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ग़ज़ल- रंग- बिरंगा फाग

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- निधि भार्गव मानवी

 ( गीता कालोनी, ईस्ट दिल्ली )



फागुनी ऋतु आ गई हिय जागता अनुराग है ।

तन बदन में घोलता रस रंग- बिरंगा फाग है ..


भावनाएँ जोर करतीं हो रहा मदहोश मन ।

पाँव थामे से न थमते, मन की भागम भाग है ..


हैं पिया परदेश जिनके उनके जी की क्या कहूँ ।

बिरहनों के हिय में इक विरह की आग है ।


क्यूँ गगन में चाँद तारे कर रहे अठखेलियाँ ।

दिल जलाती रात काली, हसरतों में दाग है ।


आएगा मेहमान कोई घर हमारे आज फिर ।

भोर से ही नित मुँडेरी बोलता यह काग है ।



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