लिए भेजा जा रहा है, बस उत्तेजित हो गया।
 बोला, "पैर खराब है तो क्या हुआ, मेरे साथी अभियान में जा रहे हैं, मैं घर नहीं बैठ सकता।और अगले दिन ही हवाई टिकट लेकर अपनी यूनिट में चला गया।"
मन में विचार आया, 'ऐसे कर्त्तव्यनिष्ठ सैनिकों के कारण ही आज भारत की सीमाएँ सुरक्षित हैं।'
 पास ही खड़े सुशील के सहायक प्रीतमने मुझे बताया कि वो उनका सामान लेकर सड़क के रास्ते यूनिट पहुँचा;लेकिन अपने साबसे मिल नहीं पाया।वे अभियान में चले गए थे।सुशील के शहीद होने के बाद उनकी पलटन ने अभी तक प्रीतमको उसके माता-पिता के पास रहने की अनुमति दे रखी थी।
उसकी ओर और देखते हुए उनकी माँ बोलीं,"इसके विषय में सुशील हमेशा कहता था, इसे अपना बेटा ही मानना।इसको बस मुझे ही समझना।इतना स्नेह था उसे अपने साथ के सैनिकों से।"

मैं समाचार पत्रों में भारतीय सेना की ‘18ग्रनेडियर पलटनके लेफ्टिनेंट सुशील और उसकी घातक टीम की आतंकवादियों के साथ कई दिन तक चलने वाली मुठभेड़ के विषय में पढ़ चुकी थी।किन्तु उनके पिता ने जो विवरण दिया, उससे कई बातें स्पष्ट हो रहीं थी।जैसे सब कुछ सामने ही घट रहा हो।
उन्होंने कहा, "वो उस क्षेत्र में जुलाई के महीने में पहले भी दो अभियानों में भाग ले कर सफलता प्राप्त कर चुका था।उस जंगल के चप्पे-चप्पे से परिचित था वो।इस बार सुशील के साथ ‘S T F (स्पेशलटास्कफ़ोर्स)के जवान भी थे।सूचना यह थी कि कुपवाड़ा जिले के 'कोपरामलियाल'क्षेत्र के सघन जंगलों में लगभग पाँच - छह आतंकवादी बहुत से अस्त्र-शस्त्रों के साथ प्राकृतिक गुफाओं में छुपे हुए थे, और वे भारतीय सेना तथा निरीह लोगों पर प्रहार करने की योजना बना चुके थे।सुशील आरम्भ से ही घातक टीम का कमांडर रह चुका था।इस बार टीम की तैयारी में इसने पुन: अपने आप को वालंटियर किया।ब्रिगेड कमांडर ने अभियान आरम्भ होने से ठीक पहले सब सैनिकों में जोश भरते हुए कहा "खज्जू, तुम पहले भी इस जंगल में दो अभियानों में सफल हो कर आए हो;किन्तु इस बार ऐसा सबक सिखाना है कि शत्रु फिर से इस जंगल में आने की हिम्मत न करें।बस उनका पूरी तरह से सफाया करना है।"
क्योंकि सुशील के पिता स्वयं एक सेवानिवृत्त सैनिक हैं, वो उस मुठभेड़ का ऐसा विवरण दे रहे थेजैसे यह सब उनकी आँखों देखी हो।
कहने लगे, "पूरा सफ़ाया ही किया था सुशील और उसकी टीम ने।यह घमासान मुठभेड़ पाँच दिन तक लगातार चलती रही। इसमें उनकी टीम ने पाँच तंकवादियों को मार गिराया;लेकिन एक आतंकवादी किसी प्राकृतिक गुफा में छिपकर बैठा रहा।वहाँ घना जंगल था और केवल अनुमान से ही आगे बढ़ा जा सकता था।जैसे ही सुशील अपनी टीम के साथ जंगली नाले से होते हुए शत्रु के छिपने के ठिकाने तक पहुँचे, छिपे हुए आतंकवादी ने इन पर घातक प्रहार किया, जिसमें इनकी टीम के दो जवान शहीद हुए थे।अपने शहीद साथियों के मृत शरीर को सुशील अपने कैम्प तक ले आए थे।लक्ष्य की पूर्ति पूरी तरह से अभी तक नहीं हो पाई थी।एक या दो आतंकवादी अभी तक कहीं छिपा हुए थे।सुशील और उनके साथी रवि कुमार एक बार फिर छिपे हुए आतंकवादी की टोह लेते हुए उनके छिपने के स्थान तक पहुँचे। आतंकवादी उस प्राकृतिक गुफा के द्वार से आसानी से इन्हें देख सकता था। उसने इन दोनों पर लगा तार गोलियाँ दागीं। इनके साथी हवलदार रवि कुमार को गोली लगी और वे घायल हो गए। सुशील किसी भी तरह उन्हें अपने कैम्प तक पहुँचाना चाहते थे।उस समय उन्हें अपनी रक्षा की कोई चिंता नहीं थी।बस उन्हीं पलों में उस आतंकवादी ने सुशील पर गोलियाँ चलाई।एक गोली उनकी कनपटी पर लगी। वो अपने शहीद साथी को अपने कैम्प तक लाने में सफल तो हो गए थे, किन्तु गोली के आघात से उसी स्थान पर वीरगति को प्राप्त हो गए।  उस रात भारत माँ ने और हमने अपने बेटे को सदा-सदा के लिए खो दिया
 
वीरता, निडरता, अदम्य साहस और कर्त्तव्य के प्रति दृढ़ निश्चय जैसे अप्रतिम गुणों के धनी उस वीर सेनानी की गौरवशाली गाथा ने हम सब को रोमांचित कर दिया था।मेरे सामने महाभारत के अभिमन्यु का चित्र आ गया ।कैसे होंगे वो ओज और संकल्प के क्षण जब अपनी जान की चिंता से परे,अपने साथी की जान बचाने की चिंता हो।
उनकी माँ निर्मला देवी अब बहुत गंभीर हो गईं थीं।उनके चेहरे पर अगाध पीड़ा के भाव अंकित हो गए थे।एक दीर्घ निश्वास लेकर बोलीं,"बस 22सितम्बर को गया था, 27को ख़त्म।"मैं कुछ देर उनका हाथ थामकर चुपचाप बैठी रही।एक बेटे के खोने के दुःख को वो कैसे झेल रही हैं, मैं उस समय देख रही थी।
पिता शांत और गर्वपूर्ण मुद्रा में बैठे थे।मैंने उन्हीं से पूछा,"आपकी उनसे बातचीत तो हुई होगी, आख़िरी बार कब बात हुई?"
