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पर्यावरण

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स्वास्थ्यऔरस्वच्छताको
चुनौतीदेता- कबाड़
 - नवनीतकुमारगुप्ता
भारतीयवाणिज्यएंवउद्योगमंडलयानीएसोचैमकेपर्यावरणतथाजलवायुपरिवर्तनपरिषदकेताज़ाअध्ययनकेअनुसारभारतदुनियामेंसर्वाधिकइलेक्ट्रॉनिककचराउत्पन्नकरनेवालादेशहै।यहाँहरवर्ष13लाखटन-कचराउत्पन्नहोताहै, जिसकासिर्फ1.5प्रतिशतभागविभिन्नसंगठितअथवाअसंगठितइकाइयोंमेंदोबाराइस्तेमालयोग्यबनायाजाताहै।
असलमेंआजकायुगउपभोक्तावादकायुगहैऔरइसयुगकोतेज़गतिप्रदानकीहैसूचनातथासंचारक्रांतिने।अर्थ -व्यवस्था, उद्योगोंतथासंस्थाओंसहितहमारेदैनिकजीवनमेंसूचनातथासंचारक्रांतितेज़ीसेबदलावलारहीहै।एकओर, इलेक्ट्रॉनिकउत्पादहमारीज़िंदगीकाअभिन्नअंगबनचुकेहैं।वहींदूसरीओरयहीउत्पाद, संसाधनोंकेअनियंत्रितउपभोगतथाभारीमात्रामेंकचराउत्पन्नकरनेकेलिएभीजिम्मेदारहैं।
प्रौद्योगिकीकातेज़विकास, तकनीकीआविष्कारोंकाआधुनिकीकरणतथाइलेक्ट्रॉनिकउपकरणोंमेंतेज़ीसेबदलावकेकारणविश्वमेंइलेक्ट्रॉनिककचरेकेउत्पादनमेंभारीवृद्धिहोरहीहै।इलेक्ट्रॉनिककचराया-कचराइलेक्ट्रॉनिकतथाविद्युतउपकरणोंसेउत्पन्नहोनेवालेऐसेसभीप्रकारकेकचरेकोकहतेहैं, जिनकीअबमूलरूपमेंउपयोगितानहींरहीहैऔरजिन्हेंदोबाराउपयोगलायकबनानेयापूरीतरहसमाप्तकरदेनेकीआवश्यकताहै।उदाहरणकेलिएपुरानेरेफ्रिजरेटर, खराबहोचुकीवॉशिंगमशीन, बेकारकंप्यूटरतथाप्रिंटर, टेलीविज़न, मोबाइल, आईपॉड, सीडी, डीवीडी, पेनड्राइवइत्यादि।
देशमेंउत्पन्न-कचरेका90प्रतिशतसेअधिकभागअसंगठितबाज़ारमेंदोबाराइस्तेमालकेलिएअथवानष्टकरनेकेलिएपहुँचताहै।येअसंगठितक्षेत्रआमतौरपरमहानगरोंतथाबड़ेशहरोंकीझुग्गीबस्तियोंमेंहोतेहैं, जहाँअकुशलकामगारलागतकमकरनेकेउद्देश्यसेबिलकुलअनगढ़तरीकोंसे-कचरेकोदोबाराइस्तेमालयोग्यबनातेहैं।येकामगारखतरनाकपरिस्थितियोंजैसे, दस्तानोंतथामुखौटोंकाप्रयोगकिएबिनाकार्यकरतेहैं।इसप्रक्रियामेंकचरेसेनिकलनेवालीगैसें, अम्ल, विषैलाधुआँतथाविषैलीराखकामगारोंतथास्थानीयपर्यावरणकेलिएखतरनाकहोतीहै
-कचरेमेंकईप्रकारकेप्रदूषणफैलानेवालेतथाविषैलेपदार्थहोतेहैं, जैसे, सर्किटबोर्डमेंकैडमियमतथालेड, स्विचतथाफ्लैटस्क्रीनमॉनिटरमेंपारा, पुरानेकैपेसिटर्सतथाट्रांसफार्मर्समेंपोलीक्लोरिनेटेडबाईफिनाइलतथाप्रिंटेडसर्किटबोर्डकोजलानेपरनिकलनेवालीब्रोमीन-युक्तआग।इनहानिकारकपदार्थोंतथाविषैलेधुएँकेलगातारसम्पर्कमेंरहनेसेइसकाममेंलगेकामगारोंमेंबीमारियाँपनपतीहैं।
देशके70प्रतिशत-कचरेकाउत्पादनदेशके10राज्योंमेंहोताहै, जिसमें19.8प्रतिशतयोगदानकेसाथमहाराष्ट्रपहलेस्थानपरहै।इसकेबादतमिलनाडुमें13.1प्रतिशत, आंध्रप्रदेशमें12.5प्रतिशत, उत्तरप्रदेशमें10.1प्रतिशत, पश्चिमबंगालमें9.8प्रतिशत, दिल्लीमें9.5प्रतिशत, कर्नाटकमें8.9प्रतिशत, गुजरातमें8.8प्रतिशततथामध्यप्रदेशमें7.6प्रतिशतइलेक्ट्रॉनिककचरेकाउत्पादनहोताहै।
देशमेंबढ़ते-कचरेकेखतरेसेनिपटनेकेलिएभारतसरकारकेपर्यावरण, वनएवंजलवायुपरिवर्तनमंत्रालयने-कचराप्रबंधननियम, 2016लागूकियाहै।2018मेंइसनियममेंसुधारकियागया, ताकिदेशमें-कचरेकेनिस्तारणकोदिशादीजासकेतथानिर्धारिततरीकेसेकचरेकोनष्टअथवापुनर्चक्रितकियाजासके।कोशिशयहहैकिई-कचरेकोठिकानेलगानेकेक्षेत्रकोमान्यताप्राप्तहो, कामगारोंकेस्वास्थ्यपरबुराप्रभावनापड़ेतथावातावरणप्रदूषितहो।
नएनियमोंमेंइलेक्ट्रॉनिकसामग्रियोंकेउत्पादकोंकेलिएउनकेनिस्तारण, प्रबंधनतथा
परिचालनकेलिएदिशानिर्देशजारीकिएगएहैं।सबसेमहत्त्वपूर्णबातहैकि2018 केसंशोधनकेबादअबयहइलेक्ट्रॉनिकसामानोंकेनिर्माताओंकीज़िम्मेदारीहैकिवेसरकारद्वारानिर्धारितलक्ष्यकेअनुरूप-कचरेकोएकत्रकरकेनिस्तारणकरें।इससेउत्पादकभीकमविषैलेतथापर्यावरणकेअनुरूपउत्पादतैयारकरनेकेलिएप्रेरितहोंगे, औरउपभोक्तास्वस्थवातावरणमेंप्रौद्योगिकीकेविकासकासार्थकएवंस्वस्थउपयोगकरसकें (स्रोतफीचर्स)

चोका

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उड़ीसुगंध

 - डॉ. कविताभट्ट

निर्द्वन्द्वमन
शान्तनीलगगन
प्रेमघन-से
प्रियछाए-घुमड़े
आँधीजगकी
तेजचलतीरही
मैंभीअडिग
तुमभीथेहठीले
हुएघनेरे
निशि-साँझ-सवेरे
तनयोंमेरे
झरीप्रेमफुहारें
तपतीधरा
अभिसिंचितहुई
उड़ीसुगंध
कुछसोंधी-सोंधी-सी,
उनबूँदोंसे
हैअतृप्तजीवन

अस्तुशेषहैं
पुन:-पुन: अबभी
प्रेमघनको
मनकेआमंत्रण
औरआशाभी-
बरसेगाअमृत
सुगन्धितहो
होगातृप्तजीवन
खिलेगाउपवन

सम्पर्क- FDC, PMMMNMTT, द्वितीयताल, प्रशासनिकब्लॉक-ll, हे..गढ़वालविश्वविद्यालय, श्रीनगरगढ़वालउत्तराखंड- 246174

लोककथा

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सर्गदेदीपाणिपाणि
एकपरिवारमेंदोमहिलाएँजेठानीऔरदेवरानीरहतीथीं।जेठानीबहुतदुष्टऔरदेवरानीशिष्ट, सौम्य, ईमानदारसेवाभाववालीथी।दोनोंकेहीकोईसंताननहींथी।देवरानीजोभीकमाकरलाती, वहअपनीजेठानीकोसौंपदेतीऔरदु:-दर्दकेवक्तपूरेमनोयोगसेउसकीसेवाकरती,ताकिदोनोंमेंप्रेमभावबनारहे।देवरानीकेइतनाकरनेकेबादभीजेठानीहरसमयनाराजरहती, उसकेसाथकिसीभीकाममेंहाथनहींबँटाती।
एकबारदेवरानीबीमारपड़गई।उसनेतबभीकोईकामकरनानहींछोड़ा।वहकाफीकमजोरपड़गई।जबवहकामकरनेऔरखुदभोजनआदितैयारकरनेमेंएकदमअसमर्थहोगई, तबउसकोअपनेलिएसहारेकीआवश्यकताअनुभवहुई।उसनेअपनीजेठानीसेकुछखानादेनेकोकहा; लेकिनजेठानीनेउसकीबातअनसुनीकरदी।यहाँतककिवहसिर्फअपनेलिएखानाबनातीऔरदेवरानीकोखानानहींदेती।
जबदेवरानीभूख-प्याससेव्याकुलहोनेलगी, तोउसनेफिरअपनीजेठानीसेअनुनय-विनयकी;लेकिनतबभीजेठानीनेखानानहींदिया।जबवहमरणासन्नहोकरप्याससेअत्यधिकव्याकुलहोउठी, तोउसनेअपनीजेठानीसेअपनीअंतिमइच्छाकेरूपमेंएकगिलासपानीदेनेकोकहा;लेकिनजेठानीनेएकगिलासपानीभीनहींदिया।तबदेवरानीनेमरते-मरतेउसेशापदेदिया- 'जिसप्रकारतूनेमुझेएकगिलासपानीतकनहींदिया, उसीप्रकारतुझेअगलेजन्ममेंइसपृथ्वीकापानीखूनकीतरहनजरआएगा।जीवितरहतेतूवर्षाकेजलकेलिएतड़पउठेगी।
कहावतहैकिअगलेजन्ममेंबड़ीबहूएकऐसापंछीबनी, जोकिजमीनकेपानीकोखूनसमझकरनहींपीताहै।सिर्फवर्षाकेजलकेलिएतड़पताहुआवहकहताहै-'सर्गदेदीपाणि-पाणि
यानिहेआकाशमेंछितराएबादलोंमुझेपानीदेदो।वर्षाकापानीभीडेढ़बूँदसेज्यादाउसकेगलेमेंनहींजापाता।

हाइकु

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बैरनवर्षा
- डॉज्योत्स्ना शर्मा
1
नींवमुस्काई
उसनेजोघरकी
देखीऊँचाई.
2
सजायेसदा
हिल-मिलसपने
प्यारावहघर।
3
गाँव, शहर
टुकड़ोंमेंबँटता
रोयाहैघर।
4
नेहकीडोर
खींचलियेजाएहै
छूटेघर।
5
देखे, सँजोए
तार-तारसपने
बेचैनघर।
6
रिसतेजख्म
पर्त-पर्तउघड़े
सिसकाघर।
7
महकाघर
आनेकीआहटसे,
तेरेइधर!
8
बैरनवर्षा
लेगईसारेरंग
बेरंगघर।
9
थकेनयन
जोहेबाटकिसकी
येखण्डहर।
10
होनेदूँगी
नीलाम, सपनोंका-
येप्याराघर!

उलझन !
1
रस्मोंकेगाँव
उलझगएमेरे
भावोंकेपाँव।
2
उलझेमिले-
लालचकीचादर
रिश्तोंकेतार।
3
किरनसखी
खोलेहैउलझन
नन्हीकलीकी।
4
प्रेमकीडोर
उलझामन, जाए-
तेरीहीओर!
5
यूँलुटाना,
धीरजसेसीपीमें
मोतीछुपाना।
6
यादोंकेमेले
सजातेरहोमन !
कहाँअकेले?
7
कैसामंजर!
अपनोंकेहाथोंमें
मिलेखंजर!
8
खालीहाथोंमें
तन्हाईकीलकीर
क्यातकदीर!
9
तुममुस्काओ,
जलेदीपमनके
आओआओ!
10
देगएपीर
चाहतकेबदले
बातोंकेतीर!

चोका
हरितपरिधान
देताहीरहा
सागरतोजीभर
धूपतपाए
तोबादलबनाए
खूबबरसे
यूँधरासींचआए
महकाजग
खिलेफूल-कलियाँ
धरानेधरा
हरितपरिधान
लगताप्यारा
खूबसूरतनज़ारा !...
मनकेमथे
दुनियाकोदेरहा
रत्नोंकेढेर
मोती-भरीसीपियाँ
भरी-भरीहैं
लहरोंकीवीथियाँ
नहींअघाया
जोडूबा, वोहीपाया
दियाअमृत
सबकोतूनेसारा
क्योंरहाआपखारा !!

