बस इन्सान बनना है
- डॉ. पूर्णिमा राय
न हिन्दू सिक्ख ईसाई न ही शैतान बनना है।
गिरा कर वैर की दीवार बस इन्सान बनना है।।
दिखे रोता अगर कोई तो-उसके पोंछ कर आँसू
खुदा के नूर के जैसी हमें मुस्कान बनना है।।
ख़ुशी रूठी है- जिन लोगों से- उनको हौसला देकर;
सिसकते आँसुओं का खो चुका अरमान बनना है।
बहाकर प्रेम की धारा समर्पण के इरादों से;
दिलों को जीत ले ऐसा हमें सम्मान बनना है।।
बुराई देखते हैं जो उन्हें भी खुशबुएँ देकर ;
सजा दे ‘पूर्णिमा’ जो घर वही गुणवान बनना है।।
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