अब उनकी आँखें भी नम थीं। बड़े ही भीगे-भीगे स्वर में उन्होंने कहा," 25सितम्बर की सुबह उसका फोन आया था।बोला, “मैं जा रहा हूँ।
 "मैं जानता था कि सुशील एक बहुत ही कठिन अभियान के लिए जा रहा था। पिता होने के नाते मैंने उससे केवल यही कहा,"अपना ध्यान रखेयाँ  बेटे, पता नईं ओ किन्ने न, साढ़े मकाए दे मुक़क्ने न या नेंई ।"इस बार वो अपन मातृ भाषा डोगरीमें बोल रहे थे। ( बेटे, अपना ध्यान रखना, पता नहीं वो कितने हैं, पता नहीं वो सारे के सारे खत्म होंगे कि नहीं)
बस सुशील ने बड़े ओज भरे शब्दों में यही कहा, “डैडी, कुसा ने तेमुकाने न, उन मेरी बारी ए।" ( डैडी, किसी ने तो खत्म करना है उन्हें, अब मेरी बारी है)।
 यही अंतिम बातचीत थी पिता और पुत्र के बीच। दो दिन तक पिता फोन मिलाते रहे।किन्तु युद्धरत पुत्र फोन कैसे उठाता? नवरात्रि का पहला दिन था।परिवार को पता था कि सुशील उस घमासान मुठभेड़ में युद्धरत है;अत:, उस समय केवल ईश्वर से प्रार्थना ही एक मात्र संबल था उनके पास।माँ,पिता और भाभी ने वैष्णों देवी की मूर्ति के सामने सुशील की रक्षा के लिए अखंड ज्योत जलाई।प्रार्थना के क्षणों में ही उनके पास एक फोन तो आया पर अत्यंत दुखद समाचार लेकर।
 "शेर की तरह था मेरा बेटा। निडर इतना कि डर भी उसके सामने काँपता था।"इन गर्वपूर्ण शब्दों के साथ एक बहादुर सैनिक पुत्र को उसके धैर्यवान सैनिक पिता ने याद किया था।
कुछ देर तक उस कमरे में अभेद्य मौन छाया रहा।हम सब उस क्षण को अपने- अपने तरीके से जी रहे थे,जब उनको यह दुःखद समाचार मिला होगा।मैंने अब निर्मला जी की तरफ देखते हुए पूछा, “आपसे क्या कहकर गया था, कब लौटेगा?"
कहने लगीं,"छुट्टी आया था एक महीने की। अपने विवाह की तैयारियों में ही लगा रहा।मेरे लिए नई साड़ी और सैंडल लाया था। साड़ी तो उसने मुझे अपनी शादी में पहनने के लिए दी थी और देते हुए हँसते हुए कहने लगा, “यही पहननी है आपने बारात में, आप सबसे अलग दिखनी चाहिए, सुशील की माँ और झट से दोनों पैरों को जोड़कर खट्ट की आवाज़ करते हुए मुझे सैलूट किया था।"
 अब वो फिर भावुक हो गईं थी।रुँधी आवाज़ में बोलीं,"मैंने पहनी तो थी वो साड़ी पर अवसर कोई और था। जब सुशील को उसकी वीरता के लिए राष्ट्रपति द्वारा कीर्ति चक्रप्रदान किया गया,तो राष्ट्रपति भवन में वही साड़ी पहनकर गई थी।"
 सुशील के बड़े भाई मेजर अनिल अब तक चुपचाप हमारी बातें सुन रहे थे।वो उस समय भारत की पूर्वोत्तर सीमाओं पर तैनात थे।और सुशील के बड़े भाई सुनील भी सेना की किसी और पलटन में सेवारत थे।अनिल ही सुशील के पार्थिव शरीर को वायुयान से अपने घर जम्मू लाये थे।
मैंने उनसे पूछा, "आप और आपके बड़े भाई तो भारतीय सेना में हैं।क्या आपके परिवार के और भी युवक अभी भी सेना में भर्ती होने को इच्छुक हैं?"
