...जलता रहा
- ऋतु कौशिक
अश्क़ अपने ,आप ही पीता रहा
दरिया मेरी आँख में ठहरा रहा
धूप मेरा जिस्म पिघलाती रही
और साया देख कर जलता रहा
कर ली थी उसने ग़मों से दोस्ती
तब कहीं वो मुद्दतों ज़िन्दा रहा
रात से यारी रही मेरी ,मगर
बरसों दिल आसेब से डरता रहा
इस तरह जीता रहा वो फुरसतें
याद में शामो सहर करता रहा
मैं ही छाई हूँ मेरे चारों तरफ
दोस्तों का साथ अब जाता रहा।
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