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कविता

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अब कहाँ वो गाँव है
-विजय जोशी
(पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल, भोपाल)


छोड़ आया था जिसे
एक सुंदर मोड़ पर
स्वप्न बनकर सो गया
अब कहाँ वो गाँव है.

छाँह में जिसके तले
बैठते थे सब भले
उस रक्तवर्णी गुलमुहर की
अब बची कब छाँव है
अब कहाँ..

रही अमराई नहीं
पुरवा तक बही नहीं
मोर भी हैरान हैं
गुम गया जो ठाँव है
अब कहाँ..


मौसम भी रूठा है
अपनों से टूटा है
नदियाँ  हैरान हैं
अब कहाँ वो नाव है
अब कहाँ..

शहरों की चाल है
अब कहाँ चौपाल है
संगी सब बिेछड़ गए
अब कहाँ वो चाव है
अब कहाँ..


सज गर्इं हैं मंडियाँ
खो गर्इं पगडंडियाँ
दौड़ मिल जाएँ गले
अब कहाँ वो पाँव हैं
अब कहाँ..

सूनापन उतरा है
जीवन भी बिखरा है
खो गया सब कुछ यहाँ
अब कहाँ वो भाव है
अब कहाँ..


सम्पर्क: 8/ सेक्टर-2, शांति निकेतन (चेतक सेतु के पास), भोपाल- 462023
मो. 09826042641, E-mail- v.joshi415@gmail.com

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