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Channel: उदंती.com
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जीवन दर्शन

कोरोना को क्या रोना :मेरे पुख्ता इरादे मेरी तकदीर बदल देंगे- विजय जोशी (पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल, भोपाल)जब होता भूकंप,शृंग हिलते हैं ज्वालामुखियों के वक्ष फूट पड़ते हैं पौराणिक कहते दुर्गा मचल रही...

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कविता

-  डॉ. रत्ना वर्मा की छह कविताएँयूँ ही बैठे बैठे१.आज की सुबहरोज़ सुबह बगीचे में खिले रंग बिरंगे फूलों को देख मन भी खिल उठता था पर आज फूल भी कुछ उदास थे रंग भी उनका कुछमुरझाया-सा था ।तितली और भौंरे भी...

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पर्यावरण

अमेज़न में लगी आग जंगल काटने का नतीजा है ब्राज़ील में अमेज़न के वर्षा वनों में भयानक आग लगी हुई है, धुएँ के स्तंभ उठते दिख रहे हैं। जहाँ सरकारी प्रवक्ता का कहना है कि इस साल जंगलों में लगी इस भीषण आग का...

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पर्यावरण

शहरों का पर्यावरण भी काफी समृद्ध है-हरिनी नागेन्द्र, सीमा मुंडोलीहमबहुत मुश्किल दौर में जी रहे हैं; इंटरगवरमेंटल पैनल आन क्लाइमेट चेंज (IPCC) की विशेष रिपोर्ट ने चेताया है कि ग्लोबल वार्मिंग की वजह से...

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आलेख

 कोविड-19पारंपरिक विश्वास और आज का विज्ञान-डॉ. डी. बालसुब्रमण्यनकुछदिनों पहले राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा अभियान के केंद्रीय प्रभारी मंत्री ने भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) से सम्पर्क करके यह सुझाव...

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अनकही

क्या दुनिया खत्म होने वाली है... -डॉ रत्ना वर्माक्या दुनिया 2020में खत्म हो जाएगी? क्या कोरोना वायरस ही दुनिया को खत्म करने का कारण बनेगा? पिछले कई सालों से अलग- अलग लोगों द्वारा दुनिया के समाप्त हो...

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इस अंक में

उदंती.com,जून 2020 वर्ष 12, अंक 10अगर हमें पर्यावरण में थोड़ा सा भी सुधार लाना है तो केवल एक ही तरीका है इसमें सबको शामिल करना.                     -रिचर्ड रोजर्सअनकही:क्या दुनिया खत्म होने वाली है...-...

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जीवन दर्शन

करिश्मा कुदरत का- विजय जोशी(पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल, भोपाल)       बचपनमें सुमित्रानंदन पंत रचित एक कविता धरती कितना देती हैआज फिर एक बार मानस पटल पर उभर आई - मैंने बचपन में छुपकर पैसे बोये थे, सोचा...

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प्रेरक

कौन-सी बात हमें सबसे अधिक प्रेरित कर सकती है?- निशांतमेरी समझ से वह बात, जो किसी को भी सबसे अधिक प्रेरित कर सकती है – वे केवल तीन सपाट शब्द हैं : “तुम मर जाओगे”।मेरा उद्देश्य आपको डराना या चौंकाना नहीं...

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कविता

छड़ी         -आरती स्मित डूबती आँखों में तैरती हैछड़ीउसी ने तो थामा था तुम्हेंजब-जब तुम लडख़ड़ाए थेऔर मैंपाँच छड़ियों का गुमाँ करती रही।कितना समझाया था तुमनेकिअपना लूँ उसेसौंप दूँ काँपते तन का भारकि...

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ग़ज़ल

तू रुककर न देख- डॉ गिरिराज शरण अग्रवालज़िंदगी में डर बहुत हैं, पर उन्हें दमभर न देखरास्ते में गर निकल आया तो फिर पत्थर न देखदोस्ती हर पल बदलती है, नया कानून है देख ले किस किसको मिलती है, मगर अंदर न...

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कविता

कुछ ऐसी कशिश है- प्रीति अग्रवाल ( कैनेडा)1. ऐ दोस्त तेरे काँधे में कुछ ऐसी कशिश हैदिखते ही जी चाहे, मैं जी भर के रो लूँ!2.तुम तो ऐसे न थे, जो सताते मुझकोपर यादें तुम्हारी, बड़ी बैरी निकलीं!3.हमराज़...

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कहानी

वो नौ होकर भी... -प्रगति गुप्ता आज जीवन और मृत्यु से लड़ती सुनंदा की साँसेंथम गई। तीन बेटियाँ, एक बेटा और नौ नाती-पोतों से भरा पूरा परिवार था उसका। उसकी थमती साँसों के साथ सारे के सारे अपने-अपने विचारों...

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लघुकथा

जागरूक- कृष्णानंद कृष्णरातका सन्नाटा कुत्तों के लड़ने की आवाज से टूट जाता है। कुछ लोग धनगाँव एक्सप्रेस की प्रतीक्षा में  इधर–उधर बैठे हुए हैं। रात गहरा गई है। कुछ मज़दूर ट्राफिक गोलम्बर पर सोये हुए...

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कविता

 पिता नेक्या किया- लोकेन्द्र सिंहक्या किया पिता ने तुम्हारे लिए? तुमने साहस कहाँ से बटोराप्रश्न यह पूछने का। बचपन की छोड़ो तब की तुम्हें सुध न होगीजवानी तो याद है नतो फिर याद करो...पिता दफ्तर जाते थे...

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लघुकथा

पेट का कछुआ- युगलगरीब बन्ने का बारह साल का लड़का पेट दर्द से परेशान था और शरीर से बहुत कमज़ोर होता गया था। टोना–टोटका और घरेलू इलाज के बावजूद हालत बिगड़ती गईथी। दर्द उठता, तो लड़का चीखता और माँ–बाप की...

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कविता

श्रमिक की मंज़िल- अजय खजूरिया, जम्मूराह तो मिल गई ,पर मंज़िल की तलाश हैक्यों रुक रुक कर चलना, तेज चल मंज़िल की तलाश हैसोया है अभी सवेरा, रात भर चल क्योंकि मंज़िल की तलाश हैख़ामोश है गलियाँ, बोल कुछ...

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कविता

अब तो घर लौटना है- शशि पाधा न छत बची नछप्परीघोर विपदा की घड़ी मीलों तक दौड़ना है अब तो घर लौटना है ।बहुत दूर मंजिलें राहें  सुनसान है  धूप के दंशहैंदेह परेशान है फिर भी कुछ सुकून है कि घर को लौटना है...

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ललित निबन्ध

जब दोस्त पुराना मिलता है-अख़्तर अली पुरानेदोस्त से मिलना सिर्फ दोस्त से मिलना नहीं होता है। यह उन लम्हों से मिलना होता है जो बीत गए है, यह उन दृश्यों में विचरण करना होता है जो बदल गए है, यह उन बुजुर्गो...

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संस्मरण

प्रेमचंदजी के साथ दो दिनमुझे याद नहीं रहता, मैं भूल जाता हूँ...- बनारसीदास चतुर्वेदीप्रेमचंदजीकी सेवा में उपस्थित होने की इच्छा बहुत दिनों से थी। यद्यपि आठ वर्ष पहले लखनऊ में एक बार उनके दर्शन किए थे,...

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