अनुसंधानः ग्लोबल वार्मिंग नापने की एक नई तकनीक
- आमोद कारखानीसआजकलग्लोबल वार्मिंग यानी धरती के गर्माने की बहुत बातें हो रहीं है। औद्योगीकरण के चलते हवा में कार्बन डाईऑक्साइड जैसी गैसों की मात्रा बढ़ी है, जिससे विश्व का औसत तापमान बढ़ता जा रहा है।...
View Articleजलवायु परिवर्तनः मौसम को कृत्रिम रूप से बदलने के खतरे
- भारत डोगराहालही में दुबई में मात्र 1 दिन में 18 महीने की वर्षा हो गई और अति आधुनिक ढंग से निर्मित यह शहर पानी में डूब गया। कुछ दूरी पर स्थित ओमान में तो 18 लोग बाढ़ में बह गए, जिनमें कुछ स्कूली बच्चे...
View Articleवन- संपदाः हमारे पास कितने पेड़ हैं?
- डॉ. डी. बालसुब्रमण्यन, सुशील चंदानीचित्रः स्वाति बरणवालपृथ्वीपर कितने पेड़ हैं, कुछ साल पहले इसका विस्तृत विश्लेषण किया गया था। वृक्षों की गणना के इस विश्व स्तरीय प्रयास में ज़मीनी वृक्षों की गणना...
View Articleआलेखः विश्व में पसरती रेतीली समस्या
- निर्देश निधिआजविश्व अनेक समस्याओं और संकटों से जूझ रहा है। जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, प्रकाश प्रदूषण से लेकर पारिस्थितिकी तंत्र के बिखराव को मुख्य रूप से गिना जा सकता है ।आज मनुष्य...
View Articleशब्द चित्रः हाँ धरती हूँ मैं
- पुष्पा मेहरा मैं वही धरती हूँ जिसके स्वरूप को प्रकृति ने अपनी सन्तति की तरह करोड़ों वर्षों में सँवारा यही नहीं अपने सतत प्रयास से इसके रूप को निखारा भी । पहाड़ों पर हरियाली, कलकल करती हुई नदियाँ व...
View Articleपर्यावरणः हिमालय पर तापमान बढ़ने के खतरे
- प्रमोद भार्गवसंपूर्णहिमालय के पहाड़ एवं भूभाग 21वीं शताब्दी के सबसे बड़े बदलाव के खतरनाक दौर से गुजर रहे हैं। इसी स्थाई हिम-रेखा 100 मीटर पीछे खिसक चुकी है। यहाँ जाड़ों में तापमान 1 डिगी बढ़ने से हिमखंड...
View Articleअनकहीः जीना दुश्वार हो गया...
-डॉ. रत्ना वर्माफट रही है ये फिर से धरती क्यूँ,फिर से यज़्दाँ का क़हर आया है।पर्यावरणप्रदूषण एक ऐसा धीमा जहर है, जो समूची धरती को धीरे- धीरे निगलते चले जा रहा है। साल- दर- साल हम प्रदूषण की मार...
View Articleउदंती.com, जून 2024
चित्रः बसंत साहू, धमतरी (छत्तीसगढ़) वर्ष-16, अंक-11भूमि की देखभाल करो तो भूमि तुम्हारी देखभाल करेगी, भूमि को नष्ट करो, तो वह तुम्हें नष्ट कर देगी। - एक आदिवासी कहावतइस अंक मेंपर्यावरण विशेष अनकहीः...
View Articleहाइकुः घायल पेड़
- रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'1बजा मांदलघाटियों में उतरेमेघ चंचल।2चढ़ी उचकऊँची मुँडेर परसाँझ की धूप।3नन्हा सूरजभोर ताल में कूदेखूब नहाए।4लहरें झूलाखिल-खिल करताचाँद झूलता।5शोख़ तितलीखूब खेलती...
View Articleजीवन दर्शनः इकीगाई (Ikigai) : सोच की खोज
- विजय जोशी पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल, भोपाल (म. प्र.)जबआदमी अकेला या कहें खुद के साथ होता है तो तो कई बार उसके मन में अनेक प्रश्न उभरते हैं जैसे मैं क्या हूँ, मैं क्यों हूँ, मेरी खुशियाँ किस चीज़...
