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लघुकथाः मिल्कियत

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 - संदीप तोमर

कहाँ घुसे चले आ रहे हो?- सरकारी शौचालय के बाहर खड़े जमादार ने अंदर घुसते हुए भद्र को रोकते हुए कहा।

हाजत लगी है। -भद्र पुरुष ने जवाब दिया।

तुम ऐसे चुपचाप नहीं जा सकते। -जमादार ने प्रत्युत्तर में बोला।

अरे भाई हाजत क्या ढिंढोरा पीटकर जाऊँ? अजीब बात करते हो। -भद्र पुरुष झुँझलाया।

मेरे कहने का मलतब है फोकट में नहीं जा सकते।

क्यों भाई ये सरकारी शौचालय नहीं है?क्या ये किसी की मिल्कियत है।

वो सब हमें नहीं मालूम, सूबे के हाकिम का आदेश है, आज से हाजत का दस रुपया देना होगा। खुल्ला दस का नोट हो तो हाथ पर रखो, वर्ना दफा हो जाओ।

भद्र पुरुष का मरोड़ के मारे बुरा हाल था। एक हाथ से पेट पकड़ वह दूसरे हाथ से जेब टटोलने लगा। 


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