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लघुकथाः दो तितलियाँ और चुप रहने वाला लड़का

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 - प्रबोध गोविल

दोतितलियाँ उड़ते-उड़ते एक खेत में पहुँच गईंl वहाँ हल चला रहे एक लड़के से उन्होंने पूछा,“यहाँ क्या उगाओगे?”

“अपने लिए चावलl” लड़का बोलाl

तितलियाँ उपेक्षा से बोलीं,“सेल्फिशl”

कुछ दिन बाद तितलियों को लड़के की याद आईl वे खेत में पहुँचींI चावल उग चुका थाl कुछ कबूतर दाना खा रहे थेl बकरियाँ फेंके गए पौधे चर रही थींl लड़का, चावल मंडी में ले चलाl चावल, बाज़ार से एक सुंदर पैक एक घर में आते देख तितलियाँ उस घर की खिड़की पर मँडराने लगींl उन्हें बड़ा मज़ा आया, जब दादी माँ चावल बीनने बैठींI कंकड़ के साथ कभी-कभी दाना भी फेंक देतीं और एक चिड़िया फुदक-फुदककर उसे उठा ले जातीl तितलियाँ ख़ुशी से ताली बजातींl

चावल बहुत स्वाद थे, पर घर के लोगों ने थोड़ी जूठन भी छोड़ीl उसे गली के कुत्ते ने खायाl पिछवाड़े की नाली से जब बर्तन धुलने का पानी आया, कई कीड़े दौड़ेl तितलियों ने भी सबकी नज़र बचाकर थोड़ा चख लियाl तितलियों को लड़के की याद आने लगीl वे खेत पर पहुँचीं , तो  देखा, लड़का एक पेड़ के नीचे बैठा चने खा रहा थाl तितलियाँ शरमाते हुए उसके समीप पहुँचीं, और बोलीं, “सॉरी भैया.”

लड़का कुछ न बोला, शायद वह सोच रहा था कि शाम को हाट से बहन के लिए तितलियों के रंग- सी चुनरी लेकर जाएगा।


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