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लघुकथाः टुकड़े-टुकड़े

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  - चन्द्रशेखर दुबे

विधिवत्सम्बन्ध-विच्छेद हो जाने पर उन्होंने अपनी भूतपूर्व पत्नी की कोई भी वस्तु घर में न रहने दी। उसके पुराने वस्त्र महरी को दे दिए। जिन चित्रों में वह थी, उन चित्रों के टुकड़े-टुकड़े कर डाले।

किन्तु इतनी सावधानी के बाद भी चोटी में गूँथा जाने वाला उनकी पत्नी का चुटीला पलंग के गद्दों के बीच में दबा रह गया।

एक रोज पलंग झटकते समय यह चुटीला फर्श पर गिरा। इसे वे हैरानी से कुछ देर देखते रहे। फिर किसी तिलचिट्टे की लाश की तरह उसे चिमटे में भर कर घर से बाहर फेंकने गए।

इस चुटीले को उन्होंने गली में फेंका, तो गली के कुत्तों ने उसे मुँह में भर लिया। वे इसे खींच-खींचकर टुकड़े-टुकड़े करने लगे।

पति महाशय यह दृश्य कुछ देर तक देखते रहे। फिर उन्हें जाने क्‍या सूझी, जो वे कुत्तों को दुत्कारते हुए उनके मुँह में से उस चुटीले के टुकड़े छीनने लगे।


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