सम्पर्कः  H-604 , Pramukh Hills, Chharawada Road, Vapi-396191,
 District-Valsad (Gujarat), email- jyotsna.asharma@yahoo.co.in

दोहे

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बदराजललेरहे
 - डॉ. शीलकौशिक
पूरबसेआईहवा, करतीयेऐलान।
बदराजललेरहे, रखनेउसकामान।।
नीरभरेबादलचले, जाबरसेंगेगाँव।
हवानिगोड़ीलेगई, टिकनेदिएपाँव।।
चुपके-चुपकेकहगई, पवनप्रेमकीबात।
बादलसंगकलरही, बूँदोंकीबारात।।
बूँदचलपड़ीवेगसे, ज्योंहीसुनीपुकार।
माँधरतीकीगोदमें, मिलताज्यादाप्यार।।
तपतीधरतीनेसुना, ज्योंबादल-संदेश। 
लीकरवटखिलगईअबबदलेपरिवेश।।
आसमानआँगनबना, बादलखेलेंखेल।  
काले, भूरेसफेद, रखतेअद्भुतमेल।।
सावनसूखाक्योंगया, कुदरतखोलेराज।
व्यथाबाँचनेकेलिए, यहउसकाअंदाज।।   
तनसेज्यादाभीगते, अबकीउसकेनैन।
सरहदसेलौटानहीं, मनउसकाबेचैन।।
झूलेकंगनचूडिय़ाँ, मेंहँदीकेहाथ।
वोउमंगखुशियाँनहीं, गरनासावनसाथ।।
रिमझिमबूँदेंमेहकी, जैसेमाँकाप्यार।
बारिशमूसलधारतो, लगेपिताकीमार।।
कैसातिलिस्मरचरही, टँगीतारपरबूँद।
आह्लादितहोदेखती, चिडिय़ाआँखेंमूँद।।
बरसोंबिछुड़ेप्रेमकी, बारिशलाईआस।
उमड़-घुमड़यादेंसभी, चलकरआईंपास।।
पूरबसेआईहवा, करतीयेऐलान।
बदराजललेरहे, रखनेउसकामान।।
नीर-भरेबादलचले, जाबरसेंगेगाँव।
हवानिगोड़ीलेगई, टिकनेदिएपाँव।।
चुपके-चुपकेकहगई, पवनप्रेमकीबात।
बादलसँगकलरही, बूँदोंकीबारात।।
बड़ेवेगसेचलपड़ी, जैसेसुनीपुकार।
माँधरतीकीगोदमें, मिलताज्यादाप्यार।।
जलगगरीबादललिये, जाएँअबकिसठाँव।
नापंछीकेगीतहैं, नापेड़ोंकीछाँव।।
झूलाबेटीझूलती, करतीयहीपुकार।
बरसोबादलझूमकर, होंसपनेसाकार।।
आसमानकेघाटपर, लगतामेलाआज।
पुलकितबादलकररहे, वर्षाकाआगाज़।।
मोर-पपीहेनेकिया, नृत्य-गानआगाज़।
इन्द्रदेवताभेजते, बादल,बिजलीसाज।।
बारिशनेआकरलिखे, प्रेम-प्रीतसंदेश।
मनकीखिड़कीभीजती, टप-टपटपकेंकेश।।
पपीहराजबबागमें, देतामीठीटेर।
उमड़-घुमड़करमेघभी, नहींलगातेदेर।।
सिंधाराकौथली, लेकरआतीतीज।
बहू-बेटियाँखुशहुईं, आँखेंजातीभीज।।  
सूरज-चंदासोरहे, बादलपहरेदार।
सावनरुतमेंहैसजा, बूँदोंकादरबार।।
मनमोहकहैंराखियाँ, सावनमेंचहुँओर।
भ्रात-बहनकेभावमें, अद्भुतप्रेमहिलोर।।
रेशम-धागेमेंबुना, भ्रात-बहनकाप्यार।
निश्छल, निर्मलप्यारका, राखीहैत्योहार।।
राखी-बन्धनतोलगे, ऐसानिश्चलनेह।
इसदिनबरसेप्यारका, रिमझिम-रिमझिममेह।।
सम्पर्क: 17 /20, सिरसा125055, email- sheelshakti80@gmail.com

बारिश

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पावसफुहारमनमल्हार
- पूर्वाशर्मा
पावसभोर / खुशियाँचहुँओर / नाचतेमोर।
रिमझिमबरसतीइनपावसफुहारोंमेंऐसाक्याजादूहैकिइन्हेंदेखकरहरकिसीकामनप्रफुल्लितहोजाताहै।पावसकीइनचमत्कारीबूँदोंकाअसरसभीप्राणियोंपरकुछइसतरहहोताहैकिसभीअपनेदु:एवंतकलीफोंकोभूलजातेहैंछोटे-सेछोटेजीवसेलेकरबड़े-सेबड़ाप्राणीपावसकीइनमनोहारीफुहारोंमेंमदमस्तहोजाताहैऔरउसकामनमतवालाहोकरमल्हार-तानछेड़हीदेताहै।प्रथमपावसकीफुहारेंग्रीष्मकीतपनकोशान्तकरनेकेलिएउतावलीरहतीहै।पावसकीभीनी-भीनीफुहारेंज्योंहीपेड़-पौधेकोस्पर्शकरतेहुएधरतीकामुखचूमतीहैंतोमाटीकीसौंधी-सौंधीगंधवातावरणकोमहकादेतीहै।पावसकीइनबूँदोंकेगिरनेकेस्वर, सामगानप्रस्तुतकरताहुआसभीकेचेहरोंपरएकमुस्कानबिखेरदेताहै।बरखारानीकेइससौन्दर्यकोहिन्दीहाइकुकारोंनेअपनेहाइकुमेंप्रस्तुतकरतेहुएकहाहै -
ग्रीष्मकीबेड़ी / मौसमलुहारने / काटीवर्षासे। 
- कृष्णावर्मा    
वर्षाकारथ / गुजराजिधरसे / महकापथ। 
- डॉ. सुधागुप्ता
झूमतेपेड़ / सलोनीमिट्टी-गंध / पहलीवर्षा। 
- डॉ. भगवतशरणअग्रवाल     
कौन-साराग / टीनकीछतपर / बजातीवर्षा। 
- डॉ. भगवतशरणअग्रवाल  
वर्षाकीबूँदें / टीनछतपेगातीं / मेघमल्हार। 
- नलिनीकांत
सावनझरी / लहरोंकीतालपे / बनेघुमरी। 
- डॉ. कुँवरदिनेशसिंह
पगमेंबाँध / बूँदोंकीपैंजनिया / बरखानाची। 
- कमलानिखुर्पा
मनमोहती / धरामुखचूमती / पावसबूँदे। 
- पूर्वाशर्मा
पावसकेइसमनमोहकमौसममेंशृंखलितमेघोंसेपूराआसमानढकाहोताहैइनमेघोंकीगर्जनाएवंउसकेसाथहोनेवालीबिजलीकाचमकइससुहावनेमौसमकेसौन्दर्यकोबढ़ादेतीहैइनमेघोंकेउमडऩेऔरघुमडऩेसेजोमनोरमदृश्यआकाशमेंउपस्थितहोताहैउसकावर्णनविभिन्नहाइकुकारोंनेबड़ेहीकलात्मकढंगसेकियाहै।नीली-नीलीघटाएँआसमानमेंआँख-मिचौलीखेलतीहुईनज़रआतीहै।मानवीकरणकीछटातोदेखिए -
नीलेघाघरे / घटाओंकीछोरियाँ / इतरारहीं। 
- डॉ. सुधागुप्ता
दिशिकन्याएँ / खेलेनभ, चौसर / मेघगोटियाँ। 
- डॉ. सुधागुप्ता
पहननेको / मालामेघोंकी / झुकरहाआकाश। 
-  नलिनीकांत
द्युति-फ्लैशसे / नभनेखींचाफोटो / नहातीभूका। 
- उर्मिलाकौल         
ओढ़ादुकूल / श्यामवर्णीमेघोंका / गिरि-शृंगोंने। 
- डॉ. उर्मिला अग्रवाल    
पावसमेंचारोंओरबूँदोंकीलडिय़ोंकोदेखकरमनप्रफुल्लितहोजाताहै।बादलोंकेघिरतेहीसूर्यलुका-छिपीकरनेलगताहै।बादलोंकीगर्जनाऔरबूँदोंकास्वरएकअलगहीनादउत्पन्नकरतीहै।यहप्राकृतिकसंगीतदिलकोछूलेनेवालाहोताहैऔरइससंगीतमेंहरकोईखोजाताहै।इसवातावरणमेंसबकुछनया-नयाएवंआनंददेनेवालाप्रतीतहोताहै।बादलोंद्वारागाएजानेवालेमल्हाररागऔरसंगीतकोज़रासुनिए -
मृदंगबजा / नाचउठीबेसुध / वर्षा -अप्सरा। 
- नीलमेंदुसागर
ढोलबजाते / बैठकालेरथपे/ बादलआते। 
- डॉ. भावनाकुँअर   
व्योमअखाड़े / ढोलतिड़क-धुम्म/ मेघोंकीकुश्ती। 
- रामेश्वरकाम्बोज'हिमांशु
दिखाकटारें / चिंघाड़ेदिग्गज-से / बादलकाले। 
- पुष्पामेहरा    
भादोंनेछल / नभकाकोलाहल / मेघकंदल। 
- डॉ. कुँवरदिनेशसिंह
वीणाकेतार / बरखारानीछेडे / धरा-शृंगार। 
- डॉ. कविताभट्ट
वर्षाकेआगमनसेसमस्तप्राणीख़ुशीसेझूमरहेहैं।वर्षाकेआतेहीमोरनाचउठतेहैंएवंमेंढक, टिड्डे, उडऩेवालेकीट, जुगनूआदिजीव-जंतुओंकीध्वनिवातावरणमेंगूँजउठतीहै।वर्षाकीबूँदोंकेअनुपमस्वरकेसाथमेढकोंकाटर्रानाऔरउसकापानीमेंकूदनाबहुतहीस्वाभाविक-सीक्रियाहै, बाशोकेमेंढकवालेहाइकुसेसभीहाइकु-प्रेमीभली-भाँतिपरिचितहै -
तालपुराना / दादुरकीडुबकी / जल-तराना। 
- बाशो (अनुवाद - डॉ. कुँवरदिनेश )
जैसेहीबारिशकीलडिय़ाँकुछदेरकेलिएथमतीहैतोविभिन्नप्राणियोंकेस्वरकानोंमेंऔरभीसाफसुनाईदेनेलगतेहैं।कहींपरपपीहे, दादुरकास्वरतोकहींझींगुरऔरटिड्डेकीकर्कशआवाज़सुनाईदेतीहै।रिमझिमकेस्वरकेसाथइनजीव-जंतुओंकेबेसुरेएवंसुरीलेस्वरमनकोउद्वेलितकरदेतेहैंपावसकेआगमनपरसभीप्राणीअपनीप्रतिक्रियाकोकुछइसप्रकारप्रदर्शितकररहे  हैं -
मेघाच्छादित / कालिखपुतीरात / गुर्रायेंमेंढक। 
- डॉ. भगवतशरणअग्रवाल
पावसरात / पिकनिकमानते / नाचेंजुगनूँ। 
- डॉ. भगवतशरणअग्रवाल     
वर्षाकेझोंके / बतियातेमेंढक / चाय-पकौड़ी।
- डॉ. भगवतशरणअग्रवाल  
दादुर, मोर / पपीहाकरेंशोर/ वर्षाकीभोर। 
- डॉ. सुधागुप्ता
गाएदादुर / कुहूक- मनकूके / सुरहैंभीजे। 
- कमलानिखुर्पा
फुदकेंपक्षी / हरीहुईंशाखाएँ / वर्षाआनेसे। 
- सुदर्शनरत्नाकर
पत्तोंमेंछिप / वर्षाकोनिहारती / नन्ही-सीचिड़ी। 
- पूर्वाशर्मा
एकओरजहाँइसपावसऋतुकेआगमनसेऐसालगरहाहैकिसभीपरसम्पूर्णयौवनछागयाहो, प्रेमी-प्रेमिकाप्रसन्नचित्तहोरहेहैं, वहींदूसरीओरपावसकीयहफुहारेंविरह -वेदनामेंवृद्धिकरनेकाकार्यभीकररहीहै।पियाकीयादएवंउसकीप्रतीक्षामेंनायिकाकेनैनोंसेसावन-भादोंबरसरहेहैंइसविरहमेंबारिशकीबूँदेभीआँसुओंकीतरहप्रतीतहोतीहै।आसमानपरछाएबादलहृदयमेंशूलकीतरहचुभरहेहैंऔरऐसालगताहैकिइनबूँदोंकास्वरहृदयकीपीड़ाकोअभिव्यक्तकररहाहै।सावनकेझूलेकाआनंदपियाकेबिनअधूराहीप्रतीतहोताहै, मेघोंकीगडग़ड़ाहटपियाकीयादकोबढ़ारहाहै, इसतु  मेंहोनेवालीप्रत्येकक्रियापियासेदूरहोनेकेभावकोउद्दीप्तकररहीहै  विरह-अग्निमेंजलरहीनायिकाकेलिएयहपावसकीफुहारेंबहुतहीकष्टप्रदप्रतीतहोरहीहै।
यौवनजगा / रति-कामउद्धत / ऋतुपावस। 
- डॉ. कविताभट्ट
ठंडीफुहारें / हिंडोलासावनका / यादेंपियाकी। 
- पुष्पामेहरा
कौनसमझे? / वर्षाकीआँसूलिपि / भीनेअक्षर। 
- डॉ. भगवतशरणअग्रवाल
वर्षाकीशाम / दर्दजगाताकोई / गाकेमाहिया। 
- डॉ. भगवतशरणअग्रवाल
मेघोंकानाद / हृदयकीबींधती / पियाकीयाद। 
- डॉ. कुँवरदिनेश
कैसीयेझड़ी / बूँदोंकेसंगबही / अश्कोंकीलड़ी। 
- अनिताललित
कभी-कभीप्रकृतिरौद्ररूपभीधारणकरलेतीहै।अतिवृष्टि, तूफ़ानयाबिजलीकेगिरनेकेकारणपर्यावरणकोकाफीनुकसानपहुँचताहै।हमेंप्रकृतिकेइसरौद्ररूपकाभीसामनाकरनापड़ताहै।हमारेप्रकृति-प्रेमीसचेतहाइकुकारोंनेप्रकृतिकेइसरूपकोभीहाइकुमेंप्रस्तुतकियाहै -
प्रकृतिक्रुद्ध / सटकारतीकोड़ा / बिजलियोंका। 
- डॉ. सुधागुप्ता 
वर्षा, अंधड़ / धुआँधारबौछार / पानीकीमार। 
- डॉ. सुधागुप्ता
टूटाघोंसला / बेघरहुआमैना / सहमीबैठी। 
- डॉ. सुधागुप्ता
बरसेओले / हैंचौपटफसलें / रोएकिसान। 
- रामेश्वरकाम्बोज'हिमांशु
पावसमेंपूरीधरतीधुली-उजलीनजऱआतीहै।लगताहैकिपावसकीफुहारोंकेआगमनसेपूरीसृष्टिनृत्यकररहीहै।पत्तोंपरइसजलकीबूँदोंकास्नानहोनेसेपत्तेइतनेसुन्दरसजरहेहैंकिजैसेउन्होंनेनएवस्त्रधारणकिएहो।पूरीधरतीकासौन्दर्यइसऋतुमेंकईगुनाअधिकबढ़जाताहै।पावसतुकेइससौन्दर्यकासुन्दरचित्रणहाइकुकारोंनेअनेकबिम्बोंकेद्वाराअपनेहाइकुमेंउकेराहै।
घटाघूमती / यूँघाघराउठाए / जमींचूमती।
- डॉ. हरदीपकौरसन्धु           
वर्षापहने / बूँदोंसजालहँगा / मटकचले। 
-  रचनाश्रीवास्तव
मचलरहा / व्योममेंमृगछौना / इन्द्रधनुष। 
- नलिनीकान्त
धानीदुपट्टा / खेतोंमेंलहराके / वर्षाठुमकी। 
- डॉ. सुधागुप्ता
भीनीफुहार / बरखाकीबाहर / मोतीकीझार। 
- डॉ. सुधागुप्ता
गर्जनाकरें / सावनकेबदरा / बरसाकरें। 
- पूर्वाशर्मा

