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उदंती.com, मार्च- 202

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वर्ष-14, अंक-7

रँग गई पग-पग धन्य धरा,

हुई जग जगमग मनोहरा ।

           - सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’


अनकहीः  उन्नति की दिशा में बढ़ते स्त्री के कदम- डॉ. रत्ना वर्मा

 पर्व-संस्कृतिः बस्तर की फागुन मड़ई  - रविन्द्र गिन्नौरे

 पर्व-संस्कृतिः कहाँ गई वो गाँव की होली- कमला निखुर्पा

कविताःमुखड़ा हुआ अबीर- रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

 महिला दिवसः या देवि...  - डॉ. सुशीला ओझा

 महिला दिवसः अरी ओ नारी - डॉ. शिप्रा मिश्रा

दो कविताएँः 1. स्त्री समुद्र है, 2. स्त्री व पानी - डॉ. कविता भट्ट

 व्यंग्यः ऑनलाइन कार्यक्रम के लिए ऑफलाइन हिदायतें- जवाहर चौधरी

ग़ज़लः होली में- विनित मोहन ‘फिक्र सागरी’

ताँकाः राधा अधीर कान्हा की बाँसुरी पे - कृष्णा वर्मा

नवगीतः कैसे कहूँ- शशि पाधा

ग़ज़लः रंग- बिरंगा फाग- निधि भार्गव मानवी

हास्य व्यंग्यः महिला दिवस पर गंभीर विमर्श- लिली मित्रा

कविताः पहाड़ यात्रा- मधु बी जोशी

कहानीः लुका-छुपी  - भारती बब्बर 

दोहेः फिर खिल उठा पलाश- डॉ. सुरंगमा यादव

सोनेटः मौन उद्गार- अनिमा दास

कविताःउस दिन कहना - शशि बंसल गोयल

कविताः मौसम है रंगीन सुहाना- प्रो. (डॉ.) रवीन्द्र नाथ ओझा

कविताः माह फागुनी- आशा पाण्डेय

कविताः देहरी से आँगन तक की यात्रा - नंदा पाण्डेय

कविताः एक चुटकी अबीर- सीमा सिघल ‘सदा

कविताः छेड़ो कोई तान- शशि पुरवार

कविताः होली की यादें- डॉ. निशा महाराणा

कविताः बेटी एकः रूप अनेक- चक्रधर शुक्ल

कविताः मुझे बंदिशों में रहना पसंद है - दिव्या शर्मा

प्रेरकः जंगली फूल  - निशांत

लघुकथाः कम्बल- डॉ. रंजना जायसवाल

दो लघुकथाएँ : 1. बुक शेल्फ, 2. परमात्मा वाली नजर - ऋता शेखर मधु

किताबेंः  छंद साधना की अनुपम कृति - डॉ. शिवजी श्रीवास्तव

आधुनिक बोध कथाएँ - 3  राजनीति के फ्यूचर्स  - सूरज प्रकाश

जीवन दर्शनः खुशी अंतस की अवस्था- विजय जोशी



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