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कविता- एक चुटकी अबीर

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-सीमा सिंघल ‘सदा’ 

sadalikhna।blogspot।in/,

 email- sssinghals@gmail।com


माँ तुम कहती थी

कि ये एक चुटकी अबीर

किसी भी रंग का क्यों न हो

पर होता पूरा पक्का है

प्रेम के कणों से भरा हुआ

उत्सव के क्षणों में

अपना सर्वस्व

अपनी ऊर्जा सब लुटाकर

भीग जाता है

नेह से गले लगकर !




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