उन्होंने बड़े संयत स्वर में उत्तर दिया,"मैम हमारी बहन दीपिका 'बायोटैकनोलजी में एम एस सी कर रही थी।बस सुशील के बलिदान के बाद जाने उसे क्या सूझी, सारी पढ़ाई छोड़-छाड़कर उसने भी एयर फोर्स ज्वाइन कर ली है।वो इस समय हैदराबाद में है।अगर आप कुछ दिन बाद आतीं तो वो भी छुट्टी लेकर आ रही है।आप उससे भी मिल लेती।"
मैंने समाचार पत्रों में दीपिका की तस्वीर देखी थी, जिसमें वो अंत्येष्टि के समय अपने भाई की टोपी अपने हृदय से लगाए शोकरत खड़ी थी। मुझे इस चित्र ने बहुत विचलित किया था।अब मुझे यह सुनकर खुशी हुई कि यह सैनिक परिवार अपने एक बेटे को खो देने के बाद भी देश की रक्षा के लिए कितना समर्पित है।
मेजर अनिल ने मुझे यह भी बताया कि सुशील की यूनिट हर साल कारगिल दिवससमारोह  पर इनके परिवार को आमंत्रित करती है और इनसे सदैव सम्पर्क बनाए रखती है।
 समय बहुत हो गया था किन्तु ऐसा लग रहा था की बहुत कुछ पूछना बाकी है।मैंने पूछा,"क्या राज्य सरकार ने भी उनकी स्मृति में कुछ विशेष किया?"
बड़े ही निराशा भरे स्वरों में सुशील के पिता ने बताया,"उसकी अंत्येष्टि पूरे सैनिक सम्मान के साथ जम्मू के साम्बा क्षेत्रमें हुई थी, जिसमें दूरदर्शन और समाचार पत्रों से जुड़े बहुत से लोग आए थे;किन्तु, दुःख की बात यह है कि राज्य सरकार की ओर से चीफ मिनिस्टर का एक फोन तक नहीं आया। तब जाकर मन कई बार पूछता है,किसलिए, किसके लिए?"
यही प्रश्न तो मैं देश के नेताओं से अनवरत पूछती रहती हूँ।कब और कौन देगा इन प्रश्नों का उत्तर?
मुझे इस बात का गर्व है कि शहीद सैनिकों की स्मृति में उनकी यूनिट और उनके परिवार के सदस्य उनके बलिदान की ज्योति को  जलते रहने के लिए सदैव प्रयत्नरत रहते हैं।
 मैंने अनिल से पूछा "आपने उनकी स्मृति में क्या कोई ऐसा स्थल, स्कूल या कुछ और बनवाया है,जिसे देख कर भावी पीढ़ी कुछ प्रेरणा पा सके?"
 अनिल ने मुझे बताया, "मैम, साम्बा के पास हमारे गाँव में मेरे चाचा की कुछ पैतृक ज़मीन थी।सुशील के चाचा ने और हमारे पूरे परिवार ने उस ज़मीन पर एक सुन्दर-सा बाग लगाया है।हमने और गाँव के अन्य लोगों ने उस वीरभूमि पर सैकड़ों पेड़ रोपे हैं।गाँव के स्कूल के बच्चे वहाँ जाकर खेलते भी हैं और श्रमदान भी करते हैं।"
उनकी माँ ने ममता-भरी वाणी में कहा,"मुझे वहाँ  के हर पेड़ में 'वो'ही दिखाई देता है। मुझे बहुत अच्छा लगता है वहाँ समय बिताना।"
उनकी गोद में उनका पोता नन्हा हृदान खेल रहा था। उसकी ओर स्नेह -भरी दृष्टि से देखती हुई वो बोलीं, “मेरे पास अब  यह है, पूरा परिवार है, पर न तो मैं सुखी हूँ ना दुखी।"
 मैं जानती हूँ इस वीतराग की अवस्था को।सैनिक पत्नी हूँ ना।ऐसी कितनी ही सैनिक पत्नियों, माताओं और बहनों के दुःख को उनके साथ मिलकर जिया और भोगा है मैंने।
उठने लगी तो निर्मला जी ने मेरे दोनों हाथ पकड़ कर बड़े स्नेह के साथ कहा,"चलो हमारे गाँव, वहाँ आपको सुशील का बाग़ दिखाऊँगी।"
मुझे इस आग्रह और निमंत्रण में धैर्य, अपनत्व और सांत्वना के जो स्वर सुनाई दिए, वे जीवन भर मेरे साथ रहेंगे। 

सम्पर्कः 174/3, त्रिकुटा नगर, जम्मू, सम्प्रति- वर्जिनिया यू. एस. E-mail- shashipadha@gmail.com
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