- किसी भी देश में शहीदों का सम्मान सर्वोपरि होता है, फिर भले ही वह बलिदान देश प्रेम के अंतर्गत किसी युद्ध में हुआ हो या फिर मानवता को कलंकित करती किसी आतंकवादी घटना में। शहादत को प्राप्त ऐसे लोग विदेशों में तो पूजे जाते हैं और मानवता की बलिवेदी पर समर्पित उनकी शहादत का पीढ़ी दर पीढ़ी सम्मान किया जाता है। रूस में तो हर विवाहित जोड़ा सबसे पहले शहीद स्मारक पर जाकर शीश नवाकर अपनी गृहस्थी का श्रीगणेश करता है।
- हमारे देश की आजादी में भी क्रांतिकारियों के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता, किंतु जिस सम्मान के वे हकदार थे उसे देने में हमने कोताही बरती। कृतघ्नता की जीती जागती मिसाल। बकलम श्रीकृष्ण सरल :
शहीदों की चिताओं पर लगते नहीं मेले
वतन पे मरने वालों का नहीं बाक़ी निशाँ कोई
- खैर बात का प्रसंग यह है कि अमेरिका के न्यूयॉर्क नगर में 9/11 के ही दिन ट्विन टॉवर ब्लास्ट की आतंकवादी घटना में मानवता को शर्मसार करते हुए आतंकवादियों के एक सरगना द्वारा हजारों निर्दोष लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था। यह इतिहास का सबसे शर्मनाक काला अध्याय है।
- अपने अमेरिका प्रवास के दौरान उस स्थल पर जाकर न केवल मेरी आँखें नम हो गईं, अपितु जो अद्भुत हृदयस्पर्शी बात मन को गहराई तक छू गई वह कुछ यूँ थी :
1- जिस जगह ट्विन टॉवर को ध्वस्त किया गया, अब उस स्थान पर लोगों के अवलोकन के लिए झरना युक्त विस्तृत एवं सुंदर चौकोर कुंड का निर्माण कर दिया गया है।
2- चारों ओर लगभग 3 फीट ऊँची ग्रेनाइट युक्त पैराफिट वाल पर सभी शहीदों के नाम भी उकेरे गए हैं, ताकि लोग आज भी अपने दिवंगत संबंधियों को श्रद्धांजलि दें सकें।
3- यही कारण है कि यह स्मारक पूरे वर्ष किसी न किसी संबंधी के शहादत स्थल पर आकर फूल अर्पित प्रयोजन के माध्यम से आतंकवाद के विरुद्ध अहिंसात्मक आंदोलन का प्रतीक भी बन गया है।
4- आश्चर्य की बात यह भी है कि यहाँ न कोई उद्घाटन नुमा शिलालेख है और न ही किसी नेता का नाम। एक ज्वलंत जाग्रत स्मारक जहाँ जाते ही असीम शांति और प्रार्थना का मन हो जाए।
- काश राजनीति एवं स्वार्थ मुक्त ऐसी किसी परंपरा का सम्मान हम भी कर पाते और फिर से गर्व से कह पाते :
शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे हर बरस मेले
वतन पर मरनेवालों का यही बाक़ी निशाँ होगा