कैसे हाशिए
कृष्णा वर्मा
जैसेहीसमीरालंचसेलौटकरआईउसकेसेलफोनपर एकमैसेजआया।मैसेजकोपढ़तेहीउसकेचहेरेपरपरेशानीकीलकीरेंउभरनेलगीं।“माँकीतबीयतबहुतखराबहैमेलदेखतेहीतुरन्तचलीआना”तुम्हारीजीजीसलोनी।समझनहींपारहीथीक्याकरे।जलदीसेछुट्टीकीअर्ज़ीलिखनेलगीसाथ-साथमनमेंघबराहटभीहोरहीथीकिपहलेसेहीदोलोगछुट्टीपरहैंऔरआजकलकामकाभीबहुतज़ोरहै,पतानहींशर्माजीअर्ज़ीमंज़ूरकरेंगेयानहीं।इसीउधेड़-बुनमेंवहशर्माजीकेपासपहुँचगई।शर्माजीकाममेंआँखेंगड़ाएबैठेथे।
अचकचाती सी बोली, "सर....सर।”
शर्माजीनेआवाज़सुनकर चश्मेकेऊपरसेआँखउठाकरदेखा,"जीकहिए।"
झिझकतेहुएसमीरानेअर्ज़ीआगेकरदी।
देखतेहीवहभनभनाकरबोले,"तुम्हेंपताहैनापहलेसेहीदोलोगछुट्टीपरहैं। कामकितनापिछड़ रहाहैऔरतुमहोकिछुट्टीमाँगनेचलीआईं।"
"सर- व्वोमेरीमाँकीतबीयतबहुतखराबहैअभी-अभीमेरेघरसेमेलआईहै।"
"हाँ-हाँजानताहूँआए दिन छुट्टी लेने के यह घटिया से पुराने बहाने। या तो किसी रिश्तेदार को बीमार कर दो या जीते जी सीधा उसे स्वर्ग पहुँचा दो, क्यों सही है ना।"
शर्मा जी की बातों को सुनकर हताश हुई समीराने अपने पर्स में से अपना सेल फोन निकाला और घर से आई बहन की मेल खोलकर उनके सामने रख दी और और रुँधी आवाज़ में बोली, "मैं झूठ नहीं कह रही हूँ सर, इससे अधिक मेरे पास कोई प्रमाण नहीं है।"गिड़गिड़ाकर किसीतरहउसने शर्मा जी से एकसप्ताहकीछुट्टीमंज़ूरकराली।
अपनी सीटपरवापसआकरकाममेंदिलकहाँलगरहाथा उसका।ध्यानतोमाँमेंपड़ाथा।मन में मची उथल-पुथल चैन कहाँ लेने दे रही थी। हर थोड़ी देर में अपनी हाथ घड़ी देखती कि कब घूमती सुइयाँ पाँच बजाएँ और वह निकले। पाँचबजतेहीउसने राहतकीसाँसली।अपना पर्स कंधे पर टाँगा और लगभग भागती हुई-सी बाहर निकली। सड़क पर हर ओर आतुर नज़रों से ऑटो रिक्शा खोजने लगी। सामने से अचानक ख़ाली ऑटो को आते देख उसे रुकवाते हुए मन ही मन ईश्वर का धन्यवाद किया। घरपहुँचकरजल्दी से एकबैगमेंकुछकपड़ेभरे।रास्तेकेलिएदो-चारपत्रिकाएंरखींऔरचलदीरेलवेस्टेशनकीओर।किसीतरहतिकड़म लगा कर अपनी टिकिटकाइंतज़ामभीकर लिया।भीड़कोचीरतीहुई धक्का-मुक्कीमेंजैसे-तैसेकरगाड़ीभी पकड़ली।जल्दीसेखिड़कीवालीसीटपरअपनाबैगरखा और फिर माँ की चिंता में घुलने लगी।कुछहीमिनटोंमेंगाड़ीछूटगई।दिनभरकीथकीसमीराकोझपकियाँ घेरनेलगी। तभीउसेख़्यालआयाकिआलोककोतोबतानाहीभूलगईकिअचनाककुछदिनकेलिएदिल्लीजानापड़रहाहै,सोकल उसेमिलनहीं पाएगी।फोनकरकेबतानेकासोचहीरहीथीकिगाड़ीकेहिचकोलोंमेंआँखेमुँदतीगईंऔरनींदमेंडूबगई। कुछघंटोंकेबादनींदटूटीऔरध्यानफिर माँकीओरजाटिका।ख़ुदकोबार-बारसमझाती -माँकोकुछनहींहोगासबठीकहोजाएगा।मगरमनहैकिखूँटातुड़ाकरफिरउल्टे-सीधे ख़्यालों में पहुँच जाता।

"हाँ-हाँबैठो।"
भीतरबैगसरकायाबैठते-बैठतेबोली,"मीटरतोडाऊनकरलो।"
"एकदामपचासरुपयालगेगामैडम,चलनाहोतोबोलो।"
"अच्छा ठीकहै –चलो।"
बैठतेहीफिरसोचमेंउलझगई।
"मैडम –करोलबाग!"ऑटो चालक की आवाज़ सुनकरउसकीतंद्राटूटी।
झटबोली,"बाएँ हाथमुड़ करपहलीगलीमेंचौथाघर।"
ऑटोकेरुकतेहीपचासकानोटदेतीहुईअपनाबैगउठाघरकेदरवाज़े परपहुँची। कंपनभरेहाथसेघंटीबजाई।दरवाज़ाखुलतेहीसामनेदमयंतीमौसीकोपाया।छूटतेहीबोली,"माँकैसीहैमौसी? सबठीकतोहैना!"
