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जीवन दर्शनः सेवक का सम्मान

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 -विजय जोशी (पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल, भोपाल (म. प्र.)

 कहा है कि श्रम  से बड़ा कोई कर्म नहीं और सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं बशर्ते सेवा हो अहंकार रहित। सेवा में अहंकार का कोई स्थान नहीं। यह तो मन में उपजा पवित्र भाव है। पर सेवा इतनी सरल भी नहीं। इसीलिए तो कहा भी गया है सेवा धरम कठिन मैं जाना। और जो इसे सफलतापूर्वक समर्पित भाव से संपन्न कर लेता है उसके आभारी तो स्वयं ईश्वर तक हो जाते हैं।

   एक बार नारद नारायण नारायण करते -करते राम के द्वार दर्शन करने पहुँचे तो पहरा दे रहे हनुमान द्वारा रोक लिए गए।

नारद बोले – मैं तो प्रभु से मिलने आया हूँ। वे क्या कर रहे हैं।

            पता नहीं – हनुमान बोले – कुछ बही- खाता लिख रहे हैं। और चूँकि व्यस्त हैं; अतः आप अंदर नहीं जा सकते।

            नारद को यह नागवार गुजरा और वे हनुमान को परे हटाकर अंदर प्रवेश कर गए। अंदर जाकर उनके आश्चर्य की सीमा नहीं रही- जब नारद ने देखा कि वे कुछ लिख रहे हैं।

            प्रभु आप स्वयं – नारद ने जिज्ञासा वश पूछा। किसी और को कह देते।

            नहीं नारद मेरा काम मुझे ही करना है। और यह तो विशेष कार्य है – प्रभु बोले।   

      भला बताइये ऐसा क्या लिख रहे थे – अब तक नारद उत्सुक हो चुके थे।

      उन भक्तों के नाम जो मुझे हर पल भजते हैं। उनकी मैं हर दिन हाजिरी लगाता हूँ – प्रभु ने उत्तर दिया।

      तो प्रभु बताइये भला इसमें मेरा नाम कहाँ है - और जब सूची देखी तो स्वयं का नाम सबसे ऊपर पाया।

            अब नारद के मन में अहंकार इसलिए भी  उपज आया कि इसमें हनुमान का नाम  कहीं नहीं था। बाहर आकर यही बात उन्होंने हनुमान से कही। पर हनुमान वैसे ही बने रहे तथा बोले – कोई बात नहीं। प्रभु ने शायद मुझे इस लायक नहीं समझा। पर वे एक दैनंदिनी और भी रखते हैं।

            आप शायद एक दैनंदिनी और रखते हैं। उसमें क्या लिखते हैं – अब नारद ने पुन: राम के पास जाकर पूछा।

            वह तुम्हारे काम की नहीं - प्रभु बोले।

            नारद ने विनय की - पर मैं तो जानना चाहता हूँ।

            मुनिवर मैं उसमें उन लोगों के नाम लिखता हूँ, जिनको मैं भजता हूँ– अब प्रभु ने समापन किया संवाद का और यह कहते हुए सूची आगे बढ़ाई, तो नारद ने देखा कि उसमें हनुमान का नाम सबसे ऊपर था। नारद का सारा अभिमान तत्क्षण तिरोहित हो गया।

            मित्रो! यही है अहंकार से रहित निर्मल, निःस्वार्थ भक्ति का वह भाव जिसके अंतर्गत ईश्वर भी भक्त के प्रति समर्पित हो जाते हैं।

सम्पर्क: 8/ सेक्टर-2, शांति निकेतन (चेतक सेतु के पास), भोपाल-462023मो. 09826042641, E-mail- v.joshi415@gmail.com

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