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कविताः शुक्रिया तेरा

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  - अमृता अग्रवाल

शुक्रिया तेरा,

मिथ्या तथ्यों से,

कुछ कटु सत्यों से,

मेरा, परिचय कराने के लिए।

शुक्रिया तेरा,

अनखुले अस्तित्व में,

एक छोटी- सी खिड़की,

बनाने के लिए।

 

शुक्रिया तेरा,

विस्मृति स्मृतियों को,

फिर से हँसी सपने,

स्मरण कराने के लिए।

 

शुक्रिया तेरा,

अकेलेपन के भय से,

मुझको,

भयमुक्त बनाने के लिए।

 

शुक्रिया तेरा,

विरक्त हुए हृदय को,

झंकृत करने के लिए।

 शुक्रिया तेरा,

बनना और बिखरना,

है प्रकृति का नियम,

ये स्थिति अवगत,

कराने के लिए।

 

शुक्रिया तेरा,

मेरे कारागृह से,

मुझे उन्मुक्त,

कराने के लिए।

 

शुक्रिया तेरा,

मेरी जिंदगी में आकर,

मुझे जीना सिखाने,

के लिए।

सम्पर्कःनेपाल (जिला: सर्लाही), amrita93agrawal@gmail.com


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