"हाँ-हाँसबठीकहै;पहले भीतरतोआजा।"
दरवाज़े की साँकल उड़काती हुई मौसी बोली, "बसनिम्मोज़राघबरागईथी,सोतुझेआनेकोकहदिया।"
कमरेमेंमाँकोभली-चंगीदेखसमीराठिठकीसीबोलीमाँ,"तुमतो ठीक-ठाकदिख रही होफिरमुझेक्यों?"
"बसमिलनेकोदिलचाहरहाथा।सोचा -यूँतोतूआएगीनहीं; इसलिएबुलवाभेजा।"
खीझी सी आवाज़ में "माँतुम भी ना..."कहकर चुप हो गई।
थोड़ीहीदेरमेंमौसीचाय-नाश्तालेआई।चायसमाप्तहोतेहीमाँबोली,"जाजाकरथोड़ासुस्तालेसफ़रकीथकीहुईहै।"
समीरावहींबिछेपलंगपरपरलीतरफकरवटलेकरलेटगई। नींदतोआनहींरहीथी।बसआँखेंमूँदेइसीसोचमेंपड़ीरहीकिआखिरऐसीक्याबातहैजोमुझेयूँअचानकबुलाभेजा।मुझेसोयाहुआजानथोड़ीदेरबादहीमाँऔरमौसी कीआपसमेंखुसर-पुसरशुरूहोगई।
"जीजीअबशादीकीबातपक्कीकरकेभेजना।"दमयंतीमौसीकेस्वरमेंअबऔरअधिकढीलनादेनेकीचेतावनीथी।"अरेमानेगीतभीना! ज़बरदस्तीकैसेकरूँगी?"
"नामानेगीतोइसबारउसकेसाथरहनेचलीजाना।"
शकतोसमीराकोआतेहीहोगयाथा;लेकिनअबतोयक़ीनहोगयाहैकिमामलाकुछऔरहीहै।गुमसुमपड़ीसोचतीरहीकहींमाँकोआलोककेबारेमेंकोईशकतोनहींहोगया।नहीं-नहींहमारातोकोईभीजानकार बंगलोर मेंनहींरहता।कुछदेरबादसमीरा उठीऔरउठकरजहाँमाँऔरमौसीबैठीथींवहींकुर्सीखिसकाकरबैठगई।उनदोनोंकीखुसर-पुसरचुप्पीमेंबदलगई।इतनेमेंहीसलोनीदीदीभीआगईं।समीरा ने सलोनी दीको शिकायती लहजे में कहा, "माँ तो भली चंगी है; फिर आपनेमुझेयूँहीक्यों बुलालिया?"
"यूँहीकहाँ -माँ ने कहा ज़रूरीकामहै, तभी तोबुलायाहै।"
"ऐसाभीक्याज़रूरीकामथादीकिइतनेबिज़ीसीज़नमेंबुलाभेजा।आपक्याजानेछुट्टीलेने केलिएकितना अपमानित होना पड़ा।"
तपाकसेमाँबीचमेंहीबोलउठी,"जानतीहूँकितनीबिज़ीहैतू।कौनहैवहजिसकेसाथकईबारदमयंतीमौसीकीबहू नैनानेतुझेघूमतेदेखाहै।"
"पिछलेएकमहीनेसेउनलोगोंकास्थानांतरण बंग्लौर मेंहोगयाहै।आते-जातेकारसेउसनेतुझेकईबारउसलड़केकेसाथदेखाहै।"
"अरे...माँ!वहतोआलोकहै।मेरेहीविभागमेंकामकरताहै।बहुतअच्छालड़काहै।आजकलथोड़ापरेशानहैक्योंकिपत्नीकाअचानकदिलकेदौरेसेदेहान्तहोगया।दोसालकाएकबेटाभीहै।शहरमेंअकेलाहैसोकभी-कभीमुझसेअपनादुखबाँटलेताहै।इसमेंबुराईभीक्याहै,माँ?"
