Quantcast
Channel: उदंती.com
Viewing all articles
Browse latest Browse all 2168

दो कविताएँ:

$
0
0
1. तुम्हारी नाराजगी
- पीहू
 तुम अकसर नाराज रहते हो मुझसे
कारण इसका लगता है जरा बचकाना-सा
करती नहीं क्यों रोज फोन तुम्हें?
जैसा मैं हमेशा से करती आई थी।
मैं जवाब में उलहानों के तीर छोड़ देती हूँ
और पूछ बैठती हूँ एक सवाल
कि तुम क्यों नहीं करते?
और खुद ही दे देती हूँ जवाब भी
ये तुम्हारी आदत नहीं।
सोचती हूँ, गुनती हूँ,
क्या बात है यहाँ आदत की?
मुझे तो लगता है,
बात है वही आदत की।
तुम अपनी आदत बदलते नहीं,
और बदल ली है हमने अपनी आदत ही।
कौन-सी
समझौते की।
जान लो अब
चाहती हूँ बताना तुम्हें
जज्बातों का दामन पकड़े
जो छलती रही खुद को,
ढकेलती रही स्वयं को मान लेनेके गुहवर में
सच कहूँ,
अब और होता नहीं मुझसे
यूँ अपने आप से दगाबाजी करना
घोंटना गला स्वयं का ही।
क्या सुन रहे हो बात मेरी
कानों तक पहुँच रहे हैं मेरे ख्यालात
नहींअगर है तुम्हारा जवाब
तो मुझे माफ ही करना अबकी बार।
2. उन मुस्कराहटों में
 जहन में तुम्हारी सूरत
चिपक जाती है गोंद-सी
कोई तो बात है
तुम्हारी उन मुस्कराहटों में
जो बिखर जाती है तुम्हारे चेहरे पर
और कर जाती है कायल तुम्हारा।
मेरा कसूर ही कहाँ है
सब तुम्हारा किया धरा ठहरा।
वरना लोगों द्वारा खींची गई
मजहब की लकीरें
कर जाती हमारा भी बँटवारा।
तुम ही बताओ चाहतों की कोई सरहद होती है भला।
मुहब्बत के कच्चे बेर,
जज्बातों का मुरब्बा
चखा तो हुआ अहसास
कि चाहतों में कोई नफरत नहीं होती।
और तुम्हारी उन बातों के जरिए
दुआओं-सी उभरी तुम्हारी जिदें
दे जाती है यकीन मुझे
कि तुम तह-ए-रुह से की गई
मेरी किसी इबादत से मिली रहमत हो।
शायद जमाने की जुबान तक न पहुँच पाये कभी
पाक अफसाने इस पाकीज लगाव के
पर वक्तनामा में
अमर हो जायेंगी
तुम्हारी जिदें,
तुम्हारी मुस्कराहटें।
 सम्प्रति:डॉ. बी.आर. अम्बेबेडकर रोड, श्रीपल्ली, पलता, पो.ऑ. बंगाल एनामल, जिला - 24परगना, पिन- 743122, Email- papiapandey@gmail.com 

Viewing all articles
Browse latest Browse all 2168


<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>