View Articleजीवन दर्शनः 3 इंडियट्स
- विजय जोशी - पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल, भोपाल (म. प्र.)प्रथम दृष्टया शीर्षक आपको अटपटा लगेगा, क्योंकि आदमी का आकलन हम अमूमन उसकी आदतों को देखकर करते हैं। पर यह सदा सही नहीं हो सकता। आदत और चरित्र...
View Articleलघुकथाः प ह चा न
- पद्मजा शर्मारातअभी इतनी भी गहराई नहीं थी। इक्के दुक्के लोग वाकिंग पर निकले हुए थे। कुछ लोग आ जा रहे थे। बहता रास्ता था। अचानक चीख पुकार मच गई। राह चलती महिला को किसी गुंडे ने छेड़ दिया। उसका पति...
View Articleकिताबेंः समाज को आईना दिखाने का सशक्त प्रयास
- भारती पाठक प्रजा ही विष्णु है , धर्मपाल अकेला , प्रवासी प्रेम पब्लिशिंग, इंडिया , राजेन्द्र नगर , गाजियाबाद , पृष्ठ 66 , रु 260.00 कहतेहैं कि साहित्य समाज का दर्पण होता हैं, जिसके द्वारा तत्कालीन...
View Articleरपटः व्यंग्य, परसाई और जबलपुर
बाएं से - विनोद साव, कुंदन सिंह परिहार, सम्मान ग्रहणकरते हुए सपत्नीक रमेश सैनी,रामस्वरूप दीक्षित और कैलाश मंडलेकर - विनोद सावव्यंग्य-परसाई-जबलपुर. ऐसा लगता है कि ये तीनों चीजें...
View Articleकविताः आखिर... प्रेम ही क्यों?
- अर्चना रायअक्सर ये सुनती हूँ कितुम्हारी कविता का विषयप्रेम ही क्यों होता है?क्या इससे इतरकुछ लिखने- कहने नहीं होता ? कहीं ऐसा तो नहीं... कि तुमने प्रसिद्धि का रास्ता, प्रेम को हीतो नहीं मान लिया...
View Articleलघुकथाः राँग नंबर
- राजेश पाठकसुमितपटना से गिरिडीह जा रहा था। स्टेशन पर वर्षों बाद कॉलेज के सहपाठी रमन से उसकी भेंट हो गई । इस तरह अक्समात् भेंट होने से दोनों के मन के भीतर कॉलेज के दिनों की पुरानी सुखदायी स्मृतियाँ...
View Articleकहानीः मेरा क्या कसूर है पापा
- स्नेह गोस्वामीबाहरकी डोरबेल बजी और अधीरता से बजती चली गई । चकले पर रोटी बेलती सुमी के हाथ से घबराहट में पेड़ा नीचे गिर गया । उसने झुककर आटा का वह पेड़ा उठाया ही था कि लुढ़कता हुआ बेलन सीधा उसके...
View Articleव्यंग्यः आम आदमी
- रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु ’ आमआदमी वह जीव है, जो आम उगाता है, रखवाली करता है, आम बेचता है और खुद आम की गुठली से भी कोसों दूर रहता है। यह आम आदमी बहुत सौभाग्यशाली होता है; क्योंकि यह स्थिति से...
View Articleकविताः कुछ पल
- सुरभि डागरकुछ पलों में बड़ा मुश्किल होता है भावों को शब्दों में पिरोना,बिखर जाते हैं कई बारहृदय तल में मानों धागे से मोती निकल दूर तकछिटक रहे हों ।अनेकों प्रयास किएसमेटने केपरन्तु छूट ही जाते कुछ...
View Articleआलेखः सामाजिक चेतना को उन्नत करता है पर्यटन
- मीनाक्षी शर्मा ‘मनस्वी’अनंतकाल से ही मानव जिज्ञासु प्रवृत्ति का रहा है । उसकी इन्हीं लालसाओं ने उसे कुछ समय के लिए घर से बाहर निकलकर प्रकृति को देखने , समझने और महसूस करने के लिए प्रेरित किया ।...
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