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कविता

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 माँ   
-आरती स्मित

वह गूँध रही खुशियाँ और सपने
काट रही बाधाएँ
झाड़ रही मन के मैल
बुहार रही घर के क्लेश
और अब
धुल रही बासी सोच
चमका रही मेधा

उसने सहेजीं संवेदनाएँ
ठीक कीं सिलवटें विचारों की
समेट दिए अविश्वास
धुल दिए मन-प्राण सबके
और  अब
लिख रही लेखा-जोखा
वर्तमान और भविष्य का

वह हटा रही अपनी आरजू
सजा रही  गौरव बच्चों का
उम्मीदों और सपनों को भी
 और अब
उखाड़कर खर-पतवार
बना दी है समतल राह।

वह
ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना!
सबसे प्यारा संबंध
और संबोधन ... 

Email- dr.artismit@gmail.com

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