पावसकासुन्दरवर्णनहाइकुमेंदेखाजासकताहै।पावसतुकामनोहरदृश्यतोहरकिसीकामनमोहनेकीक्षमतारखताहै।जलकेबिनाजीवनसंभवनहींहै।पावसतुकेआगमनसेहमारीजलकीआवश्यकताकीपूर्तितोहोतीहीहैसाथहीसृष्टिकेसुन्दररूपकोनिहारनेकाअवसरभीप्राप्तहोताहै।पावसकीफुहारेंधरतीपरपडऩेसेमाटीसेउठनेवालीसुगंधकिसीकोभीबहकानेपरमजबूरकरदेतीहै, इससुगंधकोकिसीबोतलमेंकैदनहींकियाजासकताहै।हाँइसेमनकीबोतलमेंकैदकियाजासकताहै, जहाँसेकभी-भीइसकीसुगंधउड़नहींसकतीहै।नवअंकुरोंकोफूटतादेखकर, लहरातेपेड़ोंकोदेखकरऔरजीव-जंतुओंकेझूमता-गातादेखकरहरतरहसिर्फप्रसन्नताकामाहौलहीदिखाईदेताहै।यहमाहौलसिर्फपावसकीफुहारेंहीउत्पन्नकरसकतीहै  इसतुमेंनवपल्लवोंसेलेकरमनुष्यतकसभीकेहोठोंपरमुस्कानहोतीहै।पावसकीइनफुहारोंमेंभीगेहुएसमस्तपेड़-पौधेसज-धजकरहरकिसीकास्वागतकरतेहैं, प्रकृतिकायहनेहसदाहीसबपरबरसतारहे।
सजेखड़ेहैं / वर्षामेंभीगेपात / इन्द्रसौगात।
E-mail- purvac@yahoo.com

प्रकृति

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पीकहाँपीकहाँ
बोलरेपपीहरा...
पपीहावहपक्षीहैजोदक्षिणएशियामेंबहुतायतमेंपायाजाताहै।यहदिखनेमेंशिकाराकीतरहहोताहै।इसकेउडऩेऔरबैठनेकातरीकाभीबिल्कुलशिकाराजैसाहोताहै।इसीलिएअंग्रेज़ीमेंइसकोCommon Hawk-Cuckoo कहतेहैं।
पपीहेकीआवाजबहुतहीरसमयहोतीहै, बल्किकोयलसेभीसुरीलाऔरमीठागीतगाताहैयहपक्षी।उसमेंकईस्वरोंकासमावेशहोताहै।किसी- किसीकेमतसेइसकीबोलीमेंकोयलकीबोलीसेभीअधिकमिठासहै।
हिन्दीफिल्मोंमेंइसपक्षीकोलेकरअनेकगीतरचेगएहैं।कवियोंनेभीइसपक्षीकोलेकरकईकविताएँलिखीहैं।कवियोंनेमानरखाहैकिवहअपनीबोलीमेंपीकहाँ....? पीकहाँ....? अर्थात्प्रियतमकहाँहैं? बोलताहै।वास्तवमेंध्यानदेनेसेइसकीरागमयबोलीसेइसवाक्यकेउच्चारणकेसमानहीध्वनिनिकलतीजानपड़तीहै।बंगालीलोगोंकामाननाहैकियहपक्षी'चोखगेलो’ (मेरीआँखचलीगई) कहताहै, जबकिमराठीलोगोंकेअनुसारयहपक्षीअपनीबोलीमें'पयोसआता’ (बारिशआनेवालीहै) कहकरचिल्लाताहै।वैसेखूबध्यानसेसुननेपरपपीहाकीरागमयबोलीमें'पीकहाँकेउच्चारणकेसमानहीध्वनिनिकलतीजानपड़तीहै।
यहभीप्रवादहैकियहकेवलवर्षाकीबूँदकाहीजलपीताहै, प्याससेमरजानेपरभीनदी, तालाबआदिकेजलमेंचोंचनहींडुबोता।जबआकाशमेंमेघछारहेहों, उससमययहमानाजाताहैकियहइसआशासेकिकदाचित्कोईबूँदमेरेमुँहमेंपड़जाए, बराबरचोंचखोलेउनकीओरएकलगाएरहताहै।बहुतोंनेतोयहाँतकमानरखाहैकियहकेवलस्वातिनक्षत्रमेंहोनेवालीवर्षाकाहीजलपीताहैऔरयदियहनक्षत्रबरसेतोसालभरप्यासारहजाताहै।
इसकीबोलीकामोद्दीपकमानीगईहै।इसकेअटलनियम, मेघपरअनन्यप्रेमऔरइसकीबोलीकीकामोद्दीपकताकोलेकरसंस्कृतऔरभाषाकेकवियोंनेकितनीहीअच्छी-अच्छीउक्तियाँकीहै।यद्यपिइसकीबोलीचैतसेभादोंतकबराबरसुनाईपड़तीरहतीहै; परंतुकवियोंनेइसकावर्णनकेवलवर्षाकेउद्दीपनोंमेंहीकियाहै।
पपीहाकीड़ेखानेवालाएकपक्षीहै,जोबसंतऔरवर्षामेंप्राय: आमकेपेड़ोंपरबैठकरबड़ीसुरीलीध्वनिमेंबोलताहै।यहवृक्षोंपररहनेवालापक्षीहै।पपीहापेड़ोंमेंहीरहताहैऔरबहुतकमहीज़मीनपरउतरताहै।इसकाआवासबाग, बगीचे, पतझड़ीऔरअर्धसदाबहारजंगलोंमेंहोताहै।जबमस्तीमेंआताहैतबवृक्षकीचोटीपरबैठकरजोरसेटेरलगातारहताहै।
पपीहाहरे-भरेक्षेत्रयाघनेजंगलोंमेंपायाजाताहै।यहपश्चिममेंपाकिस्तानसेपूर्वमेंबांग्लादेशऔरउत्तरमें800मी. कीहिमालयकीऊँचाईसेदक्षिणमेंश्रीलंकातकपायाजाताहै।यहअमूमनसालभरअपनेहीइलाकेमेंआवासकरताहैलेकिनसर्दियोंमेंजहाँऊँचाईज़्यादाहोऔरइलाकाज़्यादासूखाहोताहै, वहाँसेयहपासकेइलाकोंमेंप्रवासकरजाताहैजहाँकीपर्यावरणीयपरिस्थितियाँज़्यादाअनुकूलहों।यहहिमालयमें1000मी. सेनीचेपायाजाताहैलेकिनउसकेऊपरकेइलाकेमेंइसकीबिरादरीकाबड़ाकोकिलपायाजाताहै।
देशभेदसेयहपक्षीकईरंग, रूपऔरआकारकापायाजाताहै।उत्तरभारतमेंइसकाडीलप्राय: श्यामापक्षीकेबराबरऔररंगहलकाकालायामटमैलाहोताहै।दक्षिणभारतकापपीहाडीलमेंइससेकुछबड़ाऔररंगमेंचित्र-विचित्रहोताहै।अन्यान्यस्थानोंमेंऔरभीकईप्रकारकेपपीहेमिलतेहैं, जोकदाचित्उत्तरऔरदक्षिणकेपपीहेकीसंकरसंतानेंहैं।मादाकारंगरूपप्राय: सर्वत्रएकहीजैसाहोताहै।पपीहापेड़सेनीचेप्राय: बहुतकमउतरताहैऔरउसपरभीइसप्रकारछिपकरबैठारहताहैकिमनुष्यकीदृष्टिकदाचित्हीउसपरपड़तीहै।
कोयलकीतरहपपीहाभीअपनाघोंसलाखुदनहींबनाता।दूसरेचिड़ियोंकेघोंसलोंमेंअपनेअण्डेदेताहै।मादाअप्रैलसेजूनकेबीचअंडेदेतीहै, जिन्हेंवहचुपकेसेकोयलयाछोटीफुदकीकेघोंसलेमेंछोड़आतीहै।उसकेअंडोंकारंगभीकोयलकेअंडोंजैसानीलाहोताहै।
 प्रजननकालमेंनरतीनस्वरकीआवाज़दोहरातारहताहैजिसमेंदूसरास्वरसबसेलंबाऔरज़्यादातीव्रहोताहै।यहस्वरधीरे-धीरेतेजहोतेजाताहैंऔरएकदमबन्दहोजाता, औरकाफ़ीदेरतकचलतेरहताहै; पूरेदिन, शामकोदेरतकऔरसवेरेपौफटनेतक।
बरसातकेबादयहपक्षीदिखाईनहींदेता।वैसेहीइसेसर्दीबिल्कुलपसंदनहीं।इनदिनोंयहदक्षिणकीओरचलाजाताहै, जहाँसर्दीकाप्रकोपकमहोताहै।पपीहेकीएकजातिआमपपीहोंसेकुछभिन्नहोतीहै,इसेचातककहतेहैं।कदमेंयेपपीहेकीतरहकेहोतेहैं, बसइनकेसिरपरबुलबुलकीतरहएककलगी-सीहोतीहै।
मेघसेपानीकी 
याचनाकरतेचातक

हमारेसाहित्यमें, जहाँकोयलऔरपपीहेकोइतनाप्रमुखस्थान दियागयाहै, अफसोसकिवहाँरूमानीवातावरणपैदाकरनेवालेछोटेककूउपेक्षितबनेरहेहैं।भारतीयसाहित्यमेंचातकऔरपपीहायेदोनोंशब्दपर्यायवाचीमानेगएपारस्परिकसमानताएँभीहैं, असमानताएँभी।रूप-रंगमेंइनकेकाफीभेदहैं;परबोलीमेंसमानताहै।चातकमैनासेकुछछोटा, लंबीपूँछवालापक्षीहै, जिसकेबदनकाऊपरीहिस्सागाढ़ा, चमकीलाकालातथानिचलासफेदहोताहै।पाँवपरबाजजैसेसफेदघनेबालहोतेहैं।सिरपरबुलबुलकीतरहएककालातुर्राहोताहै।देखनेमेंयहकाफीआकर्षकहै।येदोनोंहीमेघसेपानीकीयाचनाकरतेहैंअर्थातवर्षाकालमेंआकाशमेंबादलमँडरानेलगतेहैं,तोजहाँपपीहेगलाफाड़-फाड़करपी-पी... कीरटलगातेहैं, वहींचातकबड़ीधीमीआवाज़मेंकहउठताहैपिउ-पिउ...जबमस्तीमेंआताहै, तबवृक्षकेशीर्षभागपरबैठकरज़ोरोंसेबोलतारहताहै; अक्सररातोंमेंभी, खासकरचाँदनीरातमें।चाँदनीरातमेंतोइसकेतमामरातबोलनेकेकारणहीअंग्रेज़ीमेंइसेमस्तिष्कज्वरपक्षी (ब्रोनफीवरबर्ड) कहागयाहै।
वर्षाकावास्तविकअंतस्वातिनक्षत्रकेव्यतीतहोनेपरहीहोताहैऔरतभीइसकाबोलनाभीबंदहोताहै।यहीकारणहैइसकहावतकाकिपपीहेअथवाचातककीप्यासस्वातिजलसेहीमिटतीहै।चातकउनपक्षियोंमेंहै, जोबसंतनहीं, वर्षाकालमेंअपनामुँहखोलताहै।मानसूनीहवाकाबहनाशुरूहुआनहींकिचातकधमके।कुछअफ्रीकाकीओरसे, कुछपहाड़ोंसे।लगताहैयेरातों-रातपहुँचतेहैं।चातकपपीहानहींहै, जोकभीतोझाड़ियोंपरआकरबैठताहैऔरबड़ेवृक्षोंसेउतरकरज़मीनपरपाँवधरताहै।अधिकांशत: वहवृक्षकेशीर्षभागपरबैठाहुआआकाशकेबादलोंकीओरदेखतातथापी-पी... कीतीव्रध्वनिसेसारेवातावरणकोगुंजायमानकरताहै।ऊपरआकाशमेंउठनेकीप्रवृत्तिभीचातकमेंहीपाईजातीहै, पपीहेमेंनहीं।इसीतरहपर्वतोंपरभीचातककेहोनेकाउल्लेखमिलताहै।पपीहेइसकेठीकविपरीत, पहाड़ोंपरनहींहोते, बल्किभारतमेंबंगालसेलेकरराजस्थानतककेक्षेत्रोंमेंहीपाएजातेहैं।औरयेएकवृक्षसेदूसरेवृक्षपरभलेहीउड़करजाएँ, उड़तेहुएआकाशमेंपरिभ्रमणकदापिनहींकरते। (संकलित)