"अच्छा-अच्छाज़्यादाबातेंनाबना। दुखबाँटनेकेलिएतूहीमिलीथीक्या? कोईज़रूरतनहीं किसी के इतने दुख सुनने के, समझी!लड़कीज़ातकोअपनीमर्यादामेंरहनाचाहिए।जानतीनहींकलकोइनबातोंसेतेरीशादीमेंरुकावटआसकतीहै।"
"क्योंमाँलड़कियोंकादिलनहींहोतायाभावनाएँनहींहोतीं? उन्हेंअपनीइच्छासेजीनेकाभीहकनहींहै क्या?"
"नहीं, मैंनहींमानतीइनबेतुकीबातोंको। माँ की आवाज़ कुछ और सख़्त हो गई। "बस-बसरहनेदे,अपनेपासहीरख अपनीनई सोचकोऔरमेरीबातकोध्यानसेसुन।दमयंतीमौसीनेएकरिश्ताबतायाहै।खाते-पीतेलोगहैं।घरमेंठाठ-बाठहैं।लड़कापढ़ा-लिखाहैऔरसरकारीनौकरीकररहाहै।"
समीराकेकुछकहनेसेपहलेहीमौसीबीचमेंबोलपड़ी,"समीराकेसाथहीतो कॉलेज मेंपड़तीथीउसकीबहन।"
समीराउसकीबहनकानामसुनतेहीबोली,"जानतीहूँउसलड़केकोनिरालफंगा।सारा-सारादिनआवाराघूमना, लड़कियोंकोफिकरेकसना।पितापुलिसविभागमें कामकरतेहैंऔरउनकाकामहरनरम-गरमसेघूसऐंठना हैं।हरामकापैसा जोआताहै,ठाठ-बाठतोहोंगेही।ऐसेलड़केसेविवाह!कदाचित्नहीं।"बिना कुछसोचेसमीराफटाकसेबोलउठी,"माँमैं शादी करूँगी, तो आलोकजैसे लड़के से मुझे वह हर लिहाज़ से बहुतपसंदहै।मैंउससेशादीकरनाचाहतीहूँ।"
यहसुनतेहीमाँकेपैरोंतलेसेज़मीनखिसकगई। और वहफटी-फटीआँखोंसे समीराकीओरदेखतीरहगई।
एका-एकफूटपड़ी, "मतितोनहींमारीगईतेरी।विधुरसेब्याहकरेगीक्या औरउसपरएकबच्चाभी! लोग क्या कहेंगे।"
समीरा भी बिफ़र गई, "लोगों को जो कहना हो वो कहें, मुझे किसी की कोई परवाह नहीं है। विधुरहै!कोईदुश्चरित्रतोनहीं।पढ़ा-लिखासभ्यइंसानहै।यदिबच्चाभीहैतोक्याहुआ, किसीकासहाराबननामेरीनिगाहमेंतोकिसीपुण्यसेकमनहीं।"
"बिरादरीमेंनाकनकटजाएगी।"

पर माँकब टली; वह तो अपनी ज़िद कोलियेबैठीरही।समीराभीटससेमसनहींहुई।माँ कभीगुस्सेसेकभीप्यारसेसमझातीरहीकिआलोककाख्यालदिलसेनिकालदे।आख़िर समीराकेवापसजानेकादिनआगया।जबसमीरापरकोईअसरहोतानादिखातोमाँ नेअपनेसरकीकसमदेकरवशमेंकरनेका अमोध अस्त्रअपनाया।समीरानेस्टेशनजानेकेलिएआटो-रिक्शामँगवाया।वहजब चलनेकोहुईतोमाँनेझट से उसकेगलेमें अपनीतुलसीकीमालापहनादी और ताकीद करते हुए बोली,"पहने रहियो इसमालाको,ताकियहतुझेमेरीदीहुई कसमकीयाददिलातीरहे।"
समीराबिनाकुछबोलेआटो-रिक्शामेंबैठगईऔररास्तेभर माँ की दकियानूसी बातों कोसोच-सोचकर परेशान होतीरही।लेकिन वह दुख और गुस्से की आती-जाती लहरों में डूबी नहीं; बल्कि अपने मन को दृड़ कर आश्वस्त करती रही कि हो न हो मैं इन कसमों की लकीरों और रूढ़ियों के हाशिए को तो तोड़ कर ही दम लूँगी। उसका ऑटो कुछ दूर ही पहुँचा था कि लाल बत्ती हो गई। भीड़भरीसड़कपरबसोंकारोंकेबीचऑटो लालबत्तीपर ज्यों हीरुकासमीरानेझटसेमालागलेसे खेंच करतोड़ते हुएउसकेसारेमनकेसड़कपरदेमारेताकीबसोंवकारोंकेपहियोंकेनीचे दबकरमाँकीदीकसम चूर-चूरहोजाएऔरसमीरा इन रूढ़ियोंसेमुक्त।
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