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कविता

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काँच की चूड़ियाँ
-    डॉ० कविता भट्ट

घोर रात में भी खनखनाती रही
पीर में भी  मधुर गीत गाती रही ।

लाल-पीली-हरी काँच की चूड़ियाँ
आँसुओं से भरी काँच की चूड़ियाँ।

उनके दाँव - पेंच में, टूटती रही
ये बिखरी नहीं, भले  रूठती  रही।

प्यार में थी मगन काँच की चूड़ियाँ
खुश रही हैं सदा, काँच की चूड़ियाँ।

माना चुभी है इनकी प्यारी चमक
ये खोजती  नई रोशनी का फ़लक।

नभ में छाएँगी काँच की चूड़ियाँ
इन्द्रधनुषी सजी काँच की चूड़ियाँ।

कोई नाजुक इन्हें भूलकर न कहे
इनका ही रंग-रूप रगों में बहे।

सीता राधा-सी काँच की चूड़ियाँ
अनसूया-उर्मिला काँच की चूड़ियाँ।


सम्पर्कः FDC, PMMMNMTT,द्वितीय तालप्रशासनिक ब्लॉक- ll, हे..गढ़वाल विश्वविद्यालयश्रीनगर गढ़वाल, उत्तराखंड246174

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