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गाँव के हाइकु

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1. रोती है गगरिया
-डॉ.कविता भट्ट
1
पीपल मौन
पनघट सिसके
सुध ले कौन?
2
ना ही बतियाँ
रोती है गगरिया,
क्या डगरिया।
3
हँसी छिटकी
चौपाल यों सिसकी
विदा कन्या-सी
4
गाँव से रास्ते
माना जाने के लाखों,
लौटे न कभी.
5
खाली गौशाला
नाचे-झूमे खामोशी
ओढ़े दुशाला ।
6
गाँव यों रोए-
पगडण्डी रुआँसी
शाम धुआँ-सी
7
विरहनसे
गाँव हैं अब सारे
राह निहारे 
8
आँखें भी मौन
ग्राम -बालिका वधू
सुध ले कौन 
9
बूढ़ी चौपाल
 तोड़ रही है दम
कोई न प्यार
10
जीर्ण हैं द्वार
पहाड़ी घर के तो,
 मनुहार 

-0-

2.मेघ हुए बेवफ़ा 
-डॉ०शिवजी श्रीवास्तव
1.
श्रम की बूँदें
झरती खेतों बीच
उगता सोना।
2.
गाय रम्भाए
धनिया पानी लाए
होरी मुस्काए।
3.
हल्कू उदास
फिर आई बैरन
पूस की रात
4.
गाँव की बातें
धूप के संत्रास में
छाँव की बातें।
5.
गाँव का स्कूल
बच्चों का आकर्षण
मिड-डे-मील।
6.
बिके जो धान
करे वो कन्यादान
गङ्गा में स्नान।
7.
सूना चौपाल,
गाँव के बाहर ही
खुला है मॉल।
8.
पत्नी प्रधान
सत्ता पति के पास।
कैसा विधान?
9.
गीतों के झूले
खेतों बीच डोलते
धान रोपाई।
10
खेतों में धान
इंद्रदेव रूठे हैं
क्या होगा राम।
11.
विकास -राशि
प्रधान की बैठक
बन्दरबाँट।
12.
कैसा गोदान
खेत चरें गोवंश
त्रस्त किसान।
13.
गागर रीती
पनघट गिरवी
जल आँखों में।
14.
मेघ से डरे
कुटिया किसान की
बचें न बचें।
15
काँपी कुटिया
रोई पगडंडियाँ
झरे सावन।
16.
सूखते खेत,
मेघ हुए बेवफा 
दुखी किसान।
 सम्पर्कःविवेक विहार,मैनपुरी। mail--shivji.sri@gmail.com

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