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दो लघुकथाः 1. हनीट्रैप, 2. अन्तर्दृष्टि

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  -  डॉ. उपमा शर्मा

1. हनीट्रैप

मॉलके प्रवेश द्वार के किनारों  पर लगे बड़े -बड़े होर्डिंग्स पर लिखे आकर्षक ऑफर्स ने अंजू का ध्यान अपनी ओर खींच ही लिया। आगे बढ़ते ही एक ओर सुंदर परिधानों में सजे बाई वन गेट टू का ऑफर देते मॉडल के विज्ञापन तो दूसरी ओर रंग-बिरंगे पैकेट्स में लगे खाद्यान्नों के ढेर पर एक पर एक फ्री का टैग के फोटो देख अंजू से रुका न गया।

"सुनो! वहाँ देखो फाइव थाउजेंड में फाइव शर्ट्स। ब्राण्ड भी और जेब पर भी कम भारी।"

"अभी दो महीने पहले ही तो सेम ब्रांड की शर्ट ली हैं अंजू। ये भी देखो पाँच हजार खर्च करोगी तो पाँच मिलेगी। तुम अपनी जींस लेने आई हो, ले लो फिर मूवी देख कर चलेंगे।"

"उन पर भी सेल चल रही है सर। ये दो के पे करके चार आ जायेंगी। तीन और सलैक्ट कर लीजिए आप। "मैडम आप इस बार बहुत दिनों बाद।"मुस्कुराती हुई सेल्स मैनेजर उस ओर लपकी।

"बस इधर आना नहीं हो पाया।"

"ये देखिए। कितनी सुंदर कुर्तियाँ। लेटेस्ट फैशन। एकदम आपकी पसंद। "

"हाँ बहुत खूबसूरत हैं।"

"ट्वेन्टी परसैन्ट का डिस्काउंट भी है। शिवानी! इधर आओ, मैडम को कुछ अच्छा सा कलैक्शन दिखाओ।"

"वाह! मेल सैक्टर में बड़ी सेल। ये देखो ये टीशर्ट कितनी सुंदर है। बाय वन गेट थ्री का ऑफर है। मैं तो कहती हूँ फटाफट ले लो इससे पहले कोई और इसे उठाए।"

"मेरे पास पहले ही इतनी है यार।"

"अभी कम में मिल रही हैं। फिर लेना सीजन में डबल रेट पर। अच्छी भली बचत हो रही अभी; लेकिन नहीं तुम तभी लेना जब फ्रेश अराइवल में पूरे पैसे देने हों। अभी ये भी ऑफर में और फाइव थाउजेंड से ऊपर की शॉपिंग पर फ्री गिफ्ट वाउचर भी।"

"लेकिन अंजू।"

"क्या अंजू- अंजू कर रहे हो? तुम बड़ा बोर करते हो। मैं ये सब बिलिंग के लिए रख रही हूँ।"

"मैडम। ये बिटिया के लिए एक बड़ी सुंदर ड्रैस आई है। बहुत फबेगी इस पर।"

"दिखाइए। "

"अंजू! हमें देर हो रही है।"

"सर! फिर ये पीस नहीं मिलेगा। फिर अभी सेल भी है।"

"हाँ आप दिखाइए।"

"जी देखिए। बिटिया पर बड़ा सुंदर लगेगा ये कलर।"

"वाकई। इसे न देखती तो बहुत यूनीक चीज मिस कर देती।"

"फिर ये कर दूँ मैडम।"

"हाँ जी।"

"इसे कैश काउन्टर पर पहुँचा दीजिए।"

"अभी कैसे। मैडम ने तो कुछ लिया ही नहीं जींस के सिवाय।"

"बस हो गया।"

"ऐसे कैसे। आप आई भी इतने दिन बाद हो। ऐसे नहीं जाने दूँगी। आप अपने लिए भी तो देखिए कुछ।"

"हम जरा जल्दी में हैं।" 

"क्या ज़ल्दी की रट लगा रखी है नितिन। ग्रोसरी का सामान भी तो लेना है। टाइम है मूवी में अभी।"

"मैम! मैं ये आपके लिए कुर्तियाँ रखवा देती हूँ।"

"लेकिन अंजू हमने तय किया था कि फाइव थाउजेंड तक की ही शॉपिंग करेंगे। इतने की तो शर्टस ही ले ली। तुमने बच्चों के कपड़े भी बिना जरूरत लिये हैं अभी। इतना बजट नहीं है अभी।"

