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अनकही

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क्या दुनिया खत्म होने वाली है... 
-डॉ रत्ना वर्मा
क्या दुनिया 2020में खत्म हो जाएगी? क्या कोरोना वायरस ही दुनिया को खत्म करने का कारण बनेगा? पिछले कई सालों से अलग- अलग लोगों द्वारा दुनिया के समाप्त हो जाने की भविष्यवाणी की जाती रही है;पर दुनिया है कि हर मुसीबत को पार करके चलते जा रही है। हाँ, ये जरूर है कि पिछले कुछ दशकों से दुनिया भर में आने वाले भूकंप, बाढ़- तूफान, गर्मी और प्रदूषण के लगातार बढ़ते कारणों पर नज़र डालकर हमारे पर्यावरणविद् दुनिया को यह चेताते आए हैं कि यदि हमने प्रकृति का दोहन करना बंद नहीं किया, अपने जीवन जीने के तरीकों में बदलाव नहीं लाए,  तो दुनिया जीने लायक नहीं रहेगी और एक दिन खत्म हो जाएगी। यही सच्चाई भी है।
 इस समय हमारे सामने कोरोना वायरस को हराने की एक बड़ी चुनौती है। इस चुनौती ने हमें सिखाया है कि दुनिया को समाप्ति की ओर ले जाने वाले हम इंसान ही हैं , जो अपनी ही बर्बादी का कारण बन रहे हैं। कोरोना वायरस चाहे जिस कारण से भी आया हो;पर इस वायरस ने हम सबको यह तो बता ही दिया कि हम जीने का तरीका भूल गए हैं। हमने सुख और शांति की परिभाषा बदलकर उसे पैसे और अति -महत्त्वाकांक्षाओं में तब्दील कर दिया है।
कोरोना वायरस के हमले के बाद से पूरी दुनिया ने अपने- अपने देश में तालाबंदी करके इस वायरस को रोकने का भरसक प्रयास  किया है। हवाईयात्रा, रेलयात्रा से लेकर सड़क पर चलने वाले सभी परिवहन के साधन सब बंद कर दिए गए। स्कूल कॉलेज, ऑफिस, बाजार, मॉल, दुकानें, थियेटर, धुँआ उगलते, गंदगी फैलाते छोटे बड़े कल- कारखाने सब कुछ बंद करना पड़ा। कुल मिलाकर इंसान अपने- अपने घरों में कैद हो गए। दुनिया एक तरह से थम गई।
दुनिया की पूरी अर्थव्यवस्था भी चरमरा गई , लोग बेरोजगार हो गए हैं। प्रवासी मज़दूरों की वापसी के सिलसिले के बाद तो भारत ने मार्च में तालाबंदी का जो कदम उठाकर दुनिया भर की वाहवाही बटोरी थी,उसपर पानी फिर गया। घर लौटना सबसे ज़रूरी है;परंतु वायरस को फैलने से रोकना उससे भी ज्यादा जरूरी है। थोड़ा और धैर्य रखते,तो शायद आज भारत के हालात कुछ और होते। कोरोना के खतरे कम होने का नाम ही नहीं ले रहे हैं। मरने वालों का आँकड़ा बढ़ताही जा रहा है।
इस महामारी का सामना करने के लिए केन्द्र से लेकर प्रदेश की सभी सरकारें अपने-अपने स्तर पर प्रयास कर रही हैं सोनू सूद जैसे कई हाथ भी सहायता के लिए आगे आ रहे हैं;पर देश के जो हालात हैं,उसमें एक सोनू सूद नहीं,कई सोनू सूद को आगे आना होगा। देर-वेर हम इस कोरोना रूपी राक्षस को मार गिराने में सफल तो होंगे; लेकिन जब तक इस राक्षस को मारने के लिए कारगर औजार यानी दवाई नहीं मिल जाती,तब तक तो सबको इसके साथ ही जीना सीखना होगा ना। इसके लिए जरूरी है-हम अपनी जीवन शैली में बदलाव लाएँ और प्रकृति की आबोहवा को शुद्ध करते हुए अपने शरीर को इस कोरोना संक्रमण से मुकाबला करने लायक बनाएँ ।