विश्व जनसंख्या दिवस

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जनसंख्याकाबढ़ना
कहींखुशीकहींगम
- शर्मिलापाल
दुनियाकीबढ़तीआबादीसेचिंतितरहनेवालोंकेलिएएकअच्छीखबर, दरअसलबहुतहीअच्छीखबरयहहैकिहम 10 अरबकेआंकड़ेसेआगेनहींबढ़ेंगे।मतलबदुनियाकीआबादीमेंस्थिरताआनेवालीहै।येकोईदूरस्थभविष्यकीगल्पनहीं, बल्किसंयुक्तराष्ट्रकेजनसंख्याप्रकोष्ठकाआकलनहै।इसआकलनकेअनुसारइसशताब्दीमेंमानवआबादीबढ़ते-बढ़ते 10 अरबतकपहुँचजाएगी, लेकिनउससेआगेनहींबढ़ेगी।लेकिनजनसंख्यायदिबढ़तीभीहै,तोउसेआजएकसकारात्मकदृष्टिकोणसेदेखाजारहाहै;क्योंकिजनसंख्याबढ़नेकेमायनेहैंविश्वबाज़ारमेंखपतकाबढ़ना।इसलिएविशेषज्ञकहतेहैं- जनसंख्याकाबढ़नाकहींखुशी,तोकहींगमजैसाहै।
आबादीकेबारेमेंपिछलेदिनोंब्रिटेनकेएकआर्थिकविशेषज्ञगैविनडेविसनेएकरोचकविश्लेषणकिया।उनकीमानेंतोआजसेसैकड़ोंसालबादजबइतिहासकारपीछेमुड़करदेखेंगेतोबीसवींसदीकोसबसेज़्यादाजिसबातकेलिएयादकियाजाएगा,वहहैजनसंख्यावृद्धि।मतलबविश्वयुद्ध, चंद्रयात्रा, गांधी, आइंस्टाइन, माओ, पेले, तेंदुलकर, चर्चिल, हिटलर, स्टालिन, बुशआदिव्यापकमानवइतिहासकेकिसीकोनेमेंहोंगेजबकिआबादीबढ़नेकीघटनानिसंदेहपहलेनंबरपरहोगी।
होभीक्यों! मानवइतिहासमेंबीसवींसदीजैसीजनसंख्यावृद्धितोकभीहुईथीऔरहीआगेकभीहोगी।आँकड़ोंकोदेखेंतोदुनियाकीजनसंख्याने 1800 ईस्वींमेंएकअरबकाआँकड़ापारकिया।एकसेदोअरबपहुँचनेमेंलगे 127 साल, दोसेतीनअरबकाआँकड़ाअगले 34 सालमेंपूराहुआ।दुनियातीनसेचारअरबकीआबादीतकपहुँची 13 सालमें, चारसेपाँचअरबपहुँचनेमेंभी 13 सालहीलगे।इसकेबादकीएकअरबआबादीजुड़ी 12 सालमें।मतलब 1999 ईसवींमेंहमछहअरबकाआँकड़ापारकरचुकेथे।इसतरहबीसवींसदीमेंदुनियाकीआबादीमें 4.31 अरबकीबढ़ोतरीहुई।यहइससेठीकपहलेयानी 19वींसदीमेंहुईबढ़ोतरीसेसातगुनाज़्यादाहै।
अबआगेकापैटर्नक्यारहेगा? इससवालकाजवाबसंयुक्तराष्ट्रकेजनसंख्याविशेषज्ञइसतरहदेतेहैं - आबादीकेछहसेसातअरबहोनेमेंलगेंगे 14 साल।लेकिनइसकेबादयहअंतरालबढ़नेलगेगा।सातसेआठअरबहोनेमेंएकसालज़्यादायानी 15 साललगेंगे, आठसेनौअरबतकपहुँचाजाएगा 26 वर्षोंमें, जबकिनौसेदसअरबतकपहुँचनेमेंलगेंगेकोई 129 साल।
मतलबपिछलीसदीमेंआबादीजितनीबढ़ी, आगेउतनीबढ़ोतरीहोनेमेंदोशताब्दीलगनेवालीहै।संयुक्तराष्ट्रकाकहनाहैकि 10 अरबतकपहुँचनेकेबाददुनियाकीआबादीमेंस्थिरताजाएगी।ऐसाक्योंहोगा?
इसकेपीछेएकसरलसिद्धांतहै - किसीभीविकासशीलदेशमेंसबसेपहलेमृत्युदरमेंकमीदेखनेकोमिलतीहै, फिरदीर्घावधिकेविकासकेसाथजन्मदरमेंकमीआतीहै।जबप्रतिमहिलाजन्मदरदोयाउससेकमहोजातीहैतोआबादीबढ़नेकीरफ्तारकमहोनेलगतीहै।कईदशकोंतकयहस्थितिबनेरहनेपरअंतत: उसदेशकीआबादीस्थिरहोजातीहै।
अधिकतरविकसितदेशोंमेंजनसंख्यास्थिरताकेदौरमेंचुकीहै।इटलीजैसेदेशमेंतोप्रतिमहिलाऔसतजन्मदरघटकर 1.3 तकपहुँचीहै।अधिकतर विकासशीलदेशोंमेंभीजन्मदरघटनेलगीहै;लेकिनअबभीगिरावटकीदरबहुतधीमीहै।विशेषज्ञोंकीमानेंतो 2050 तकविकसितदेशोंकीकुलजनसंख्याअपरिवर्तितहीरहेगीयानी 1.2 अरब।लेकिनविकासशीलदेशोंकीकुलआबादीइसदौरान 5.2 अरबसेआगेबढ़कर 7.8 अरबतकपहुँचसकतीहै।भारतकीआबादीमें 20 करोड़सेज़्यादावृद्धिहोगीऔरसंभवत: सन 2030 तकभारतजनसंख्याकीदृष्टिसेचीनकोपीछेछोड़करदुनियामेंपहलेस्थानपरपहुँचेगा।हालांकिभारतमेंगरीबलोगोंकीसंख्यापहलेकीतरहबहुतबड़ीहैकिंतुगरीबीकीरेखाकेनीचेरहनेवालेलोगोंकीसंख्यालगातारघटरहीहै।अगरसन 2000 मेंउनकीसंख्याआबादीमें 51 प्रतिशतथीतोसन 2019 तकवह 22 प्रतिशतरहजाएगी।
भारतमेंहरमिनट 25 बच्चेपैदाहोतेहैं।यहआँकड़ाउनबच्चोंकाहै, जोअस्पतालोंमेंजन्मलेतेहैं।अभीइसमेंघरोंमेंपैदाहोनेवालेबच्चोंकीसंख्यानहींजुड़ीहै।एकमिनटमें 25 बच्चोंकाजन्मयहसाफकरताहैकिआजचाहेभारतमेंकितनीभीप्रगतिहुईहोयाभारतशिक्षितहोनेकादावाकरे, किंतुयहभीएकसच्चाईहैकिअबभीदेशकेलोगोंमेंजागरूकताकीकमीहै।जागरूकताकेलिएभारतमेंकईकार्यक्रमचलाएगए, ‘हमदोहमारेदोकानारालगायागया।भारतमेंगरीबी, शिक्षाकीकमीऔरबेरोज़गारीऐसेअहमकारकहैं, जिनकीवजहसेजनसंख्याकायहविस्फोटप्रतिदिनहोताजारहाहै।आजजनसंख्याविस्फोटकाआतंकइसकदरछाचुकाहैकिहमदोहमारेदोकानाराभीअबअसफलसाहोगयाहै।इसलिएभारतसरकारनेनयानारादियाहै- छोटापरिवार, संपूर्णपरिवारलेकिनआजकलइननारोंकीजैसेकोई  अहमियतनहींरहगईहैक्योंकिजनसंख्यामानोकोईप्राथमिकमुद्दानहींरहगयाहै।
भारतकीबढ़तीहुईजनसंख्याकाएकदूसरापहलूभीहै।चिंताकीबजाययहआनेवालेसमयमेंवरदानभीबनसकतीहै।अगरहमपूँजीपतियोंकीमानेंतोआनेवालेसमयमेंखपतकीबहुलताकेचलतेभारतविश्वकासबसेबड़ाबाज़ारहोगा।परिणामत: विश्वकेबड़े-बड़ेउद्योगपतियोंकीनज़रभारतपरहोगी।जिसकीशुरुआतवैश्वीकरणकेनामपरहोचुकीहै।उदाहरणार्थ, ऑटोमोबाइल, शीतलपेयजैसीकंपनियाँभारतकेहरनागरिकतकअपनीपहुँचबनानेकोबेकरारहैतोवहींभारतीयबाज़ारोंमेंमोबाइलकंपनियोंकीबाढ़-सीगईहै।औरतोऔर, त्योहारोंकाभीपूंजीकरणकरसमय-समयपरबाज़ारलुभावनेतरीकेनिकालकरलोगोंकोआकर्षितकरनेकाप्रयासकरताहै।आर्थिकसुधारकेनामपरप्रत्यक्षविदेशीनिवेश।जैसेभारतसरकारविश्वकेलिएहरसंभवरास्ताखोलनाचाहरहीहै।दुनियाकेबड़े-बड़ेव्यापारीआजभारतमेंआनाचाहतेहैं। ((स्रोतफीचर्स)

