Quantcast
Channel: उदंती.com
Viewing all articles
Browse latest Browse all 2168

लघु कथाएँ - कमल चोपड़ा

$
0
0
खेलने के दिन
स्टोरखिलौनों से भर गया था। पत्नी का विचार था कि उन्हें किसी कबाड़ी के हाथों बेच दिया जाए और जगह खाली कर ली जाए, क्योंकि बच्चे बड़े हो गए हैं और अब उन खिलौनों की तरफ देखते भी नहीं थे। कुछ को छोड़कर ज्यादातर खिलौने नए जैसे ही थे। वह झुंझलाकर बोला था 'हर साल बच्चों का बर्थ-डे मनाते रहे और जब ढेर खिलौने आते रहे, तब भी दूसरों के बर्थ-डे पर बाजार से खरीद खरीदकर नए देते रहे....ढेर तो लगना ही था। कबाड़ी क्या देगा....सौ-पचास?'
बाबूजी ने सुझाया 'जो हुआ, सो हुआ। हमारे बच्चों का बचपन खिलौनों में बीता बस, यही संतोष की बात है। अब यह है कि अगर कहो, तो मैं ये खिलौने ले जाकर किन्हीं गरीब बच्चों में बांट आऊं? और कुछ नहीं, तो एक नेक काम ही सही....।'
वे कुछ नहीं बोल पाए थे। बाबूजी इसे दोनों की सहमति समझकर सभी खिलौने लेकर चल दिए।
बड़े उत्साह के साथ वे इंडस्ट्री एरिया के पीछे बनी झुग्गियों की ओर चल दिए। कितने खुश होंगे वे बच्चे इन खिलौनों को पाकर। रोटी तो जैसे-तैसे वे बच्चे खा ही लेते हैं। तन ढंकने के लिए कपड़े भी मांग तांगकर पहन ही लेते हैं, पर खिलौने उन बेचारों के नसीब में कहां? उनके चेहरे खिल उठेंगे, आंखें चमक जाएंगी खिलौने देखकर....उन्हें खुश होता देखकर मुझे कितनी खुशी होगी। इससे बड़ा काम तो कोई हो ही नहीं सकता...।
झुग्गियों के पास पहुंचकर उन्होंने देखा मैले फटे कपड़े पहने दो बच्चे सामने से चले आ रहे हैं। उन्हें पास बुलाकर उन्होंने कहा 'बच्चो, ये खिलौने मैं तुम लोगों के बीच बांटना चाहता हूं.....इनमें से तुम्हें जो पसंद हो, एक-एक खिलौना तुम ले लो.....बिल्कुल मुफ्त...।'
हैरान होकर बच्चों ने उनकी ओर देखा, फिर एक-दूसरे की तरफ देखा, फिर अथाह खुशी भरकर खिलौनों को उलट-पुलटकर देखने लगे। उन्हें खुश होता देखकर बाबूजी की खुशी का ठिकाना न रहा। कुछ ही क्षणों में बाबूजी ने देखा- दोनों बच्चे कुछ सोच में पड़ गए। उनके चेहरे बुझते से चले गए।
'क्या हुआ?'एक बच्चे ने खिलौने को वापस उनके झोले में डालते हुए कहा 'मैं नहीं ले सकता। मैं इसे घर ले जाऊंगा, तो मां-बाप समझेंगे कि मैने मालिक से ओवरटाइम के पैसे उन्हें बिना बताए ले लिये होंगे और उनका खिलौना ले आया होऊंगा... वे नहीं मानेंगे कि किसी ने मुफ्त में दिया होगा। शक में मेरी तो पिटाई हो जाएगी।'
दूसरा बच्चा खिलौनों से हाथ खींचता हुआ बोला, 'बाबूजी, खिलौने लेकर करेंगे क्या? मैं फैक्टरी में काम करता हूं। वहीं पर रहता हूं। सुबह मुंहअंधेरे से देर रात तक काम करता हूं। किस वक्त खेलूंगा? आप ये खिलौने किसी 'बच्चे'को दे देना।'

अनर्थ
चीखबहुत दूर- दूर तक सुनी थी लोगों ने। चीखने के बाद तिवारी जी बाकायदा चिल्लाने लगे थे अनर्थ....घोर अनर्थ.....महापाप...महापाप।
कुछ ही क्षणों में आ जुटी भीड़ को वहां ऐसा हौलनाक सा कुछ भी घटित हुआ नहीं दिख रहा था। क्या हुआ? हुआ क्या है?
कांपती काया और सूखते गले से बमुश्किल बोल पाए वह- यहां सामने की दुकान वाले ने भगवान जी की मूर्ति बीच सड़क पर दे मारी। टुकड़े-टुकड़े हुए पड़े हैं भगवान जी..... देखो।
फटे पुराने कैलेण्डर और कागज वगैरह को झाड़ू से बाहर करता हुआ सामने वाली दुकान का मालिक दुकान के बाहर लोगों को जुटा देखकर सहम गया था। पहले इस दुकान का मालिक कोई हिन्दू था जो दो दिन पहले अपनी दुकान दूसरे धर्म के इस दुकानदार को बेच गया था। नया दुकानदार आज आकर इसकी साफ सफाई कर रहा था।
फिर चीखे तिवारी जी वो देखो भगवान जी के कैलेंडर को झाड़ू मार रहा है ये विधर्मी..... इधर भगवान जी के टुकड़े पैरों के नीचे आने लगे हैं..... डरे सहमे दुकानदार ने कहा माफ कीजिये माफ कीजिए ... पैरों के नीचे कुछ नहीं आएगा.... मैं इस कचरे को इक_ा करके अग्नि के सुपुर्द कर दूंगा...
भगवान जी को कूड़ा कह रहा है? मारो साले को..... लोगों का गुस्सा दुकानदार पर उतरने लगा। लहुलुहान दुकानदार सड़क पर बिछा दिया गया। उसका लहू भगवान जी के टुकड़ों को भिगाने लगा था। उसकी दुकान को अग्नि के सुपुर्द कर दिया गया। आग फैलती जा रही थी। मामला धर्म का था। शटर गिरने लगे। भगदड़ मच गई।
दूसरे धर्म वालों के हत्थे न चढ़ जाए, सोचकर तिवारी जी भी उल्टे पांव घर की ओर दौड़ पड़े। पकड़ो मारो का शोरगुल और धर्म के जयकारे और शोरगुल उनका पीछा कर रहा था।
दूसरे धर्म वालों के नारे की आवाजें नजदीक आती लगी तो तिवारी जी और तेज दौडऩे लगे। टूटी हुई चप्पलें दौडऩे में रूकावट डालने लगीं तो उन्होंने चप्पल उतारकर फेंक दी और पूरा दम लगाकर नंगे पैर दौडऩे लगे।
अचानक उनके नंगे पैर में कोई चीज चुभी। तब तक वे घर के नजदीक पहुंच चुके थे। दर्द से बिलबिला उठे वे। झुककर उन्होंने वह चीज उठाई। किसी का गले में लटकने वाला बड़ा सा लॉकेट था जिस पर भगवान जी की तस्वीर थी। एक हाथ से उन्होंने अपने पैर को सहलाया। दूसरे हाथ से भगवान जी के चित्र वाला लॉकेट सड़क पर दे मारा। लॉकेट लुढ़कता हुआ नाली में जा गिरा। इस बार तिवारी जी की चीखें नहीं निकली।

सम्पर्क- 1600/114, त्रिनगर, दिल्ली- 110035, फोन- 011-27381899

Viewing all articles
Browse latest Browse all 2168


<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>