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ग़ज़ल

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 बस इन्सान बनना है
- डॉ. पूर्णिमा राय
न हिन्दू सिक्ख ईसाई न ही शैतान बनना है।
गिरा कर वैर की दीवार बस इन्सान बनना है।।

दिखे रोता अगर कोई तो-उसके पोंछ कर आँसू
खुदा के नूर के जैसी हमें मुस्कान बनना है।।

ख़ुशी रूठी है- जिन लोगों से- उनको हौसला देकर;
 सिसकते आँसुओं का खो चुका अरमान बनना है।

बहाकर प्रेम की धारा समर्पण के इरादों से;
दिलों को जीत  ले ऐसा हमें सम्मान बनना है।।

बुराई देखते हैं जो उन्हें भी खुशबुएँ देकर ;
सजा दे पूर्णिमाजो घर वही गुणवान बनना है।।

सम्पर्क: ग्रीन ऐवनियू घुमान रोड, तहसील बाबा बकाला मेहता चौंक-143114, अमृतसर (पंजाब) 7087775713

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