प्रदूषण
जीवन बचाना है तो प्रकृति से छेड़छाड़ बंद करना होगा - डॉ. सिम्मी भाटिया पर्यायवरणशब्द दो शब्दों के संयोग से बना है - परि +आवरण। परि का अर्थ है चारों ओर तथा...
View Articleजीवन-दर्शन
सीटी बजाओकचरा हटाओ - विजय जोशीजीवनमें दैनिक कार्य उसे गतिवान रखने के साथ ही साथ ज़िन्दा (( Survival) रहने के लिए आवश्यक हैं। येकार्य आदत का अभिन्न अंग हो जाते हैं। इनके सम्पादनसे न केवल आपके अंदर ऊर्जा...
View Articleवनवासी समुदाय
जल स्रोत जिनके लिए देवतुल्य हैं- डॉ. दीपक आचार्यविश्व विख्यात विज्ञान शोध पत्रिका लांसेट में प्रकाशित एक शोध रपट के अनुसार विकासशील देशों में 5वर्ष से कम उम्र के करीब आठ लाख बच्चों की मृत्यु की एक...
View Articleमरुभूमि
जहाँ परम्परा ने साफ और मीठा पानी जुटाया- अनुपम मिश्रराज, समाज और पानी - 1देशमें पानी का संकट जिस तरह से बढ़ता जा रहा है उसके बारे में अब कुछ अलग से बताना ज़रूरीनहीं लगता। जो संकट पहले गर्मी के दिनों में...
View Articleमुद्दा
मासूमों के लिए खतरनाक होता आज का पर्यावरण - डॉ. महेश परिमलअगरआप सोच रहे हैं कि आप जिस घर में रह रहे हैं, वहाँ आपका बच्चा पूरी तरह से सुरक्षित है। उसे किसी तरह की कोई...
View Articleसमाधान
मनमानी मानव करे, कुदरत है बेहालसमाधान- मंजु गुप्तामनमानी मानव करे, कुदरत है बेहालमानव द्वारा निर्मित प्रदूषित पर्यावरण और उससे पैदा हुई ग्लोबल वार्मिंग का जिम्मेदार स्वयं मानव ही है। आज यह प्रदूषित...
View Articleसंस्कृति
प्रकृति में ही बसे हैं परमात्मा - ज्योत्स्ना प्रदीप हमारे चारों ओर जो विराट प्राकृतिक परिवेश व्याप्त है उसे ही हम पर्यावरण कहते हैं।...
View Articleअनोखी पहल
सूखे पहाड़ पर फिर हरियाली छा गई - बाबा मायारामजोकाम सरकार और वन विभाग नहीं कर पाया वह लोगों ने कर दिखाया। उन्होंने पहाड़ पर उजड़ और सूख चुके जंगल को फिर हरा भरा कर...
View Articleसंस्मरण
वाटिका ...और देखते देखते बंजर जमीन हरी-भरी हो गई - शशि पाधापंजाबराज्य में बहती सतलुज नदी के किनारे बसा है फिरोजपुर नगर। सामरिक दृष्टि से इस नगर का बहुत...
View Articleअनकही
मनोरंजन बनाम अंधविश्वास... - डॉ. रत्ना वर्माएकसमय वह भी था जब संचार माध्यम समाज में जागरूकता फैलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाया करते थे।...
View Articleइस अंक में
उदंती-जून- 2016 पर्यावरण विशेषफल के आने से वृक्ष झुक जाते हैं,वर्षा के समय बादल झुक जाते हैं,सम्पत्ति के समय सज्जन भी नम्र होते हैं।परोपकारियों का स्वभाव ही ऐसा है। - तुलसीदास- अनकही...
View Articleकविताएँ
1रजनी एक पहेली बादल गरज रहा हैगहराती बदली हैसपने हवा संगशाम गोधूली है।ओस कण झर रहेचाँद दूर तक रहाचाँदनी फलक परदिल हम जोली है।हवा बर्फ बन रहीपगडण्डी सांय सांयसपन बैठ आँख मेंबुनता डर सहेली है।चंपा...
View Articleकविता
भोर - उर्मिला शर्मासरस भोर की किरण ने,फैलाया कैसा उल्लास! चुपके से अरुणिमा सिमटती,विकसित हो रहे जलजात!!चपल को किला मौन रहे क्यों?दिशि-दिशि में फैला आह्लाद!स्वर- रस में डूबा कण-कण यों,चहुँ ओर लालित्य...
View Articleरहस्य
जीवन और नैतिक मूल्य का विरोधाभास - सपना मांगलिकभारतके विश्व में श्रेष्ठ स्थान रखने का आधार यहाँ के नैतिक मूल्य ही रहे हैं। नैतिक मूल्यों का ज्ञान स्म्रतियों की धूल को एकत्र ही नहीं करता अपितु वह तो...
View Articleकविता
फिर कभी मंदिर नहीं गई- डॉ. शील कौशिकमाँ नहीं हैपर सम्भाले हूँ मेंउनका पुराना चश्माजिससे झाँकती उनकी आँखेंरोक देती हैं मुझेअगली गलती दोहराने से पहले।कोने में खड़ी बैंत की मूठ पर रखाउनका हाथसुझा देता...
View Articleलघु कथाएँ
- रचना गौड़ भारतीअहसासएक चिड़ियारोज़ उसकी खिड़की पर आकर बैठती। आज जोरदार बारिश हो रही थी। खिड़की सूनी देख, उसे याद ही किया था कि भीगे पंख लिए कंपकंपाती सी चिडिय़ा खिड़की की सलाखों के बीच आकर बैठ गई।...
View Articleघर- परिवार
रिश्तों के बुलबुले - डॉ. आरती स्मित‘घर’ मंदिर के घंटे की अनुगूँज -सा पावन शब्द। ‘घर’ कहने मात्र से रिश्तों की सतरंगी डोर आँखों के सामने लहराने लगती है। कानों में चिंकी, सोनू, मम्मी, पापा, दादा-दादी,...
View Articleतीन कविताएँ
- अनुपमा त्रिपाठी1छाया है अब बसंतमन ने उमंग भरी, तूलिका ने भरे रंग,कोयलिया कूक रही, बाजे है मन मृदंग !!फूलों की चिटकन है, रंगों की छिटकन है,भँवरे की गुंजन है, छाया जो रंजन है !!धूप में निखार आया रंग...
View Articleकहानी
आधारशिला - सुधा भार्गवजिसेएक ही धुन थी शिक्षित होकर उसके प्रसारण से ज्ञानोदय-भाग्योदय करे। सुखिया जिस दिन से ससुराल आई, सुख ही सुख बरसने लगा। इतना सुख की लोगों...
View Articleकहानी
ऊँच-नीच - कमला निखुर्पाउत्तरांचल के कुमाऊँ का सुन्दर सा गाँव, चीड़, बाँज, बुराँश के पेड़ों से घिरी हरी-भरी पहाडिय़ों प्राकृतिक सुन्दरता से भरपूर घाटी में बसा है कलावती...
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