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सॉनेटः प्रेम है अपना अधूरा

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- प्रो. विनीत मोहन औदिच्य

मेघ संतापों के काले, व्योम पर छाए

और पीड़ा भी सघन सी, साथ में लाए

सोचता ही रह गया मैं पी गया हाला

अंग में प्रत्येक मेरे चुभ रहा भाला।

 

पुष्प सा महका न जीवन, कष्ट है भारी

नेत्र करके बंद बैठे, रैन भर सारी

धमनियों में रक्त बहता, पर निराशा है

श्वाँस है अवरुद्ध मेरी, दूर आशा है।

 

प्रेम अपना है अधूरा, सच अटल जानो

है तृषा का वास उर मे, यह सहज मानो

हार कर बाजी डगर में, रुक नहीं जाना

ध्येय हो मिल कर हमारा, लक्ष्य को पाना।

 

है यही अब चाह उर में, बस तुम्हें पाऊँ।

भाग्य पर अपने सदा ही, नित्य इतराऊँ।।

 

सम्पर्कः सागर, मध्यप्रदेश, Mail id - <nand.nitya250
@gmail.com, दूरभाष- 7974524871


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