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क्षणिकाएँ- मेरे कमरे की खिड़की

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- प्रीति अग्रवाल, कैनेडा

1.

मैं नदिया होकर भी प्यासी,

तुम सागर होकर भी प्यासे,

गर ऐसा है

तो ऐसा क्यों,

दोनों पानी...

....दोनों प्यासे!

2.

उनींदी अँखियाँ

तलाशती सपनें

जाने कहाँ गए

यही तो हुआ करते थे....

उनके पूरे होने की आस में

हम दोनों जिया करते थे....।

3.

करिश्में की चाहत में

कटते हैं दिन,

हम ज़िंदा हैं

करिश्मा ये

कम तो नहीं....!

4.

मेरी कमरे की खिड़की

छोटी सही....

उससे झाँकता जो सारा

आसमाँ, वो मेरा है !

5.

यूँ तो होते हो

पास, बहुत पास

हर पल....

शाम होते ही मगर

याद आते हो बहुत।

6.

जानती हूँ मुझसे

प्रेम है तुम्हें,

दोहरा दिया करो

फिर भी,

सुनने को जी चाहता है....!

7.

चलना सँभलके

इश्क नया है...

सँभल ही गए

तो, इश्क कहाँ है!

8.

रिश्ते

बने कि बिगड़े

सोचा न कर,

थे सिखाने को आए

सिखाकर चले....।

9.

तुम्हारे कहे ने ही

दिल को

छलनी कर दिया,

अनकहे तक तो हम

अभी पहुँचे ही नहीं....!

10.

गिनवाते रहे

तुम अपने गिले,

हम इस कदर थके

कोई शिकवा न रहा...।

11.

एक बार बचपन में

चाँदी का सिक्का उछाला था

चित-पट तय हो ही न पाई

वो जाकर

आसमान में जड़ गया,

वही तो है

जो चाँद बन गया!


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