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लतिका वैष्णव से बातचीत
मोहकरंगसंसारमें लोकजीवनकीचेतना
- संजीवतिवारी
जनजातीयचित्रकला में रुचि रखने वालों के बीच लतिका वैष्णव का नाम जाना पहचाना है। लतिका अपने चित्रों में बस्तर के आदिम राग को अपनी विशिष्ट शैली में अभिव्यक्त करती है। लोक तत्वों से परिपूर्ण उसके चित्रों, भित्ति चित्रों में लोक संगीत प्रतिध्वनित होती है। बस्तर के माटी की गंध से सराबोर लतिका के परिवार में बस्तर के विभिन्न लोक परंपरा से जुड़े कलाकार हैं। कला का यह संस्कार उसे इसी पारिवारिक परंपरा से प्राप्त हुआ है। उसकी यह पारंपरिक अभिव्यक्ति शैलीगत रूढ़ि के भीतर भी मौलिक है। हमने लतिका वैष्णव से इस संबंध में एक बातचीत की, प्रस्तुत है लोकचित्रकार लतिका वैष्णव से बातचीत के कुछ अंश -
बस्तर की लोक चित्रकला पर काम करने का विचार आपके मन में कैसे प्रकट हुआ?
मेरा जन्म अविभाजित बस्तर जिले के लगभग मध्य में स्थित छोटे-से नगर कोंडागाँव में हुआ जो आज सात जिलों में विभाजन के उपरान्त कोंडागाँव जिले के रूप में बस्तर सम्भाग का हिस्सा है। यह स्थान वर्षों से सांस्कृतिक नगरी के रूप में जाना जाता रहा है। कोंडागाँव नगर एवं इस जिले में ही सभी प्रकार की लोक कलाओं का समागम है, जो अन्य जिलों में बहुत कम देखने में आता है। मैं लोकचित्र-विधा से इसलिए जुड़ पाई क्योंकि मेरे पिता खेम वैष्णव एक प्रख्यात लोकचित्रकार, लोक संगीतकार एवं छायाचित्रकार भी हैं। मैंने जब से होश संभाला तब से मैंने हर पल अपने -आपको तूलिका, रंगों एवं लोकचित्रों के बीच पाया। इस तरह स्वाभाविक है कि मैं मेरी रुचि खिलौनों में कम और रंगों से खेलने में अधिक रही। फिर धीरे-धीरे कुछ ऐसा हुआ कि मेरी दैनिक गतिविधियों में पढ़ाई के साथ-साथ लोकचित्रकारी एक अनिवार्यता की तरह जुड़ गई। उम्र बढ़ने के साथ-ही-साथ लोकचित्रकला की बारीकियों की ओर अपने पिता के मार्गदर्शन में मेरा ध्यान केन्द्रित होता गया।
जैसा कि आप बता रही हैं कि आपका जन्म कोंडागाँव में हुआ, जो एक आदिवासी बाहुल्य जिला है। तो आपने अपने अध्ययन के साथ-साथ लोकचित्र की परम्परा को किस तरह से आत्मसात किया ?
यह मेरा परम सौभाग्य है कि मैं कोंडागाँव जैसी सांस्कृतिक नगरी में जन्मी हूँ तथा मुझे जन्म से ही विरासत के रूप में विभिन्न कलाओं को अपने पापा के माध्यम से जानने का अवसर मिला। कारण, आसपास के गाँवों में होने वाले लगभग हर महीने के मुख्य-मुख्य लोक एवं आदिवासी तीज-त्योहारों में, विवाह एवं अन्य सामाजिक कार्यक्रमों में मेरा अपने पापा के साथ जाना होता रहा है। इन तीज-त्योहारों एवं अन्य प्रसंगों को मैं अपने बाल्यकाल से पापा के साथ देखती रही हूँ। इन्हें देखकर एवं अनुभव कर इनके  चित्रांकन के दृष्टिकोण से विभिन्न प्रतीकों को, जो मुझे बहुत ही आकर्षक लगते थे, उन्हें अपने ढंग से बनाकर या खींचकर उन चित्रों को  पापा को दिखाकर मार्गदर्शन लेती थी। समय-समय पर मम्मी के साथ भी विवाह, जन्म संस्कार एवं अन्य संस्कारों में भी जाना होता रहा है, जिसे मैं अपनी रुचि अनुसार ऑब्जर्व कर स्कैच कर लिया करती थी। इन्हें पापा के द्वारा दिए गए मार्गदर्शन के अनुसार संशोधित व परिमार्जित कर उसे प्रस्तुत करती थी। पापा मुझे प्रस्तुतीकरण की तकनीक भी बताया करते रहे हैं। सभी संस्कारों, कार्यक्रमों आदि को साक्षात रूप से देखने और उसे समझने का अवसर ही मेरे लिए एक ऐसा आधार बना जिसे मैं आत्मसात किए बिना नहीं रह सकी। 
चित्रकला के विभिन्न आयाम हैं किंतु आपने लोकचित्र को ही क्यों चुना ?
मेरे अध्ययन-काल में स्कूल में मुझे कई कार्यक्रमों में चित्रकला प्रतियोगिताओं में भाग लेना होता था। उन विषयों के अनुसार चित्र बनाना पड़ता था। किंतु बचपन से लोकचित्र बनाते हुए उन चित्रों में भी लोक जीवन का कुछ-न-कुछ अंश आ ही जाता था, जिसके कारण मुझे पुरस्कार के साथ-साथ प्रशंसा भी मिलती रही है। मुझे एक ऐसी पृष्ठभूमि जन्म से ही मिली, जिससे मेरा रुझान इस ओर ज्यादा हुआ। चित्रकला के विभिन्न आयामों में से अपने क्षेत्र की लोक कलाओं को विकसित करने का जो मेरे पापा का संकल्प था उसे मैंने भी चुनौती के रूप में स्वीकार कर आगे बढ़ाने का एक छोटा-सा प्रयास कर रही हूँ। वैसे तो फाइन आर्ट, कॉमर्शियल आर्ट, मॉडर्न आर्ट एवं अन्य विधाएँ चित्रकला में हैं, किंतु अपनी मिट्टी की पहचान बनाए रखने का जो संकल्प किया है, उसमें मैं अपना योगदान दे रही हूँ। इस विधा को जीवित रखना अत्यंत अनिवार्य है। कारण, यह विधा आज विलुप्त होने की कगार पर है।
जैसा कि बस्तर क्षेत्र में बेलमेटल, लौह शिल्प, काष्ठ शिल्प एवं अन्य शिल्प का विशेष महत्त्व वहाँ के समाज में प्रचलित है, जो जन्म से लेकर मृत्यु तक समस्त संस्कारों में परिलक्षित होता है। क्या लोक चित्र भी कहीं सभी संस्कारों में दिखाई पड़ता है?
यह आपने बहुत ही मार्मिक प्रश्न किया है जिसके उत्तर में मैं अपने अध्ययन से केवल इतना कहना चाहूँगी, कि जिस तरह बस्तर क्षेत्र में प्रचलित अन्य विधाओं को समाज के सभी संस्कारों में अंगीकृत किया हुआ है, जो मूर्त रूप में और स्थाई होने के कारण दिखाई पड़ता है। चूंकि लोक चित्र प्राय: मांगलिक अवसरों पर भित्ति एवं आंगन आदि पर चित्रित होते हैं और संबंधित प्रसंग सम्पन्न होने के साथ ये चित्र मिटा दिए जाते हैं। इस तरह इसमें स्थायीपन नहीं होने के कारण इसका विकाश शेष कलाओं के अनुरूप नहीं हो पाया है। किंतु जैसा कि हमारा संकल्प है, हम इसे अक्षुण्ण बनाने हेतु संकल्पित होने के साथ-साथ स्थायित्व प्रदान करने के लिए अभी भी जूझ रहे हैं। कारणइस विधा पर काम करने वाले कलाकार बहुत ही सीमित हैं तथापि इसे आगे बढ़ाने में काफी प्रयास करना पड़ रहा है। अब जहाँ इसके स्थायीकरण की बात आई है तो मैं आपको यह बताना चाहूँगी कि बस्तर क्षेत्र में प्रचलित अलिखित लोक महाकाव्य लक्ष्मी जगार, तीजा जगार, आठे जगार एवं बाली जगार में किए जाने वाले चित्रांकन के साथ-साथ अन्य संस्कारों में भी इसे अन्य रूप में जाना जाता है। बस्तर क्षेत्र के प्रख्यात लोक साहित्यकार हरिहर वैष्णव जो मेरे सौभाग्य से मेरे बड़े पिताजी (ताऊजी) हैं, ने उक्त चारों लोक महाकाव्यों का ध्वन्यांकन कर उसे लिपिबद्ध किया तथा देश के प्रख्यात प्रकाशन संस्थानों द्वारा इसका प्रकाशन भी किया गया है। इन जगारों की लोक गायिकाएँ (गुरूमाएँ)  अधिकांशत: पढ़ी लिखी नहीं हैं, जिन्हें लाखों पंक्तियाँ कंठस्थ रहती हैं। यह तथ्य अपने-आप में अकल्पनीय एवं अविश्वसनीय लगता है किन्तु सत्य यही है कि इन लोकगायिकाओं को ऊपर बताई गयी पक्तियाँ याद रहती हैं। इन्हीं लोक गायिकाओं (गुरूमाँओं) द्वारा गाए जाने वाले लोक महाकाव्य में लोक चित्र बनाने की परम्परा का प्रादुर्भाव देखने को मिलता है। जगार-आयोजन-स्थल पर बनाए जाने वाले चित्र जगार शैली के चित्रों के रूप में प्रचलित हुए हैं। जन्म से लेकर मृत्यु तक होने वाले सभी संस्कारों में क्षेत्र की विभिन्न जनजातियों के द्वारा बनाए जाने वाले चित्रों को हम पृथक- पृथक श्रेणी में रखते हैं। जिसे स्थानीय भाषा में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। उदाहरण के तौर पर जमीन पर चावल और हल्दी के आटे से अंकित किए जाने वाले चित्रों को बाना/बाधा लिखना या फिर चऊँक(चौक) पूरना कहते हैं। कुछ अवसरों पर इसी आटे के घोल में हथेलियों को डुबाकर भित्ति अथवा मनुष्य या गोधन की पीठ पर बनाने वाले चिन्ह को हाता देना कहा जाता है। चावल के आटे के घोल में गिलास या कटोरी के ऊर्ध्व भाग को डुबोकर इनका चिन्ह गोधन के शरीर पर दियारी नामक त्यौहार पर दिए जाने की परम्परा है। विवाह के समय  चावल एवं हल्दी के आटे से किए जाने वाले चित्रांकन को चउंक पूरना कहा जाता है जबकि मृत्यु-संस्कार के समय किया जाने वाला चित्रांकन मरनी बाधा कहलाता है। इन सभी को हम थल चित्रों के नाम से जानते हैं। इसी तरह देह पर बनाए जाने वाले गोदना को देह चित्र कह सकते हैं। पुरातन काल में पत्थरों पर उकेर कर बनाए जाने वाले चित्र को शैलचित्र की श्रेणी में रखा गया है। बस्तर अंचल की गोण्ड जनजाति की माड़िया उपजाति के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति की मृत्यु होने पर उनकी स्मृति में बनाया जाने वाला चित्र मृतक-स्मृति-स्तंभ (माड़िया खम्भा) कहलाता है। भित्ति (दीवार) पर  बनाया जाने वाला चित्र भित्ति चित्र कहलाता है। जगार शैली के चित्रांकन के लिए किसी विशेष जनजाति अथवा जाति का होना आवश्यक नहीं है, किसी भी वर्ग की महिला अथवा पुरुष जगार गायकों, गुरूमाँओं के निर्देशानुसार चित्रांकन किया जाता है। अब चूंकि स्थायीकरण की बात आती है तो जगार आयोजन.स्थल में प्राय: आयोजन के बाद घरों की लिपाई-पोताई के समय उन चित्रों की भी पुताई कर दी जाती है, इसी तरह अन्य तीज-त्यौहरों या कार्यक्रमों में बनाए जाने वाले थल-चित्र भी अस्थाई होते हैं, जिसे कार्यक्रम के बाद मिटा दिया जाता है। गोंड जनजाति द्वारा बनाये जाने वाले मृतक-स्मृति-स्तंभ ही एक ऐसा स्थाई चित्रांकन है, जिसे उनकी (मृतक की) स्मृति में संरक्षित रखा जाता है। ठीक इसी तरह जगार शैली के लोक चित्रों को संरक्षित रखने के दृष्टिकोण से हमने इसे लुप्त होने से बचाने का प्रयास आरम्भ किया है। जिस तरह लोक साहित्यकार हरिहर वैष्णव द्वारा अलिखित लोक महाकाव्यों को लिखित रूप में प्रकाशन दिलाने का एक प्रयास किया गया है, ठीक इसी तरह हम चंद लोकचित्रकार भी इस लोक चित्रकला को अन्य विधाओं के समकक्ष रखने का प्रयास कर रहे हैं।
इस विधा के बारे में आपने अब तक जो बताया वह वास्तव में आपके गहरे अध्ययन को दर्शाता है इसे राज्य स्तर या राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाने का भी प्रयास आपने किया है। इस परंपरा को कैसे संरक्षित और सवंर्धित किया जा सकता है? इस बारे में बताएँ।
मेरे पापा खेम वैष्णव, मैं और मेरी छोटी बहन रागिनी वैष्णव तथा मेरी फुफेरी बहन सरला यादव के अतिरिक्त राजेंद्र राव एवं सुरेन्द्र कुलदीप ऐसे लोक चित्रकार हैं जो इस विधा को जीवित रखने की दिशा में प्रयासरत हैं। आज के इस आधुनिकता, अंधानुकरण और प्रतिद्वंद्विता के चलते संस्कारों को बचाना कठिन तो लगता है किंतु संकल्प से सिद्धि की प्राप्ति होती है। यह सत्य है। इसलिये इस वाक्य को ही दृढ़ता से हमें अमल में लाना अनिवार्य होगा तब जाकर इस विधा को संरक्षित किया जा सकता है। रही बात संवर्धन की, तो शासन के सहयोग के बिना इस दिशा में कुछ भी किया जाना असम्भव तो नहीं किन्तु कठिन अवश्य ही लगता है। 
आपके द्वारा बनाए गए लोकचित्रों का प्रदर्शन, प्रकाशन के साथ अब तक आपने कहाँ कहाँ चित्रांकन किया है ? अपनी उपलब्धियों के विषय में बताएँ।
मेरे द्वारा बस्तर अंचल के 'तीजा जगार'लछमी-जगारकी कथाओं के चित्रांकन किये गये हैं। इसी तरह विभिन्न तीज-त्यौहारों, जनजीवन, मेला-मड़ई, देवी-देवताओं, जतरा आदि विषयों पर केन्द्रित लोकचित्रों की प्रदर्शनी संस्कृति विभाग, छत्तीसगढ़ शासन के कला वीथिका में हुई है। इसका शुभारंभ ललित कला अकादमी नई दिल्ली के चेयरमेन डॉ. के. के. चक्रवर्ती द्वारा किया गया। मेरे लोकचित्र भिलाई इस्पात संयंत्र के नेहरू आर्ट गैलरी, भिलाई में भी प्रदर्शित हुए है। इसके अलावा छत्तीसगढ़ शासन के संस्कृति विभाग पारम्परिक व्यजंन आस्वादन केन्द्र 'गढ़कलेवा’, स्वच्छ भारत मिशन अन्तर्गत 'हमर-छत्तीसगढ़’, एवं केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री श्री जे. पी. नड्डा के दिल्ली निवास में चित्रांकन किया गया। जवाहर नवोदय विद्यालय, कुरूद में 'बस्तर आदिवासी पेटिंग कार्यशालामें करीब 200 छात्र-छात्राओं को एक माह तक तक प्रशिक्षण दिया। राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत, नयी दिल्ली द्वारा प्रकाशित बस्तर की भतरी बोली पर आधारित बाल लोककथा 'बालमतिर भईंसके लिए आवरण चित्र निर्माण, लोक महाकाव्य लछमी-जगार के लिए आवरण पृष्ठ तैयार किया गया, जिसका प्रकाशन साहित्य अकादमी, नई दिल्ली द्वारा किया गया। पाठ्य पुस्तक निगम द्वारा प्रकाशित 5 अंको के लिए लोकचित्र पर आधारित आवरण पृष्ठ।  सांस्कृतिक स्रोत एवं प्रशिक्षण केन्द्र नई दिल्ली के गुरु-शिष्य परम्परा अन्तर्गत 3 वर्षों तक फेलोशिप प्राप्त। दक्षिण-मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र, नागपुर द्वारा गुरु-शिष्य-परम्परा अन्तर्गत गुरु/प्रशिक्षक के रूप 6 माह तक 4 चार शिष्यों को प्रशिक्षित किया। राज्य स्वास्थ्य संसाधन केन्द्र, रायपुर द्वारा प्रकाशित, 12 एवं राज्य संसाधन केन्द्र, रायपुर द्वारा प्रकाशित 8 पुस्तकों के आवरण-चित्र एवं भीतरी रेखांकन/चित्रांकन का कार्य किया। यूनिसेफ के लिए 5 फिलिप चार्ट (चित्रांकन एवं रेखांकन) का निर्माण। स्वास्थ्य सेवायें, छत्तीसगढ़ शासन के लिए संदर्शिका, पोस्टर निर्माण। 
आपके पारिवारिक माहौल के बारे में बताएँ। आप एक घरेलू महिला होते हुए भी अपनी कला-साधना के लिए कैसे समय निकाल पाती हैं
मेरा पारिवारिक माहौल आरम्भ से यानी मेरे दादा जी के समय से ही सांस्कृतिक, साहित्यिक एवं पारंपरिक रहा है। इसकी वजह से महिला एवं पुरुष में कोई अंतर अथवा भेदभाव न करते हुए सभी को समान रूप से उनके कर्त्तव्यों एवं अधिकारों को निभाने में भरपूर सहयोग मिला है। यही कारण है कि मुझे भी इस क्षेत्र में पूरी स्वतंत्रता मिली सकी। यह कला मुझे पारंपरिक रूप से विरासत में प्राप्त हुई है। मैं चाहती हूँ कि हर परिवार में, विशेषकर महिलाओं को, ऐसा माहौल मिले जिससे कला, साहित्य एवं संस्कृति, और विशेष रूप से लुप्तप्राय विधाओं को संरक्षित करने सहायता मिले। इसके लिए महिलाओं को भी पूरी स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। ऐसा होने पर ही समाज में हम अपनी परंपरा को रचनात्मक ढंग से भावी पीढ़ी तक हस्तांतरित कर सकते हैं। आज के अत्याधुनिक और यान्त्रिक युग में प्रत्येक व्यक्ति पैसे के पीछे भाग रहा है और अपनी विलासिता की वस्तुओं को संगृहीत करने में जुटा हुआ है। ऐसे कठिन समय में न केवल पुरुषों अपितु महिलाओं की भी सक्रिय भागीदारी, अपना घरेलु दायित्व निभाते हुए भी कला एवं संस्कृति के विस्तार, संरक्षण एवं संवर्धन की दिशा में सुनिश्चित करनी चाहिए।
लेखक के बारे में:हिन्दी और छत्तीसगढ़ी के सुप्रसिद्ध ब्लॉगर। लम्बे अरसे से छत्तीसगढ़ की लोक कला/संस्कृति पर निरन्तर लेखन। विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन। छत्तीसगढ़ी भाषा की आनलाइन पत्रिका 'गुरतुर गोठ डाट कामप्रकाशन एवं संपादन, हिन्दी ब्लॉनग 'आरंभका संचालन। दुर्ग, छत्तीसगढ़ में रहते हैं। 

