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सावन गीतः

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1. हुए विवश बादल के आगे

– रमेशराज

गुस्से में निकला है बादल
अब छुपने को जगह टटोलो
खोलो झट से छाता खोलो।

दइया-दइया इतना पानी
बादल करे खूब मनमानी
साँय-साँय चलती पुरवाई
आई कैसी आफत आई।

ऐसे गिरता मोटा ओला
जैसे किसी तोप का गोला
अपनी-अपनी चाँद बचाओ
लोहे के अब टोप लगाओ।

घर से बाहर चलें जरा-सा
बूँदें जड़तीं कड़ा तमाचा
कड़के बिजली अति डर लागे
हुए विवश बादल के आगे।

2. सावन है
मनभावन हरियाली छायी
खेत लगे कितने सुखदायी
कोयल बोले मीठे बोल
सावन आया, सावन आया।

रिमझिम-रिमझिम बादल बरसें
पानी को अब लोग न तरसें
पक्षी करते फिरें किलोल
सावन आया, सावन आया।

कभी इधर से कभी उधर से
घुमड़-घुमड़ बादल के घर से
आए लो बूँदों के टोल
सावन आया, सावन आया।

कहीं फिसल ना जाना भाई
लुढ़कोगे यदि दौड़ लगाई
खोल अरे भई छाता खोल
सावन आया, सावन आया।।

3. रिमझिम रिमझिम
करते हैं आयोजित कोई
जिस दिन भी कवि सम्मेलन बादल।
तो धरती पर ले आते हैं
रिमझिम-रिमझिम सावन बादल।

राम-कथा सुनने वर्षा की
निकलें बच्चे घर से बाहर
जोर-जोर से करें गर्जना
बने हुए तब रावन बादल।

आसमान की छटा निराली
देख-देख मन हरषाता है
साँझ हुए फिर लगें दिखाने
इन्द्रधनुष के कंगन बादल।

एक कहानी वही पुरानी
नरसी-भात भरे ज्यों कान्हा
उसी तरह से खूब लुटाते
फिरते बूँदों का धन बादल।

बड़ी निराली तोपें इनकी
पड़ी किसी को कब दिखलाई
जब ओलों के गोले फेंकें
फेंकें खूब दनादन बादल।

 4. बादल
हौले-हौले, कभी घुमड़कर
काले-भूरे आयें बादल
बच्चों की खातिर लिख देते
बूँदों  की कविताएँ बादल।

बच्चे जब लू में तपते हैं,
सूरज आग उगल जाता है
बच्चों से शीतल छाया की
कहते मधुर कथाएँ बादल।

बच्चों को हैं अच्छे लगते
हरे खेत औफूल खिले
जन्नत-सी सौगातें भू पर
हर सावन में लाएँ बादल।

कंचे-कौड़ी की शक्लों में
भूरे-भूरे प्यारे-प्यारे
कभी-कभी तो ओले अनगिन
बच्चों को दे जाएँ बादल।

सम्पर्क: 15/109, ईसानगर, अलीगढ़-202001

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