जब बात जीने की हो रही हो,तो इस महामारी में तालाबंदी के बाद हमें अपनी प्रकृति में कुछ बहुत ही खूबसूरत नजारें भी दिखाई दे रहे हैं, जैसे- देश के कई महानगरों में जहाँ के लोग नीले आसमान का रंग भी भूल चुके थे, वहाँ के लोग अब सफेद बादलों को नीले आसमान पर उड़ते हुए देख पा रहे हैं। प्रदूषण रहित आसमान में सूर्योदय और सूर्यास्त की लालिमा देखने के लिए लोग अपने अपने घरों की छत पर कैमरा लेकर जाने लगे हैं। जिनकी नींद कभी मोटर- गाड़ियों के शोर और हार्न के बजने पर खुलती थी,उनकी नींद अब चिड़ियों की चहचहाहट को सुनकर खुलती है। वायु प्रदूषण के कारण जिन शहरों में बाहर निकलते ही  साँस लेना दूभर हो गया था,वहाँ लोग अब स्वच्छ हवा में साँस ले रहे हैं,  यही नहीं पंजाब के जालंधर शहरवासियों के लोगों को खुली आँखोंसे  हिमाचल की बर्फीली चोटियाँ नजर आने लगी हैं।  और सबसे बड़ी खबर गंगा और यमुना के पानी के स्वच्छ हो जाने की है। जो काम इतने बरसों में अरबों- खरबों रुपयेखर्च करके भी पूरा नहीं किया जा सका ,वह काम इस तालाबंदी ने बिना एक पैसा खर्च किए कर दिया। गंगा जमुना का जल न केवल साफ हुआ है;बल्कि वह पीने लायक भी हो गया है।
उपर्युक्त खबरें इसलिए भी चौकाने वाली हैं;क्योंकि इन नदियों के पानी को इससे पहले नहाने लायक भी नहीं समझा जाता था। शहरवासियों के लिए नीला आसमान देखना स्वप्न के समान था, ऐसे में सरकार और कुछ सीखे या न सीखे;परंतु उसे इतनी सीख तो मिलनी ही चाहिए कि प्रदूषण कम करना हो, नदियों का पानी स्वच्छ करना हो, सड़कों पर गाड़ियों से उगलते धुएँ को कम करना हो,तो बड़े- बड़े प्रोजेक्ट बनाने की जरूरत नहीं,बस उन्हें कुछ समय के लिए पूर्ण तालाबंदी करने की जरूरत होगी।  आसमान क्यों स्वच्छ हुआ, गंगा का पानी इस तालाबंदी के दौरान क्यों पीने लायक बना,इन सबके पीछे के कारण को समझने की जरूरत है। देश की नदियों में कल-कारखानों से निकलने वाले गंदे और प्रदूषित पानी को नदियों में बहाने से जिस दिन हमारी सरकार रोक लेगी,उस दिन हमारी नदियाँ स्वच्छ हो जाएँगी। पर क्या हम ऐसी योजना बना पाएँगे जिससे कल कारखानों से निकलने वाला काला धुँआ वातावरण में न घुलने पाए और गंदा पानी नदियों में प्रवाहित न हो? क्या ऐसा सोचना दिवास्वप्न  के समान है?
हाँ सपने देखना जरूरी है,तभी हम उसे पूरा करने के बारे में सोच पाएँगे। कोरोना की महामारी ने ना जाने कितनों को आपनों से जुदा कर दिया है। लोगों की जीविका के साधन छीन लिये। लोग मानसिक और शारीरिक रूप से टूट गए। लेकिन जब जीवन दाँव पर लगा हो, तो इंसान सबकुछ करने को तैयार हो जाता है, करोना ने कम से कम हम इंसानों को यह जरूर सिखा दिया है कि जब बड़ी मुसीबत आती है,तो पूरी दुनिया एक दूसरे का साथ देने के लिए साथ खड़ी हो जाती है। जब ऐसा है, तो क्यों न यही इच्छा शक्ति यही जोश हम सब मिलकर अपने बिगड़ते पर्यावरण को बचाने के लिए भी दिखाएँ और दिन--दिन प्रदूषित होते जा रहे वातावरण को शुद्ध करने की दिशा में भी गंभीरता से काम करें। उम्मीद है कोरोना का यह संकट हमें अपने पर्यावरण को बचाने के लिए भी प्रेरित करेगा। 

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