हाइकु

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बरखाबूँदें
 - विभारश्मि
1
जलदलेके
गयाडाकबाबू
भीगीचिठिया।
2
राग  रसीले 
गातीगानसुरीले
ठंडीबौछारें।
3
इंद्रधनुषी
सतरंगेतारोंको
माँगेमानुषी।
4
सूखीधरापे
टपटपटपकीं
बूँदेंमस्तानी।
5
जीवनजल
पीरहीधराप्यासी
सहस्रओक।
6
पखेरूभरे
परवाज़आसमाँ
मेघोंसेडरे।
7
मेघगर्जना
तडि़तचमकार
नवसर्जना।
8
नौकालेचल
नदिया  छल-छल
तूफाँकेपल।
9
मेघोंनेबाँधी
मनसेप्रीतडोर
बूँदोंकेआँसू।
10
ज़ख्म  हैंखाए।
दिलकोदर्दभाए
मिलापावस।
  11   
बरखाबूँदें
गुदगुदातींमन
ग़ज़बफ़न।
12
लयतालसे
रिमझिमबरसे
धराहरसे
13
पंखझाड़ता
बाल्कनीमेंपरिन्दा
बैठाअल्गनी।
14
नन्हीनेदेखी 
बरसातपहली
बूँदोंसेखेली।
 15
बरखा- मेघ
उमड़-घुमड़
हरितसजा।
 16
 नीड़ोंमेंबैठे
 चूज़ेरूठे- ठुनके
 भीगेमाँसंग।
 17
रेतनेपीली
ओकभरबारिश
थाकौतूहल
18
सिमटाताल
पावसदेखकर
नाचादेताली
 19
दादुरगाते
बरखागुणगान
बेसुरीतान
20
छेड़ोमल्हार 
गरजरहेजलद
वर्षाआमद
21
रंगींछतरी
करतीखुशरंग
परिभाषित
22
भीगेमजूर
छाताथाछेदोंवाला
दिलसेआला 
सम्पर्क:गुडगाँव, 9414296536, E-mail- vibharashmi31@gmail.com

हाइकु

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यादोंकेमेघ
 - सुदर्शनरत्नाकर
1
वर्षाकीबूँदें
रिमझिमबरसी
धरासरसी।
2
आयासावन
कैसामनभावन
सरसामन।
3
बरसेआज
यादोंकेमेघजैसे
आँखोंसेआँसू।
4
बहीपुरवा
बादलहैंलरजे
बारिशलाए।
5
बादलझुके
भूकोछूनहींपाए
रोनेवेलगे।
6
आईहैवर्षा
मनसबकाहर्षा
खिलीप्रकृति।
7
शांतकरती
तपतीजोधरती
बूँदेंजलकी।
8
चेहराछूती
बारिशकीफुहारें
ज्योंमाँकास्पर्श।
9
सोंधीख़ुशबू
पहलीफुहारकी
करतीमस्त।
10
फुदकेपक्षी
हरीहुईंशाखाएँ
वर्षाआनेसे।
11
बरसेघन
विरहिणीकेआँसू
बिनसाजन।
12
भीगतेरहे
बरसातमेंहम
प्यासाहैमन।
13
वर्षाकीरितु
धरतीहैसँवरी
कियाशृंगार।
14
रूईकेफ़ाहे
आकाशमेंलटके
फिरबरसे।
15
नहींबरसे
गरजतेबादल
मनतरसे।
16
अँधेराछाया
बादलोंनेछुपाया
चाँदतारोंको।
--
 सम्पर्क: -29, नेहरूग्राउंड, फ़रीदाबाद -121001, मो. 9811251135E-mail- sudershanratnakar@gmail.com

क्षणिकाएँ

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     1. अंतर
रेखा रोहतगी

सागरभीजलमय
बूँदभीजलमय
फिरतुझविराट
औरमुझलघुमेंक्याअंतरहै
हमारेबीचकीदूरीक्योंनिरंतरहै ..?

    2. प्रमाण

अपनेचिरनूतन
होनेकायेप्रमाणदेतेहो
मेरेप्राणोंको
नए -नएआकारदेतेहो।

E-mail- rekhrohatgi@gmail.com, 9818903018

सावन

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रिमझिमबरसेलामेघरे
- डॉजेन्नीशबनम
बरसातकामौसम, सावन-भादोकामहीनाऔरऐसेमेंबारिश।चारोंतरफहरियाली, बागोंमेंबहार, मनमेंउमंगजानेक्याहैइसमौसममें।रिमझिमबरसातअहा! मनभीगनेकोकरता  है।बरसातकेमौसममेंउत्तरभारतमेंकजरीगानेकीपरंपरारहीहै-
            सावनसखीसगरोसुहावन
            रिमझिमबरसेलामेघरे
            सबकेबलमउआआबेलाघरवा
            हमरोबलमपरदेसरे 
  सावनकेमहीनेमेंकई-कईदिनलगातारबारिशहो, सूर्यकईदिनोंतकनहींदिखे,तोइसेकहतेहैंझपसी (मूसलाधारवर्षा) लगना।शहरीजीवनमेंतोऐसेमौसममेंलोगचायकेसाथपकौड़ीखाना, लिट्टीचोखाखाना, लॉन्गड्राइवपरजाना, पसंदीदापुस्तकपढ़नायागीतसुननाआदिपसंदकरतेहैं।ग्रामीणपरिवेशमेंयहसबबदलजाताहै।यूँअबपहलेकीतरहगाँवनहींरहे;अतःकाफीकुछशहरोंकादेखा-देखीहोनेलगाहै।पहलेचूल्हे  मेंलकड़ीहीईंधनकेरूपमेंप्रयुक्तहोतीथी;अतःबरसातमें  मेघौनी (झड़ी) लगतेहीजरना (लकड़ी) एकत्रकरलियाजाताहै।बूँदा-बाँदीमेंभीखेतीकेसारेकामहोतेहैं; क्योंकिइसमेंनियतसमयपरहीसबकुछकरनाहै।पशु-पक्षीकीदेखभाल, उनकेचारेकाइंतज़ामआदिसबपहलेसेकरलेनाहोताहै।बाज़ार -हाटकाकामऔरखेतीकाकामभीगतेहुएहीकरनाहोताहै।गाँवमेंकभीभीकोईअसुविधामहसूसनहींहोतीहै।जबजोहैउसमेंहीजीवनकोभरपूरजियाजाताहै। 
   यूँतोपरम्पराएँगाँवहोयाशहरदोनोंजगहकेलिएबनीहुईहैं;लेकिनकुछपरम्पराएँगाँवोंतकसिमटगईहैं।गाँवोंमेंजबमूसलाधारबारिशहोऔरपानीबरसतेहुएकईदिननिकलजाएँ,तोएकतरहकाटोटकाकियाजाताहैजिससेबारिशबंदहोऔरउबेर (बारिशबंदहोकरसूरजनिकलना) होजाए।  
     सीतामढ़ीज़िलेमेंझपसीलगानेपरएकअनोखीपरम्पराहै।कपड़ेकेदोपुतले (गुड्डा-गुड़िया) बनातेहैं, एकभाहो (छोटेभाईकीपत्नी) औरएकभसुर (पतिकाबड़ाभाई)  फिरदोनोंकोछप्पर (छत) परएकसाथरखदेतेहैं।फिरअक्षतऔरफूलचढ़ाकरपूजाकीजातीहै।मान्यताहै -चूँकिभाहोऔरभसुरकासम्बन्धऐसाहैजिसमेंदूरीअनिवार्यहै।इसलिएभाहो-भसुरकाएकसाथहोनाऔरपानीमेंभींगनाबहुतबड़ापापऔरअन्यायहै।अतःभगवानइसअन्यायकोदेखेंऔरपानीबरसानाबंदकरें।इसगुड्डा-गुड़ियाकोबनाकरवहीलड़कीपूजाकरतीहैजिसकोएकभाईहोताहै।
    इससेमिलती -जुलतीहीछपराजिलेकीपरंपराहै।इसटोटकामेंकपड़ेसेकन्याऔरदूल्हा (पतिऔरपत्नी) बनातेहैं।फिरदूल्हेकेकंधापरएकगमछा (तौलिया) रखदियाजाताहैजिसकेएकछोरमेंखिचड़ीकासामानबाँधदियाजाताहै।एकछोटीईंटरखकरउसपरएकदीयाजलादेतेहैंऔरउससेसटाकरकन्यादूल्हाकोखड़ाकरदियाजाताहै।कन्याऔरदूल्हाभगवानसेकहतेहैंकिहमेंपरदेसजानाहै, दिनरातपानीबरसरहाहै, चारोतरफअन्हरिया (अँधेरा) है; हेभगवान! उबेरकीजिए, जिससेहमलोगखानाबनाकरखाएँऔरफिरपरदेसजाएँ; ताकिकमासकें।मान्यताहैकिजिसबच्चीकाजन्मननिहालमेंहोताहैवहीयहगुड्डा-गुड़ियाबनातीहैऔरपूजाकरतीहै। 
अबइनटोटकोंसेक्याहोता,यहतोनहींपता; लेकिनसुनाहैकिटोटकाकरनेकेबादपानीबरसनाबंदहोकरउबेरहोजाताहै; भलेथोड़ीदेरकेलिएहीसही।टोटकाकहेंयामान्यतायामनबहलावकासाधन, गाँवकेलोगहरपरिस्थितिकासामनाअपने-अपनेतरीकेसेकरतेहैं।प्रकृतिकेहरनियमकेसाथतालमेलमिलाकरजीतेहैं।अबयहसबहोताहैयानहींयहतोमालूमनहीं।लेकिनहैबड़ाअनूठाऔरदिलचस्पटोटका। 

माहिया छंद

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घिरआयेबादल
 - डॉ. पूर्णिमाराय
1
हमतेरेकायलहैं
साजनजाना
घिरआयेबादलहैं
2
बादलघिरआएहैं
यादोंकीगठरी
भर-भरकरलाएहैं
3
यहदिलहैदीवाना
राहतकेनैना
मौसमभीमस्ताना
4
तुमदूरकरोगमको
हँसनाजीवनहै
खतलिखदेनाहमको
 5
 खिड़कीसेझाँकरहा
 निर्मोहीचंदा
 बरबसहीताकरहा।।
 6
 बूँदेंबनबारिशकी
 रोताहैअम्बर
 बूआएसाजिशकी।।
 7
 तुमबिनसावनबीते
 आनाबारिशबन
 हमहारे,तुमजीते!!
8
 गुलशनमेंफूलखिले
 सुरभितमन्दहवा
 चाहतमेंहृदयमिले!!

सम्पर्क:ग्रीनएवनियू, घुमानरोड, तहसीलबाबाबकाला, मेहताचौंक143114, अमृतसर (पंजाब),  E-mail- drpurnima01.dpr@gmail.com

गीत

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धन्यधराहै
 - आरतीस्मित
बूँद- बूँदअमियरसटपके
बूँद- बूँदरसधार
प्रकृतितुम्हारीगोदमें
भोरकारूपउदार.... बूँद...

निश्छलझरनाबहताझरझर
पाहनक्रोडविशाल
आजविराजेध्यानस्थशिवहैं
मायाअपरंपार.......बूँद...

अंतर्गुहाफैलेउजियारा
रम्यप्रकृतिअसीमविस्तार
कण- कणझलकरहाहैतलमें
निर्मलजलबेहतरआकार।बूँद...

मनक्रीड़ारतबालसम
तजस्वारथ- व्यापार
चटकीधूपनिखरीछटाहै
देवीरूप -सौंदर्यउपहार।बूँद...

