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किताबें : भाव जगत को झंकृत करता; लम्हों का सफर

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-डॉ. शिवजी श्रीवास्तव

समीक्ष्य कृति- लम्हों का सफर, कवयित्री- डॉ. जेन्नी शबनम. पृष्ठ संख्या- 112, संस्करण-प्रथम 2020, मूल्य- ₹120/- प्रकाशक-हिन्द युग्म ब्लू,सी-31, सेक्टर 20, नोयडा (उ.प्र.)- 201301

 
    
डॉ. जेन्नी
शबनम की काव्य-कृति
'लम्हों का सफर'..संवेदनशील अनुभव-यात्रा को कविता में अभिव्यक्त करती हुई कृति है।सात शीर्षकों में विभक्त इस पुस्तक का हर शीर्षक जीवन का एक यादगार लम्हा है...एक एक लम्हे की अपनी कई कहानियाँ है,कवयित्री ने विविध लम्हों की विविधअनुभूतियों को बड़े सलीके से कविताओं में पिरोया है।

प्रथम खण्ड -'जा तुझे इश्क हो'की कविताएँ प्रेम की घनी अनुभूति की, प्रेम करने की,और प्रेम में होने की कविताएँ हैं।'प्रेम करने'में और 'प्रेम में होने'में बड़ा फ़र्क है,जो प्रेम में होता उसका समग्र व्यक्तित्व प्रेममय होता है,..'क्या बन सकोगे एक  इमरोज'.. में इमरोज के प्रेम के माध्यम से इसी भाव को बहुत खूबसूरती से व्यक्त किया गया है-'..ये उनका फ़लसफ़ा था/एक समर्पित पुरुष/जिसे स्त्री का प्रेमी भी पसन्द है/इसलिए कि वो प्रेम में है।'इसी खण्ड की कविता 'जा तुझे इश्क हो'में भाषा की व्यंजना चमत्कृत करती है शायद ही कभी किसी ने किसी को ये शाप दिया होगा कि 'जा तुझे इश्क हो'

  दूसरे खण्ड 'अपनी कहूँ'- में कवयित्री ने अपनी उन अनुभूतियों/पीड़ाओं को अभिव्यक्ति दी है, जो निजी होते हुए भी प्रत्येक संवेदनशील मन की हैं,यथा 'मैं भी इंसान हूँ'कविता में हर नारी  मन की पीड़ा देखी जा सकती है-'मैं एक शब्द नहीं,

एहसास हूँ, अरमान हूँ/साँसें भरती हाड़-मांस की,मैं भी जीवित इंसान हूँ।'..'बाबा,आओ देखो!तुम्हारी बिटिया रोती है' -कविता में व्यक्त निजी पीड़ा भी हर उस व्यक्ति की है जिसने अल्प वयस में अपने पिता को खोया हो। इस खण्ड में प्रबल अतीत-मोह भी है, बड़ी होती हुई स्त्री बार-बार अतीत में लौटती है और वहाँ से स्मृतियों के कुछ पुष्प ले आती है।

   तीसरे खण्ड 'रिश्तों का कैनवास'की कविताएँ नितांत निजी रिश्तों के इर्द गिर्द बुनी गई हैं, पर ये 'निजी'होते हुए भी सभी को अपनी लगती हैं।'उनकी निशानी'सहेज कर रखी गई पिता की पुरानी चीजों की कविता है, इसमे बड़ी खूबसूरती से पिता को याद किया गया है।पिता के न रहने पर माँ की वेदना को 'माँ की अन्तः पीड़ा'में व्यक्त किया गया है।'इसी प्रकारअपने पुत्र एवं पुत्री के विविध जन्मदिवसों पर रची विविध कविताओं में कोरी भावाकुलता नहीं है; अपित कुछ उपदेश/शिक्षाएँ है जो हर युवा के जीवन-रण में संघर्ष के लिए अनिवार्य हैं।

   चौथे खण्ड 'आधा आसमान'- में समाज मे स्त्री की स्थिति/पीड़ा द्वंद्वों और वेदनाओं को स्वर मिले हैं। ये कविताएँ गम्भीर प्रश्न भी उपस्थित करती हैं।'मैं स्त्री हूँ''फॉर्मूला','झाँकती खिड़की',

'मर्द ने कहा','बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ'इत्यादि नारी नियति और समाज के दुहरे मानदंडों की कविताएँ हैं।

    अगले खण्ड'साझे सरोकार'में सामाजिक विषमताओं और मूल्यहीनता की चिंताएँ हैं।'शोषण और शोषक के चरित्र, नैतिक मूल्यों के ह्रास की चिंता, वर्तमान के प्रति आक्रोश और विद्रोह भी कई कविताओं में देखा जा सकता है, 'भागलपुर दंगा' (24.10.1989)'कवयित्री के

जीवन में आए भयानक दुःस्वप्न की तरह है उसकी भयावहता को भी उन्होंने इस कविता में व्यक्त किया है। इसी पीड़ा को 'हवा अब खून-खून कहती है'कविता में भी देखा जा सकता है।

  संग्रह के छठवें खण्ड 'जिंदगी से कहा सुनी'तथा अंतिम सातवें खण्ड 'चिंतन'  की कविताएँ कहीं दार्शनिक भाव-बोध के प्रश्नों के उत्तर तलाशने की चेष्टा करती हैं तो कभी वैराग्य भाव और कभी अवसाद ग्रस्त होते मन के द्वंद्व को चित्रित करती हैं। गूढ़ विषयों के चयन और जटिल मनःस्थितियों के चित्रण के कारण इन कविताओं में उलझाव अधिक है सहजता कम,कुछ कविताओं के तो शीर्षक भी जटिल हैं, यथा- 'देह, अग्नि, और आत्मा...जाने कौन चिरायु','अज्ञात शून्यता',इत्यादि।

  समग्रतःभाव-जगत को झंकृत करते इस उत्कृष्ट संग्रह के एक अंश से ही अपनी बात को विराम देता हूँ- 'अपने-अपने लम्हों के सफ़र पर निकले हम/वक्त को हाज़िर नाज़िर मानकर/अपने हर लम्हे को यहाँ दफ़न करते हैं/चलो अब अपना सफ़र शुरू करते हैं।'

   Email. Shivji.sri@gmail.com


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