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व्यंग्यः गुरु और शिष्य की कहानी

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  - अख़्तर अली

जबभी कोई खस्ता हाल आदमी दिखे,  जो उजड़ा हुआ चमन- सा महसूस हो तो समझ जाना ये बहुत से कामयाब चेलों का गुरु है और जब भी किसी आलीशान बंगले में और खूबसूरत कार में महँगे लिबास वाला कोई शख्स दिखे, तो समझ जाना यह उसी गुरु का चेला है । गुरु और चेले की यही दास्ताँ है कि गुरु, गुरु रहे और चेले जुमा हो गए ।

जो सफ़ल चेला है, हकीकत में वह पैदाइशी गुरु होता है। 

वह तो बस शिष्य होने का अभिनय करता है । किसी को अपने रास्ते से हटाने के जो बहुत से उपाय है उसमें एक यह भी है कि उसे अपना गुरु घोषित कर दो । यह समय चेलों का समय है । चेलों का भविष्य उज्ज्वल है और गुरुओं के लिए कोई संभावना नहीं है ।

सफ़ल व्यक्ति जब अपनी सफ़लता का श्रेय अपने गुरु को देता है, तब गुरु सोच में पड़ जाता है कि मैंने तो उसे यह ज्ञान नहीं दिया था । आज हर क्षेत्र में चेलों का ही बोलबाला है, गुरुओं की कहीं कोई पूछ नही है । बहुत से गुरु होने की काबलियत रखने वाले लोग, अब घर से निकलने में डरने लगे है कि कही कोई पीछे से आकर अपना गुरु न बना ले ।

गुरुओं के लिये कोई ठोस आर्थिक नीति नहीं है । कृषक के लोन माफ़ हो रहे हैं और गुरुओं को कोई कर्ज़ देने को तैयार नहीं । सभी किस्म की व्यवस्था जिनके हाथ में है, उन्होंने गुरुओं के लिए कोई व्यवस्था नहीं की । आज के चेले गुरु को गुरु मानते है लेकिन गुरु की एक नहीं मानते है। चेलों के चैनल है, लेकिन गुरु ख़बर में नहीं है । गुरु लेने वालों की लाइन में खड़े हैं और शिष्य देने के लिये मंच पर विराजमान है मगर अनजान बने । चेलों की भव्य  बर्थडे पार्टी होती है और गुरुओं की शोक सभा । जिसे कभी कोई बधाई और शुभकामनाएँ देने नहीं जाता; लेकिन श्रद्धांजली देने के लिए लोग उमड़ पड़े उसे गुरु कहते हैं ।

आज के शागिर्द अपने बच्चो को अपने ही उस्ताद के पास ज्ञान लेने भेजते है और अपने बच्चो को समझाते है कि गुरु जी की बाते ध्यान से सुनो और अपने दिमाग में फिट कर लो; क्योकि ये वो बाते है, जिन्हें कभी अपनाना नहीं, वरना कहीं के नहीं रहोगे । यह समय किसी के बताए रास्ते पर चलने का समय नहीं है; बल्कि मनमानी करने का समय है । जो मनमानी करते हैं उन्हीं के मन की मानी जाती है ।

ऐसा बिलकुल भी नही माना जाए कि शिष्य अपने गुरु की चिंता नही करते हैं। बहुत चिंता करते है । गुरु को ऊँचा पद देकर उनके उपर ज़िम्मेदारी का बोझ नहीं लादते है , उन्हें सुविधाएँ प्रदान कर उनका संघर्ष खत्म नहीं करते , गुरु दक्षिणा में बड़ी राशि देकर वे गुरु की चैन की नींद नहीं छीनते । गुरु जी की जर्जर ढाँचा परियोजना ही गुरु के प्रति उनकी श्रद्धा है। अब चेलों ने अपने मकान बदल लिये है और गुरुओं का पता आज भी वही है; इसलिए कहा जाता है गुरु वहीं के वहीं रहे और चेले कहाँ  से कहाँ पहुँच गए । आज गुरु के सीने से भाप निकल रही है, जिसे देखने वाला कोई चेला उनके पास नहीं है । हर गुरु अकेलापन भोगने के लिए अभिशप्त है ।

कामयाब  चेलों के गुरु अपने ही घर में घिर गए है । अब बच्चे बड़े हो गए हैं और पूछ रहे हैं – पापा आप गुरु क्यों हुए, काश आप भी चेले होते, तो हमें ये बुरे दिन तो न देखने पड़ते। आप झोंपड़ी की रात और वो जंगल की सुबह है।

जब शिष्य पूर्णतया प्रशिक्षित हो जाता है, तब सब से पहले वह गुरु की नाव में सुराख़ करता है । ये नये ज़माने के शिष्य है, जो उस्ताद की तरफ़ आँख उठाकर नहीं देखते सीधे, कंधे पर उठाने वाले दिन आते है । चेला काटने वाला कीड़ा और गुरु सहने वाली पीड़ा है । शिष्य की बेवफ़ाई पर गुरु आँसू नहीं बहाते है: क्योंकि वह गुरु है उसे मालूम है कि उसके आँसुओं से यह सूखा जंगल हरा नहीं हो जाएगा, उसे आँसू की हकीकत मालूम है कि वह आँख से होकर गाल भिगोकर मिट्टी में मिल जाएगा।

सम्पर्कःनिकट मेडी हेल्थ हास्पिटल , आमानाका , रायपुर ( छत्तीसगढ़ ), मो.न. 9826126781



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