धन्यधन्यस्मिततेराजीवन
दोषरहितप्रकृतिशृंगार
धन्यधराहै, व्योमधन्य
नवजीवनअविरलसंचार।बूँद...

सम्पर्क:  डी136, गली. 5, गणेशनगरपांडवनगरकॉम्प्लेक्स, दिल्ली– 92
मो- 8376836119, email-dr.artismit@gmail.com

विज्ञान

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आपदाकीआहटपानेमें
नाकामसूचनाप्रणाली
- प्रमोदभार्गव
मौसमकीपूर्वानुमानसंबंधीअनेकडिजिटलतकनीकोंकाविकासहोजानेकेबावजूदहमप्राकृतिकआपदाकीआहटपानेमेंनाकामसाबितहोरहेहैं।जबकिहमारेअनेकउपग्रहअंतरिक्षमेंइनआपदाओंकीनिगरानीकेलिएहीसक्रियहैं।बावजूदबेखटकेआँधी-तूफान, अंधड़- बवंडरऔरआकाशीयबिजलीनेराजस्थान, उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेशऔरपश्चिमबंगालमेंऐसीतबाहीमचाईकिकरीबसवासौलोगोंकीजानचलीगईऔरकरोड़ोंकीसंपत्तिनष्टहोगई।केदारनाथऔरबद्रीनाथकेपटखुलतेहीचारधामयात्राकोअनायासआईभीषणबर्फबारीकेकारणरोकनापड़ाहै।यमुनोत्रीकेरास्तेमेंपहाड़ढहनेसेमार्गबंदहोगया।गोया, सवालउठताहैकितमामतकनीकीविकासकेदावेकिएजानेकेबावजूदहमारेमौसमवैज्ञानिकोंकोआपदाकीआहटक्योंनहींमिलपारहीहै।वहभीतबआएआँधी-तूफानकीगति100से120किमीप्रतिघंटाकीरहीथी।इससेआवासीयबस्तियाँतोतबाहहुईहीं, खेतोंमेंलहलहातीऔरखलिहानोंमेंरखीफसलेंतबाहहोगईं।
हालाँकिभारतीयमौसमविभागने1मईसे4मईकेबीचआँधी-तूफानऔरबारिशकीभविष्यवाणीकीथी, लेकिनयहपूर्वोत्तरकेराज्यपश्चिमबंगाल, ओडिशा, असम, मेघालय, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुराऔरझारखंडकेलिएथी।गोया, आपदातोआई, लेकिनउसकीतबाहीकेकेंद्रमेंपश्चिमीऔरउत्तरीभारतरहा।विभागनेचारमईतकआपदाकीशंकाजताईथी, किंतुयहआठमईतकलगातारतांडवमचातीरही।अबप्रश्नखड़ाहोताहैकिअरबोंरुपएकेउपग्रह, करोड़ोंकेउपकरणऔरमौसमविज्ञानियोंकाबड़ाजमावड़ाहोनेकेबावजूदहमप्रकृतिकीचालकीभनकअनुभवकरनेमेंक्योंचूकरहेहै।यहीनहींअबतोदेशमेंनिजीप्रबंधनसेचलनेवालेस्काईमेटनामकएजेंसीभीमौसमकीजानकारीदेनेमेंलगीहुईहै।वहभीकुदरतकीइसक्रूरताकाअनुमानलगानेमेंनाकामरही।इससेयहआशंकाउत्पन्नहोतीहैकिहमारेवैज्ञानिकयातोकम्प्यूटरमेंदर्जहोनेवालेसंकेतोंकीभाषापडऩेमेंचूकरहेहैंअथवालापरवाहीबरतरहेहैं।कतिपयवैज्ञानिकऐसेभीहैं, जोवैज्ञानिकतोबनगए, किंतुअपनेभीतरवैज्ञानिकचेतनाकासमावेशनहींकरपाएहैं।वैज्ञानिकोंमेंबढ़तीयहप्रवृत्तिदेशऔरसंस्थाओंकेलिएघातकहै।यहप्रवृत्तितोइंद्रियजन्यअनुभववादीज्ञानकेलिएउचितहैऔरहीविज्ञानकेलिए? जबकिहमारेदेशजमौसमविज्ञानीघाघऔरभड्डरीनेप्रकृतिऔरपशु-पक्षियोंकीहलचलसेऐसाइंद्रियजन्यज्ञानविकसितकियाथाकिउनकीमौसमसम्बन्धीभविष्यवाणियोंकेअनुमानबिनाकिसीखर्चकेलगभगसटीकबैठतेथे।   
अबहमारेमौसमविज्ञानीकहरहेहैकिराजस्थानऔरउत्तर-प्रदेशमेंतबाहीकाकारणहरियाणाकेवायुमंडलमेंबनाचक्रवातीप्रवाहहै।ऐसाजलवायुपरिवर्तनसेमौसममेंतेजीसेहोरहेछोटे-बड़ेबदलावोंकेकारणहोरहाहै।नतीजतनमौसमकाचक्रबिगड़रहाहै।इसीकापरिणामहैकिउत्तरीपाकिस्तानऔरराजस्थानमेंतापमानज्यादाहोनेकीवजहसेगर्महवाएँऊपरकीऔरउठरहीहैं, जिससेकमदबावकाक्षेत्रनिर्मितहोरहाहै।इसकेसाथहीभूमध्यसागरऔरअरबसागरसेचलनेवालीपछुआहवाओंसेइसकमदबाववालेक्षेत्रमेंबादलऔरचक्रवातीबवंडरउठरहेहै।गुजरेबवंडरकादायरा250किमीव्यासमेंथा।मौसमविभागकेयेआंकड़ेतबआएहैं, जबआपदातबाहीमचाकरकमोबेशठहरगईहै।इनआंकड़ोंकेजारीहोनेकेबादइसआशंकाकीपुष्टिहोतीहैकिवैज्ञानिकोंनेलापरवाहीबरतीहै।क्योंकियेआँकड़ेतबबाँचनेमेंआएहैं, जबप्रकृतिकीतबाहीमचानेवालीहलचलेंकम्प्यूटरकीबुद्धिमेंपहलेहीदर्जहोगईंथी,किंतुसमयरहतेवैज्ञानिकोंनेइन्हेंबाँचनेमेंकोताहीबरती।वैसेभीअबहमारीवेधशालाओंमेंअत्याधुनिकसंसाधनहैं, केवलइनपरहरकतकरनेवालीध्वनिऔरवायुतरंगोंपरसतर्कनिगाहरखनेकीजरूरतहै।  
क्योंकिजबओडिशामेंभयंकरतूफानआयाथा, तबहमारेमौसमविभागकीभविष्यवाणियाँसटीकसाबितहुईथीं।तबमौसमविभागकेसेवानिवृत्तप्रमुखएलएसराठौरविदेशीवैज्ञानिकोंकेपूर्वानुमानोंकोनजरअंदाजकरतेहुएअपनेपूर्वानुमानपरडटेरहकरकेंद्रराज्यसरकारोंकोबड़ेपैमानेपरएहतियातबरतनेकीहिदायतेंदेतेरहेथे।इसअवसरपरहमारेवैज्ञानिकसुपरकम्प्यूटरऔरडापलरराडारजैसीश्रेष्टतमतकनीककेमाध्यमोंसेचक्रवातकेअनुमानितऔरवास्तविकरास्तेकामानचित्रएवंउसकेभिन्नक्षेत्रोंमेंप्रभावकेचित्रबनानेमेंभीसफलरहेथे।तूफानकीतीव्रताऔरबारिशकेअनुमानभीकमोबेशसहीसाबितहुएथे।इनअनुमानोंकोपढ़नेकीभाषाकोऔरकारगरबनानेकीजरुरतथी, लेकिनअबलगरहाहैकिवैज्ञानिकोंसेकहींकहींबड़ीचूकहुईहै।यदिसटीकसूचनाएँसमयपूर्वमिलनेलगजाएँ, तोहमबाढ़, सूखे, भूकंपऔरबवंडरोंसेठीकढंगसेसामनाकरसकतेहैं।
हमेंमौसमसंबंधीपूर्वानुमानकीऐसीनिगरानीप्रणालियाँविकसितकरनेकीजरुरतहै, जिनकेमार्फतहरमाहऔरहफ्तेमेंबरसातहोनेकीराज्यजिलेबारभविष्यवाणियाँकीजासकें।इसनातेभौगोलिकसूचनाप्रणाली (जीआईएस) औरबाढ़कापूर्वानुमानलगानेवालेटेलीमेट्रीस्टेशनबड़ीसंख्यामेंबनाएगएथे।लेकिनबीतेसालभारतकेनियंत्रकएवंमहालेखापरीक्षक (कैग) नेजोरिपोर्टदीहै, उससेपताचलाहैकिजोटेलीमेट्रीस्टेशनबनेहैं, उनमेंसेसाठप्रतिशतकामहीनहींकररहेहै।1997से2016केबीचदेशभरमें375येस्टेशनबनाएगएथे, जिससेबाढ़केबारेमेंपूर्वानुमानलगायाजासके।किंतुइनमेंसे222बंदपड़ेहै।रिपोर्टकेअनुसारपाँचराज्योंकीछहपरियोजनाओंकेलिएमंजूर171,28करोड़रुपएकीराशिकाउपयोगहीनहींहुआ।यदियेवेधशालाएँबनजातीऔरटेलीमेट्रीउपकरणकामकरनेलगजातेतोहरसालबाढ़कीजोतबाहीदेखनेमेंआतीहै, उससेजान-मालकीहानिकमकीजासकतीथी।देशमेंकुल4862बड़ेबाँधहैं, जिनमेंसे349बाँधोंकेलिएहीआपात्कालीनप्रबंधनयोजनाएँतैयारकीगईहै।साफहै, प्रकृत्तिकेकहरकापूर्वानुमानलगानेकेप्रतिहमसचेतनहींहैं। 
दरअसलकार्बनफैलानेवालीविकासनीतियोंकोबढ़ावादेनेकेकारणधरतीकेतापमानमेंलगातारवृद्धिहोरहीहै।यहीकारणहैकिबीते134सालोंमेंरिकार्डकिएगएतापमानकेजो13सबसेगर्मवर्षरहेहैं, वेवर्ष2000केबादकेहीहैंऔरआपदाओंकीआवृत्तिभीइसीकालखण्डमेंसबसेज्यादाबढ़ीहैं।पिछलेतीनदशकोंमेंगर्महवाओंकामिजाजतेजस्वीलपटोंमेंबदलाहै।इसनेधरतीके10फीसदीहिस्सेकोअपनीचपेटमेंलेलियाहै।यहीवजहहैकिअमेरिकामेंजहाँकैटरिना, आइरिनऔरसैंडीतूफानोंनेतबाहीमचाई, वहींनीलम, आइला, फेलिनऔरहुदहुदनेभारतश्रीलंकामेंहालातबद्तरकिएथे।बतायाजारहाहैकिवैश्विकतापवृद्धिकेचलतेसमुद्रीतलखौलरहाहै।फ्लोरिडासेकनाडातकफैलीअटलांटिककी800किमीचौड़ीपट्टीमेंसमुद्रीतलकातापमानऔसतसेतीनडिग्रीसेल्सियसअर्थात्5.4फारेनहाइटज्यादाहै।यहीऊर्जाजबसतहसेउठरहीभापकेसाथमिलतीहैतोसमुद्रीतलमेंअप्रत्याशितउतार-चढ़ावशुरुहोजाताहै, जोचक्रवातीबंवडरोंकोविकसितकरताहै।इनबवंडरोंकेवायुमंडलमेंविलयहोनेकेसाथही, वायुमंडलकीनमी7फीसदीबढ़जातीहै, जोतूफानीहवाओंकोजन्मदेतीहै।प्राकृतिकतत्त्वोंकीयहीबेमेलेरासायनिकक्रियाभारीबारिश, आँधी, चक्रवात, अंधड़औरतूफानकाआधारबनतीहै, नतीजतनकुदरतकाकहरचंदक्षणोंमेंहीतबाहीकीलीलारचदेताहै। 
सम्पर्क:शब्दार्थ 49, श्रीरामकॉलोनीशिवपुरी.प्र., मो09425488224, 099810 61100,                 E-mail- pramod.bhargava15@gmail.com

