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उदंती- दिसम्बर 2015


जिस साहित्य से हमारी सुरुचि न जागे, आध्यात्मिक और मानसिक तृप्ति न मिले, हममें गति और शक्ति न पैदा हो, हमारा सौंदर्य प्रेम न जागृत हो, जो हममें संकल्प और कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करने की सच्ची दृढ़ता न उत्पन्न करे, वह हमारे लिए बेकार है वह साहित्य   कहलाने का अधिकारी नहीं है।                           -प्रेमचंद 


              हिन्दी की यादगार कहानियाँ
        
   अनकही:  समाज का दर्पण  -डॉ. रत्ना वर्मा
     
     


                       
                 
     
           
     
     
       

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