लौटते हुए तुम
- सुदर्शन रत्नाकर
लौटते हुए तुम
अपने साथ
मेरे गाँव की थोड़ी मिट्टी ले आना
जिसमें सावन माह की
पहली वर्षा की बूँदों की
सोंधी गंध आती हो।
थोड़े संस्कारों के बीज ले आना
थोड़े चंपा गुलाब के फूल लाना
जिनमें बचपन के प्यार की
महक आती हो।
मेरी माँ के हाथों की बनी
थोड़ी पंजीरी ले आना
जिसमें उसकी ममता का स्पर्श हो मुझे
पिता की ख़ामोश आँखों का जादू ले आना
जिनसे मैं आज भी डरता हूँ
मेरे गाँव के पीपल की छाँव ले आना
लोगों का अपनापन और संवेदनाओं का
उपहार ले आना
रिश्तों की गरिमा लाना
जिन्हें मैं अपने दिल की
बंजर भूमि पर उगाऊँगा
जो आज भी मेरी यादों में बसी है।
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