"क्रेडिट कार्ड किसलिए होता है नितिन। दो महीने बाद लेने ही थे न। तब इतना अच्छा ऑफर मिलता?"फिर ज्यादा शॉपिंग पर फ्री गिफ्ट वाउचर भी तो है।"

"यार अब कितना घी इकट्ठा करोगी। 4 किलो पहले ही रखा है। और कितने किलो चावल घर में पहले ही रखे हैं अंजू। प्लीज ये पेंसिल-इरेज़र मत उठाना अब।"

"हाँ तो खाया जाता है। आगे पीछे लेना ही है न। पुराने चावल अच्छे होते हैं। अब ये मत कहना इतने मसालों का क्या करोगी? साल भर काम आते हैं। इकट्ठे लेने पर सस्ते पड़ जाते हैं।

‘‘और स्टेशनरी का सामान चाहिए ही होता है बच्चों को।"

"अब चलें अंजू!"

"सुनो! साबुन, सर्फ सब तो हो गया। अभी फ्री गिफ्ट वाउचर के लिए 500 रुपये की शॉपिंग और करनी है। ये चिप्स और चॉकलेट और ट्वाएज डाल लेते हैं। कुछ खाने और कुछ गिफ्टस के काम आ जाएँगे।"

क्रेडिट स्कोर बढ़ता जा रहा था। सामने बाजार मुस्कुरा रहा था। ■

2. अन्तर्दृष्टि 

कलाप्रदर्शनी में लगी अनगिनत चित्रों की भीड़ में वो चित्र बरबस ही अपना ध्यान खींच रहा था। चित्रकार की कल्पना के अनूठे भाव उस चित्र में दिख रहे थे। आसमान से गिरती हुई बूँदें  अपनी नियति के अनुसार अलग-अलग स्थान पर गिर रहीं थीं। कुछ चातक की प्यास बुझा रहीं थीं। कुछ धरती पर गिर उसे हरीतिमा प्रदान करने के उपक्रम में लगी थीं।प्र कृति के अनुपम रंगों की छटा उस चित्र में अलग ही खूबसूरती बिखेर रही थी; लेकिन अन्य चित्रों पर जहाँ भीड़ लगी हुई थी, यह चित्र अकेला। क्या एक भी दर्शक को इसकी कला समझ नहीं आई? सलौनी के कदम भीड़ से इतर उस चित्र की ओर मुड़ गए।

"वाह! अनुपम, अद्वितीय। प्रकृति के कितने रूप। और हर रूप अनूप।"

"जी शुक्रिया।"चित्रकार ने निर्विकार भाव से कहा।

"कलर स्कीम बहुत सटीक और सुंदर है। ऐसा लगता है- ये नदियाँ बह रही हैं। ये पंछी बस बोलने ही वाले हैं।"चित्रकार अभी भी शांत था।

"आपने बूँदों के संकेत से संगत के असर का बहुत सार्थक चित्र बनाया है।"

चित्रकार के अधरों पर स्मित ने अब  अपनी जगह बना ली। वो कुछ बोलता उससे पहले ही सलौनी बोल पड़ी।

"लेकिन आश्चर्य! इतने सार्थक और सुंदर चित्र पर एक भी दर्शक नहीं। जबकि हर जगह भीड़ ही भीड़ है। तुम पहली बार यहाँ आए हो क्या?"

"जी! मैं पहली बार ही आया हूँ। अभी नवोदित कलाकार हूँ।"

"तुम्हें अपनी कला की उपेक्षा देख बुरा नहीं लग रहा चित्रकार!"

"बिल्कुल नहीं! "चित्रकार के चेहरे पर अब भी वही चिरपरिचित स्मित खेल रही थी।

"ऐसा कैसे हो सकता है? यह तो ह्यूमन बिहेवियर है।"

"क्योंकि मेरे गुरु ने मुझे सच्चे प्रशंसक और प्रपंच का अर्थ भली-भाँति समझाकर ही मुझे इस जगत् की आँच में पकने के लिए छोड़़ा है। वे कहते हैं अगर तुम्हारी कला का एक ही सच्चा प्रशंसक हो, तो समझना तुम्हारी कला सार्थक हो गई।"

चित्र में बहती हुई बूँद सीपी के अंदर गिर पड़ी थी, जो मोती बनने की प्रक्रिया में थी। ■

सम्पर्कःबी-1/248, यमुना विहार, दिल्ली- 110053



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