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ग़ज़लः तुम्हें राधा बुलाती है

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 - अशोक शर्मा 

कभी तू मान जाती है, कभी तू रूठ जाती है,

अज़ब हैं ख़ेल क़िस्मत का, हँसाती है, रुलाती है।


अदा उसकी यही प्यारी मुझे हरदम लुभाती है,

लिखे वो नाम मेरा और लिख-लिखकर मिटाती है।


वही तो गाँव है, गलियाँ, वही है नीम पे झूला,

अचानक क्यों भला इनको अकेला छोड़ जाती है।


बताया तो हुआ मालूम क्यों ये हाल है मेरा,

मुझे भी हो गया है प्यार ये दुनिया बताती है।


तुम्हें मालूम हो तो तुम बताओ ये ज़रा हमको,

चुराकर ले गया है कौन, क्यों ना नींद आती है।


नहीं है ज़िन्दगी को चैन इक पल भी किसी ज़ानिब,

मदद करती नहीं है और तानें भी सुनाती है।


अभी है वक़्त तेरा तो परख ले ज़िन्दगी हमको,

हमारा  वक़्त  आने  दे,  सुनेंगे  क्या सुनाती है।


कभी उपवास रखती है, कभी रोज़ा रखा उसने,

ग़रीबों की अना तो भूख को यूँ भी छिपाती है।


ज़रा देखो पलटके श्याम, तुम क्या छोड़ आए हो,

तुम्हें  गोकुल  बुलाता  है, तुम्हें  राधा बुलाती है।


पराया धन कहा उसको, पराया कर दिया हमने,

यही  इक  बात  बेटी  को, अकेले  में रुलाती है।

रचनाकार के बारे में- छत्तीसगढ़ शासन से सेवानिवृत्त राजपत्रित अधिकारी, -लगभग चार दशकों से सक्रिय लेखन,मूलतः ग़ज़ल लेखन, अनेक गीत, दोहे, स्वतंत्र आलेख ,कविताएँ और कहानियाँ भी । एक स्वतंत्र ग़ज़ल संग्रह,तीन साझा ग़ज़ल संग्रह और एक साझा दोहा संग्रह प्रकाशित। देश विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और डिजिटल पटल पर अनेक रचनाओं का नियमित प्रकाशन। सम्पर्कः  ‘सोहन-स्नेह’, कॉलेज रोड, महासमुंद (छत्तीसगढ़) 493445, मो. 9425215981, ईमेल- informashoksharma@gmail.com

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