गुरु पर करें गर्व
- विजय जोशी
(पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल, भोपाल)
भारतीयदर्शन में गुरु एक बहुत पवित्र शब्द है तथा इसे ईश्वर से भी ऊपर का दर्जा प्राप्त है। गुरु का पद, प्रतिष्ठा, पैसा या ऊपरी तामझाम या आडंबर से कोई सरोकार नहीं। यह तो ज्ञान, अनुभव, आचरण एवं सदाशयता से जुड़ा पावन माध्यम है मंज़िल तक पहुँचने का। इसे केवल वही जानता या अनुभव कर पाता है जिसके जेहन में जिज्ञासा का भाव हो। इस संदर्भ में हाल ही में मेरे विद्वान्मित्र ने एक पौराणिक प्रसंग साझा किया है, जो इस प्रकार है।
नारद की भगवान् विष्णु के बड़े भक्तों में गणना की जाती है। यदा कदा उन्हें भी अपनी भक्ति पर गर्व हो जाया करता था। यह बात विष्णु भली-भाँतिजानते थे। एक बार उनके जाते ही भगवान् विष्णु ने लक्ष्मी से नारद के बैठे स्थान को गोबर से लीपने को कहा। प्रस्थान कर रहे नारद ने यह बात सुन ली और अपना अप्रत्यक्ष अपमान समझते हुए जब कारण जानना चाहा, तो उत्तर मिला कि आप तो निगुरे यानी गुरुरहित हो। इसलिए ऐसा कहा।
नारद ने सहमत होते हुए कहा–सत्य वचन प्रभु। पर मैं गुरु बनाऊँ तो बनाऊँ किसे।
विष्णु ने कहा–धरती पर जाओ और जिस व्यक्ति से सर्वप्रथम भेंट हो,उसे ही अपना गुरु मान लो।
यह बात सुनकर नारद जब धरती पर पधारे, तो उनका सबसे पहले सामना हुआ एक मछुआरे से। नारद निराश होकर फिर विष्णुजी के पास पहुँचे और कहा– भगवन् !वह तो कुछ भी नहीं जानता। उसे कैसे अपना गुरु मानूँ।
विष्णु ने कहा-पहले अपना प्रण पूरा करो।
नारद लौट आएऔर किसी तरह से बड़ी मुश्किल से उसे राजी करने के बाद फिर भगवान्विष्णु के पास पहुँचे तथा कहा– हे भगवान् ! उसे तो कुछ भी नहीं आता। अब क्या करूँ। यह सुनते ही विष्णु को क्रोध आ गया– नारद तुम्हारा अहंकार अभी गया नहीं। गुरु की निंदा करते हो। जाओ शाप है -अब तुम्हें 84 लाख योनियों में घूमना पड़ेगा।
नारद घबरा गए– भगवन स्वीकार पर साथ ही मुक्ति का उपाय तो बतलाइए।
विष्णु ने कह -उपाय तो अपने गुरु से ही पूछो।
नारद लौट गएऔर सारी बात अपने गुरु से साझा करते हुए उपाय पूछा, तो गुरु रूपी मछुआरे ने कहा– यह तो बड़ा सरल है। आप 84 लाख योनियों कीतस्वीर बनाकर उन पर लेट कर गोल घूम लेना और जाकर अपने भगवान्को बता देना।
नारद ने ठीक ऐसा ही किया और फिर विष्णुजी के पास उपस्थित होकर सारी बात बताते हुए अपनीमुक्ति निवेदन दुहराया। यह सुनकर विष्णुजी ने कहा– देखा तुमने,जिस गुरु की निंदा की उसी ने तुम्हें शाप से बचाया। अब समझे गुरु महिमा अपरंपार है।
बात भले ही पौराणिक कल्पना की कड़ी हो;पर सारगर्भित है। गुरु का आकलन गुणों से करते हुए उनका पूरा सम्मान करना चाहिए। इसमें शिष्य का कल्याण है। गुरु के वचन पर विश्वास रखने वाले का सदा भला होता है।
गुरु गूँगे गुरु बावरे गुरु के रहिए दास,
गुरु जो भेजे नरकहीं, स्वर्ग की रखिएआस।
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