Quantcast
Channel: उदंती.com
Viewing all articles
Browse latest Browse all 2168

कविताः दे जाना उजास वसंत

$
0
0


 - निर्देश निधि

वसंत तुम्हें देखा है कई बार 

फूलों वाली बगिया में टहलते हुए  

सूनी टहनियों पर चुपचाप 

मासूम पत्तियाँ सिलते हुए 


अनमने हो गए जी को आशा की ऊर्जा पिलाते हुए 

बड़े प्यारे लगे मुझे तुम 

जोहड़ की ढाँग पर तैरती गुनगुनी धूप में 

घास के पोरुए सहलाते हुए 


मेहमान परिन्दों के कंठ से फूटते हो सुर सम्राट से 

पर सुनो वसंत 

इस बरस तुम सँवर जाना 

हमारे खेतों में बालियों का गहना बनकर 


वरना खाली रह जाएँगे कुठले अनाज के 

और माँ को लगभग हर साँझ ही भूख नहीं होगी 

और नहीं दे पाएगी एक चिंदिया (छोटी रोटी) भी 

मेरी धौली बछिया को 


तुम झूल जाना इस बरस 

आम के पेड़ों की फुनगियों पर ज़रूर 

जीजी के तय पड़े ब्याह की तारीख

पक्की कर जाना अगेती सी 

उसकी आँखों के इंतज़ार को हराकर 

तुम उनमें खिल उठना वसंत 

मत भूलना उसकी सुर्ख़ घघरिया पर टंक जाना, 

हजारों सितारे बन 


मेरे भैया के खाली बस्ते में ज़रूर कुलबुलाना वसंत 

नई - नई पोथियाँ बन 

सुनो वसंत 

सूखी धूप पी रही है कई बरसों से 

मेरे बाबू जी की पगड़ी का रंग 

बदरंग कर गई है उसे ग्रहण लगे चंद्रमा सी 

तुम खिले - खिले रंगों की एक पिचकारी 

उस पर ज़रूर मार जाना वसंत 


जब पिछले बरस तुम नहीं फिरे थे हमारे खेतों में 

तब मेरी दादी की खुली एड़ियों में चुभ गए थे 

कितने ही निर्मम गोखरू  

कितनी ही बार कसमसा दी थी चाची 

पड़ोसन की लटकती झुमकियों में उलझकर 

हो गया था चकनाचूर सपना चाचा का 

मशीन वाली साइकिल पर फर्राटा भरने का 


इस बरस मेरे दादू की बुझी - बुझी आँखों में 

दे जाना पली भर उजास 

वरना बेमाने होगा तुम्हारा धरती पर आना 

निर्मम होगा हमारे आँगन से बतियाए बगैर ही 

हमारे गलियारे से गुज़र जाना 


सुनो वसंत 

मैं थकने लगती हूँ साँझ पड़े 

महसूस कर चुपचाप अपने घर की थकन 

 

पर तुम किसी से कहना मत वसंत 

वरना माँ जल उठेगी चिंता में

जीजी की तरह मेरे भी सयानी हो जाने की । 

email-  nirdesh.nidhi@gmail.com


Viewing all articles
Browse latest Browse all 2168


<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>