अनकही

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आम आदमी का कर्ज...
डॉ. रत्नावर्मा
मनुष्य का यह स्वभाव होता है कि वह अपना, अपने परिवार का जीवन सुखमय बनाने का हर संभव प्रयास करता है। जीवन यापन के सबके अपने- अपने तरीके होते हैं। एक समय था जब भारत में मनुष्य के जीवन यापन का तरीका उनकी जाति तय कर देती थी, परंतु आज काबिलियत मायने रखती है, शिक्षा उन्हें जीने के नए नए तरीके बताती है। बेहतर जिंदगी जीने के लिए वह हर उपाय करता है। इन्हीं में से आज का सबसे प्रचलित तरीका है कर्ज लेना। मकान बनवाना हो, गाड़ी खरीदनी हो, खेती करना हो, नया व्यवसाय करना हो या फिर पढ़ाई करनी हो। सबके लिए यहाँ कर्ज का प्रावधान है।
लेकिन क्या कर्ज लेना उतना ही आसान है? वर्तमान हालात में सवाल उठना स्वाभाविक है- जब विजय माल्या और नीरव मोदी जैसे उद्योगपति बैंक से हजारों करोड़ों का कर्ज लेकर फरार हो जाते हैं और विदेशों में ऐशो-आराम की जिंदगी बसर करते हुए जैसे हमारा मुँह चिढ़ाते हैं। लो क्या कर लोगे कैसे वसूलोगे करोड़ों अरबो के कर्ज...
जबकि देखा तो यही गया है कि आम आदमी बैंक से कर्ज  लेता है तो बैंक का कजऱ् चुकाते-चुकाते उसकी जि़ंदगी का एक बहुत बड़ा हिस्सा निकल जाता है। अगर आपसे किस्त चुकाने में कुछ दिनों की देर हो जाती है  तो बैंक, वसूली करने आपके घर तक चला आता है। एक आम आदमी के लिए कर्ज लेना बहुत आसान भी नहीं होता- कोई नौकरीपेशा जब बैंक से कर्ज लेता है तो उसे अपने तीन महीने के वेतन का पेपर दिखाना होता हैदो साल का फॉर्म-16 माँगा जाता है और कम से कम 6 महीने की बैंक स्टेटमेंट  माँगी जाती है। और जो नौकरीपेशा नहीं होते उनसे तो गारंटी के रूप में न जाने क्या- क्या माँग लिया जाता है। इसीलिए कर्ज लेने वाला हमेशा भयभीत रहता है कि वह इस कर्ज को वह उतारेगा कैसे? और नहीं उतार पाया तो? देखा तो यही गया है कि यदि जीते जी वह कर्ज नहीं चुका पाता तो उसके बाद उसके बच्चे वह कर्ज चुकाते हैं।
भारत ऐसा देश है जहाँ दूध का कर्ज चुकाने की बात कही जाती है। लेकिन आज इसी देश में एक तरफ कुछ ऐसे अमीरजादे हैं जो कर्ज लेकर अय्याशी करते हैं...और उसे वापस भी नहीं करते। जबकि दूसरी तरफ यही वह देश है जहाँ हर 40 मिनट में एक किसान इसलिए आत्महत्या कर रहा है क्योंकि वह फसल के लिए लिया गया कर्ज चुका पाने में असमर्थ है। आँकड़ें बताते हैं  कि 2016 में देशभर के करीब 47 लाख किसानों ने कुल 12 लाख 60 हज़ार करोड़ रुपये का कर्ज लिया था। इन किसानों में से 60%ने खाद, बीज और कीटनाशकों के लिए, 23%किसानों ने खेती के उपकरणों के लिए, जबकि 17%किसानों ने खेती के अन्य कामों के लिए बैंकों से कर्ज लिया था। लेकिन जब वर्षा के जल पर निर्भर यही किसान फसल बर्बाद होने की वजह से  बैंक के कुछ हज़ार रुपये नहीं चुका पाते, तो बैंक उनके घर पर वसूली के लिए अधिकारी भेज देता है, उनके ट्रैक्टर, ट्राली उठवा लेता है।
 प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि क्या नीरव मोदी और माल्या जैसे लोगों के कागज़ात भी उतनी ही गंभीरता के साथ जाँच किए जाते हैं जिस तरह हमारे पेपर की जाँच होती है? क्या लोन देते वक़त बैंक इनसे भी उतने ही पन्नों पर हस्ताक्षर करवाते है... जितने हमको करने पड़ते हैं? क्या उनके आधार और पैनकार्ड लिंक्ड होते हैं, क्या उन्होंने अपना इनकम टैस्स सही समय पर भरा है? उनके लिए सब छूट है। क्योंकि बैंकों के नियम- कायदे ऐसे लचीले हैं कि वह नामी गिरामी लोगों को विदेशों में व्यापार करने के लिए यूँ ही लोन दे देती है... और अपने देशवासियों को एक गाड़ी खरीदने, एक घर बनवाने, या फिर खेती के लिए बीज खरीदने के लिए हजारो-हजार नियमों की खानापूर्ति करनी पड़ती है।
ऐसे समय में जब बदलाव की बयार बह रही है, (कम से कम कहा तो यही जा रहा है) क्या मध्यम वर्ग के जीवन को सरल सुखमय और सुकून से भरा बनाने के लिए कुछ बदलाव नहीं किए जाने चाहिए? सरकार का काम क्या सिर्फ अब इतना ही रह गया है कि वह कुर्सी पाने के लिए वह सब उपाय (साम-दाम-दंड-भेद) करेगी, लेकिन जब जिंदगी सँवारने की बात आयेगी तो कदम पीछे हटा लेगी!
बड़ी विडम्बना तो यह है कि ये भगोड़े अमीरजादे जो नुकसान हमारे देश में कर गए हैं उसकी भी भरपाई हमारी सरकार हम आम इंसानों से ही टैक्स के रूप में वसूल कर करती है। यानी करे कोई और भरे कोई। लोकतन्त्र को खोखला करने वाली इन दीमकों का निदान बहुत ज़रूरी है। इन दीमकों पर जब संकट आता है, तो हमारे यन्त्र के चपरासी से लेकर बड़े नेता तक इनको बचाने में आगे आ जाते हैं। जब तक इनकी काली करतूतें जगजाहिर हों तब तक वे किसी सुरक्षित माँद में छुप जाते हैं। सामान्य जन को लूटने की जो छूट इनको मिली हुई है, यह लोकतन्त्र के लिए प्राणलेवा है। इस लूटपाट करने वालों पर प्रशासन कब शिकंजा कसेगा? क्या देश को अरबों रुपये  की चोट पहुँचाना, खा-पीकर डकार भी न लेना देशप्रेम है? अगर नहीं तो आर्थिक अराजकता फैलाने वालों को देशद्रोही क्यों नहीं घोषित किया जाता? ऐसे आर्थिक अपराधियों की सही जगह पंचसितारा होटल नहीं बल्कि कारागार है। स्वच्छ प्रशासन का एक ही मन्त्र  है- इस तरह के लोगों पर नकेल डाली जाए, अगर ऐसा नहीं किया गया तो लूट का यह कैंसर रोग बढ़ता ही जाएगा।                                              

इस अंक में

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उदंती.com,  जुलाई- 2018

बारिश रुकी हुई है कल से
और घुटन भी ज़्यादा है
रोकर कब दिल हलका हुआ है?
       -गुलज़ार

दूर तक फैला हुआ पानी ही पानी हर तरफ़
अब के बादल ने बहुत की मेहरबानी हर तरफ़
      -शबाब ललित

कच्चे मकान जितने थे बारिश में बह गए
वर्ना जो मेरा दुख था वो दुख उम्र भर का था
     -अख़्तर होशियारपुरी

'कैफ़'परदेस में मत याद करो अपना मकाँ
अब के बारिश ने उसे तोड़ गिराया होगा
     -कैफ़ भोपाली


अनकहीःआम आदमी का कर्ज...-डॉ. रत्नावर्मा
विज्ञानःआपदाकीआहटपानेमेंनाकामसूचनाप्रणाली - प्रमोदभार्गव
माहियाछंदःघिरआएबादल - डॉ. पूर्णिमाराय
गीतःधन्यधराहै - आरतीस्मित
सावनःरिमझिमबरसेलामेघरे... - डॉ. जेन्नीशबनम
हाइकुःभादोकेमेघ- सुदर्शनरत्नाकर
क्षणिकाएः 1. अंतर ,2. प्रमाण - रेखारोहतगी
हाइकुःबरखाबूँदें - विभारश्मि
कलाःमोहकरंगसंसारमेंलोकजीवनकीचेतना - संजीवतिवारी
विश्वजनसंख्यादिवसःकहींखुशीकहींगम- शर्मिलापाल
प्रकृतिःपीकहाँपीकहाँबोलरेपपीहरा...- संकलित
बारिशःपावसफुहारमनमल्हार - पूर्वाशर्मा
हाइकुःबैरनवर्षा, उलझन,चोकाःहरितपरिधान - डॉ. ज्योत्स्नाशर्मा
चोकाःउड़ीसुगंध- डॉ. कविताभट्ट
लोककथाःसर्गदेदीपाणिपाणि
दोहेःबदराजललेरहे- डॉ. शीलकौशिक
पर्यावरणःचुनौतीदेता- कबाड़ - नवनीतकुमारगुप्ता
वर्षाकेदेवताःहेइन्द्रदेव- यशवंतकोठारी
व्यंग्यःभरोसेकाआदमी - सुशीलयादव
कविताः. मानसूनपाखी, . आषाढ़काचाँद- रश्मिशर्मा
कविताःअहल्या- सुमनमिश्र
प्रेरकः खुशरहनेवाले... - निशांत
कविताः 1.जबसेशहरआयाहूँ, 2. बूढ़ादरख्त- लोकेन्द्रसिंह
मूल्यःसंस्कारहमारीथाती- चन्द्रप्रभासूद
जीवनदर्शनःजीवनयापनकीजापानीपद्धति- विजयजोशी

चोका

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उड़ी सुगंध

 डॉकविता भट्ट

निर्द्वन्द्व मन
शान्त नील गगन
प्रेमघन-से
प्रिय छाए-घुमड़े
आँधी जग की
तेज चलती रही
मैं भी अडिग
तुम भी थे हठीले
हुए घनेरे
निशि-साँझ-सवेरे
तन यों मेरे
झरी प्रेम फुहारें
तपती धरा
अभिसिंचित हुई
उड़ी सुगंध
कुछ सोंधी-सोंधी-सी,
उन बूँदों से
है अतृप्त जीवन

अस्तु शेष हैं
पुन:-पुनअब भी
प्रेमघन को
मन के आमंत्रण
और आशा भी-
बरसेगा अमृत
सुगन्धित हो
होगा तृप्त जीवन
खिलेगा उपवन

सम्पर्क- FDC, PMMMNMTT, द्वितीय तालप्रशासनिक ब्लॉक-ll, हे..गढ़वाल विश्वविद्यालयश्रीनगर गढ़वाल उत्तराखंड- 246174

मिडिया

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टैग टीवी में हाइकु पर परिचर्चा
कनाडा(टोरंटो) के टैग टी वी (TAG  T.V.) पर हाल ही में एक नया कार्यक्रम 'साहित्य के रंग शैलजा के संगआरंभ हुआ है, जो विभिन्न भाषाओं के साहित्य की विभिन्न विधाओं पर केन्द्रित होगी। शृंखला की पहली कड़ी में हाइकु के उद्भव और विकास पर भारत के श्री रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु से लम्बी बातचीत हुई। चर्चा में श्रीमती कृष्णा वर्मा और श्रीमती भुवनेश्वरी पांडे ने भी भाग लिया। डॉ. शैलजा सक्सेना द्वारा आयोजित इस परिचर्चा के यू ट्यूब का लिंक https://youtu.be/1QA0I2KCG0Yयहाँ दिया जा रहा है। कार्यक्रम में पढ़े गए कुछ हाइकु भी आपके अवलोकन के लिए यहाँ दे रहे हैं -
1-डॉ. भगवत शरण अग्रवाल
1.तुम्हारे बिना /दीवारें हैं, छत है/घर कहाँ है ?
2.वर्षा की रात /बतियाते मेंढक /चाय पकौड़ी।
2-डॉ. सुधा गुप्ता
1.लुक-छिपके/चारदीवारी फाँद/आ कूदा चाँद।
2.लाल गुलाल/पूरी देह पे लगा/हँसे पलाश।
3.नाज़ुक कली/आग की लपटों में/धोखे से जली।
3-डॉ. भावना कुँअर
1-लेटी थी धूप/सागर तट पर/प्यास बुझाने।
2-परदेस में/जब होली मनाई/तू याद आई।
4 –डॉ. हरदीप कौर संधु
1.पत्र जो मिला/लगा  बहुत पास/दूर का गाँव
2.भूल न पाया/जब-जब साँस ली/तू याद आया।
5-कमला निखुर्पा
1.आई हिचकी/अभी-अभी भाई ने/ज्यों चोटी खींची।
6-रचना श्रीवास्तव
1.बेटे का कोट/रोज़ धूप दिखाती/प्रतीक्षा में माँ।
2.आँसू से लिखी/वो चिट्ठी जब खोली/भीगी हथेली।
7- डॉ. जेन्नी शबनम
1.प्रेम बंधन/न रस्सी न साँकल/पर अटूट।
2-प्रीत रुलाए/मन को भरमाए/पर टूटे न।
8-डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
1.रजनी बाला/कहाँ खोया है बाला/हँसिया वाला।
2.पत्ता जो गिरा /मुस्कुराकर कहे/फिर आऊँगा।
 9-डॉ कुँवर दिनेश सिंह
1.मेघों का नाद/हृदय को बींधती /प्रिय की याद।
2.मन अधीर/दर-दर भटके /मौन समीर।
10-डॉ. कविता भट्ट
1.जब भी रोया/विकल मन मेरा/तुमको पाया।
2.तुम प्रणव/मैं श्वासों की लय हूँ/तुम्हें ही जपूँ।
3.पाहन हूँ मैं/तुम हीरा कहते/प्रेम तुम्हारा।
11-भावना सक्सेना
1.झील-दर्पन/देख रही घटाएँ/केश फैलाएँ।
12- अनिता ललित
1.माँ सिसकती/आँगन हुड़कता/हो बेटी विदा।
2.माँ तेरे आँसू/तूफानों में हैं सोते/ख़ुशी में 'सोते'
13-ज्योत्स्ना प्रदीप
1.सहेजे मैने /तेरे दिये वह काँटे /कभी ना बाँटे।
2.जीवन बीता/वह कभी बनी राधा/तो कभी सीता।
14-प्रियंका गुप्ता
1.प्रेम की नदी/सामने ही थी बही/प्यासी ही रही।
2. प्रेम की नदी/पार किया तो जाना/आग से भरी।
15-शशि पाधा
1.अक्षर झरे/कल्पना -सरसि से/गागर भरे|
16-सुदर्शन रत्नाकर
 1.सर्दी की रात/लोग सोएँ भीतर/चाँद अकेला।
 2.ज़रा सुनो तो/कराहते पर्वत/कटे हैं वन।
17-शैलजा सक्सेना
1-दिन कमान/धूप जलता तीर/ज़ख्मी शरीर!
2-सज्जित घर/खनकते न स्वर/बच्चे लापता!
18-कृष्णा वर्मा
नदी जल में/नहा के हवाएँ दें/सूर्य को अर्ध्य।
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