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हास्य - व्यंग्य- 1. महिला दिवस पर गंभीर विमर्श

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- लिली मित्रा

( फरीदाबाद , हरियाणा )

“अन्तर्राष्ट्रीयमहिला दिवस दस्तक देते ही, सभी सशक्त महिलाएँ सशस्त्र होकर कमर कस लें… जम कर अपने आप को अबला साबित करना है।  हर महिला को पूरा अधिकार है कि वो अपने-अपने स्तर पर इस दिन को अपने हिसाब से जिएँ। 

पूरे साल भर की कसर निकालने के लिए परिवार के सभी पुरुषों का शोषण जम कर कीजिए, इसी परंपरा के तहत सुबह उठते ही बच्चों को चेतावनी दे दीजिए – ‘देखो केवल विश करने से कोई दिन नहीं मनता है आज माँ की सेवा करो। ‘ उनसे उनकी स्टडी टेबल ,कपड़ों की अलमारी आदि ठीक करवाएँ ,छितरे सामान आदि सेट करवाएँ । 

पति देव को बोल दीजिए सारा दिन आप आराम फरमाएँगी , इस दिनचर्या में कोई खलल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा .. नाश्ता खुद बनाइए , लंच डिनर का क्या? कैसे? हिसाब-किताब बैठाना है ये सब सोचने का टेंशन मुझ तक नहीं आना चाहिए । 

 आप केवल फोन पर सखी सहेलियों संग अपने द्वारा किए गए शोषण नामे का अतिशयोक्ति पूर्ण बखान करती फिरिए । ‘सहेलियाँ अव्वल ना आने पाएँ’ इस मुद्दे पर काम करना ही आज का लक्ष्य रहेगा।  पति से गिफ्ट लें और सबसे अहम काम पतिदेव द्वारा गिफ्ट देते हुए ,किचन में काम करते हुए,  सचित्र, फेसबुक-पोस्ट अवश्य डलवाएँ । 

   बच्चे जब तक ये न कहें, मम्मी अब बस भी करो इतना तो हम ‘चिल्ड्रेन्स डे’ पर भी नहीं करते, तब तक सेवा में लगाए रखें। 

एक साल तो ऐसा भी हुआ कि लग रहा था जैसे कोई जलकुकड़ा किसी ‘सशक्त अबला’ की  आतिताइयत से जबरदस्त खार खा बैठा हो शायद , भाईसाब !!!  अइसा  कैलेंडर सेट किया कि  पूछिए मत कई सालों की खुन्नस एक्कै बार में निकाल ली ... महिला दिवस के अगले दिन ‘होली’ रखवा दी ... औरतों का एक दिन का आराम बर्दाश्त नहीं होता जमाने से..!

पर चलिए कोई बात नहीं किसी साल ऐसी  स्थिति आ भी जाए तो दुखी होने की कोई जरूरत नहीं है अगले साल कसर पूरी कर लें । 

2. गौरैया फ़ैमिली की संडे-टेल

आज सुबह से ही तीनों ने नाक में दम कर रखा है।  पिद्दी सी जान..  पर आवाज़ नें कानों को झाला-पाला कर दिया। सुबह से मैं और गुल्लू बार-बार इनको ही देख रहे हैं । तीनों ने चिल्ल-पों मचा रखी है। इस बार खाना खिलाने की ड्यूटी पापा चिड़िया जी की लगी है, और पापा चिड़िया संडे मनाने चले गए हैं  शायद ! दिख ही नहीं रहे- दूर दूर तक। 

   अप्रैल में गौरैया ने जब तीन बच्चे दिए थे ,उस समय माता जी की ड्यूटी थी खाना खिलाने की।  इस बार तो मैडम जी हिल ही नहीं रहीं। दूर बैठकर केवल निर्देशित करती हैं। बार-बार खिड़की के पलड़े पर बैठ जरूर रहीं हैं पर खाना नहीं खिला रहीं।  और बच्चे हैं कि  चिल्लाए जा रहे ...

    ढाई बजे करीब पिताजी आए, पहले तो बीवी ने उनकी जमकर क्लास लगाई। बिचारे चुपचाप पानी के कटोरे पर बैठे सुनते रहे, लुगाई उनकी ज़ेड प्लांट की हैंगिंग बास्केट पर झूलते हुए कर्कश वाणी में हड़काए जा रहीं -

कहाँ थे?

बच्चों को खाना कौन खिलाएगा?

चल दिए यार-दोस्तों के संग संडे मनाने। 

समय देखे हो, दोपहर के 2 . 30 बज चुके हैं। 

अटरू, मटरू, पटरू चिल्ला-चिल्ला के धरती पाताल एक कर रहे हैं । 

अब जाओगे…। खाना खिलाने ?

कि  बैठे ही रहोगे मूरत बने?

बेचारे चिड़ाराम मेहरारू के गरम मिजाज के आगे चूँ तक ना बोले तुरंतै उड़ गए  । 

थोड़ी देर बाद लौटे खाना लेकर । तीनों को एक-एक कर के खिलाए । 

सारे ‘संडे मूड’ का भूत मिनटों में उड़न छू हो गया। 

चिड़ा राम की बेचारगी पर गुल्लू को दया आई।  थोड़ा सा भात रख आए पानी के कटोरे के पास। 

अब हम देख रहे के पापा जी वही भात ले लेकर खिला रहे तीनों शैतानों को। 

पेट में दाना पड़ा है तब जाके थोड़ी शान्ति हुई है।  चिड़ाराम जी की मेहरारू लेकिन अभी भी रुसियाई  बैठीं हैं खिड़की के पलड़े  पर घूरती हुई सी और चिड़ाराम सूखते प्राण लिए बैठे हैं पानी के कटोरे पर पल्ली  तरफ मुँह घुमाए। 

3. वुमन डे के उपलक्ष्य पर 

विशेष सलाह

ओ वोमनिया ! सुनो

अगर आपको

‘घर की मुर्गी दाल बराबर’

समझा जा रहा है..

तो बहनों ! ऐसा बिल्कुल भी मत

समझने दीजिए,अपने

अस्तित्व को पहचानिए,,

 मुर्गी बनिए

और

पक्कपक पक पक पकाक् करते हुए

कढ़ाई से निकल कर  

भाग लीजिए ।



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