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कविता- सूरज

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-प्रियदर्शी खैरा

  पक्के बंद कमरों में

 सूरज नहीं घुसता

 कच्चे मकानों में

 छप्पर की दरारों से

 दीवारों पर सूरज उतरता

 सरकता हुआ फर्श पर चलता

 कोई नटखट बच्चा

 सूरज को मुट्ठी में बंद करने मचलता

 मुट्ठी से सूरज फिसलता

 बच्चा सूरज से खेलता

 और सूरज

 बच्चे से खेलता

 

 उसके कमरे में

 उसका अपना सूरज

 आँगन में

 पूरे घर का सूरज

 घर के बाहर

 पूरे गाँव का सूरज

 और आकाश में

 सब का सूरज।

सम्पर्क: 90-91/1, यशोदा बिहार, चूना भट्टी, भोपाल-मध्य प्रदेश, मो. 9406925564


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