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यात्रा- संस्मरणः एलिफैंटा केव्स- अद्भुत संरचना

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 - प्रिया आनंद

इसमहीने के पहले सप्ताह के तीन दिन समंदर के सान्निध्य में ही बीते। वह चार जनवरी का दिन था, जब हम ऐलिफेंटा गुफाएँ देखने गए थे। बचपन से ही उनके बारे में सुना और सिखाया गया था इसलिए मन में उत्सुकता भी थी। गेटवे ऑफ इंडिया से हम फेरी पर गए। अचानक ही हमें बहुत सारा सीगल्स ने घेर लिया था। वे पंख फड़फड़ाती सिर के ऊपर उड़ती और शोर मचाती रहीं। लोग हाथों मे बिस्किट, चिप्स और कुरकुरे के लिए हाथ बढ़ाते हैं और वे बड़ी सफाई से हाथों से उठा लेतीं। यह एक खूबसूरत नजारा था।

सागर मुझे चंचल नहीं बेहद बेचैन सा लगता है।  जैसी इसकी गहराई है, उतनी ही बेचैनी ऊपर दिखाई देती है।  ठीक ऐसे मनुष्य के मन की तरह, जो ऊपर से बेहद शांत सा दिखाई देता है।  हालांकि हम फेरी से उतरकर टॉय ट्रेन में बैठे और फिर पत्थर की सीढ़ियों की बारी आई।  किसी तरह ऊपर भी पहुँच गए।  यह एकल शैलोत्खनित मंदिर समूह है, जिनमें बेहतरीन कलात्मकता के दर्शन होते हैं।  इतनी बड़ी और भव्य मूर्तियाँ। लगभग सभी खंडित देखकर दिल उदास हो गया। 

 इतनी सुंदर मूर्तियों को तोड़ते हुए किसी का दिल नहीं कांपा होगा? किसी भी देश पर आक्रमण करने वालों के लिए यह जरूरी हो जाता है कि उस देश की सांस्कृतिक धरोहरों को ही ध्वंस किया जाए? पूरे परिसर में गहन सन्नाटा था पर वे खंडित मूर्तियाँ और सुंदर प्रस्तर स्तंभ अपनी कहानी अलग ही कह रहे थे। लौटते वक्त फेरी पर बैठते ही फिर सीगल्स ने घेर लिया। इस बार उनकी तादाद कुछ ज्यादा ही थी। दूर कितने ही मालवाहक विशाल जलपोत सागर के बीच में खड़े थे। यह सुखद सुखद पर्यटन था , जो बहुत दिनों तक मेरी स्मृतियों में बना रहेगा। । 

कोंकण समुद्र तट पर

 सागरतट अपने आप में एक चुंबकीय आकर्षण रखता है। किसी भी बीच में जाइए आप घंटों टहलते हुए वक्त गुजार सकते हैं। इसके अलावा कोंकण के तटीय क्षेत्र बहुत ही आकर्षक हैं। एलिफैंटा से लौटते हुए अगले दिन हमने देवगढ़ बीच जाने का फैसला किया हालांकि तय यही हुआ कि इसी के साथ और सभी बीच भी देखते चलते हैं। रास्ता काफी लंबा और उबाऊ था सुबह आठ बजे के चले हुए  वहाँ हम साढ़े तीन बजे पहुँचे। इस बार का रिजॉर्ट बीच के काफी करीब था इसलिए जल्दी ही सभी बीच की तरफ हो लिए। बच्चे बहुत खुश थे, पर इस बार भी वही काली रेत थी। सफेद लहरें और काली रेत। शाम होने की वजह से लहरें काफी तेज थीं । अंदर जाते ही हम लोग बुरी तरह भीग गए।

पुणे का मौसम भी ऐसा है कि दिल कभी-कभी बारिश की तमन्ना करने लगता है। तब इस कमी को सागर की लहरें एक हद तक पूरा कर देती हैं। अगले दिन सुबह साढ़े छह बजे तक तो उजाले का कहीं अता-पता नहीं था। साथ के सभी लोग वॉक करने चले गए और मैं वहीं आस-पास के क्षेत्र में टहलती रही। अंतिम कॉटेज का नाम एकांतिका था इस कॉटेज के सामने बहुत बड़ा तालाब था जिसमें सफेद और गुलाबी कमल की खुशबू थी। जगह अच्छी है आँखों को राहत देने वाली। अब सबसे मजेदार बात यह हुई कि यहाँ किसी का फोन ही काम नहीं कर रहा था। इसलिए हम सिर्फ तस्वीरें खींच रहे थे। उस पूरे दिन हम जाने कितने बीच ही घूमते रहे। श्रीधर बीच सबसे सुंदर था। रेत काली ही थी पर लहरें काफी बड़ी और साफ सफेद थीं। सूरज डूबने के बाद भी हम वहाँ टहलते रहे।  

 फिर आई बी रेजोर्ट में शानदार डिनर किया और अपने होटल वापस हो लिए।

 लौटने से पहले हम आरावी बीच पर चले गए । बच्चों ने कहा था कि यहाँ काफी बड़े शेल थे। बड़े तो क्या वहाँ छोटे घटिया शेल भी नहीं मिले, पर बीच का नजारा खूबसूरत था आँखों को ठंडक देने वाला। ये हमारी तफ़रीह के सुनहरे दिन थे। ■



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